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Saturday, April 20, 2024

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ये कहाँ आ गये हम, यूँ ही इंकलाब कहकर

बदलते भारत की इस तस्वीर के लिऐ नेता ही नही जनता भी है दोषी
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के संसदीय क्षेत्र गोरखपुर के एक मेडिकल कालेज में सरकारी तंत्र की लापरवाही के चलते बंद हुई आक्सीजन की सप्लाई के कारण तीस बच्चों समेत कुल पचास मौतों की खबर दिल को दहला देने वाली है लेकिन सरकार में इस घटनाक्रम को लेकर बेचेंनी का कोई आलम नही है और न ही किसी नेता या अधिकारी ने इसकी जिम्मेदारी लेते हुऐ बयान जारी किया है। हो सकता है कि सरकार इस पूरे मामले को लेकर एक जाँच कमेटी बना दे और दोषियों को हर कीमत पर सजा देने के वादे के साथ हमारें नेता व सरकार में जिम्मेदार पदो पर बैठे लोग जनता के इस सम्पूर्ण घटनाक्रम को भूलने का इंतजार करें या फिर निचले क्रम के दो-चार कर्मचारियों पर निष्कासन व बर्खास्तगी का चाबुक चला पीड़ित परिवारों को सांत्वना देेने का प्रयास किया जायें । यह भी हो सकता है कि सरकारी तंत्र पीड़ित परिवारों के लिऐ मुआवजे की कुछ राशि घोषित कर इस घटनाक्रम के विरोध मेें उठते सुरो को थामने का प्रयास करें और मीडिया से जुड़े तमाम प्रकाशन संस्थानो व पत्रकारों पर अघोषित रोक लगाकर इस तरह के घटनाक्रमों की स्थिति में तिल का ताड़ बनाने से रोकने का निवेदन भी किया जाये लेकिन सवाल यह है कि क्या सरकार इस तरह की कारगुजारियों से आम जनता के बीच पनप रही विद्रोह की भावना को रोक पाने में सफल होगी और बेफिजूल की चर्चाओं व वैमनस्य को बढ़ावा देकर इस प्रकार के घटनाक्रमों को रोका जा सकेंगा। हम देख रहे है कि इधर पिछले कुछ समय से सरकार को असफल साबित करने वाले विषयों को उठाने वाले स्वरों को देशद्रोही साबित करने की परम्परा सी चल पड़ी है और हद तो यह है कि सरकार के तथाकथित भक्त एक पूर्व उपराष्ट्रपति तक के बयानों पर गंभीरता से चिन्तन मनन किये जाने की गुजांइश नही छोड़ते जबकि हकीकत यह है कि समाज में लगातार बढ़ रही हिंसात्मक घटनाओं के चलते न सिर्फ समाज का एक तबका डर को नजदीक से महसूस करते हुऐ भय के माहौल में जी रहा है बल्कि एक विचारधारा या फिर राजनैतिक दल को खत्म करने के लिऐ धर्म की ऊलजलूल परिभाषाऐं व मनगणन्त कहानियां समाज में प्रचारित करने की कोशिश की जा रही है। पशु के प्राणों की कीमत इंसान के प्राणों से ज्यादा हो गयी है और किसी भी कीमत पर विरोधी पक्ष को चुप कराने या फिर नेस्तानाबूद कर देने का दावा करने वाली विचारधारा राष्ट्रीय राजनीति व सामाजिक परिवेश पर हावी होने का प्रयास कर रही है। हम यह भी देख रहे है कि सरकारी तंत्र व्यापक जनहित पर विचार किये बिना अपने तमाम गलत या सही फैसलों को सरपट लागू करने की जल्दबाजी में और बिना किसी तैयारी के नोटबंदी के बाद देश की जनता पर थोपे गये जीएसटी लागू करने के फैसले के परिणाम गोरखपुर के इस अस्पताल में तीस बच्चों समेत पचास नागरिकों की सामूहिक मौत के रूप में सामने आने के बावजूद सरकार अभी हैरान व परेशान नही दिखती है। कहने में यह तथ्य कुछ अटपटा भले ही लगे लेकिन हालातों व तर्को पर गौर करने के बाद हम आसानी से इस निष्कर्ष पर पहुँच सकते है कि सरकार द्वारा एक बड़े क्रान्तिकारी फैसले के रूप में प्रचारित किये जा रहे ‘एक व्यक्ति एक कर‘ कानून का असर अब धीरे-धीरे कर रोजमर्रा की जिन्दगी में दिखना शुरू हो गया है तथा बिना किसी तैयारी के लिऐ गये इस फैसले के अभी और भी घातक परिणाम देखने को मिल सकते है। हो सकता है कि सरकार की नीयत साफ हो और उसे अपने इस फैसले को लेने से पहले यह अंदेशा भी न हो कि उसकी जल्दबाजी के इतने घातक परिणाम सामने आ सकते