पाकिस्तान की शह पर | Jokhim Samachar Network

Thursday, March 28, 2024

Select your Top Menu from wp menus

पाकिस्तान की शह पर

विकास के मुद्दे से पूरी तरह भटका गुजरात चुनाव
गुजरात के विधानसभा चुनावों में विकास चुनाव का मुद्दा नहीं है और न ही नोटबंदी या जीएसटी लागू करने के ऐतिहासिक फैसले के आधार पर सत्तापक्ष जनता से समर्थन मांगता दिख रहा है लेकिन इस सबके बावजूद देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी समेत उनके मंत्रीमंडल के लगभग सभी सदस्य भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री, सत्तारूढ़ दल के तमाम सांसद व भाजपा के लगभग सभी छोटे-बड़े नेता गुजरात में झोंके जा चुके हैं या फिर यह भी हो सकता है कि भाजपा के लिए प्रतिष्ठा का विषय बन चुकी देश के प्रधानमंत्री के गृहक्षेत्र की यह जीत सुनिश्चित जान भाजपाई खुद-ब-खुद अपना चेहरा दिखाने के लिए गुजरात की दौड़ लगाने निकल पड़े हैं। खैर वजह चाहे जो भी हो लेकिन यह साफ दिख रहा है कि गुजरात के मामले में भाजपा का शीर्ष नेतृत्व संयत व निश्चिंत नहीं है और न ही यहां देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाषणों में वह ओज नजर आ रहा है जिसका भारतीय मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा कायल है। अगर गंभीरता से गौर करें तो हम पाते हैं कि लगभग चार वर्ष तक देश की सर्वोच्च सत्ता पर कब्जेदारी के बावजूद देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विपक्ष के नेताओं की तरह आचरण कर रहे हैं और चिल्ला-चिल्लाकर या फिर पाकिस्तान का भय दिखाकर वह कांग्रेस को मात देने की राह खोजने का तो प्रयास कर रहे हैं लेकिन अपने आरोपों के जवाब में जनता का पूर्ववत् समर्थन न मिलने के कारण उनका असमंजस बढ़ता जा रहा है जिसके चलते उनकी आक्रामकता लगातार बढ़ती प्रतीत हो रही है। इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि 2014 के लोकसभा चुनाव व उसके बाद होने वाले तमाम विधानसभा चुनावों के दौरान देश की जनता ने एक मूक प्रधानमंत्री के मुकाबले आक्रामक नेता को चुनना ज्यादा मुनासिब समझा और चुनाव दर चुनाव न सिर्फ मोदी की लोकप्रियता बढ़ती दिखी बल्कि जनता को सम्बोधित करने का उनका अंदाज एक अहम टेªड मार्क की तरह प्रचारित हुआ। नतीजतन भाजपा न सिर्फ पूर्ण बहुमत के साथ केन्द्र की सत्ता पर काबिज हुई बल्कि देश के तमाम राज्यों में भी सरकार बनाने में उसे कामयाबी हासिल हुई लेकिन इस अंतराल में मोदी की भाषण शैली या फिर विपक्ष पर आरोप लगाए जाने के सिलसिले में कोई बदलाव नहीं आया और न ही सत्तापक्ष के नेताओं ने यह कोशिश की कि वह व्यापक जनभावनाओं या मतदाताओं की जरूरतों को समझें। हालांकि सत्ता के शीर्ष पर काबिज होने के बाद मोदी सरकार ने अनेक जनकल्याणकारी योजनाओं को शुरू करने की घोषणा की और आदर्श ग्राम के नाम पर प्रत्येक सांसद द्वारा एक गांव गोद लेकर उसे सक्षम बनाने जैसी योजनाओं के जरिए हर जनप्रतिनिधि को सीधे तौर पर विकास से जोड़ने की कोशिश भी की गयी लेकिन यह तमाम योजनाएं उस अंदाज में परवान नहीं चढ़ पायी जिस अंदाज में भाजपा के नेताओं व खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इन्हें जनता की अदालत में प्रस्तुत किया था। यह माना कि तमाम योजनाओं, सड़कों, ऐतिहासिक स्थलों आदि का नाम बदलकर आम आदमी के दिलो-दिमाग पर हावी होने की सफल कोशिश सत्तापक्ष द्वारा योजनाबद्ध तरीके से शुरू की गयी और गांधी, सुभाष, नेहरू या फिर अन्य चित-परिचित व चर्चित नामों की जगह संघ के इतिहास से जुड़े तमाम छोटे-बड़े नेताओं को मुकाबले के लिए खड़ा करने की नाकाम कोशिश भाजपा द्वारा की गयी लेकिन इस तरह की तमाम मुहिमों के माध्यम से भाजपा वह सब कुछ हासिल