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एक बार फिर निशाने पर | Jokhim Samachar Network

Monday, November 04, 2024

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एक बार फिर निशाने पर

महिलाओं व युवतियों के साथ हुई अभ्रदता या छेड़खानी की स्थिति मे उनके पहनावे को ही बनाया जाता है निशाना।

नये साल के आगाज को मद्देनजर रखते हुऐ आयोजित की गयी पार्टी का देर रात तक चलना कोई नई बात नहीं है और इस तरह के आयोजनों में नौजवान युवक-युवतियों की संख्या भी ठीक ठाक रहती है। जाहिर सी बात है कि जहाँ युवा वर्ग एकत्र होगा तो वहाँ फैशन और आधुनिकता की झलक भी दिखाई देगी लेकिन इसका मतलब यह तो नही कि इस तरह के आयोजनों का मतलब व्यभिचार मान लिया जाय और इन आयोजनों में शामिल होने वाले रहीसजादों को किसी के साथ भी बदसुलूकी या छेड़खानी करने की छूट दे दी जाय। बेंग्लरू मे नये साल की पूर्व संध्या पर आयोजित एक ऐसी ही पार्टी में जो कुछ हुआ वह शर्मनाक था लेकिन इससे भी ज्यादा शर्मनाक यह है कि हमारे नेताओं व सत्ता में बैठे कुछ लोगों ने इस घटना के बाद ऐसे बयान दिये मानो कि इस छेड़छाड़ के लिऐ सिर्फ लड़किया ही दोषी हो। इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता आईटी हब के रूप में विकसित हुऐ बेंग्लुरू में स्थापित तमाम देशी-विदेशी कम्पनियों में लाखों की संख्या में युवा काम करते है और देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाले यह युवा अपने खाली समय को इंजाॅय करने के नाम पर सिगरेट व शराब समेत तमाम नशों का सेवन करने में संकोच नहीं बरतते। अच्छी कमाई और आजादख्याल जिन्दगी की चाहत इनको दुनिया जहान के फैशन आसानी से उपलब्ध कराती है तथा घर से दूर बिना किसी रोक-टोक के देर रात तक पार्टियों में शामिल होना व घूमना फिरना, यहाँ एक आम बात मानी जा सकती है। सामान्य सी बात है कि अधिकाशतः सामान्य परिवार से ताल्लुक रखने वाले इन युवाओं के घर वाले यह कदापि नहीं जानते होंगे कि अच्छी शिक्षा लेने के बाद मिले रोजगार के जरिये मोटी पगार लेने वाले यह युवा या युवतियाँ अपने सामान्य जीवन में क्या पी-खा या पहन रहे है और उनकी देर रात की जिन्दगी पार्टियों के नाम पर किस तरह गुलजार हो रही है। एक बार के लिऐ यह तो माना भी जा सकता है कि छोटे शहरों या कस्बों से इस तरह के बड़े शहरों की ओर रूख करने वाली लड़कियों के घर वाले फैशन के नाम पर नयी पीढ़ी द्वारा पहने जाने वाले वस्त्रों को लेकर थोड़ी बहुत ना नुकर के बाद इजाजत दे देते हो लेकिन यह मानना तो बहुत मुश्किल है कि इन छोटे शहरों या कस्बों से आने वाले युवाओं को अपने माता-पिता अथवा नजदीकी रिश्तेदारों से खुलेआम सिगरेट-शराब का इस्तेमाल करने की इजाजत मिली हो या फिर इनके परिवारवालों को यह पता भी हो कि उनके नौनिहाल मनोरंजन व जश्न के नाम पर क्या गुल खिला रहे है। इन हालातों में किसी भी पार्टी अथवा जश्न में महिलाओं के साथ होने वाली छेड़छाड़ के लिऐ उनके पहनावे व आजाद ख्याली को दोषी कैसे माना जा सकता है और कोई भी नेता या जिम्मेंदार पद पर बैठा सरकार का प्रतिनिधि इस तरह की घटनाओं पर महिलाओं के खिलाफ अपमानजनक अथवा उनके पहनावे को इंगित करने वाला बयान कैसे दे सकता है? हमारी भारतीय संस्कृति में नववर्ष के जश्न या पार्टी जैसे आयोजनों के लिऐ कोई जगह नही है और इस संस्कृति के पहरेदार बने बैठे कुछ राजनैतिक दलों के पिछलग्गू धर्म व सामाजिकता के नाम पर देश की महिलओं व युवतियों पर कई तरह के प्रतिबंध लागू करना चाहते है लेकिन भारत का संविधान अपने हर नागरिक को स्वतंत्रता का अधिकार देता है और इस अधिकार के चलते इस देश की महिलाऐं भी उतनी ही स्वतंत्र है जितना कि पुरूष वर्ग। यह ठीक है कि महिलाओं में ज्यादा झलकने वाला सामाजिकता का अहसास उन्हें खुलआम शराब, सिगरेट अथवा अन्य नशों का सेवन करने से रोकता है और सार्वजनिक स्थलों या इस तरह के आयोजनों में हुड़दंग करने वालों में महिलाओं की भागीदारी कम ही होती है लेकिन अगर कानून की दृष्टि से देखा जाय तो इस प्रकार की स्थितियों में होने वाले जुर्म अथवा कानून के उल्लंघन की स्थिति में समाज के हर वर्ग के लिऐ कानून द्वारा एक समान सजा दिये जाने का प्रावधान है। इन स्थितियों में किसी पार्टी अथवा आयोजन में होने वाली छेडछाड़ अथवा अभद्रता के लिऐ महिलाओं को दोषी कैसे माना जा सकता है और किसी आधार पर कोई जिम्मेदार व्यक्ति यह बयान दे सकता है कि इस तरह की परिस्थितियों से बचने के लिऐ महिलाओं अथवा युवतियों ने भड़काऊ वस्त्रों को पहनने से बचना चाहिऐ। वर्तमान दौर में जब स्त्रियाँ हर क्षेत्र में कंधे से कंधा मिलाकर अपने पुरूष मित्रों व परिवार के साथ खड़ी दिखाई देती है तथा लगातार बढ़ रहे सामाजिक दायित्वों व रोजमर्रा के खर्चों को देखते हुऐ परिवार की स्त्रियों से यह उम्मीद भी की जाती है कि वह घरेलू कामकाज में भागीदारी करने के अलावा घर से बाहर निकलकर कुछ काम धाम भी करें, तो इन हालातो में कामकाजी महिला को छुईमुई या कागज की गुड़िया बनाकर नही रखा जा सकता और न ही उनके खाने-पीने, घूमने-फिरने और पहनने पर पाबन्दी ही लगायी जा सकती हैं। वैसे भी महिलाओं के साथ होने वाले अपराध, छेड़छाड़ या फिर अभद्रता के लिए उनका पहनावा नहीं बल्कि वह सोच जिम्मेदार है जो कि पुरूषों के वर्चस्व वाली मानसिकता को उकसाती है और नशे की हालत में कोई भी अपराधी प्रवृत्ति का व्यक्ति सड़क चलती महिलाओं को अपनी बपौती समझ लेेता है। यहाँ जरूरी नही है कि यह नशा शराब अथवा किसी अन्य मादक पदार्थ का हो। सत्ता का नशा या फिर पुरूषों को महिलाओं से श्रेष्ठ व ज्यादा ताकतवर समझने का नशा भी जन सामान्य को महिलाओं के साथ छेड़छाड़ या अभ्रदता करने के लिऐ उकसाता है और नशे की हालत में आदमी ऐसे कृत्यों को अंजाम दे देता है कि उसे जिन्दगी भर पछताना पड़ सकता है। जहाँ तक नये साल की पार्टी या किसी अन्य अवसर पर आयोजित होने वाले उत्सव या जलसे का सवाल है तो इस तरह के आयोजनों की परम्परा भारतीय संस्कृति में भी नई नहीं है और जब हमनेे अपनी आर्थिक प्रगति के लिऐ उदारवादी अर्थव्यवस्था व पूँजीवाद को अपनाया है तथा जीवन को ज्यादा आनन्द व आराम देने के लिऐ आधुनिकता के विलासी तौर तरीकों पर ज्यादा जोर दिया है तो फिर इस आधुनिकता के साथ आने वाली सामाजिक विकृतियों या फिर आधुनिकता के नाम पर आयोजित होने वाली देर रात की पार्टियों से भी हमें ऐतराज नही होना चाहिऐं क्योंकि भागमभाग वाली इस जीवन शैली में छुट्टी के वक्त में रात के कुछ घंटे निकालकर ही एक मेहनतकश अपने साथियों व सहकर्मियों के साथ आनन्द की अनुभूति कर सकता है। हाँ इतना जरूर किया जा सकता है कि आन्नद के इन क्षणों से कृतिम रूप से नशा देने वाले संसाधनों को अलग कर दिया जाय लेकिन इसके लिऐ एक बड़े सामाजिक आन्दोलन व जन जागरूकता की जरूरत होगी और महिलाओं के खिलाफ होने वाले किसी भी अपराध की स्थिति में महिलाओं की वेश-भूषा व फैशनपरस्ती को निशाने पर लेने वाला वर्ग ही यह नही चाहेगा कि भारतीय समाज में नशाखोरी के खिलाफ कोई मुहिम चले क्योंकि इस तरह का बयान देने वाले छोटे-बड़े नेताओं व उनके राजनैतिक दलों के तमाम छोटे-बड़े खर्च नशे का कानूनी अथवा गैर कानूनी व्यापार करने वाले कारोबारियों के चंदे से ही चलते है।

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