छात्रसंघ चुनाव और विधानसभा चुनाव लड़ी यह महिला आज हरिद्वार में भिक्षावृत्ति कर पेट पालने को मजबूर है। यह महिला अपने छह साल के बेटे के साथ भिक्षावृत्ति कर रही है। लेकिन जब वो अपने बेटे को पढ़ाने बैठती है तो फर्राटेदार अंग्रेजी बोलती है।
हम बात कर रहे हैं कुमाऊं विश्वविद्यालय की होनहार और अंग्रेजी व राजनीति विज्ञान से एमए करने वाली अल्मोड़ा की होनहार हंसी प्रहरी की। हंसी प्रहरी लंबे समय से हरिद्वार में भिक्षावृत्ति कर रही हैं।
उन्होंने बताया कि वह केवल अपने बच्चे परीक्षित की पढ़ाई के लिए पैसे मांगती हैं। ज्यादा पैसे देने पर लौटा देती हैं। हंसी ने बताया कि वह अल्मोड़ा जिले के सोमेश्वर के रणखिला गांव की रहने वाली हैं।
वर्ष 2000 वह अपने कॉलेज की छात्रसंघ चुनाव में उपाध्यक्ष चुनी गईं। बाद में वह कुमाऊं विश्वविद्यालय में ही लाइब्रेरियन की नौकरी करने लगीं। वहां उन्होंने चार साल तक नौकरी की।
वह शारीरिक रूप से कमजोर हो गईं तो कहीं नौकरी करने के लायक नहीं रहीं। इसलिए उन्होंने भिक्षावृत्ति का निर्णय लिया। हंसी ने उत्तराखंड राज्य बनने के बाद हुए विधानसभा चुनाव में सोमेश्वर सीट से कांग्रेस के प्रदीप टम्टा और भाजपा के राजेश कुमार के खिलाफ चुनाव लड़ा था।
सोमवार को हंसी से मिलने कई लोग पहुंचे और उनकी मदद की। एलआईयू के अफसर हंसी से मिलने पहुंचे। कॉलेज सीनियर शालिनी भी हंसी से मिलीं। हंसी ने उनसे कहा कि वह सरकार से मदद चाहती हैं और हरिद्वार नहीं छोडऩा चाहती हैं।
कुमाऊं यूनिवर्सिटी का कैंपस कभी हंसी प्रहरी के नाम के नारों से गूंजता था। राजनीति और इंग्लिश जैसे विषयों में डबल एमए किया। तब कैंपस में बहसें हंसी के बिना अधूरी होती थीं। हर किसी को इस बात का यकीन था कि हंसी जीवन में कुछ बड़ा करेगी। पर समय का पहिया किस और घूमता है ये किसे पता। जोे लड़की कभी विवि की पहचान हुआ करती थी वह आज भीख मांगने के लिए मजबूर है। हरिद्वार की सड़कों, रेलवे स्टेशन, बस अड्डों और गंगा के घाटों पर उसे भीख मांगते हुए देखने पर शायद ही कोई यकीन करे कि उसका अतीत कितना सुनहरा रहा होगा।
उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के सोमेश्वर क्षेत्र के हवालबाग ब्लॉक के अंतर्गत गोविंन्दपुर के पास रणखिला गांव पड़ता है। इसी गांव में पली-बढ़ीं हंसी पांच भाई-बहनों में से सबसे बड़ी बेटी है। वह पूरे गांव में अपनी पढ़ाई को लेकर चर्चा में रहती थी। पिता छोटा-मोटा रोजगार करते थे। उन्होंने अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए दिन रात एक कर दिया था। गांव से छोटे से स्कूल से पास होकर हंसी कुमाऊं विश्वविद्यालय में एडमिशन लेने पहुंची तो परिजनों की उम्मीदें बढ़ गईं। हंसी पढ़ाई लिखाई के साथ ही दूसरी एक्टिविटीज में बढ़चए़कर भाग लेती थी। साल 1998-99 वह तब चर्चा में आई जब कुमाऊं विश्वविद्यालय में छात्र यूनियन की वाइस प्रेसिडेंट बनी।
हंसी विश्वविद्यालय में 4 साल लाइब्रेरियन भी रहीं
हंसी के मुताबिक उन्होंने करीब चार साल विश्वविद्यालय में नौकरी की। उन्हें नौकरी इसलिए मिली क्योंकि वह विश्वविद्यालय में होने वाली तमाम एजुकेशन से संबंधित प्रतियोगिताओं में भाग लेती थी। चाहे वह डिबेट हो या कल्चर प्रोग्राम या दूसरे अन्य कार्यक्रम, वह सभी में प्रथम आया करती थी। इसके बाद उन्होंने 2008 तक कई प्राइवेट जॉब भी की। 2011 के बाद हंसी की जिंदगी अचानक से बदल गई। उन्होंने साफ-साफ कुछ भी बताने से तो इन्कार कर दिया। क्योंकि वह नहीं चाहती कि उनकी वजह से दो भाई और बाकी परिवार के सदस्यों पर किसी तरह का भी फर्क पड़े। हंसी ने बताया कि वह इस वक्त जिस तरह की जिंदगी जी रही हैं, वह शादी के बाद हुई आपसी विवाद का नतीजा है।
दोबारा से जिंदगी की शुरुआत करने की हसरत
शादीशुदा जिंदगी में हुई उथल-पुथल के बाद हंसी कुछ समय तक अवसाद में रहीं और इसी बीच उनका धर्म की ओर झुकाव भी हो गया। परिवार से अलग होकर धर्मनगरी में बसने की सोची और हरिद्वार पहुंच गईं। तब से ही वो अपने परिवार से अलग हैं। वो बताती हैं कि इस दौरान उनकी शारीरिक स्थिति भी गड़बड़ रहने लगी और वह सक्षम नहीं रहीं कि कहीं नौकरी कर सकें। हालांकि अब उन्हें लगता है कि यदि उनका इलाज हो तो उनकी जिंदगी पटरी पर आ सकती है। वह दोबार से अपनी जिंदगी की शुरुआत कर सकती हैं।
कई बार मुख्यमंत्री को लिख चुकी हैं पत्र
हंसी ने बताया कि वह 2012 के बाद से ही हरिद्वार में भिक्षा मांग कर अपना और अपने छह साल के बच्चे का पालन-पोषण कर रही हैं। बेटी नानी के साथ रहती है और बेटा उनके साथ ही फुटपाथ पर जीवन बिता रहा है। फर्राटेदार इंग्लिश बोलने वाली हंसी जब भी समय होता है तो अपने बेटे को फुटपाथ पर ही बैठकर अंग्रेजी, हिंदी, संस्कृत और तमाम भाषाएं सिखाती हैं। इच्छा यही है कि उनके बच्चे पढ़-लिखकर बेहतर जीवन जीएं। इतना ही नहीं, वह खुद कई बार मुख्यमंत्री को पत्र लिख चुकी हैं कि उनकी सहायता की जाए। कई बार सचिवालय विधानसभा में भी चक्कर काट चुकी हैं। इस बात के दस्तावेज भी हंसी के पास मौजूद हैं। वह कहती हैं कि अगर सरकार उनकी सहायता करती है तो आज भी वह बच्चों को अच्छी शिक्षा दे सकती है।