आम पार्टी के बहाने-एक बार फिर अपने समर्थकों के साथ मीडिया से रूबरू हुऐ हरीश रावत। | Jokhim Samachar Network

Saturday, April 20, 2024

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आम पार्टी के बहाने-एक बार फिर अपने समर्थकों के साथ मीडिया से रूबरू हुऐ हरीश रावत।

राजनीति के खेल में बने रहने की जिद के साथ उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत पूरी हिम्मत से अपनी लड़ाई लड़ रहे है और इस तथ्य से इनकार नही किया जा सकता कि उनके शासनतंत्र में स्पष्ट दिखने वाली कई कमियों के बावजूद प्रदेश की जनता को सत्ता में उनके न होने का अहसास बुरी तरह टींसने लगा है। हांलाकि हरीश रावत एक साथ दो विधानसभा क्षेत्रों से चुनाव हार और उनकी इस हार ने उन्हें प्रदेश की राजनीति की दौड़ में बहुत पीछे कर दिया लेकिन इस सबके बावजूद प्रदेश की राजनीति में उनकी एक अलग पहचान है और अपने समर्पित समर्थकों के एक बड़े समूह के साथ वह अभी भी इस दौड़ न सिर्फ बने हुये है बल्कि उनके कदमों की आहट उनके विरोधियों को चिन्ता में डाल देती है। अपनी इसी खूबी के चलते वह वर्तमान में कोई भी राजनैतिक दायित्व न होते हुऐ भी राजनैतिक चर्चाओं में बने रहते है और उनके द्वारा सामान्य शिष्टाचार के तहत आयोजित की जाने वाली पार्टिया राजनीति के हलकों में चर्चा का विषय बन जाती है। ऐसा ही कुछ पिछले दिनों काफल पार्टी के आयोजन को लेकर हुआ और अब यहीं सबकुछ हरीश रावत की आम पार्टी को लेकर दोहराये जाने की उम्मीद है। यह ठीक है कि दिल्ली के राजनैतिक हलकों में आम पार्टी या फिर किसी बड़े नेता की कर्मभूमि अर्थात राजनैतिक क्षेत्र में होने वाले सीजनल फल अथवा उत्पाद को लेकर स्थानीय स्तर पर पार्टियों का आयोजन एक सामान्य सी बात है और यह माना जाता है कि अपनी राजनैतिक व्यस्तताओं के चलते अक्सर कार्यकर्ताओं से न मिल पाने वाले बड़े नेता इस बहाने न सिर्फ स्थानीय स्तर पर जन समस्याओं से रूबरू हो जाते है बल्कि अपने नेता को अपने बीच पा कार्यकर्ताओं का उत्साहवर्धन भी होता रहता है। उपरोक्त के आलावा अपने निजी कार्यो अथवा यूं ही मेलजोल के नजरियें से इन बड़े नेताओं से मिलने जाने वाले आसामियों, क्षेत्र के बड़े किसानों या फिर ठेकेदारों द्वारा भेंटस्वरूप लाये जाने वाले सीजनल फल व स्थानीय उत्पाद भी इस बहाने जनसामान्य के बीच आ जाते है और इस तरह की पार्टियों में मौजूद रहने वाले पत्रकारों द्वारा इन फलो के गुण-दोष के बहाने खेती-किसानी को लेकर भी कुछ चर्चा हो जाती है लेकिन इधर उत्तराखंड में राजनैतिक माहौल पूरी तरह बदला हुआ है और यहाँ के नेताओं व पत्रकारों को ही नही बल्कि सामान्य जनता व राजनैतिक कार्यकर्ताओं को भी हर विषय-वस्तु को राजनीति के चश्में से देखने की एक आदत सी हो गयी है। इन हालातों में हरीश रावत द्वारा आयोजित काफल पार्टी हो या फिर आम-जामुन पार्टी, शिष्टाचार वश उठाये, गये हर कदम को राजनीति से जोड़कर देखना तथा उससे होने वाले नफे-नुकसान पर चर्चा करना हमारी आदत बन गयी है और हम चाहकर भी इससे बाज नही आ सकते क्योंकि सरकारी कार्यकलाप की समीक्षा अथवा आलोचना करने की एक सीमा है और इस सीमा का उल्लंघन कर अपने व्यवसायिक हितों को नुकसान कोई भी पत्रकार नही पहुंचाना चाहता जबकि किसी नेता की निजी जिन्दगी में झांककर उसके निजी अथवा राजनैतिक क्रियाकलापों को गपबाजी का विषय बनाना न सिर्फ आसान है बल्कि इसे जनता