रोजगार के मोर्चे पर | Jokhim Samachar Network

Friday, March 29, 2024

Select your Top Menu from wp menus

रोजगार के मोर्चे पर

आंदोलनरत् बेरोजगारों के साथ ही साथ उपनल कर्मियों व अन्य कामचलाऊ कर्मचारियों की हड़ताल से विकट हो सकती हैं परिस्थितियाँ।
बेरोजगारी के मुद्दे पर आंदोलनरत् उत्तराखंड के युवाओं व छात्रों के लिए यह खबर अहम् हो सकती है कि राज्य की त्रिवेन्द्र सिंह रावत के नेतृत्व वाली पूर्ण बहुमत सरकार ने अपने ही दावे को झुठलाते हुए उपनल के जरिये पिछले दरवाजे से भर्तियों का सिलसिला शुरू कर दिया है और इस कड़ी में जो पहला नाम सामने आया है वह राज्य के विधानसभा अध्यक्ष के सुपुत्र का है जिसे उपनल के माध्यम से जल संस्थान में एक महत्वपूर्ण पद पर नियुक्ति दी गयी है। भ्रष्टाचार मुक्त शासन का दावा करने वाली भाजपा के नेताओं की नजर में यह भले ही कोई बड़ी बात न हो और इस विषय में सफाई प्रस्तुत करते हुए इसे विशेष परिस्थितियों में तात्कालिकता के आधार पर लिया गया फैसला बताने वाले सरकार के मंत्री व नौकरशाह भले ही इस अपराध को आर्थिक भ्रष्टाचार का दर्जा न देते हौं लेकिन यह तय है कि सरकार का यह रवैय्या सरकारी नौकरी की आस लगाये युवाओं व बेरोजगारों को हताश करने वाला है तथा सरकारी नौकरियों की बंदरबांट के संदर्भ में हुए इस खुलासे के बाद सरकार की छवि पर गंभीर प्रभाव पड़ा है। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि राज्य में बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा है और रोजगार के स्थायी संसाधनों के आभाव में राज्य की युवा पीढ़ी काम धंधे की तलाश व अन्य छोटी-मोटी नौकरी के लिए प्रदेश से पलायन करती रही है लेकिन इधर राज्य गठन के बाद युवावस्था की दहलीज में कदम रख चुकी नयी पीढ़ी का एक बड़ा हिस्सा ऐसा भी है जो रोजगार से जुड़े विषयों पर राज्य से बाहर धक्के खाने की जगह आर्थिक सुरक्षा की गारंटी के साथ अपने ही कर्मक्षेत्र अर्थात् उत्तराखंड के विभिन्न शहरी व ग्रामीण इलाकों में काम करने को तैयार हैं। युवाओं की इस जरूरत को नेताओं ने जुगाड़ का नाम दिया है और सत्ता के शीर्ष पर कब्जेदारी के बाद लगभग हर राजनैतिक दल व राजनेता ने इस जुगाड़ का बखूबी इस्तेमाल किया है जिसके कारण राज्य में स्थायी सरकारी कर्मकारों से कहीं ज्यादा संख्या संविदा, उपनल, पीआरडी, होमगार्ड, तदर्थ या ऐसे ही अन्य नामों से रखे गए पूर्णतः अस्थायी कर्मकारों की है और अब यह तमाम अस्थायी कर्मचारी अपनी राजनैतिक जरूरतों व सम्पर्कों के हिसाब से सड़कों पर उतरकर हड़ताल आदि के माध्यम से सरकारी कामकाज को प्रभावित करने की स्थिति में हैं। कुल मिलाकर कहने का तात्पर्य यह है कि पिछली लगभग हर सरकार ने अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए सरकारी कामकाज के निपटारे हेतु जिन अल्प वेतन भोगी कर्मचारियों को सरकारी कार्यशैली का हिस्सा बनाया था वह अब सरकार की जरूरत बन गये हैं और अपनी कार्यकुशलता या अनुभव के दम पर वह वाकई इस स्थिति में हैं कि उनके एक साथ काम छोड़कर हड़ताल पर बैठ जाने से वह सरकारी तंत्र के लिए परेशानी का सबब बन सकते हैं। उपरोक्त के अलावा दूसरा बड़ा कारण पूरी तरह राजनैतिक है और अपनी बड़ी संख्या को एक वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल कर रहे इन तमाम अल्प वेतन भोगी, अस्थायी सरकारी कर्मचारियों के संगठन व इनके परिवार समय-समय पर सरकार को यह अहसास कराते रहते हैं कि अगर सरकार उनकी स्थितियों पर गौर नहीं करती तो वह किसी भी चुनाव की बाजी पलट सकते हैं लेकिन इतना सब कुछ होने के बावजूद उपनल या अन्य माध्यमों से सरकारी विभागों में काम कर रहे यह कर्मचारी सत्ता पक्ष से बहुत कुछ हासिल करने में नाकाम रहे हैं और बिना किसी कारण के विभिन्न सरकारी विभागों से हटाये गए इन कर्मकारों को अन्य विभागों में रिक्त पदों के सापेक्ष पुनः नियुक्त किए जाने के स्पष्ट सरकारी आदेश के बावजूद इस बात की संभावना कम ही दिखती है कि एक बार अधिकारी की नजर टेढ़ी होने या अन्य किसी कारण से विभाग से हटाये जाने के बाद इन कर्मकारों को पुनः अपने पद व अनुभव के सापेक्ष काम करने का मौका मिले। हालांकि यह कहने में कोई हर्ज नहीं कि राजनैतिक जोड़-जुगाड़ या फिर नेताओं के इर्द-गिर्द चक्कर काटने वाले छुटभैया दलालों की भेंटपूजा कर पिछले दरवाजों से नौकरी हासिल करने वाले यह अल्प वेतन भोगी अपने कब्जेदारी वाले पदों के सापेक्ष निकलने वाली सरकारी पदों की विज्ञप्ति की राह में सबसे बड़ा अड़ंगा है तथा जोड़-जुगाड़ के नाम पर अब तक इन्होंने जो कुछ भी हासिल किया है वह स्थानीय बेरोजगारों के हितों पर डकैती के अलावा कुछ भी नहीं है लेकिन इसके लिए यह अकेले जिम्मेदार नहीं है बल्कि वर्तमान परिस्थितियों में इनका कोई वैकल्पिक इंतजाम किए बगैर अगर इन्हें इनकी नौकरी से हटाया जाता है तो इसे गरीबमार ही कहा जायेगा क्योंकि एक लंबी मेहनत-मशक्कत के बाद यह न सिर्फ एक ढर्रे के आदी हो चुके हैं बल्कि इनमें से अधिकांश के सर पर अपने बाल-बच्चों व अन्य आश्रितों को पालने की जिम्मेदारी भी है। हालातों के मद्देनजर यह एक बड़ा सवाल है कि इन परिस्थितियों में सरकार क्या कदम उठाये, वह इन अल्प वेतन भोगी कर्मकारों के वेतन में एक बड़ा इजाफा कर इन्हें सम्मानजनक जीवन जीने का हक देते हुए इनके आंदोलनों व प्रदर्शनों पर पाबंदी लगाये या फिर बड़ा फैसला लेते हुए इन तमाम तदर्थ व कामचलाऊ व्यवस्थाओं को खत्म करने का प्रयास करे। इन दोनों ही प्रक्रियाओं का अनुपालन करने के लिए सरकार को धन की आवश्यकता है और सरकारी कामकाज चलाने व पूर्व निर्धारित वेतन आदि के भुगतान के लिए भी बाजार से कर्ज लेने को मजबूर सरकारी व्यवस्था संसाधनों का आभाव बताकर इन दोनों ही प्रक्रियाओं से हाथ झाड़ती नजर आती है लेकिन अपने विधायकों व मंत्रियों के वेतन आदि भत्तों में की गयी कई गुना की बढ़ोत्तरी को लेकर उसके पास कोई जवाब नहीं है। यह माना कि सरकार स्वरोजगार को बढ़ावा देने व स्टार्टअप जैसी योजनाओं के दम पर प्रदेश के युवा वर्ग को बेहतर रोजगार व आय के संसाधन उपलब्ध कराने का दावा कर रही है तथा सरकारी स्तर पर चलाये जा रहे कई तरह के निशुल्क रोजगार प्रशिक्षण शिविरों व रोजगार मेलों के माध्यम से भी बेरोजगारी के खिलाफ एक निर्णायक जंग लड़ने का दावा किया जा रहा है लेकिन इस तमाम नूराकुश्ती के नतीजे दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहे और न ही सरकारी तंत्र अपने अल्प वेतन भोगी कर्मचारियों को यह जवाब देने की स्थिति में है कि वह उनकी वेतन वृद्धि या बेहतरी के लिए क्या प्रयास कर रहा है। नतीजतन वर्तमान में चारों ओर अवसाद व विरोध की स्थिति है तथा सरकार से नाराज उपनल कर्मचारियों के संगठन ने आगामी पखवाड़े से आम हड़ताल का ऐलान कर दिया है जबकि कुछ अन्य संगठन या तो हड़ताल पर हैं या फिर आगामी आंदोलन हेतु अपनी रणनीति बनाने में जुटे हैं। ठीक इसी तरह युवाओं व बेरोजगारों के विभिन्न समूह भी स्थायी रोजगार की मांग को लेकर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं और ऐसे मौके पर सामने आया विधानसभा अध्यक्ष का एक जुगाड़ युवाओं के गुस्से को बढ़ाने के लिए काफी है। हालांकि विधानसभा अध्यक्ष के पुत्र को मौके की नजाकत भांपते हुए वर्तमान सेवाओं से हटा दिया गया है तथा सरकार भी ढकी-छिपी भाषा में अपनी गलती स्वीकार कर रही है लेकिन यह जरूरी नहीं है कि शासनादेश होने के बाद यह सरकार द्वारा उपनल के माध्यम से की गयी पहली व आखिरी गलती हो। लिहाजा यह कहना कठिन है कि आक्रोशित बेरोजगार व उपनल जैसी तमाम कार्यदायी संस्थाओं अथवा व्यवस्थाओं द्वारा शोषित अस्थायी कर्मचारियों के तमाम बड़े समूह इसे तंत्र की चूक मानकर भूल जायेंगे और यह पूरा प्रकरण आगामी राजनैतिक चर्चाओं का विषय नहीं बनेगा। हालांकि राज्य का मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस इन तमाम विषयों पर मौन है और अस्थायी कर्मचारियों के आंदोलन या फिर बेरोजगारी के मुद्दे पर भी कांगे्रस की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है लेकिन इसकी बड़ी वजह सत्ता में रहते हुए कांग्रेस के नेताओं द्वारा किया गया इसी तरह का आचरण मानी जा रही है और राज्य की जनता के बीच चल रही सुगबुगाहट यह इशारा कर रही है कि नेताओं के इस कदाचरण व सत्ता पक्ष की मनमानी के खिलाफ एक बड़ा गैर राजनैतिक आंदोलन खड़ा किया जाना चाहिए।

About The Author

Related posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *