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भगवान श्रीराम ने भी किया था अपने पितरों का श्राद्ध | Jokhim Samachar Network

Monday, October 07, 2024

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भगवान श्रीराम ने भी किया था अपने पितरों का श्राद्ध

रुड़की देशराज)। आचार्य रमेश महाराज जी महाराज ने ज्योतिष गुरुकुलम में श्रीमद् भागवत कथा के दूसरे दिन पितृपक्ष में श्राद्ध की महिमा बताते हुए कहा कि भगवान श्रीराम ने भी अपने पितरों का श्राद्ध किया और भीष्म पितामह ने भी अपने पितरों का श्राद्ध किया था। आचार्य सेमवाल जी को ने कहा कि वराह पुराण के अध्याय 190 के अनुसार चारों वर्णों के लोग श्राद्ध के अधिकारी हैं। अट्ठारह सितंबर से श्राद्ध प्रारंभ हैं और अट्ठारह को प्रतिपदा का श्राद्ध हो गया है। दो अक्टूबर तक श्राद्ध पक्ष चलेगा।इसमें तर्पण व यज्ञ कराएं। गौ सेवा करें।पितरों की तिथि पर श्राद्ध तर्पण,ब्राह्मण भोजन दान, गौसेवा, गंगा स्नान,यज्ञ जरूर करना चाहिए। काले तिल,जौं,गाय का दूध,घी व गाय की दही का विशेष महत्व है। कुशा का भी विशेष महत्व है। लोहे के बर्तन का प्रयोग बिल्कुल ना करें। जलाशय में जाकर जल की एक बूंद भी पितरों को श्रद्धा से अर्पित कर दें तो वह संतुष्ट होकर आशीर्वाद दे देते हैं। वराह पुराण कहता है यदि व्यक्ति साधन हीन है और कहीं प्रदेश में है तो दोनों हाथ उठाकर पितरों को अपनी स्थिति बताकर श्रद्धा समर्पण कर दें,तब भी पित्र प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं। वशिष्ठ सूत्र और नारद पुराण के अनुसार गया में श्राद्ध का बहुत महत्व है। स्कंद पुराण के अनुसार बद्रिका आश्रम की गरुड़ शीला पर किया गया पिंड दान गया के बराबर माना जाता है। श्राद्ध में श्रद्धा का सर्वाधिक महत्व है। पितृपक्ष में पितरों के निमित्त भागवत पुराण कथा कराएं। भागवत कथा सुने।गोकर्ण जी ने धुंधकारी की मुक्ति के लिए भागवत कथा का आयोजन किया था। पितृपक्ष पित्र पूजा 18 सितंबर से 2अक्टूबर 2024 तक रहेगी। पित्र पूजा हिंदू सनातन संस्कृति का अभिन्न अंग है, जब हम अपने पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध करें,तर्पण करें, पिंड दान करें,पितृ गायत्री जाप करें, पित्र पूजा में चांदी के बर्तन विशेष महत्वपूर्ण होते हैं। काले तिल और कुशा का प्रयोग विशेष रूप से किया जाता है। तुलसापत्र अनिवार्य है। ब्राह्मण भोजन गौमाता को भोजन स्वान को,भोजन कौवा को, भोजन चीटियों को,भोजन अग्नि ग्रास मुख्य है। गाय के दूध व घी का प्रयोग करें।पितरों के निमित्त हवन करें और दान करें। लगातार सोलह दिनों तक गौ माता की सेवा करें। सोलह दिन पीपल पर जाएं और परिक्रमा करें व जल चढ़ाएं। दक्षिण दिशा में लगातार जलाजली दें। नाम गोत्र का उच्चारण करते हुए ब्राह्मण द्वारा पित्र तिथि पर संकल्प द्वारा तर्पण अवश्य करायें। अपने पितरों के निमित्त वृक्षारोपण करें। पीपल का वृक्ष,वट वृक्ष व तुलसी वृक्ष का रोपण करें।इससे पित्र दोष समाप्त होता है।तीर्थ स्थान पर जाने का भी महत्व है। गंगा स्नान का भी महत्व है। तीर्थ स्थानों पर पिंडदान,तर्पण,ब्राह्मण भोजन कराने का विशेष महत्व है। गीता का पाठ रोज करें।भागवत पुराण का पाठ करें। सात्विक भोजन कर गंगाजल का रोज पान करें। शुद्ध ब्रह्मचर्य का पालन करें।पितरों की कृपा प्राप्त होगी। जन्म कुंडली में सूर्य नारायण राहु के साथ होंगे तो पिता का दोष चंद्रमा राहु के साथ होंगे, माता का दोष मंगल राहु के साथ होंगे तो भ्राता का दोष बुध और राहु एक साथ होंगे, बहन-बेटी,बुआ का दोष बृहस्पति राहु के साथ होंगे तो गुरु का दोष यह किसी साधु संत का दोष शुक्र राहु के साथ होंगे तो स्त्री जाति का दोष शनि राहु की युति होगी तो प्रेत बाधा होगी। कथा में राधा भटनागर, सुलक्षणा सेमवाल, चित्रा गोयल, परीक्षा, सुनीता देवी, प्रवीन शास्त्री, रेनू शर्मा, पूजा वर्मा, रजनी वर्मा, सीमा वर्मा, कमलेश आदि भक्तजन उपस्थित रहे।

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