मनोरंजन के मूड में | Jokhim Samachar Network

Saturday, April 20, 2024

Select your Top Menu from wp menus

मनोरंजन के मूड में

बैंकाॅक की विदेश यात्रा के बाद मुख्यमंत्री को चर्राया क्रिकेट का शौक।
सत्ता के शीर्ष तल से आ रही खबरों को अगर सही मानें तो सरकार बहादुर के थाईलैण्ड से लौटने के बाद प्रदेश का क्रिकेट के खुशनुमा माहौल में डूबना तय है और खबर यह भी है कि इस बार सरकार बहादुर खुद भी बल्ले के साथ जोर-आजमाईश करने वाले हैं। जश्न के इस माहौल की तैयारियां जोरों पर हैं और क्रिकेट की इस खुमारी को अंजाम तक पहुंचाने के लिए साहब बहादुर के सलाहकारों समेत निजी सचिवों, आईएस अफसरों, विधायकों व पुलिस अधिकारियों ने अलग-अलग खेमे खड़े कर अपनी टीम को मजबूत करने का काम शुरू कर दिया है। हालांकि खेल भावना को आगे किया जाना एक अच्छी कला है तथा खेलों के माध्यम से नये उत्साह के संचार के साथ मिल-जुलकर कार्य करने की भावना भी बलवती होती है लेकिन यह भी सच है कि खेल-तमाशे तब ही अच्छे लगते हैं जब आदमी का पेट भरा हुआ हो। अगर आर्थिक दृष्टिकोण से देखें तो हम पाते हैं कि सरकारी खजाने से वेतन पा रही नौकरशाहों की टोली समेत प्रदेश के तमाम विधायक व मंत्री या फिर सत्ता से नजदीकी का फायदा उठाते हुए सलाहकार व ओएसडी जैसे राजनैतिक पदों पर बैठे व्यक्तित्व वाकई में इस हैसियत में हैं कि वह अपने मनोरंजन के संसाधन ढूंढने के लिए विदेश की तफरीह पर निकल सकें या फिर क्रिकेट जैसे अन्य तमाम खेलों के बहाने मैदान में अपने हुनर की जोर-आजमाईश कर सकें लेकिन राज्य की जो जनता विकास कार्यों के लिए सरकारी खजाने में कमी का रोना झेल रही हो और वेतन विसंगतियों या फिर अल्प वेतन को लेकर जो सरकारी अथवा संविदा कर्मचारी सड़कों पर आंदोलन का मूड बना रहे हों, उन्हें इस बेमौसम के खेल में क्या आनंद आ सकता है? गर्मी के इस शुरूआती दौर में लगभग पूरे राज्य में हुए बरसात के बावजूद पेयजल की व्यवस्था चरमराती हुई दिख रही है और खेतों में खड़ी गेहूं की फसल को मौसम की मार के चलते हुए नुकसान से अचकचाया किसान मदद की दृष्टि से सरकार बहादुर को निहार रहा है लेकिन माननीय अभी अपने खेल में व्यस्त हैं और यह खेल कई स्तरों पर खेला जाना है या फिर यूं कहें कि खिलाड़ी बनने को आतुर हर आमोखास खेल के इस मैदान में अपने हिसाब से मोहरें बिछा रहा है। मोर्चाबंदी के इस खेल से जनसाधारण को क्या हासिल होने वाला है यह तो पता नहीं लेकिन यह चर्चा चारों ओर है कि अब तक अपने विरोधियों व प्रतिद्वंदियों को परास्त करने में कामयाब रहे सरकार बहादुर क्रिकेट की इस चर्चा के बहाने कई तरह के संदेश देना चाहते हैं। राज्य में चारधाम यात्रा शुरू हो चुकी है और मौसम का पूर्वानुमान यह इशारा कर रहा है कि इस बार भी अतिवृष्टि या अन्य प्राकृतिक आपदाओं की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता लेकिन इन तमाम चिंताओं से दूर सरकार बहादुर अपना गम भुलाने के लिए खेलों के खुशनुमा माहौल में डूब जाना चाहते हैं और चर्चा तो यह भी है कि थाईलैंड की थकान उतारने के लिए पसीना बहाने का इससे बेहतर तरीका कोई नहीं है, ऐसी सलाह माननीय के शुभचिंतकों द्वारा उन्हें दी गयी है। यह ठीक है कि आपदा प्रबंधन के दृष्टिकोण से एक पूरा का पूरा सरकारी महकमा अपना काम कर रहा है और सचिवालय परिसर में बिना किसी सूचना के ही उड़ रहे ड्रोन की खबरों के सामने आने के बाद जनता को यह भी पता चल गया है कि आपदा के बाद की स्थितियों से निपटने के लिए सरकार किस हद तक हाईटैक व्यवस्थाओं के साथ मुस्तैद नजर आ रही है लेकिन पहाड़ी मार्गों पर रोजाना के हिसाब से घटित हो रही सड़क दुर्घटनाएं कुछ और ही कहानी कह रही है तथा सरकारी तंत्र की कार्यशैली व जनहित के मुद्दों पर सचिवालय में रेंगने वाली फाईलों की रफ्तार यह इशारा कर रही है कि जो सच है उसे जनता की नजरों से छुपाया जा रहा है। यह माना कि सरकार बहादुर के थाईलैंड दौरे के पीछे यह जरूरी नहीं है कि पूरी दाल ही काली हो और सरकारी प्र्रतिनिधिमंडल में शामिल हर सदस्य सिर्फ मौज-मस्ती की नीयत से ही वहां गया हो लेकिन एक बात अभी तक समझ में नहीं आयी कि थाईलैण्ड के पास पहाड़ी फलों के उत्पादन व संरक्षण के मामले में ऐसी कौन सी महारत हासिल है कि सरकार बहादुर ने अपने पूरे तामझाम के साथ वहां दौड़ लगाना जरूरी समझा। यह हो सकता है कि विदेशी निवेश के दृष्टिकोण से यह दौरा महत्वपूर्ण हो और सरकार बहादुर द्वारा विदेश की धरती में किए गए सुलह-समझौते से राज्य की आर्थिकी को एक नई गति मिलने की उम्मीद जगती हो लेकिन सवाल यह है कि जब योगगुरू बाबा रामदेव फल संरक्षण व खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में इतने बड़े उद्योग लगाने के बावजूद उत्तराखंड के आर्थिक विकास को ढेले भर की गति नहीं दे सके तो थाईलैंड के इस तथाकथित निवेश से इतनी उम्मीदें क्यों हैं और थाईलैंड के पास वह कौन सी तकनीक है जिसके सहयोग से पहाड़ों की आर्थिकी सुधारी जा सकती है। सरकार के समर्थन में खड़े दिखाई दे रहे कुछ लोगों का मानना है कि मुख्यमंत्री के इस दौरे के बाद राज्य में पर्यटन को एक नई दिशा मिलेगी और पर्यटन को रोजगार से जोड़ने में महारत हासिल कर चुके थाईलैण्ड से बहुत कुछ सीखते हुए आर्थिक निवेश के नये रास्ते खोले जायेंगे लेकिन अगर उत्तराखंड की पारिस्थितिकी पर नजर डालें तो हम पाते हैं कि इस राज्य में आने वाला अधिसंख्य पर्यटक धार्मिक तीर्थाटन की नीयत से यहां प्रवेश करता है और हमारी संस्कृति व समाज भी यह इजाजत नहीं देता कि हम थाईलैंड या बैंकाॅक की तर्ज पर बहुआयामी पर्यटन को प्रोत्साहित करें। हम यह महसूस कर सकते हैं कि पर्यटक को सहूलियतें देने व राजस्व बढ़ाने के नाम पर उत्तराखंड के तमाम दूरस्थ क्षेत्रों में बढ़ती दिखाई दे रही शराब सेवन की प्रवृत्ति ने पहले ही राज्य का बेड़ा गर्क कर रखा है और अगर अब पर्यटन को बढ़ावा देने के नाम पर नये प्रयोग किए जाते हैं तो माहौल का खराब होना व संस्कृति का दूषित होना तय है। लिहाजा सरकारी तंत्र को चाहिए कि वह विदेश यात्राओं के लिए बहानों की तलाश करना छोड़ राज्य की आर्थिकी को बढ़ाने के लिए स्पष्ट व गंभीर योजनाएं बनाये और राज्य के मुख्यमंत्री क्रिकेट का बल्ला पकड़कर फोटो खिंचवाने का लोभ संवरण कर अपने आकाओं के साथ वार्ता कर विकास के डबल इंजन को सार्थक करने के प्रयासों में जुटें। हो सकता है कि मुख्यमंत्री को यह महसूस हो रहा हो कि केन्द्रीय नेताओं के आशीर्वाद से एक बार सत्ता के शीर्ष को हासिल करने के बाद उनकी कुर्सी को तब तक कोई खतरा नहीं है जब तक कि शीर्ष नेतृत्व अपनी नाराजी न जाहिर करे और राजनीति के इस खेल में एक बार जनमत की ताकत जुटा लेने के बाद अगले पांच साल तक जनता की नाराजी या सहमति के कोई मायने नहीं हैं लेकिन मुख्यमंत्री को यह ध्यान रखना चाहिए कि उत्तराखंड की मौजूदा सरकार अपने इस एक वर्ष से भी ज्यादा के कार्यकाल में ऐसा कुछ नहीं दे पायी है कि जनता को विरोध करने अथवा सरकारी दावों की खिल्ली उड़ाने से रोका जा सके। जहां तक राज्य की आर्थिकी को मजबूत करने का सवाल है तो राज्य की वर्तमान सरकार व मुख्यमंत्री के लिए यह ज्यादा बेहतर होता कि वह विकास की सम्भावनाएं तलाशने के नाम पर थाईलैंड या बैंकाॅक की ओर रूख करने की जगह राज्य के पहाड़ी जिलों व ग्रामीण इलाकों की ओर रूख करते और स्थानीय जनता द्वारा खेती-किसानी के मामले में रोजाना के हिसाब से झेली जा रही समस्याओं को व्यापक चर्चाओं का विषय बनाया जाता लेकिन अफसोसजनक है कि विदेश दौर से लौटने के तत्काल बाद मुख्यमंत्री अपने चाटुकारों को साथ लेकर खेल के मैदान में हाथ आजमाने का मन बना रहे हैं और सरकारी नौकरशाहों, मंत्रियों, विधायकों व पुलिस के आला अफसरों को तफरीह कराने वाले अंदाज में क्रिकेट के मैचों की तैयारी पूरे जोर-शोर से शुरू हो गयी है। एक आर्थिक रूप से विपन्न राज्य के लिये यह स्थितियां किसी भी कीमत पर ठीक नहीं कही जा सकती और न ही यह विश्वास किया जा सकता है कि मुख्यमंत्री के इस हालिया विदेश दौरे का हश्र पूर्व की तमाम सरकारों व मंत्रियों या नौकरशाहों द्वारा किए गए विदेश दौरे से भिन्न होगा।

About The Author

Related posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *