बिना वजह के शोरगुल के बीच | Jokhim Samachar Network

Thursday, March 28, 2024

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बिना वजह के शोरगुल के बीच

तीन तलाक को लेकर उच्चतम् न्यायालय द्वारा सरकार को दिये गये निर्देशो में ऐसा कुछ भी नही जिसे सरकार की उपलब्धि के रूप में प्रचारित किया जा सके।
तीन तलाक के मामले में उच्चतम् न्यायालय के फैसले के बाद मुस्लिम समाज की महिलाओं को एक बड़ी राहत की उम्मीद है लेकिन इसे केन्द्र की मोदी सरकार की उपलब्धि नही माना जा सकता बल्कि इसके लिऐ काशीपुर की शायराबानों, जसपुर की आफरीन रहमान, हावड़ा की इशरत जहाँ, लक्सर की आतिया साबरी और रामपुर की गुलशन परवीन समेत उन तमाम महिलाओं को श्रेय दिया जाना चाहिएं जिन्होंने धर्म की दीवारें तोड़कर यह माना की तीन तलाक असंवैधानिक है तथा फोन या मैसेज पर मनमाने तरीके से तलाक लेने के बढ़ते प्रचलन के कारण मुस्लिम महिलाओं की समस्याऐं लगातार बढ़ रही है। वैसे भी तीन तलाक के मामले को उच्चतम् न्यायालय द्वारा एक सुनवाई के दौरान स्वतः संज्ञान में लेते हुऐ इस विषय पर जनहित याचिका दायर करने का फैसला दिया गया था जिसपर केन्द्र सरकार द्वारा ठोस दलील जरूर प्रस्तुत की गयी लेकिन गेंद अभी भी केन्द्र सरकार के ही पाले में है और अपने फैसले में उच्चतम् न्यायालय ने तीन तलाक के मुद्दे पर रोक लगाते हुऐ केन्द्र सरकार से अगले छः माह में इस विषय पर स्पष्ट कानून बनाने को कहा है। अब देखना यह होगा कि तीन तलाक के मामले में महिलाओं को उच्चतम् न्यायालय द्वारा दी गयी आजादी को अपनी एक उपलब्धि की तरह प्रस्तुत कर रही भाजपा के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार इस विषय पर बनाये गये कानून में कितने झोल-झाल छोड़ती है या फिर हिन्दूवादी चरित्र को आगे रखकर उग्र राष्ट्रवादी विचारधारा के साथ सरकार चलाने का दावा करने वाले भाजपा के नेता आगामी लोकसभा चुनावों से ठीक एक साल पहले अस्तित्व में आने वाले इस बहुचर्चित कानून के संविधान का अंग बनाये जाने से पहले या बाद इस विषय को लेेकर कितनी राजनीति करते है। इस तथ्य से इनकार नही किया जा सकता कि लगभग पच्चीस करोड़ आबादी के साथ देश के विभिन्न क्षेत्रों में बसे मुस्लिम लगभग हर लोकसभा व विधानसभा चुनाव में निर्णायक भूमिका अदा करते है तथा कुछ विशेष अवसरों को छोड़ दिया जाय तो तमाम राजनैतिक व सामाजिक मुद्दों पर यह कौम लगभग एक साथ व एक झण्डे के नीचे खड़ी नजर आती है। यहाँ पर यह कहने में भी कोई हर्ज नही है कि उग्र राष्ट्रवादी नारों व संगठित हिन्दुत्व के बूते सत्ता के शीर्ष को हासिल करने वाली भाजपा जैसी ताकतें भी यह जानती है कि केन्द्र अथवा देश के किसी भी राज्य में सरकार बनाने के लिऐ मुस्लिम मतदाताओं की राजनैतिक एकजुटता उसे हमेशा नुकसान पहुँचाती रही है। शायद यहीं वजह है कि भाजपा ने केन्द्रीय सत्ता पर काबिज होने के बाद बड़ी ही चालाकी से महिला सशक्तिकरण को मुद्दा बनाते हुऐ मुस्लिम मतदाताओं की राजनैतिक एकता को तोड़ने का प्रयास किया है लेकिन अगर गंभीरता से गौर किया जाय तो तीन तलाक को लेकर न्यायालय द्वारा दिये गये अपने फैसले में ऐसा कुछ भी नही है जो सत्ता पर काबिज मोदी सरकार या भाजपा की उपलब्धि के तौर पर प्रस्तुत किया जाय। यहाँ पर यह देखना भी दिलचस्प होगा कि न्यायालय के इस फैसले के बाद या फिर तीन तलाक के मुद्दे पर सदन के माध्यम से कोई कानून लाये जाने की स्थिति इस समस्या से पीड़ित कितनी महिलाऐं शरीयत के खिलाफ जाने वाले इस मामले को लेकर अदालत की ओर रूख करती है या फिर भ्रष्टाचार के मामलों में चरम् सीमा तक जा पहुंची स्थानीय पुलिस और तथ्यों, सबूतों व गवाहों के अलावा भारी-भरकम फीस अदा कर सकने वाली शख्सियतों की भी मोहताज नजर आने वाली हमारी कानून व्यवस्था इस तरह के मामलों में कितनी जरूरतमंदों की मदद कर सकती है। यह एक कटु सत्य है कि इस्लाम को मानने वाले आधुनिक समाज में महिलाओं की स्थिति बहुत अच्छी नही है और कई मामलों में तो उनके साथ दोयम दर्जे का या पशुवत व्यवहार तक किया जाता है लेकिन सवाल यह भी है कि क्या सिर्फ तीन तलाक पर रोक लगाकर इन स्थितियों पर काबू पाया जा सकता है या फिर सरकारी तंत्र तेजी से बढ़ती दिख रही भारत की आबादी में मुस्लिम वर्ग के योगदान को कम करने के लिये इस तरह के मसलों को उठा रहा है। शायद ऐसा कुछ भी नही है बल्कि अगर सरकार की कार्यशैली व वस्तुस्थिति पर गौर करें तो हम पाते है कि पिछले तीन सालों में व्यापक जनहित के मामले में कुछ भी कर पाने में असफल रही केन्द्र की सरकार व्यर्थ की नूराकुश्ती से जनसाधारण के बीच विभ्रम की स्थिति पैदा करना चाहती है । हमने देखा कि केन्द्र सरकार व खुद प्रधानमंत्री ने किस तरह नोटबंदी को एक उपलब्धि के रूप में प्रस्तुत किया और जनसाधारण को परेशान कर देने वाले इस फैसले को कुछ इस तरह जनता के बीच प्रस्तुत किया गया मानो कि सरकार के इस कदम के बाद न सिर्फ समस्त समस्याओं से निजात मिल जायेगी बल्कि देश के भीतर छुपा काला धन भी वापस आ जायेगा लेकिन हुआ इसका ठीक उलट और सरकारी पक्ष से आज तक यह तथ्य जनता के सामने नही रखे कि नोटबंदी के बाद कितने पुराने नोट सरकार के पास वापस आये। ठीक ऐसा ही हाल सरकार के स्वच्छता अभियान, खुले में शौच मुक्त भारत, नमामि गंगे या मन की बात जैसे तमाम आयोजनों का है लेकिन इस सबके बावजूद यह कहने में कोई हर्ज नही है कि इन तमाम योजनाओं की तरह ही तीन तलाक का मुद्दा भी देश और जनता की मूल समस्याओं से आम आदमी का ध्यान भटकाने में सफल रहा है। शायद यहीं वजह है कि विपक्ष का एक हिस्सा भी तीन तलाक की गुफ्तुगू में उलझकर सरकार से लगातार बढ़ रही महंगाई, बेरोजगारी एवं सामाजिक हिंसा जैसे मुद्दो पर सवाल करना भूल गया है और उसने वर्ग तुष्टीकरण का अंदाज अपनाते हुऐ तीन तलाक के पक्ष में खड़े होना शुरू कर दिया है। यह एक गलत परम्परा है और इस तरह की परम्पराओं का अनुपालन बिना वजह की आंशकाओं को जन्म देता है लेकिन राजनेता व राजनैतिक दल यहीं चाहते है कि आंशकित समाज का हर वर्ग एक दूसरे को शकभरी निगाहों से देखें और बिना बात के बंतगड़ से डरे हुऐ लोग अपनी समस्याओं को उठाने की जगह बस यूं ही अपने नेता व सरकार की जय-जयकार लगाते रहे। लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं पर विश्वास करते हुऐ सबको साथ लेकर चलना तथा जनमत के आधार पर अपनी प्राथमिकताऐं तय करना बहुत कठिन लक्ष्य है और इस तथ्य से भी इनकार नही किया जा सकता कि वोटो की राजनीति के इस खेल में जनता का निर्णय क्या होगा, यह अंदाजा लगाना बहुत ज्यादा कठिन है । लेकिन भाजपा के रणनीतिकार बहुत ही शातिराना अंदाज में अपनी खामिंयों को छुपातें हुऐ जनता को सब्जबाग दिखाने में सफल प्रतीत होते है और छद्म राष्ट्रवाद व उग्र विचारधारा के साथ ही साथ एक धर्म विशेष के प्रति नफरत या डर का माहौल बनाकर समाज के एक हिस्से को इस तरह संगठित किया जा रहा है कि मानो देश व व्यवस्था पर कोई बढ़ा खतरा मंडरा रहा हो। यहीं कारण है कि वर्तमान में तीन तलाक को लेकर उच्चतम् न्यायालय द्वारा लगायी गयी छह माह की रोक के बावजूद मुस्लिम समाज के बीच उतना खुशी या खौफ का माहौल नही है जितना कि हिन्दू समाज का एक वर्ग खुश होता दिख रहा है और यह मोदी सरकार की वह उपलब्धि है जिसके भरोसे भाजपा अगले लोकसभा चुनावों के मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है। अब देखना यह है कि कांग्रेस समेत समुच विपक्ष जन सामान्य को यह बताने में किस हद तक कामयाब रहता है कि देश की आम जनता की असल समस्याओं से ध्यान हटाने के लिऐ मोदी समर्थकों द्वारा बनाये जा रहे माहौल का नुकसान अन्ततोगत्वा आम आदमी को ही उठाना होगा और जिस दिन जनता इस सच से वाकिफ होगी तब तक पानी सर के उपर से गुजर चुका होगा।

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