देवी पूजन की सही और सरल विधि | Jokhim Samachar Network

Wednesday, December 04, 2024

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देवी पूजन की सही और सरल विधि

शक्ति के लिए देवी आराधना की सुगमता का कारण मां की करुणा, दया, स्नेह का भाव किसी भी भक्त पर सहज ही हो जाता है। ये कभी भी अपने बच्चे (भक्त) को किसी भी तरह से अक्षम या दुखी नहीं देख सकती है। उनका आशीर्वाद भी इस तरह मिलता है, जिससे साधक को किसी अन्य की सहायता की आवश्यकता नहीं पड़ती है। वह स्वयं सर्वशक्तिमान हो जाता है।झ झ इनकी प्रसन्नता के लिए कभी भी उपासना की जा सकती है, क्योंकि शास्त्राज्ञा में चंडी हवन के लिए किसी भी मुहूर्त की अनिवार्यता नहीं है। नवरात्रि में इस आराधना का विशेष महत्व है। इस समय के तप का फल कई गुना व शीघ्र मिलता है। इस फल के कारण ही इसे कामदूधा काल भी कहा जाता है। देवी या देवता की प्रसन्नता के लिए पंचांग साधन का प्रयोग करना चाहिए। पंचांग साधन में पटल, पद्धति, कवच, सहस्त्रनाम और स्रोत हैं। पटल का शरीर, पद्धति को शिर, कवच को नेत्र, सहस्त्रनाम को मुख तथा स्रोत को जिह्वा कहा जाता है।
इन सब की साधना से साधक देव तुल्य हो जाता है। सहस्त्रनाम में देवी के एक हजार नामों की सूची है। इसमें उनके गुण हैं व कार्य के अनुसार नाम दिए गए हैं। सहस्त्रनाम के पाठ करने का फल भी महत्वपूर्ण है। इन नामों से हवन करने का भी विधान है। इसके अंतर्गत नाम के पश्चात नमः लगाकर स्वाहा लगाया जाता है।
हवन की सामग्री के अनुसार उस फल की प्राप्ति होती है। सर्व कल्याण व कामना पूर्ति हेतु इन नामों से अर्चन करने का प्रयोग अत्यधिक प्रभावशाली है। जिसे सहस्त्रार्चन के नाम से जाना जाता है। सहस्त्रार्चन के लिए देवी की सहस्त्र नामावली जो कि बाजार में आसानी से मिल जाती है कि आवश्यकता पड़ती है।
इस नामावली के एक-एक नाम का उच्चारण करके देवी की प्रतिमा पर, उनके चित्र पर, उनके यंत्र पर या देवी का आह्वान किसी सुपारी पर करके प्रत्येक नाम के उच्चारण के पश्चात नमः बोलकर भी देवी की प्रिय वस्तु चढ़ाना चाहिए। जिस वस्तु से अर्चन करना हो वह शुद्ध, पवित्र, दोष रहित व एक हजार होना चाहिए।
अर्चन में बिल्वपत्र, हल्दी, केसर या कुंकुम से रंग चावल, इलायची, लौंग, काजू, पिस्ता, बादाम, गुलाब के फूल की पंखुड़ी, मोगरे का फूल, चारौली, किसमिस, सिक्का आदि का प्रयोग शुभ व देवी को प्रिय है। यदि अर्चन एक से अधिक व्यक्ति एक साथ करें तो नाम का उच्चारण एक व्यक्ति को तथा अन्य व्यक्तियों को नमः का उच्चारण अवश्य करना चाहिए।
अर्चन की सामग्री प्रत्येक नाम के पश्चात, प्रत्येक व्यक्ति को अर्पित करना चाहिए। अर्चन के पूर्व पुष्प, धूप, दीपक व नैवेद्य लगाना चाहिए। दीपक इस तरह होना चाहिए कि पूरी अर्चन प्रक्रिया तक प्रज्वलित रहे। अर्चनकर्ता को स्नानादि आदि से शुद्ध होकर धुले कपड़े पहनकर मौन रहकर अर्चन करना चाहिए।
इस साधना काल में आसन पर बैठना चाहिए तथा पूर्ण होने के पूर्व उसका त्याग किसी भी स्थिति में नहीं करना चाहिए। अर्चन के उपयोग में प्रयुक्त सामग्री अर्चन उपरांत किसी साधन, ब्राह्मण, मंदिर में देना चाहिए। कुंकुम से भी अर्चन किए जा सकते हैं। इसमें नमः के पश्चात बहुत थोड़ा कुंकुम देवी पर अनामिका-मध्यमा व अंगूठे का उपयोग करके चुटकी से चढ़ाना चाहिए।
बाद में उस कुंकुम से स्वयं को या मित्र भक्तों को तिलक के लिए प्रसाद के रूप में दे सकते हैं। सहस्त्रार्चन नवरात्र काल में एक बार कम से कम अवश्य करना चाहिए। इस अर्चन में आपकी आराध्य देवी का अर्चन अधिक लाभकारी है। अर्चन प्रयोग बहुत प्रभावशाली, सात्विक व सिद्धिदायक होने से इसे पूर्ण श्रद्धा व विश्वास से करना चाहिए।