है लेकिन इससे सरकार की जिम्मेदारी और सरकारी तंत्र पर बढ़ता हत्याओं का बोझ कम नही होता और न ही हम गोरखपुर के इस मेडिकल कालेज से हुई मासूमों व लाचारों की सामूहिक हत्या को देश की प्रगति के लिऐ दिये गये बलिदान का दर्जा देकर मामले को अनदेखा कर सकते है। अगर व्यवसायिक नजरिये से देखे तो यह स्पष्ट दिखता है कि गोरखपुर के इस मेडिकल कालेज में आॅक्सीजन सप्लाई करने वाली फर्म या कम्पनी को भी इस तथ्य का आभास होगा कि उसकी इस हरकत के बाद उसे सम्बन्धित विभाग से सदा के लिऐ ब्लेकलिस्ट किया जा सकता है और इसका प्रभाव उसके बाकी के कारोबार पर भी पड़ सकता है लेकिन सम्बन्धित फर्म या कम्पनी ने तिल-तिल कर डूबने की जगह एक ही झटके में सबकुछ बंद करने का फैसला लिया और अपना फैसला लेने से पूर्व उसने उस भुगतान की चिन्ता भी नही की जो काफी लंबे समय से सरकारी बाबुआंे की आपसी नूराकुश्ती की वजह है फंसा हुआ बताया जा रहा है। वजह साफ है कि कम्पनी या फर्म को यह अंदाजा आ गया था कि जीएसटी लागू होने के बाद सरकारी दफ्तरोे का कमीशन जारी रखते हुऐ लम्बा उधार देना अब संभव नही है और शायद यहीं वजह थी कि आॅक्सीजन सप्लाई करने वाली कम्पनी ने काम-धाम बंद हो जाने का डर होने के बावजूद इस घाटे के व्यापार से अपनी हाथ खींचना ज्यादा मुनासिब समझा। वैसे अगर देखा जाय तो सरकार इसे भ्रष्टाचार रोकने की दिशा में एक बड़ी पहल का दर्जा दे सकती है लेकिन वैकल्पिक व्यवस्थाओं के आभाव में सरकार के लिऐ मिसाल साबित हो सकने वाला यह घटनाक्रम न सिर्फ कई मासूमों व लाचारो की मौत का कारण बना बल्कि इस दुर्घटना के बाद इस आॅक्सीजन सप्लाई करने वाली कम्पनी में कार्यरत् सैकड़ो कर्मचारियों पर भी एकाएक ही बेरोजगारी का खतरा मंडराने का भय पैदा हो गया। सरकार अगर चाहती तो थोड़ी सी सूझ-बूझ व सर्तकता से इस गंभीर नुकसान को होने से रोका जा सकता था लेकिन सरकारी तंत्र ने नियम-कानून लागू करने के बाद सर्तकता अपनाने के स्थान पर आक्रमता अपनाने का फैसला लेते हुऐ अपने प्रचार-प्रसार के जरिये जनता के दिलादिमाग पर छाना ज्यादा जरूरी समझा और यह मान लिया गया सरकार को कर देने से कतराने वाला व्यापारी पूरी तरह चोर व सरकार के हर फैसले के खिलाफ है जबकि हकीकत यह थी कि अपने व्यवसाय के जमजमाव व उसे आगे बढ़ाने के लिऐ दिन-रात मेहनत करने वाले व्यापारी के लिऐ कर चोरी उसका शौक या जरूरत नही बल्कि मजबूरी थी क्योंकि उसने चोरी के इसी पैसों से कई सरकारी बाबुओं, उसपर वक्त-बेवक्त गुर्राने वाले या फिर वक्त जरूरत काम आने वाले नेताओं और उसकी सुरक्षा का दम भरने वाली स्थानीय सुरक्षा ऐजेन्सियो का मुँह बंद करना होता था। ‘एक राष्ट्र एक कर‘ कानून के तहत जीएसटी नम्बर के माध्यम से खरीद-फरोख्त का सारा सिलसिला जगजाहिर हो गया है तथा यह उम्मीद की जा रही है कि इस पूरे ढ़ांचे में कर चोरी की कोई गुजांइश नही होगी और अगर ऐसा होगा तो यकीन जानियें यह पूरा तंत्र बिलबिला उठेगा । गोरखपुर की घटना उसी बिलबिलाहट का शुरूवाती आगाज है और अभी ऐसे तमाम घटनाक्रम एक के बाद एक कर सामने आयेंगे क्योंकि सरकार ने बिना किसी तैयारी के एक बड़ा फैसला लिया हैं कि इस तरह के घटनाक्रमों में सामने आयी मानवीय क्षति को सरकारी तंत्र या सरकार चलाने वाले नीति निर्धारक अपनी भूल का नतीजा या गलती नही मानेंगे बल्कि कुछ मुआवजे की राशि या फौरी घोषणाओं के आधार पर इन घटनाओं को भुलाने या इनसे पीछा छुड़ाने की कोशिशें की जायेंगी लेकिन सवाल यह है कि क्या आने वाले कल का इतिहास इस प्रकार के तमाम घटनाक्रमों पर मौन रहेगा या फिर इन परिस्थितियों से नजीर लेते हुऐ मौजूदा हालातों व घटनाओं से सबक लेकर जनता वक्त की जरूरत के हिसाब से अपना फैसला देगी।

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