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Wednesday, May 08, 2024

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आगे बढ़ने की जिद के साथ

विरोधियों केा चुप कराने की मुहिम में जुटी भाजपा
देश की राजधानी दिल्ली में छात्रों के बीच चल रही गहमागहमी को दो छात्र संगठनों का राजनैतिक संघर्ष कहकर नही टाला जा सकता और न ही इस तथ्य पर ऐतबार किया जा सकता है कि वैश्विक मानचित्र में अपना एक अलग स्थान रखने वाले लेडी श्रीराम काॅलेज और जेएनयू समेत दिल्ली यूनिवर्सिटी के तमाम काॅलेज अलगावादी विचारधारा व देशद्रोही गतिविधियों के प्रमुख केन्द्र है। राष्ट्रवाद, देश प्रेम या फिर स्वदेशी की भावना प्रदर्शन से कहीं ज्यादा अनुभूति के विषय है और इन तमाम विषयों पर हर व्यक्ति की सोच में थोड़ा-बहुत मतभेद होने के बावजूद यह एक अटल सत्य है कि हम सब अपने राष्ट्र, अपनी कौम या अपने मुल्क के लिऐ कुछ न कुछ ऐसा करना चाहते है जिससे हम इतिहास में अमर हो जाय अर्थात् आने वाली पीढी हमें राष्ट्र के निर्माण में हमारे द्वारा दिये गये योगदान के लिऐ याद करें लेकिन इधर पिछले कुछ वर्षों में राष्ट्र की राजनीति पर हावी हुई कुछ ताकतें राष्ट्रवाद को धर्म का मुलम्मा लगाकर देखना चाहती है और अपनी राजनैतिक हैसियत बढ़ाने के लिऐ उन्हें किसी भी किस्म के दंगा-फसाद या अराजकता से कोई आपत्ति नही है। इतिहास बदलने को आतुर यह तथाकथित राष्ट्रवादी ताकतें अपनी पिछली गलतियों को छुपाते हुऐ वह सबकुछ हासिल कर लेना चाहती है जो हमारें महापुरूषों ने एक लंबे संघर्ष व राष्ट्र के प्रति निष्ठा के परिणामस्वरूप हासिल किया है और स्वमहिमामण्डन के इस खेल में महापुरूषों पर कीचड़ उछालना या फिर उनके अंदाज की नकल करना, इन तथाकथित राष्ट्रवादी ताकतों का रोज का काम है लेकिन नकल व स्वमहिमामण्डन का यह खेल अब इस हद तक बढ़ गया है कि मुद्दों पर वैचारिक संघर्ष और व्यापक जनहित की बात करने वाले लोग इनकी आंखों में चुभने लगे है। इस तथ्य से इनकार नही किया जा सकता कि एक परिपक्व लोकतंत्र के रूप में भारत का संविधान हमें अपना पक्ष जनता के बीच रखने की पूरी आजादी देता है और विपक्ष में रहते हुऐ भाजपा के नेताओं व भाजपा के नीति निर्धारक संघ ने इस आजादी को भरपूर फायदा उठाया है लेकिन सत्ता के शीर्ष पदों आरूढ़ होने के बाद सत्तापक्ष के विरोध में उठती इस तरह की तमाम आवाजें भाजपा के नेताओं को देशद्रोह लगती है और सरकार चला रहे भाजपा के शीर्ष नेताओं को यह महसूस होता है कि सत्तापक्ष के विरूद्ध साजिशों को अंजाम दिया जा रहा है। यह संघ की दोगली नीतियों का ही परिणाम है कि कारगिल शहीद की बेटी गुलमोहर आज उन्हें पाकिस्तान परस्त व बलात्कार के योग्य लगने लगी है और पीड़िता को धमकी देने वाले सुरो में अपराध या अपराधी की मानसिकता की तलाश होने के स्थान पर एवीबीपी व आईसा का दखल ढ़ूंढ़ा जा रहा है। कितना आश्चर्यजनक है कि छात्र नेता कन्हैया के विचारोत्तेजक भाषणों के आधार पर उन्हें देशद्रोही का तमगा देने वाली मानसिकता अपने ही संगठन से जुड़े ध्रुव सक्सेना के आईएसआई से जुड़े होने की खबरों पर मौन नजर आती है और विदेश साजिशकर्ताओं के अलावा जिस्म-फरोशी के सौदागरों व बच्चों के तस्करों से जुड़तें दिखाई दे रहे भाजपा के वरीष्ठ नेताओं के तार बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देते है। हो सकता है कि केन्द्रीय सत्ता पर काबिज भाजपा का राष्ट्रवाद,हिन्दुत्व या फिर अन्य सामाजिक मुद्दों पर अपना एक