मजबूत निर्दलीय प्रत्याशियों को विधायक नही बल्कि मंत्री पद का दावेदार मानकर चल रहे है उनके समर्थक।
सत्तर विधानसभा सीटो वाले उत्तराखंड में निर्दलीय इस बार फिर प्रमुख भूमिका में है और सरकार गठन के वक्त दी जाने वाली अहमियत व रूतबे को देखते हुऐ जनता से सीधे जुड़े हुऐ चेंहरे या फिर संगठन से टिकट न मिलने से नाराज नेता बगावत कर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरने में परहेज नही कर रहे। वर्तमान सरकार के दो मंत्री दिनेश धनै व प्रीतम सिंह पंवार एक बार फिर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में है और कांग्रेस द्वारा प्रीतम सिंह के समर्थन में अपना प्रत्याशी मैदान से हटाने के बाद यह माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री हरीश रावत अभी भी गठबंधन धर्म निभाते हुऐं अपने इन दोनों ही सहयोगियों को विधानसभा तक पहुँचाना चाहते है जबकि कांग्रेस के बागी उम्मीदवार के रूप में आर्येन्द्र शर्मा ने इस बार कांग्रेस के लिहाज से आसान सीट मानी जा रही सहसपुर विधानसभा में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय की मुश्किलें बढ़ा दी है। गौरेतलब है कि पिछले चुनाव में निर्दलीय दिनेश धनै से चुनाव हार चुके किशोर उपाध्याय अपने कार्यकाल के शुरूवाती दौर से ही पीडीएफ के सहयोगी के रूप में सरकार को समर्थन दे रहे दिनेश धनै को मंत्रीपद देने के विरोध में थे लेकिन हरीश रावत के मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद दिनेश धनै को न सिर्फ मंत्री बनाया गया बल्कि किशोर उपाध्याय द्वारा पार्टी फोरम के अलावा सार्वजनिक मंच से भी किये विरोध के बावजूद यह पहले ही तय हो गया था कि किशोर उपाध्याय को टिहरी से टिकट की दावेदारी के मामले में ही कई तरह की अड़चनों का सामना करना पड़ेगा। इसलिऐं किशोर उपाध्याय ने पहले राज्यसभा का चुनाव लड़ने और फिर बाजरिया ऋषिकेश विधानसभा पहुंचने का मन बनाया था जबकि सहसपुर विधानसभा सीट से पहले भी दावेदारी कर चुके आर्येन्द्र शर्मा एक बार फिर पूरे जोर-शोर से अपनी तैयारी में जुटे हुऐ थे। इस तथ्य से इनकार नही किया जा सकता कि पिछले चुनावों भी मजबूत प्रत्याशी माने जा रहे आर्येन्द्र कुछ निर्दलीय प्रत्याशियों की वजह से ही चुनाव हार गये थे और इस बार यह माना जा रहा था कि हरीश रावत के सहयोग से उन्हें इस चुनाव को जीतने में कोई परेशानी नही होगी लेकिन टिकट बंटवारे के अन्तिम दौर में उनका नंबर काटकर एकाएक ही किशोर उपाध्याय को टिकट दिया जाना और किशोर उपाध्याय का भी बिना किसी ना नुकर के इस सीट से चुनाव लड़ने को तैयार हो जाना यह साबित करता है कि हरीश रावत ने किशोर की सहसपुर से चुनावी जीत को लेकर कोई ठोस रणनीति बनायी हुई है या फिर आर्येन्द्र शर्मा को विधानसभा तक न पहुंचने देने के लिऐ किशोर उपाध्याय के राजनैतिक जीवन को दांव पर लगाने में हरीश रावत को कोई हर्ज महसूस नही होता। हो सकता है कि चुनावी हार की स्थिति में किशोर उपाध्याय को राज्यसभा अथवा लोकसभा का चुनाव लड़ाये जाने का आश्वासन मिला हो या फिर इस बार गुलजार को निर्दलीय चुनाव लड़ने से रोकने में कामयाब रहे हरीश रावत को यह पूरा भरोसा हो कि अपने निजी संबंधों व व्यक्तिगत् दौड़भाग के बूते वह सहसपुर के राजनैतिक समीकरण अपने पक्ष में करने में कामयाब होंगे लेकिन किशोर इस बार भी निर्दलीय उम्मीदवार से ही चुनाव हारते है तो प्रदेश में भाजपा या कांग्रेस में से किसी भी दल की सरकार बनने की स्थिति