-बन्दरों की क्षेत्रीय बहुलता भविष्य में गम्भीर खतरे व रोग के कारक बन सकतेः प्रो0 दिनेश भट्ट
हरिद्वार। उत्तराखंड में वर्तमान में 2.25 लाख से अधिक बन्दरों की जनसंख्या है। जिसमें हरिद्वार पंचपुरी कनखल-क्षेत्र में लगभग 2700 बन्दर है। यह आंकड़ा जन्तु एवं पर्यावरण विज्ञान विभाग, गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय द्वारा संकलित किया गया है। पर्यावरण विभाग के विभागाध्यक्ष व कुलसचिव प्रो0 दिनेश चन्द्र भट्ट की लैब में शोध छात्र रोवीन सिंह 04 वर्षों से बन्दरों के एग्रेसिव बिहेवयर व इनके द्वारा जन-जीवन पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों का अध्ययन कर रहे हैं।
अन्तराष्ट्रीय पक्षी व जन्तु वैज्ञानिक प्रो0 दिनेश भट्ट के अनुसार विगत एक वर्ष में बन्दरों द्वारा लगभग 85 लोगों को काटा गया या घायल किया गया है। कनखल के विद्या विहार में श्रीमती रामप्यारी, छोटू के दो बच्चों को, उषा देवी, लक्ष्मी, ज्योति एवं श्रीमति डे, मंजू देवी, श्री रमेश शर्मा इत्यादि इनके काटने से घायल हुए हैं। इनके आतंक को देखते हुये लोग अब पानी की टंकियों और बरामदों को ग्रिल से ढक रहे हैं। कनखल में एडवोकेट अरोड़ा व डा0 वेन्जवाल के बच्चों पर बार-बार अटैक होने पर उन्होने पूरे घर को ग्रिल से ढ़क दिया है।
शोध छात्र रोविन व पारूल ने बताया कि बन्दरों के बच्चे स्वभाव से चंचल होते है और घरों में रखे हुये गमलो के फूल-पत्ती खाते-खाते गमलों को गिराकर तोड़-फोड़ करते हैं। अब लोगों ने गमलों में पौधे रखने ही बन्द कर दिये और ग्रामीणों को खेती करना भारी पड़ रहा है। गौरेया संरक्षण के लिये लगाये गये लकड़ी के घोसलों के अन्दर रखी गई घास को भी बन्दर बाहर निकाल कर इधर-उधर फेंक देते हैं और अण्डों को खा जाते हैं।
प्रो0 दिनेश चन्द्र भट्ट ने बताया कि उत्तराखंड राज्य सरकार ने अभी तक इस प्रजाति को वर्मिन (मनुष्य या खेती को नुकसान पहुचाने वाले जीव) घोषित नहीं किया है जबकि हिमांचल सरकार द्वारा इसे जुलाई 2019 में ही वर्मिन घोषित किया जा चुका है और वहा अब खेती-बाड़ी को नुकसान काफी कम हो रहा है। चिड़ियापुर रेंज में बन्दरों को बन्ध्याकरण करने का प्रयास भी बन्द हो गया है। प्रशिक्षित बन्दर पकड़ने वाला उत्तराखंड में कोई नहीं मिला।
प्रो0 दिनेश भट्ट ने बताया कि वर्तमान में कोविड-19 संक्रमण तेज गति से बढ़ रहा है। अतः इस काल में यह मोनिटरिंग करना आवश्यक होगा कि बन्दरों द्वारा संक्रमित घरों से अन्य घरों में आने-जाने व तार पर सुखाते व लटकाये हुये धुले कपड़ों से छेडखानी करने से कहीं बन्दर संक्रमण फैलाने में सहायक तो नहीं हो रहें। इनकी आबादी पर नियन्त्रण व इनकी निगरानी बहुत आवश्यक हो गई है।प्रो0 दिनेश भट्ट के साथ जन्तु एवं पक्षी विज्ञान पर कार्यरत व संस्कृत विश्वविद्यालय के शिक्षक डा0 विनय सेठी ने कहा कि वर्तमान में वन्दरों को मारना धार्मिक व वन्य जीवन प्रोटेशन एक्ट के तहत सम्भव नहीं प्रतीत होता किन्तु वन्ध्याकरण का कार्य व ओरल कन्ट्रासेप्टिव दिया जा सकता है।और वन्दर शहरी माहौल में रच-वस गये है, जो कि मानव-वन्य जीव संघर्ष को ही नहीं बढा रहे अपितु इन बन्दरों की क्षेत्रीय बहुलता भविष्य में गम्भीर खतरे व रोग के कारक बन सकते है।