द्वारा पसंद भी किया जाता है और अगर चर्चा का विषय बना नेता हरीश रावत की तरह दमदार हो तो मेहनत की कुछ कीमत मिलने की उम्मीद भी बनती है। खैर इन तमाम चिन्ताओं व चर्चाओं से अलग हटकर हम एक बार फिर आम पार्टी की ओर रूख करें तो ऐसा प्रतीत होता है कि स्थानीय स्तर के तमाम छोटे-बड़े कांग्रेसी नेताओं के साथ ही साथ कुछ जाने-पहचाने चेहरों व तथाकथित विपक्ष के रूप में विधानसभा से गायब राजनैतिक दलों के कुछ बड़े नेताओं व पत्रकारों की मौजूदगी शुरू हुआ यह आम खाने खिलाने का दौर कुछ राजनैतिक चर्चाओं पर बल देने या फिर आम आदमी का ध्यान कास्तकारों व छोटी जोत के किसानों की ओर आकृर्षित करने के लिऐ ही आयोजित किया गया था तथा इस आम पार्टी के बहाने हरीश रावत, आमों की विभिन्न प्रजातियों को चर्चा का विषय बनाने के अलावा इस मौसम में पहाड़ो पर होने वाले तमाम फलों व कृषि उत्पादों की ओर भी जनता, कार्यकर्ता व पत्रकारों का ध्यान आकृष्ट कराने में सफल रहें । इसे राजनैतिक सामजस्य ही कहा जा सकता है कि पूरे राज्य में जिस वक्त किसानों की आत्महत्या को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है और राज्य के मुख्यमंत्री अपने कार्यकाल के शुरूवाती सौ दिनों को एक उपलब्धि के तौर पर जनता के सामने प्रस्तुत कर चुके हौ, तो ऐसे अवसर पर चर्चाओं मेें बने रहने के लिऐ बिना किसी आन्दोलन या प्रदर्शन के किसानों से जुड़े विषय उठाते हुऐ हरीश रावत अपने राज्य के कृषि उत्पादों को आगे करने के बहाने पहाड़ की किसानी व सामान्य जीवन से जुड़ी चर्चाओं को बल देने की कोशिश करते हुये आम पार्टी के बहाने मीडिया व कांग्रेस कार्यकर्ताओं का ध्यान इस ओर आकृष्ट करने में जुटे है और ज्यादा अच्छा होता अगर हरीश रावत पूरे प्रदेश में महिलाओं द्वारा किये जा रहे शराब की दुकानो के विरोध को भी अपनी चर्चाओं में शामिल करते लेकिन उत्तराखंड के नेताओं का शराब के कारोबारियों से प्रेम किसी से छुपा नही है और न ही किसी राजनैतिक दल से यह उम्मीद की जा सकती है कि वह शराब के विरोध को एक सक्रिय मुद्दे के रूप में प्रदेश की जनता के बीच ले जाने की कोशिश करेगा। हालातों के मद्देनजर हरीश रावत द्वारा किये जा रहे प्रयासों को कम करके नही आंका जा सकता और न ही इसे एक राजनैतिक स्टंट की संज्ञा देकर अनदेखा ही किया जा सकता है। लिहाजा पूर्व मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा आयोजित इस आम पार्टी को एक ज्वलन्त मुद्दे की तरह लेते हुये मीडिया द्वारा यह कोशिश की जानी चाहिऐं कि उत्तराखंड में बहुतायत में होने वाले आम, लीची व जामुन समेत अन्य तमाम पहाड़ी फलो के उत्पादन व उपयोग को लेकर एक सकारात्मक चर्चा शुरू हो और हमारी सरकारें इस निष्कर्ष तक पहुंचे कि इन तमाम फलों के उत्पादन से पहाड़ का किसान किस तरह आत्मनिर्भर हो सकता है या फिर इन तमाम फलों व अन्य उत्पादों के जरिये सुदूरवर्ती पहाड़ी क्षेत्रों में किस तरह का रोजगार जुटाया जा सकता है। हो सकता है कि पिछली सरकारें विभिन्न राजनैतिक कारणों से इस दिशा में कोई सक्रिय प्रयास न कर पायी हो लेकिन वर्तमान मुख्यमंत्री, जो कि न सिर्फ एक किसान है बल्कि जिन्हें कृषि मंत्री के रूप में प्रदेश की आर्थिकी व कृषि क्षेत्र पर काम करने का पूरा मौका मिला है, इस इशारें को समझतें हुऐ प्रदेश के किसानों को एक नई दिशा देने का प्रयास करेंगे।

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