
देहरादून। तस्मिया अकादमी में मंगलवार को मुशायरा अदब शनास (जश्न ए आजादी) का आयोजन किया। जिसमें शायर, कवियों ने अपने कलाम पढ़कर वाहवाही लूटी। साहित्यिक एवं सामाजिक मंच मेटी नेटवर्क की ओर से आयोजित मुशायरे में सदारत शिक्षाविद् डॉ। एस फारूक, निजामत फैमस खतौलवी, परवेज गाजी ने की। वहीं मुख्य अतिथि वरिष्ठ कांग्रेस नेता सुरेंद्र अग्रवाल रहे। वरिष्ठ शायर जमाल हाशमी ने बच्चों को क्या बताऊं, भला घर के मसअले। फूलों को पत्थरों के कहां रूबरू करूं। इनाम रमजी ने हम लोग इक ज़मीने-मसाइल में दफ़्न हैं, क़ब्रें बनी हुई हैं लहद के बग़ैर भी। ऐन इरफ़ान ने क्या अजब है कि सात रंगों से, उसकी परछाई तक नहीं बनती। कामरान आदिल ने मुद्दतों बैठ के खामोश रियाज़त की है, मैंने इक शख़्स को आवाज़ लगाने के लिए। आस फ़ातमी ने मैं एक बार ही अपनी हदों से गुज़रा था, मुझे नसीब नहीं हो सके किनारे फिर। फैमस खतौलवी ने मैंने रस्मन ही कहा था मेरे लायक़ ख़िदमत, बकरियां दे दीं मुझे उसने चराने के लिए। लकी फ़ारूक़ी ने बाहमी रब्त में होती नहीं गुंजाइशे-तर्क, आप दरिया हैं तो साहिल से बना कर रखिये। रंजीता फ़लक ने उसकी आँखों में जैसे कोई जन्नत है, क्यों न आके यहां ठहर ले कोई। अरशद ज़िया ने मुद्दत के बाद भाई की क़ुरबत हुई नसीब, अच्छा हुआ जो सेहन की दीवार गिर गयी। आसिफ़ कैफ़ी ने हज़ार चांद से चेहरे हैं रूबरू लेकिन कोई भी आपसे अच्छा नज़र नहीं आता। परवेज़ ग़ाज़ी ने मचलते दिल, खुली ज़ुल्फ़ें, ख़मोशी, मैं सब कुछ शायराना चाहता हूं। अमजद ख़ान अमजद ने अमीरों को सताती है बहुत गर्मी भी सर्दी भी, ग़रीबों को किसी मौसम में दुश्वारी नहीं होती। अमजद सैफ़ी ने सिर की पगड़ी कहां संभलती है, दाग़ दामन के जब उभरते हैं। सुनाकर वाहवाही और दाद बटोरी। इनके अलावा दानिश देहलवी, मीरा नवेली, शाहिद सलमानी, अब्दुल मालिक अंसारी, जावेद अली, अरविंद चपराना, प्रिया गुलाटी आदि मौजूद रहे।