9 देवियों के 9 दिन की पूजा के 9 बीज मंत्र

नवरात्रि के नौ दिनों तक देवी दुर्गा की पूजा-आराधना का विधान है। नवदुर्गा के इन बीज मंत्रों की प्रतिदिन की देवी के दिनों के अनुसार मंत्र जप करने से मनोरथ सिद्धि होती है। आइए जानें नौ देवियों के दैनिक पूजा के बीज मंत्र –

देवी : बीज मंत्र
1. शैलपुत्रीः ह्रीं शिवायै नमः।
2. ब्रह्मचारिणीः ह्रीं श्री अम्बिकायै नमः।
3. चन्द्रघण्टाः ऐं श्रीं शक्तयै नमः।
4. कूष्मांडा: ऐं ह्री देव्यै नमः।
5. स्कंदमाता: ह्रीं क्लीं स्वमिन्यै नमः।
6. कात्यायनी: क्लीं श्री त्रिनेत्रायै नमः।
7. कालरात्रि : क्लीं ऐं श्री कालिकायै नमः।
8. महागौरी: श्री क्लीं ह्रीं वरदायै नमः।
9. सिद्धिदात्री: ह्रीं क्लीं ऐं सिद्धये नमः।

नवरात्रि में उपवास करने के लिए सुझाव

स्वस्थ जीवन के लिए सुनहरा नियम है, न तो बहुत ज्यादा और न ही बहुत कम। चाहे आपको काम करना, खेलना, भोजन करना या उपवास करना हो, यह सब सही मात्रा में किया जाना चाहिए।
आप सप्ताह के विशेष दिन पर, या महीने में निर्धारित दिनों के लिए उपवास कर सकते हैं। यहाँ जानिए आप नवरात्रि के दिनों में नवरात्रि व्रत के नियमों का पालन किश प्रकार कर सकते हैंरू

नवरात्रि – 1 से 3 दिन
फल आहार का पालन करें। आप सेब, केला, चीकू, पपीता, तरबूज, और मीठे अंगूर की तरह मीठे फल खा सकते हैं। और आप भारतीय करौदा, आंवला का रस, लौकी का रस और नारियल पानी भी ले सकते है।

नवरात्रि – 4 से 6 दिन
अगले तीन दिनों में, आप पारंपरिक नवरात्रि आहार (नीचे दिए गए) फलों के रस, छाछ और दूध के साथ एक बार भोजन कर सकते हैं।

नवरात्रि – 7 से 9 दिन
अंतिम तीन दिनों के दौरान, आप एक पारंपरिक नवरात्रि आहार का पालन कर सकते हैं। स्वास्थ्य की स्थिति के मामले में यह सबसे अच्छा होगा अगर आप उपवास से पहले चिकित्सक से परामर्श करें और याद रखें कि आरामदायक स्थिति के साथ कर सके उतना ही करे।

पारंपरिक नवरात्रि आहार
पारंपरिक नवरात्रि आहार हमारी जठराग्नि को शांत करता है। यह नीचे दर्शायी किसी भी सामग्री के संयोजन से हो सकता है:

कूटू (एक प्रकार का अनाज) रोटी , उपवास के चावल (शामक चावल), उपवास चावल से डोसा, साबूदाना से बनाया व्यंजन, सिंघाड़ा का आटा, राजगीरा, रतालू , अरबी, उबले हुए मीठे आलू (शक्कर कंद) से बने व्यंजन, आदि।
मक्खन (घी), दूध और छाछ। इन सभी का हमारे शरीर पर शीतल प्रभाव पड़ता है।
लौकी और कद्दू के साथ दही।
बहुत सारे तरल पदार्थ – नारियल पानी, जूस, सब्जियों के सूप, आदि।उपवास के दौरान ऊर्जा प्रदान करने के अलावा, वे निर्जलीकरण को रोकने और विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालते हैं।
पपीता, नाशपाती और सेब के साथ बनाया गया फलों का सलाद।
जब पारंपरिक नवरात्रि आहार का पालन करते हैं, तब यह भी करने के लिए सिफारिश की है।
खाना पकाने के लिए आम नमक के बजाय सेंधा नमक का प्रयोग करें।
भूनकर, उबालकर, भाप से और पीसने जैसे स्वस्थ खाना पकाने के तरीके का प्रयोग करें।
सिर्फ शाकाहार करें।
पहले कुछ दिनों के लिए अनाज से दूर रहें।
तले हुए और भारी भोजन से बिल्कुल दूर रहें।
प्याज और लहसुन से दूर रहें।
अधिक खाने से दूर रहें।
जो लोग उपवास नहीं कर सकते वे मांसाहारी भोजन, शराब, प्याज, लहसुन और तेज मसालों से परहेज करें और खाना पकाने के लिए साधारण नमक के बदले सेंधा नमक का उपयोग कर सकते हैं।

नवरात्रि में उपवास तोड़ने की विधि
जब आप शाम को या रात में अपना उपवास तोड़ते हैं, तब हल्का भोजन करें ताकि आपका शरीर भारी न हो। रात में भारी और तला हुआ भोजन सिर्फ पाचन क्रिया के लिए ही नहीं बल्कि सफाई प्रक्रिया और उपवास के सकारात्मक प्रभाव के लिए भी अच्छा नहीं है। आसानी से पच जाए ऐसा भोजन कम मात्रा में खाएं।

शुद्धिकरण करने का, पवित्र होने का त्यौहार है नवरात्रि

हमारी चेतना के अंदर सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण- तीनों प्रकार के गन व्याप्त हैं। प्रकृति के साथ इसी चेतना के उत्सव को नवरात्रि कहते है। इन ९ दिनों में पहले तीन दिन तमोगुणी प्रकृति की आराधना करते हैं, दूसरे तीन दिन रजोगुणी और आखरी तीन दिन सतोगुणी प्रकृति की आराधना का महत्व है ।

माँ की आराधना
दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती ये तीन रूप में माँ की आराधना करते है। माँ सिर्फ आसमान में कहीं स्थित नही हैं, ऐसा कहा जाता है कि

या देवी सर्वभुतेषु चेतनेत्यभिधीयते – सभी जीव जंतुओं में चेतना के रूप में ही माँ देवी तुम स्थित हो

नवरात्रि माँ के अलग अलग रूपों को निहारने और उत्सव मानाने का त्यौहार है। जैसे कोई शिशु अपनी माँ के गर्भ में 9 महीने रहता हे, वैसे ही हम अपने आप में परा प्रकृति में रहकर – ध्यान में मग्न होने का इन 9 दिन का महत्व है। वहाँ से फिर बाहर निकलते है तो सृजनात्मकता का प्रस्सपुरण जीवन में आने लगता है।

नवरात्रि का आखिरी दिन
आखिरी दिन फिर विजयोत्सव मनाते हैं क्योंकि हम तीनो गुणों के परे त्रिगुणातीत अवस्था में आ जाते हैं। काम, क्रोध, मद, मत्सर, लोभ आदि जितने भी राक्षशी प्रवृति हैं उसका हनन करके विजय का उत्सव मनाते है। रोजमर्रा की जिंदगी में जो मन फँसा रहता हे उसमें से मन को हटा करके जीवन के जो उद्देश्य व आदर्श हैं उसको निखार ने के लिए यह उत्सव मनाया जाता है। एक तरह से समझ लीजिये की हम अपनी बैटरी को रिचार्ज कर लेते है। हर एक व्यक्ति जीवनभर या साल भर में जो भी काम करते-करते थक जाते हे तो इससे मुक्त होने के लिए इन ९ दिनों में शरीर की शुद्धि, मन की शुद्धि और बुद्धि में शुद्धि आ जाए, सत्व शुद्धि हो जाए

