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Tuesday, April 16, 2024

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चांद पत्थर को हिला तक नहीं पाए थे अंग्रेज,पर्यटक स्थल बनाने की हो रही है मांग

डोईवाला (आसिफ हसन) भोगपुर से करीब दो किमी. दूर है ऐतिहासिक धरोहर चांद पत्थर। हालांकि चांद पत्थर मान्यताओं में ही है और इसे लगभग भुला दिया गया है। गडूल ग्राम पंचायत में स्थित चांद पत्थर के पास से होकर भोगपुर नहर बहती है। भोगपुर नगर जाखन नदी से वाया वसंतपुर,भोगपुर से होते हुए रानीपोखरी सहित कई गांवों की खेती को सींचती है।
डोईवाला से रानीपोखरी होते हुए करीब 15 किमी. दूर भोगपुर जा सकते हैं। भोगपुर से करीब डेढ़ किमी.आगे चांद पत्थर है, जिसके बारे में अब बहुत कम बात होती है। गर्मियों में भोगपुर नहर में नहाने के लिए आसपास के क्षेत्रों के युवा, बच्चे पहुंचते हैं। कुल मिलाकर आसपास पिकनिक सा माहौल दिखता है।
दरअसल भोगपुर नहर इस गदेरे के ऊपर बने एक पुल से होकर बहती है।हमारे संवाददाता आसिफ हसन बड़ी मुश्किल से इस गदेरे में उतरे तो पुल के ठीक नीचे चांद पत्थर दिखा, हमारे संवाददाता ने बताया कि इसके बारे में बहुत कुछ सुना है मगर, जो हमने सुना है, उसके अनुसार तो चांद पत्थर को सहेजने की जरा भी कोशिश नहीं दिखती। आसपास झाड़ियां, गंदगी ही दिखते हैं। यहां तो किसी ऐतिहासिक स्थल जैसा कुछ भी नहीं, जबकि स्थानीय लोग बताते हैं कि अंग्रेजों ने इस पत्थर पर गोलियां बरसाईं थीं। इस पत्थर पर गोलियों के तीन निशान बताए जाते हैं, पर हमने इस पर ऐसे कई निशान देखे। आपको बताते चले की इस पर चांद जैसी गोलाकार बहुत सुन्दर आकृति बनी है। यह विशाल पत्थर वर्षों से एक ही जगह जमा है।
लोग कहते है कि इस पत्थर के नीचे राजा का खजाना दबा है और अंग्रेज इस खजाने को निकालना चाहते थे। इसलिए इस पत्थर को हटाने के उन्होंने बहुत प्रयास किए, यहां तक उसको तोड़ने के लिए गोलियां तक चलाईं पर पत्थर हिला तक नहीं।
हालांकि इसमें कितनी सच्चाई है, यह कहना मुश्किल है। मान्यता ही सही या कहानी ही क्यों न हो, पर यह पत्थर स्वयं के ऐतिहासिक घटना से जुड़ने के साक्ष्य दिखा रहा है।इसकी उपेक्षा नहीं कर सकते।
गडूल ग्राम पंचायत के इस गांव के ऊपरी और निचले हिस्से में लगभग 35 घर हैं। ग्रामीण बताते हैं कि यहां खेती अच्छी होती है। पानी इस नहर से मिल जाता है।
गांव तक चौड़ी सड़क है, जो तमाम मुश्किलें दूर करती है। अस्पताल भोगपुर में है और हायर सेंटर हिमालयन अस्पताल। इस गांव में कृषि के साथ मुर्गीपालन भी आजीविका का माध्यम है।
ग्रामीणों ने बताया कि जब पूर्णिमा में चांद लाल होता था तो ये पत्थर पर बना चांद भी लाल हो जाता था उन्होंने बताया कि यह सभी जानकारी अपने बुजुर्गों से सुनते आए हैं।
ग्रामीण बताते हैं कि चांद पत्थर पर अंग्रेजों ने गोलियां चलाई थीं। एक ग्रामीण ने एक नई जानकारी दी, जब अंग्रेजों ने गोलियां चलाई थीं, तब पत्थर से दूध निकल रहा था। यह बात उन्होंने बुजुर्गों से सुनी थी। हालांकि पत्थर के नीचे खजाना दबे होने की बात उन्होंने नहीं सुनी। कहते हैं कि चांद पत्थर को सहेजा जाना चाहिए। पर्यटन विभाग को इसके लिए काम करना चाहिए। काफी लोग चांद पत्थर को देखने देहरादून, आसपास और दूरदराज से आते हैं। कुल मिलाकर चांद पत्थर के बारे में संबंधित विभागों, विश्वविद्यालयों को शोध करना चाहिए, ताकि मान्यता और सच के बीच का फासला कम किया जा सके। चांद पत्थर अपने आकर्षण को बरकरार रखे, इसके लिए काफी काम करने की दरकार है।

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