रोचक होते जा रहे चुनावी मुकाबले में नामांकन के अन्तिम दिन भारी बारिष के बावजूद प्रत्याषियों लगाया पूरा जोर।
राजनीति के लिहाज से महत्वपूर्ण मानी जा रही नैनीताल जिले की कालाढ़ूंगी तथा उधमसिंहनगर जिले की किच्छा विधानसभा सीटों पर आज दो महत्वपूर्ण बदलाव दिखे। अगर बात कालाढ़ूंगी से शुरू करें तो हम यह कह सकते है कि प्रकाश जोशी के क्षेत्र में पदार्पण के तत्काल बाद से ही कालाढ़ूंगी विकास मंच से जुड़े नेताओं के उनके खेंमे में जुटने का सिलसिला आज काफी तेज दिखा और अब तक महेश शर्मा के समर्थन व उनकी चुनाव रैलियो के लिऐ भीड़ इक्कट्ठी कर रहे नेता आज प्रकाश जोशी की जय जयकार करते दिखे। इसे इन्दिरा हृदयेश का बड़प्पन ही कहा जायेगा कि वह प्रकाश जोशी की अभ्रदता व अशोभनीय व्यवहार को अनदेखा कर न सिर्फ प्रकाश जोशी की रैली में थी बल्कि नामांकन के अन्तिम दौर तक वह प्रकाश जोशी के साथ खड़ी दिखाई दी। इसे हाईकमान का करिशमा कहें या फिर प्रकाश जोशी के व्यक्तित्व का असर लेकिन इस तथ्य से इनकार नही किया जा सकता कि अपने निर्वाचन क्षेत्र मेें कम ही नजर आने वाले प्रकाश जोशी के कार्यक्षेत्र में कांग्रेस सबसे ज्यादा एकजुट दिखाई दी और गुटबाजी से दूर कांग्रेस के तमाम छोटे-बड़े नेता प्रकाश के पक्ष मे खड़े दिखे। हालात यह इशारा तो कर रहे है कि प्रकाश के इस करिश्में के बाद आगामी विधानसभा चुनावों में उन्हें एक स्वाभाविक बढ़त मिलती दिख रही है लेकिन हमें यह ध्यान रखना होगा कि इस चुनाव में उसका मुख्य मुकाबला लगातार पांच बार विधायक रह चुके वंशीधर भगत से होगा जबकि जमीन से जुड़े माने जा रहे महेश शर्मा के अलावा बसपा से भाकुनी व निर्दलीय दर्मवाल भी इस मुकाबले को त्रिकोणीय करने में अपना जोर लगा रहे है। खैर चुनावों की वस्तुस्थिति क्या होगी इसका अंदाजा तो नतीजो के बाद ही आयेगा लेकिन आज प्रकाश जोशी के नामांकन के बाद यह तय हो गया कि हाल-फिलहाल के लिऐ हल्द्वानी व किच्छा के अलावा कालाढ़ू़ंगी भी एक महत्वपूर्ण निर्वाचन क्षेत्र होगा। हांलाकि हल्द्वानी में मेयर जोगेन्द्र रौतेला के नामाकंन के अलावा ऐसा कोई बड़ा राजनैतिक परिवर्तन नही हुआ है जिसे समीकरणों में उलटफेर करने वाला कहा जा सके और न ही जनता का रूख देखकर चुनाव नतीजों का अंदाजा लगाया जाना आसान है लेकिन रौतेला के अलावा सपा, बसपा और शिवसेना के प्रत्याशियो द्वारा नामांकन के लिऐ एकत्र की गयी भीड़ को देखते हुऐ यह कहा जा सकता है कि चुनावी मुकाबला यहां भी दिलचस्प होता जा रहा है। इसके ठीक विपरीत चुनावी जोड़-तोड़ के लिहाज से मजबूत सीट मानी जा रही किच्छा विधानसभा में मुख्यमंत्री के मुकाबले निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में शिल्पी के उतरने के बाद मामला यहां भी दिलचस्प मोड़ लेता दिख रहा है। हांलाकि गदरपुर से पार्टी का टिकट मांग रही शिल्पी अरोड़ा का किच्छा में कोई बहुत बड़ा जनाधार है, ऐसा मालुम नही होता लेकिन शिल्पी के अंदाज यह बंया कर रहे है कि वह इस लड़ाई के लिऐ पूरी तरह तैयार है और अपने आंसुओं को ही अपना प्रमुख हथियार बना वह इस मुकाबले में उतरने की तैयारी कर रही है। हो सकता है कि भाजपा भी मुख्यमंत्री की घेराबंदी करने के उद्देश्य से निर्दलीय प्रत्याशी शिल्पी अरोड़ा को परोक्ष रूप से कुछ समर्थन दे और शिल्पी के राजनैतिक आका माने जाने वाले केन्द्रीय मंत्री विरेन्द्र सिंह अपने पूर्व अनुभवों व संबंधो का फायदा शिल्पी अरोड़ा को देने की नीयत से किच्छा के चुनाव मैदान में ही डेरा जमा लें। गौरेतलब है कि वर्तमान में मोदी सरकार के मंत्री विरेन्द्र सिंह पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी थे तथा उनके साथ बने निजी संबंधो के चलते ही शिल्पी अरोड़ा का कांग्रेस की नेत्री के रूप में उत्तराखंड में अवतरण हुआ था। पिछली बार भी वह गदरपुर विधानसभा क्षेत्र की प्रमुख उम्मीदवार मानी जा रही थी लेकिन ऐन वक्त पर प.नारायण दत्त तिवारी के भतीजे मनीषी तिवारी को टिकट दिये जाने के कारण उनका पत्ता कट गया था। इस सबके बावजूद चुनावी दौर में वह बड़ी प्रमुख भूमिका में रही तथा एक प्रवक्ता के रूप में उन्होंने सम्पूर्ण राज्य के चुनावी प्रबन्धन की बखूबी संभाला। अब देखना यह है कि उनके यह तमाम पिछले संबंध किस हद तक उनकी मदद करते है और वह भाजपा के उम्मीदवार राजेश शुक्ला को पछाड़कर उनकी जगह ले पाने में किस हद तक सफल होती है।