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Friday, December 06, 2024

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पर्यटन सुविधाओं के सारे दावे खोखले, अव्यवस्थाओं के मारे, पर्यटक बेचारे

देहरादून। गर्मी पड़ते ही दिल्ली-एनसीआर में के लोगों को पहाड़ों की याद आने लगती है और बड़ी संख्या में लोग गाड़ियां उठाकर देहरादून-मसूरी, नैनीताल की ओर निकल पड़ते हैं। हालत यह है कि लोग 4-5 घंटे में दिल्ली से देहरादून तो पहुंच जाते हैं लेकिन वीकेंड्स में देहरादून से मसूरी पहुंचने में भी इतना ही समय लग जाता है।
यही हाल नैनीताल और सभी महत्वपूर्ण पर्यटन स्थलों का है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि क्या उत्तराखंड इतने सारे पर्यटकों की आमद के लिए तैयार नहीं है? क्या उत्तराखंड को पर्यटन की अपनी नीति बदलने की जरूरत है? पर्यटन क्षेत्र से जुड़े लोगों का कहना है कि वक्त पुनर्विचार का है। स्थिति यह है कि सिर्फ बद्रीनाथ और केदारनाथ में अभी तक 18 लाख से अधिक श्रद्दालु पहुंच चुके हैं। गंगोत्री और यमनोत्री में छह लाख से अध्कि लोगों की आमद दर्ज की जा चुकी है। नैनीताल-मसूरी में वीकेंड्स में इतने टूरिस्ट पहुंच जा रहे हैं कि घंटों जाम लग रहा है। देहरादून के लच्छीवाला में बने नेचर पार्क में अप्रैल से अभी तक 1,31,000 पर्यटक पहुंच चुके हैं. यहां पिछले वीकेंड पर रविवार को दस हजार टिकट बिके थे। यह कुछ उदाहरण मात्र हैं. इतनी भारी संख्या में पर्यटकों के आने की वजह से व्यवस्थाएं चरमरा गई हैं.खुद मुख्यमंत्री यह बात स्वीकार कर चुके हैं। इससे उत्तराखंड आने वाले पर्यटक भी परेशान हो रहे हैं। मसूरी में स्थिति यह है कि शहर में 400 टैक्सियों समेत करीब 2500 गाड़ियां हैं जिनके लिए पार्किंग की व्यवस्था नहीं है। इसकी वजह से जाम लगता है और पर्यटक परेशान होता है। खासतौर पर वीकेंड में. यह पर्यटक उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था को बड़ा सहारा देता है क्योंकि हमारी जीडीपी का 30» पर्यटन से मिलता हैै। जब एक टूरिस्ट आता है तो वह सिर्फ होटल को ही नहीं पटरी वाले को, कुली को, पेट्रोल पंप को और किराए-टैक्स के रूप में सरकार को भी पैसा देता है। वहीं जिस तरह से हर तरफ जाम ही जाम देखने को मिल रहा है उससे सवाल यह उठ रहा है कि क्या पर्यटन विभाग ने पहले से ही इस स्थिति से निपटने को लेकर कोई मंथन क्यों नहीं किया था। क्या उसका सिर्फ पर्यटन से होने वाली आय पर ही पूरा ध्यान है। इंतजाम करने में विफल हो रहे हैं।

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