अलग दृष्टिकोण रखता हो और लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत मिले जनादेश का इस्तेमाल करते हुऐ भाजपा अपने शासनकाल के दौरान अपना ऐजेण्डा लागू करना चाहती हो लेकिन इसका यह तात्पर्य तो नही कि अन्य विचारधारााओं को भाजपा के शासनकाल में अपनी बात रखने का कोई हक नही या फिर लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के तहत मिली राजनैतिक ताकत का इस्तेमाल अपने राजनैतिक शत्रुओं के विरूद्ध कर उन्हें पूर्णतः समाप्त करने का अधिकार जनता ने भाजपा या उसके अनुषांगिक संगठनों को दे दिया हो। भाजपा समर्थकों की कोशिशों व उग्र राष्ट्रवाद के समर्थन में उनके द्वारा प्रस्तुत किये जाने वाले तर्को को देखते हुऐ तो यही प्रतीत होता है कि भाजपा व संघ के नेता अपने सामाजिक कार्यों व सेवा भावना के बूते आगे बढ़कर नही बल्कि अपने तमाम राजनैतिक प्रतिद्वन्दियों को समाप्त कर सत्ता के शीर्ष पदों पर बने रहना चाहते है ओर इसके लिऐं उसने न सिर्फ अफवाहों व कुप्रचार का सहारा लिया है बल्कि अपनी बात व गलत तथ्यों को पूरी दंबगई से जनता के सामने रखने के लिऐ उसने गुण्डों की एक फौज भी बना ली है। हमने देखा कि मंहगाई एवं भ्रष्टाचार से लड़ने में पूरी तरह नाकाम साबित हुई भाजपा की मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार ने इन पिछले तीन वर्षों में स्वच्छ भारत अभियान, कांग्रेस मुक्त भारत, सर्जिकल स्ट्राइक व नोटबंदी जैसे तमाम नारों क जरिये देश की जनता को हर बार गुमराह करने की कोशिश की और इसमें कोई शक भी नही कि अपने प्रचार-प्रसार के अंदाज व चीयरलीडर्स कार्यकर्ताओं के दम पर मोदी की यह कोशिश एक हद तक कामयाब भी हुई लेकिन इधर पिछले कुछ समय से ऐसा लग रहा है कि जनमत का एक बड़ा हिस्सा मोदी व भाजपा के इस मायाजाल से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा है और जनता ने अपने नेताओं व जनप्रतिनिधियों से सवाल पूछने कर दिये है। मतदाताओं के बीच आयी इस तरह की जागरूकता भाजपा के लोगों को कतई पसन्द नही आ रही है और उन्होंने जोर-जबरदस्ती के सारे हथकण्डे अपनाते हुऐ जनमत के खिलाफ एक अभियान सा छेड़ दिया है। अपनी बात का समर्थन न करने वालों व तथ्यों के आधार पर जिरह करने वालों को देशद्रोही करार दे देना तथा अपनी किसी कमजोर कड़ी पर जय श्री राम, भारत माता की जय वंदेमातम् या फिर नमो-नमो के नारे लगाकर सामने वाले को चुप करा देना भाजपा व संघ का वह आजमाया हुआ नुक्सा है जिसका जेएनयू के बाद अब रामजस कालेज व देश के अन्य हिस्सों में भी बखूबी अमल किया जा रहा है। हो सकता है कि भाजपा की यह रणनीति हाल-फिलहाल कामयाब रहे और प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में चल रही भाजपा की सरकार निर्विघ्न रूप से अपना कार्यकाल पूरा कर बुलन्द इरादों के साथ एक बार फिर चुनाव मैदान में उतरे लेकिन इसका तात्पर्य यह कदापि नही है कि सिर्फ चुनावी जीत या मीडिया मैनेजमेंट के बूते रची गयी वाहवाही भाजपा व उनके अनुषांगिक संगठनों को हर तरह की गुण्डागर्दी की छूट देती है। आईसा व अन्य तमाम छात्र संगठनों को अपनी बात अपने तरीके से रखने का हक है और इस देश के भीतर कोई भी संवैधानिक ताकत उन्हें यह करने से नही रोकती लेकिन अगर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् से जुड़े छात्रों को यह गलत लगता है तो उन्हें इसका सड़कों पर विरोध करने की जगह जनता के बीच अपनी बात रखनी चाहिऐं।

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