चैत्र नवरात्र से ही होता है हिंदु नववर्ष यानि नए विक्रम संवत का आगाज

आज से चैत्र नवरात्र शुरू हो गए है।पहले दिन मां दुर्गा की पहली शक्ति देवी शैलपुत्री की पूजा अर्चना की गयी।वही नवरात्र के पहले दिन ही कलश स्थापना की गयी। चैत्र नवरात्र यानि आदि शक्ति के नौ दिन और वो नौ रातें जो केवल मां दुर्गा को ही समर्पित हैं। इन नौ दिनों में दिन हो या रात केवल देवी दुर्गा की ही आराधना की जाती है। देवी के अलग अलग 9 रूपों की पूजा अर्चना और भक्ति को ही समर्पित हैं नवरात्र के ये नौ दिन। शैलपुत्रीए ब्रह्मचारिणीए चंद्रघंटाए कूष्मांडाए स्कंदमाताए कात्यायनी कालरात्रिए महागौरी और सिद्धिदात्री हर दिन इन नौ देवियों की ही पूजा का विधान है नवरात्र में। साल में यू तो चार नवरात्र होते हैं। जिनमें से 2 गुप्त नवरात्र होते हैं जिनके बारे में ज्यादा लोग नहीं जानते तो वही 2 और नवरात्र चैत्र और शरद महीने में आते हैं। शारदीय नवरात्र जहां अक्टूबर महीने में आते हैं तो वही चैत्र नवरात्र हर साल अप्रैल महीने में होते हैं जिनका अब जल्द ही आगाज होने जा रहा है।

इन देवियों की होती है पूजा
नवरात्र प्रथम . शैलपुत्री
नवरात्र द्वितीय . ब्रह्मचारिणी
नवरात्र तृतीय . चंद्रघंटा
नवरात्र चतुर्थी . कुष्मांडा
नवरात्र पंचमी . स्कंदमाता
नवरात्र षष्ठी . कात्यायनी
नवरात्र सप्तमी . कालरात्रि
नवरात्रि अष्टमी . महागौरी
नवरात्र नवमी . सिद्धिदात्री

देवी पूजन की सही और सरल विधि
शक्ति के लिए देवी आराधना की सुगमता का कारण मां की करुणाए दयाए स्नेह का भाव किसी भी भक्त पर सहज ही हो जाता है। ये कभी भी अपने बच्चे ;भक्तद्ध को किसी भी तरह से अक्षम या दुखी नहीं देख सकती है। उनका आशीर्वाद भी इस तरह मिलता हैए जिससे साधक को किसी अन्य की सहायता की आवश्यकता नहीं पड़ती है। वह स्वयं सर्वशक्तिमान हो जाता है।झ झ इनकी प्रसन्नता के लिए कभी भी उपासना की जा सकती हैए क्योंकि शास्त्राज्ञा में चंडी हवन के लिए किसी भी मुहूर्त की अनिवार्यता नहीं है। नवरात्रि में इस आराधना का विशेष महत्व है। इस समय के तप का फल कई गुना व शीघ्र मिलता है। इस फल के कारण ही इसे कामदूधा काल भी कहा जाता है। देवी या देवता की प्रसन्नता के लिए पंचांग साधन का प्रयोग करना चाहिए। पंचांग साधन में पटलए पद्धतिए कवचए सहस्त्रनाम और स्रोत हैं। पटल का शरीरए पद्धति को शिरए कवच को नेत्रए सहस्त्रनाम को मुख तथा स्रोत को जिह्वा कहा जाता है।
इन सब की साधना से साधक देव तुल्य हो जाता है। सहस्त्रनाम में देवी के एक हजार नामों की सूची है। इसमें उनके गुण हैं व कार्य के अनुसार नाम दिए गए हैं। सहस्त्रनाम के पाठ करने का

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