सन्तई के बहाने | Jokhim Samachar Network

Saturday, April 20, 2024

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सन्तई के बहाने

तथाकथित सन्तो व फर्जी़ बाबाओ पर लग रहे बलात्कार व एैेय्याशी के तमाम आरोंपो के बीच एक नाम दाती महाराज का भी।
भ्रष्ट सन्तो की श्रेणी में दाती महाराज का भी नाम जुड़ने के बाद उनके विज्ञापनो व खबरों को बढ़ाचढ़ा कर दिखाने वाला मीडिया अब यह बता रहा है कि एक साधारण व्यक्तित्व एंव चाय की दुकान से आगे बढ़कर दाती महाराज उर्फ मदनलाल इतने प्रसिद्ध सन्त या महात्मा कैसे बन गये और उनकी महन्तई का यह काला कारोबार आश्रमों के माध्यम से देश के किन-किन हिस्सो व कोनो तक फैला हुआ है। हाॅलाकि धर्म व अध्यात्म के केन्द्र भारत में सन्तो की एक सनातनी परम्परा रही है और इस तथ्य से भी इनकार नही किया जा सकता कि सन्त समाज के एक बड़े हिस्से ने समय-समय पर राष्ट्र एंव राष्ट्रवासियों को उचित संरक्षण व मार्गदर्शन देकर आपातकालीन परिस्थितियों से बचाया है लेकिन इधर पिछले कुछ समय से यह महसूस किया जा रहा है कि देश
व दुनिया को अध्यात्मिक ज्ञान देने का दावा करने वाले सन्त समाज का एक हिस्सा खुद मायाजाल में फॅसता जा रहा है और इनकंे मठो, मन्दिरो अथवा आश्रमों की बेहिसाब बढ़ती जा रही सम्पति ने तमाम ऐसे विवादो को जन्म दिया है जिनका निस्तारण किया जाना आसान नही है। यह माना कि श्रृद्धा, सम्मान अथवा प्रचार तन्त्र से
जुड़े इस व्यवसाय में एक-दूसरे से आगे निकल जाने की होड़ में सन्तो द्वारा दिये जाने वाले विज्ञापन अथवा उनके तमाम कार्यक्रमों का सीधा प्रसारण एक बड़ी भूमिका निभाता है और आधुनिकता की इस दौड़ में लगातार बढ़ रही भागमभाग व एकांकी परिवारो के चलते समाज में बढ़ रही परेशानियों से दुखी सभ्य समाज का एक हिस्सा इस तरह के प्रचार-प्रसार से प्रभावित होकर इन तथाकथित सन्तो की शरण में दौड़ लगाता नज़र आता है लेकिन अगर व्यवस्था की दृष्टि से देखा जाय तो इन तथाकथित साधुओ के आश्रमों में होने वाली व्यभिचार व अन्य अनैतिक कार्यो के लिऐ हमारा कानून व इस कानूनी व्यवस्था से उपर समझे जाने वाले राजनैतिक चैहरे भी कम ज़िम्मेदार नही है। हम यह देख व महसूस कर सकते है कि वोट-बैंक के लालच अथवा अन्धविश्वास के चलते इन तमाम आस्था के केन्द्रो में शीश नवाने वाले हमारे राजनेता व सत्ता के शीर्ष पदो पर शोभायमान जनप्रतिनिधि इन तथाकथित सन्तो द्वारा चमत्कार के नाम पर दिखाई जाने वाली हाथ की सफाई अथवा अन्य
बेवकूफाना हरकतों का विरोध करने के स्थान पर आॅख मूॅदकर इनका समर्थन करते है और कलयुग के इन सत्ता केन्द्रो पर अपना प्रभाव डाल अथवा साबित कर आध्यात्म जगत के यह चतुर खिलाड़ी अपने अनुयायियों व अन्य सामान्य जनता को प्रभावित करने में सफल रहते है जिसके चलते इनके आश्रमों व धार्मिक आयोजनों में बढ़ती भीड़ कम होने का नाम ही नही लेती। यह ठीक है कि भारतीय सभ्य समाज में धर्म की जड़े बहुत गहरी है और विज्ञान व अन्य तार्किक शिक्षाओं के ठीक-ठाक प्रसार के बावजूद आज भी अधिसख्ंय जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा सूरज को जल चढ़ाने अथवा मंदिर में भेंट चढ़ाकर मन्नत माॅगने जैसी परम्पराओं पर विश्वास करता दिखता है जिसका पूरा फायदा धर्म के धन्धेबाज़ो द्वारा उठाया जाता है। इस तथ्य से इनकार नही किया जा सकता कि अब तक सामने आयी तथाकथित सन्तो के व्यभिचार व महिलाओं के शारीरिक शोषण से जुड़े तमाम आपराधिक घटनाओं में यह स्पष्ट रूप से देखा गया है कि शोंषित अथवा आरोंप लगाने वाली महिला व उसके परिजन एक लम्बे अन्तराल से आरोंपी सन्त की उसके निकटवर्ती सहयोगी अथवा भक्त के रूप में सेवा कर रहे होते है तथा इस तरह के आरोंपो प्रत्यारांपो अथवा मुकदमेबाज़ी व पुलिस शिकायत के दौर से पहले कई स्तरों पर शिकायतों व मान-मुनव्वल का दौर चल चुका होता है लेकिन अपने कृतिम आभामण्डल व सत्ता या शासन तन्त्र के उच्च सदनों तक अपनी पहुॅच के दम्भ में रहने वाले यह तथाकथित सन्त अधिकांशतः बड़बोलेपन व दम्भ का शिकार रहते है और सेवक व मालिक के बीच अक्सर दिखने वाली बहस या मनमुटाव के लिऐ उन तमाम आर्थिक कारणों व आकूत धनराशि को भी जिम्मेदार माना जा सकता है जो इन तथाकथित सन्तो के आश्रमो में बिखरी दिखाई देती है। कुल मिलाकर कहने का तात्पर्य यह है कि कलयुगी सन्तो के आश्रम रूपी महलो में होने वाले हर अनैतिक व्यापार व व्यवहार के लिऐ वह दौलत या आर्थिक सम्पदा ही जिम्मेदार है जिसे त्यागने का दावा करने के बाद ही कोई सामान्य व्यक्ति इस समाज के बीच खुद के सन्त होने अर्थात मोह-माया से दूर होने का दावा कर पाता है और अपने प्रवचनों, संत्सगो अथवा अन्य माध्यमो से सब कुछ त्यागकर सादा जीवन व्यतीत करने का उपदेश देने वाले यह तथाथित सन्त बड़ी ही आसानी के साथ अपने व्यवहार व व्यभिचार को धर्म के लबादे के पीछे छिपा लेने में सफल रहते है लेकिन जब इन तथाकथित धर्मगुरूओं के अपराध व ऐशोआराम वाली ज़िन्दगी का रहस्य खुलता है तो कानून के समक्ष कई तरह की अड़चने उठ खड़ी होती है और अपने गुरू को ईश्वर का अवतार अथवा एक महापुरूष मानने वाले लोग कानून अथवा सुरक्षा से जुड़े तमाम पहुलुओं को अपने हाथ में लेते हुऐ सरकारी फैसले के विरोध में खडे़ दिखते है। यह स्थितियाॅ काफी संवेदनशील मानी जा सकती है और किसी भी देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था व कानून के अनुपालन से जुड़े मामलो में इस तरह की परिस्थितियों को काफी गम्भीरता से लिया जाना चाहिऐं लेकिन हमारे देश का दुर्भाग्य है कि यहाॅ आस्था एंव विश्वास के नाम पर कोई भी खेल खेला जा सकता है और धर्म के नाम पर एकजुट होने वाली विध्ंवसकारी ताकतों के सामने हमारा कानून व सविंधान की शक्तियाॅ अधिकांशतः निरीह नज़र आती है। हम यह तो नही कहते है कि सरकारी व्यवस्थाओं के तहत धार्मिक अनुष्ठानों अथवा इस तरह के अन्य आयोजनों को अवैध घोषित कर दिया जाना चाहिऐं या फिर मठ, मन्दिर, आश्रम या अन्य धार्मिक गतिविधियों वाले संस्थानो में आने वाले बेहिसाब चढ़ावे व चन्दे का सरकार के पास कोई लेखा-जोखा होना चाहिऐं लेकिन अगर सरकार चाहे तो वह बड़ी ही आसानी के साथ जनता के बीच चमत्कार दिखाने वाले बाबाओं पर शिंकजा कस लूट की इस परिपाटी पर लगाम लगा सकती है और सार्वजनिक मंचो से जनकल्याण को लेकर बढ़े दावे करने वाले तथाकथित सन्त-महात्माओं से यह यह पूछा जा सकता है कि उनकी संस्थाऐं या आश्रम व्यापक जनहित में किस तरह के कार्यक्रम चला रहे है। उपरोक्त के अलावा खुद को भगवान या ईश्वर का दूत घोषित करने वाले इन तथाकथित सन्त-महात्माओं द्वारा किये जाने वाले आयोजनों तथा इन आयोजनों के चलते होने वाली सन्त समाज की आय को लेकर भी बड़ी भ्रान्ति की स्थिति है तथा यह माना जाता रहा है कि धर्म का यह कारोबार वास्तव में कालेधन को सफेद में तब्दील करने व नेताओं या पूॅजीपतियों की दो नम्बर की कमाई को ठिकाने लगाने में भी बड़ा मददगार साबित होता है। शायद यही वजह है कि इस तरह के आयोजनों में स्थानीय स्तर पर धनाढ़्य व नेता अधिकांशतः ही भागीदारी करते नज़र आते है और यह माना जाता रहा है कि धर्म को संरक्षण देने या फिर धार्मिक गतिविधियों को बढ़ावा देने में इन वर्गो का विशेष हाथ रहता है लेकिन अगर हकीकत पर गौर किया जाये तो यह साफ दिखाई देता है कि धार्मिक गतिविधियों को बढ़ावा देने या फिर किसी सन्त को नामचीन अथवा सिद्ध घोषित करने के पीछे इन दोनो ही वर्गो के अपने स्वार्थ छिपे होते है और इन नेताओ या पूॅजीपतियों की अवैध रूप से कमाई गयी दौलत पर ऐश करने वाले तथाकथित सन्तो द्वारा इसकी कीमत जेल जाकर या फिर भैय्यू महाराज की तरह आत्महत्या करके चुकानी पड़ती है। इन परिस्थितियों में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि बाबाओं के नैतिक पतन अथवा धर्म के नाम पर चलने वाले आडम्बर व भ्रष्ट आचरण के इस खेल का असल ज़िम्मेदार कौन है और वह कौन सी ताकतें है जो सनातन धर्म की परम्पराओं व एक सन्यासी के जीवन को दागदार कर हर सन्त-महात्मा को संदिग्ध की श्रेणी में खड़ा कर रही है लेकिन इन तमाम सवालो पर हमारा मीडिया खामोश नज़र आता है और साधू समाज की आदर्श परम्पराओं के निर्वहन के लिऐ गठित की गयी अखाड़ा व्यवस्था इस पचड़े में ही नही पड़ना चाहती है जिसके चलते धर्म के धन्धेबाजो़ की मौज है। आध्यात्मिक शान्ति, मोक्ष, निवार्ण अथवा संसारिक सुख व भौतिक सुविधाओ की तलाश के नाम पर इस तरह की बाबागिरी का शिकार होने वाला हमारे देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा भीड़चाल का शिकार होकर इस तरह के आयोजनों के लिऐ अपना सबकुछ दाॅव पर लगाने से नही हिचकता और कुछ समय बाद जब उसे अपनी आस्था के इन केन्द्रो पर लगने वाले आरोंपो का भान होता है तो वह चाहकर भी कुछ नही कर सकता क्योंकि कानून के काम करने व सजा़ तय करने का अपना ही एक अलग अन्दाज़ होता है।

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