नहीं कर पायी जो कांगे्रस ने अपने चार दशकों से अधिक के सत्ताकाल व सौ वर्षों से भी अधिक के जीवन में हासिल किया था। लिहाजा भाजपा के नेताओं के दिलों में आज भी टीस की स्थिति है और पूर्ण बहुमत के साथ केन्द्र में सरकार बनाने व कई राज्यों की सत्ता पर काबिज होने के बावजूद, कांग्रेस का मुकाबला करते वक्त भाजपा के नेता यह भूल जाते हैं कि वह विपक्ष नहीं हंै और राष्ट्र अथवा राज्य की सत्ता कब्जेदारी होने के कारण उनकी इस कब्जेदारी को बनाए रखने के अलावा भी कई जिम्मेदारियां हैं। हमने देखा है और गुजरात विधानसभा के चुनावों में साफ तौर पर दिख भी रहा है कि भाजपा के नेता अपने हर चुनावी मंच से धर्मनिरपेक्षता को ठोकर मार मतदाताओं की धार्मिक आधार पर लामबंदी की पूरी कोशिश करते हैं और यह तरकीब पिछले कुछ समय से कारगर हथियार साबित हो रही है लेकिन यह पहला मौका है जब देश की सत्ता पर काबिज सर्वोच्च राजनैतिक ताकत ने एक राज्य में अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए पड़ोसी मुल्क का भय दिखाया है और यह प्रचारित किया जा रहा है कि विपक्ष इस मुल्क के सिपाहसलाहारों के साथ मिलकर सत्तापक्ष के तख्त पलट की साजिश कर रहा है। राजनीति के लिहाज से देखें तो यह स्थितियां बहुत बेहतर नहीं कही जा सकती और न ही यह माना जा सकता है कि गुजरात या किसी भी अन्य राज्य का चुनाव सत्ता पक्ष अथवा किसी भी राजनैतिक दल के लिए इतना महत्वपूर्ण हो सकता है कि इसमें जीत हासिल करने के लिए किसी भी प्रकार की गलत बयानी अथवा विभ्रम की स्थिति पैदा करने की छूट दी जा सकती है। हो सकता है कि लगातार दो दशकों से भी अधिक गुजरात की सत्ता पर काबिज रहे नरेन्द्र मोदी व भाजपा को यह उम्मीद हो कि गुजरात दंगों के बाद हिन्दू व मुस्लिम समुदाय के बीच बनी खाई को और ज्यादा गहरा कर वह आसानी के साथ बहुसंख्य समाज का मत हासिल कर सकते हैं या फिर यह भी हो सकता है कि पूर्व के गुजरात में हावी रहा माफिया या स्मगलिंग के कारोबारी वाकई में पाकिस्तान की शह पर डर का कुछ ऐसा कारोबार करते हों कि गुजरात के एक आम आदमी को पाकिस्तान के नाम से ही चिढ़ हो लेकिन सवाल यह है कि देश के प्रधानमंत्री एक सार्वजनिक मंच से जो कुछ कह रहे हैं, क्या उसे उनके अधिकाधिक बयान की संज्ञा दी जा सकती है या फिर उन्हें इस संदर्भ में अपनी गुप्तचर शाखा अथवा अन्य अधिकाधिक सूत्रों से कोई खबर मिली है। अगर यह मान भी लिया जाए कि गुजरात के विधानसभा चुनावों में जीत हासिल करने के बाद कांगे्रस अहमद पटेल को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाना चाहती है तो इसमें आखिर गलत क्या है? क्या अहमद पटेल भारत के नागरिक नहीं हैं या फिर उनका मुस्लिम समाज से जुड़ा होना उनके मुख्यमंत्री होने की काबिलियत पर प्रश्नचिन्ह लगाता है और रहा सवाल उन्हें मिल रही पाकिस्तानी शह का तो इस संदर्भ में सिर्फ यही कहा जा सकता है कि अगर देश के प्रधानमंत्री पुख्ता दावों के साथ विपक्ष के एक नेता पर इस तरह का आरोप लगा रहे हैं तो फिर हमारे सुरक्षा बलों व अन्य गुप्तचर एजेंसियों ने अभी तक अहमद पटेल को अपनी गिरफ्त में क्यों नहीं लिया है और अगर यह बयानबाजी सिर्फ सनसनी कायम रखने के लिए की गयी है तो प्रधानमंत्री ने यह ध्यान रखना चाहिए कि वह अब विपक्ष के नेता मात्र नहीं है बल्कि एक जवाबदेही के पद पर कब्जेदारी के चलते उनकी कई अन्य तरह की जिम्मेदारियां भी हैं। इसलिए अपने राजकाज के तौर-तरीकों व उद्देश्यों को सिर्फ चुनावी जीत हासिल करने तक कायम रखने की जगह मोदी व भाजपा ने उन जिम्मेदारियों का अहसास भी समझना चाहिए जो देश की जनता द्वारा उनको दी गयी है।

About The Author

Related posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *