पढ़े-लिखे स्थानीय युवाओं का आईएसआई जैसे खतरनाक संगठनों के लिऐ काम करना राष्ट्र की सुरक्षा के लिये खतरनाक
पड़ोसी मुल्क की सुरक्षा ऐजेन्सी आईएसआई अपनी सीमाओं की सुरक्षा से कहीं ज्यादा भारत में आंतकी गतिविधियाँ व अराजकता कराने में रूचि लेती है और अपने कई गोपनीय कार्यक्रमों को अंजाम देने तथा हमारे देश के विभिन्न हिस्सों में चल रही राजनैतिक, सामाजिक व अन्य तमाम गतिविधियों की सूचना सहज प्राप्त करने के लिऐं आईएसआई ने हमारे देश में अपने कई गुप्त व सक्रिय सदस्य बनाये हुऐ है जिनकी गतिविधियों के आधार पर भारतीय खुफिया ऐजेन्सियां उन्हें समय-समय पर गिरफ्तार भी करती रही है। हांलाकि इस तथ्य को दावे से नही कहा जा सकता लेकिन फिर भी यह माना जाता रहा है कि धार्मिक आधार पर आंतकवाद को शह देने वाली पाकिस्तान सरकार व उसकी सहयोगी आईएसआई भारत में अपने पांव पसारने के लिऐ इस्लाम का सहारा लेती है और जेहाद व धर्म के नाम पर बेरोजगार मुस्लिम युवाओं को मोटे पैसो का लालच देकर देश के खिलाफ काम करने के लिऐ भड़काया जाता है। मजे की बात यह है कि हिन्दुत्व एवं राष्ट्रवाद की बात करने वाली भाजपाई विचारधारा का एक बड़ा हिस्सा यह मानकर चलता है कि भारत में रहने वाले मुसलमानों में से अधिकांश और उनके वोटो की राजनीति करने वाले तमाम राजनैतिक दलों के नेता घोषित- अघोषित तौर पर आईएसआई के लिऐ काम करते है तथा अपने इन तथ्यों की पुष्टि के लिऐ भाजपा के तमाम बड़े-बड़े नेताओं द्वारा समय-समय पर तथ्य भी प्रस्तुत किये जाते रहे है लेकिन इस बार आईएसआई ऐजेन्ट होने के शक में भाजपा के युवा मोर्चे से जुड़े दो नेताओं को भी गिरफ्तार किया गया है और उसपर भी तुर्रा यह है कि यह दोनों ही युवा हिन्दू है। धु्रव सक्सेना और मोहित अग्रवाल नाम के यह दोनों ही युवक लम्बी गाड़ियों में घूमने के शौकीन बताये जाते है तथा भाजपा की आईटी सेल व युवा मोर्चा के लिये काम करने वाले इन दोनों ही युवाओं के भाजपा के तमाम बड़े नेताओं से संबध बताये जाते है। यह ठीक है कि पुखंराया और रूरा रेल हादसे की जांच के दौरान सामने आये ग्यारह नामों को अभी सिर्फ शक के आधार पर पूछताछ के लिये हिरासत में लिया गया है तथा जब तक इनपर आरोंप तय नही हो जाते इन्हें अपराधी करार देना या फिर इन्हें राजनैतिक संरक्षण देने वाले दलों पर आरोप लगाना ठीक नहीं है लेकिन एक बात तो तय है कि अपना जनाधार बढ़ाने के नाम पर अंधा-धुंध तरीके से सदस्य बनाने व रेवड़ियों की तरह पद बांटने का काम हर राजनैतिक दल करता है और किसी भी राजनैतिक दल में यह परम्परा नही है कि वह अपना प्राथमिक सदस्य बनाने अथवा पदो को आंबटन करने से पहले राजनीति के इच्छुक व्यक्तित्व की किसी भी तरह की जानकारी जुटाये। चुनावों की राजनीति में होने वाले अंधाधुंध खर्च और राजनैतिक व्यक्तित्वों की एकाएक ही बढ़ने वाली सम्पत्तियों के ब्योरे को देखते हुऐ यह तो तय है कि राजनीति व भ्रष्टाचार का सीधा-सीधा नाता रहा है लेकिन देश सेवा के व्रत से राजनीति के मैदान में पदार्पण करने का दावा करने वाले युवा एकाएक ही दुश्मन देशों के ऐजेण्ट बन राष्ट्रद्रोह की गतिविधियों में शामिल हो जायेंगे इस तथ्य पर एकाएक ही विश्वास नही किया जा सकता किन्तु देश की सुरक्षा के लिये जिम्मेदार जिस सुरक्षा ऐजेन्सी द्वारा इनके खिलाफ तथ्य प्रस्तुत किये गये है, उन्होंने भी इतना बड़ा कदम उठाने से पहले तमाम तथ्यों को देखा और परखा होगा। सूत्रों से मिल रही खबरों के अनुसार लगातार दिल्ली, मुम्बई और दुबई जाने वाले यह दोनों ही युवा नेता न सिर्फ शाहखर्ची के शौकीन थे बल्कि इनके द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली लम्बी-लम्बी गाड़ियां भी स्थानीय जनता के लिये कौतहुल का विषय थी। हांलाकि किसी भी राजनैतिक संगठन से जुड़े दो चार सदस्यों के अपराधियों अथवा राष्ट्र विरोधी तत्वों के साथ तालमेल मिलने की खबरों के आधार पर उस राजनैतिक दल या उसके नेताओं को इसके लिऐ निशाना बनाया जाना उचित नही है और न ही इस बड़ी कारगुजारी के सामने आने से पहले संगठन से जुड़े किसी बड़े नेता को यह जानकारी ही रही होगी कि उनके नाम की आड़ में क्या-क्या गुल खिलाये जा रहे है लेकिन इस तथ्य से भी इनकार नही किया जा सकता कि किसी भी कीमत पर चुनावी जीत हासिलकर सरकार बनाने की जिद में हमारे राजनेता व राजनैतिक दल इतना आगे निकल आये है कि उन्हें किसी भी अपराधी या अपराधी मानसिकता के व्यक्तित्व को अपने साथ जोड़ने मे कोई हर्ज नही दिखता। इस ताजा घटनाक्रम के सामने आने के बाद यह तय हो गया है कि हमारे देश के दुश्मनों की नजर न सिर्फ इस देश के युवाओं पर है बल्कि वह पढ़े-लिखे युवाओं की बेरोजगारी का सहारा लेकर भी अपने मिशन को अंजाम देने की राह तलाश रहे है और अगर हम अभी भी नही चेते तो वह दिन दूर नही जब हमारे अपने ही लोगों का भरोसा अपने आस-पास रहने वालों से उठ जाये। इसलिऐं हालातों के और ज्यादा बिगड़ने से पहले हमारे नेताओं व नीति निर्धारकों को चाहिऐं कि संकट की इस घड़ी में वह एक दूसरे पर आरोंप-प्रत्यारोंप लगाने की जगह इस गंभीर समस्या का समाधान ढूँढे।