में निर्दलीय चुनाव लड़ रहे आर्येन्द्र शर्मा का मंत्रीपद तय माना जा सकता है क्योंकि कांग्रेस अथवा भाजपा के मजबूत हल्को में आर्येन्द्र की ठीक-ठाक पकड़ से किसी को भी इनकार नही है। निर्दलीय प्रत्याशियों को लेकर चल रही इस चर्चा में कांग्रेस के एक अन्य बडे़ नेता प्रकाश जोशी के खिलाफ निर्दलीय मैदान में उतरे महेश शर्मा तथा सरकार के मंत्री हरीश दुर्गापाल के खिलाफ ताल ठोक रहे निर्दलीय प्रत्याशी हरेन्द्र बोरा का जिक्र करना भी आवश्यक है। अगर हम अपनी बात प्रकाश जोशी से शुरू करें तो यह साफ दिखता है कि पिछली बार भी महेश शर्मा ही प्रकाश जोशी की हार का कारण बने थे लेकिन इस बार महेश शर्मा ने काफी पहले से चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है। हांलाकि कांग्रेस इस बार भी पूरी तरह प्रकाश जोशी के पीछे लामबंद है और हरीश रावत द्वारा किये गये कालाढ़ूंगी क्षेत्र के शुरूवाती दौरोे के बाद प्रकाश जोशी की स्थिति मजबूत मानी भी जा रही है लेकिन क्षेत्र से लगातार ही गायब रहने वाले प्रकाश जोशी का स्थानीय जनता से सीमित सम्पर्क उन्हें मुश्किल में डाल रहा है जबकि स्थानीय भाजपा विधायक बंशीधर भगत और निर्दलीय महेश शर्मा कालाढ़ूंगी विकास मंच के बेनर तले अपना झण्डा बुंलद किये हुऐ है। अब अंत में हम बात करते है पीडीएफ कोटे से सरकार में पांच साल मंत्री रहे हरीश दुर्गापाल की। लालकुँआ विधानसभा से निर्दलीय चुनाव जीतकर सरकार में शामिल हुऐ दुर्गापाल इस बार हरीश रावत के आर्शीवाद से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में मैदान में है जबकि पिछली बार इस विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी रह चुके हरेन्द्र बोरा इस बार निर्दलीय मैदान में है और भाजपा ने एक बार फिर पुराने चेहरे के रूप में नवीन दुम्का को मैदान में उतारा है। हांलाकि एक मंत्री के रूप में दुर्गापाल द्वारा किया गया काम इस क्षेत्र के उनके लगातार जुड़े रहने की ताकीद करता है और पिछली बार निर्दलीय चुनाव जीतने के बावजूद कांग्रेेस सरकार में मंत्री बनना व स्थानीय कांग्रेसी नेताओं के सतत् सम्पर्क में रहना उनके पक्ष में जाता है लेकिन इस विधानसभा क्षेत्र के सबसे बड़े आबादी वाले हिस्से बिन्दुखत्ता को नगरपालिका क्षेत्र घोषित करने व बाद में इसे वापस लेने के चक्कर में हुई राजनैतिक खींचतान दुर्गापाल को राजनैतिक रूप से कमजोर करती मालुम होती है। भाजपा का इस क्षेत्र में बढ़ा वोट बैंक है तथा बीच में प्रकाश पंत के इस विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी बनने की संभावनाओं व उनके स्थानीय स्तर पर हुऐं दौरो ने यहां भाजपा को और भी ज्यादा मजबूती दी है लेकिन इस क्षेत्र की जनता सिर्फ विधायक नही बल्कि अपने क्षेत्र के विकास के लिऐ मंत्री चुनना चाहती है और स्थानीय स्तर पर मतदाताओं का मानना है कि दुर्गापाल की जीत और हरीश रावत की सरकार बनने की स्थिति में उनका मंत्री बनना तय है जबकि हरेन्द्र बोरा की जीत पर किसी भी दल की सरकार में उनके मंत्री बनने की संभावनाऐं ज्यादा हैं। कुल मिलाकर देखा जाय तो इस बार चुनाव मैदान में उतरने वाले निर्दलीय प्रत्याशियों की संख्या पहले के मुकाबले कम होने के बावजूद कुछ मजबूत व सशक्त दावेदार मैदान में हैं और उनके समर्थक उन्हें सिर्फ विधायक मात्र मानकर चुनाव नही लड़ा रहे बल्कि पिछली सरकारों का रूझान देखते हुऐ किसी भी दल की सरकार बनने की स्थिति में उनका मंत्री बनना तय माना जा रहा है।