देहरादून। उत्तराखण्ड में प्रवासियों की वापसी के साथ कोरोना संक्रमितों की बाढ़ आ गयी है। हर रोज कोरोना मरीजों की संख्या में हो रही भारी वृद्धि के कारण शासन-प्रशासन में भी हड़कंप मचा हुआ है। लेकिन उपचार के नाम पर सिर्फ दिशा निर्देश के कुछ भी नहीं हो रहा हैए जो एक बड़े खतरे की घंटी है।
राज्य में अब तक एक लाख से अधिक प्रवासी लौटे है। लेकिन अगर इनके सैम्पल जांच की बात की जाये तो वह पांच हजार भी नहीं है। ऐसी स्थिति में कोरोना संक्रमित आसानी से अपने गांव और घरों तक पहुंच रहे है और दूसरों को भी संक्रमित कर रहे है। पहाड़ के लोग अब इसे लेकर भयभीत है उन्हे डर है कि अगर हालात ऐसे ही रहे तो आने वाले दिन बड़ी मुसीबत भरे हो सकते है। उधर प्रवासियों को क्वांरटाइन करने की जिम्मेदारी सरकार द्वारा ग्राम प्रधानों को सौंपकर अपना पल्ला झाड़ लिया गया है। प्रधानों के द्वारा संसाधनों और वित्त की कमी कोे लेकर सवाल उठे तो मुख्यमंत्री ने प्रधानों को प्रतिपूर्ति (खर्चा) देने की बात कही गयी। सवाल यह है कि प्रधान पहले अपनी जेब से खर्च करें फिर सरकार के पीछे घूमें कि उनका जो खर्च हुआ है उसे लौटाएं। यह व्यवस्थाओं के साथ मजाक नहीं तो और क्या है। राज्य में अभी दो लाख से अधिक प्रवासियों की वापसी होनी है तब क्या स्थिति होगी यह भगवान जाने। राज्य में पहाड़ी जिलों और गांवो तक कोरोना संक्रमितों का पहुंचना इस कुव्यवस्था के कारण ही संभव हुआ है और अब इसके दूरगामी परिणामो को लेकर सभी चितिंत है।