फिर गर्माया एनएच-74 मामले में हुऐ आर्थिक भ्रष्टाचार का मुद्दा | Jokhim Samachar Network

Friday, April 19, 2024

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फिर गर्माया एनएच-74 मामले में हुऐ आर्थिक भ्रष्टाचार का मुद्दा

विधायकों की सीमित संख्या के बावजूद सदन व सड़क पर सरकार को घेरने में कामयाब दिख रही है उत्तराखंड की कांग्रेस।
उत्तराखंड विधानसभा के बजट सत्र पर पहले दिन एनएच-74 मामले को लेकर चर्चा का बाजार गर्म रहा और विपक्ष ने अपनी सीमित संख्या के बावजूद सत्ता पक्ष को अपनी उपस्थिति का अहसास कराया। हांलाकि ग्राहयता पर विस्तृत चर्चा के बावजूद विधानसभा अध्यक्ष ने इस पूरे मामले को नियम-310 के तहत सदन में चर्चा योग्य नही समझा और इसकी स्वीकार्यता से ही इनकार किया लेकिन कांग्रेस सदन के भीतर एवं बाहर अपनी उपस्थिति का अहसास कराने में सफल रही और यह तथ्य सामने आया कि इस पूरे मामले की सीबीआई जाँच कराने को लेकर भाजपा गंभीर नही है। यह ठीक है कि सरकार के संसदीय कार्यमंत्री प्रकाश पतं ने विपक्ष द्वारा उठाये गये प्रश्नों का बिन्दुवार जवाब देते हुऐ सदन में यह स्पष्ट किया कि सरकार द्वारा इस पूरे मामले की सीबीआई जांच कराने का केन्द्र सरकार से अनुरोध किया जा चुका है और सरकार एएसपी क्राइम, सीओ सिटी उधमसिंहनगर व एसओ पंतनगर की एक संयुक्त टीम के नेतृत्व में एसआईटी का गठन कर अपने स्तर पर भी इस मामले की जांच करा रही है लेकिन प्रदेश सरकार द्वारा इस पूरे मामले को लेकर चर्चा का विषय बनी केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी की चिट्ठी पर कोई वक्तव्य नही दिया गया और न ही सरकार यह स्पष्ट कर पायी कि किन कारणों के चलते केन्द्र सरकार एनएच-74 से जुड़े कुछ केन्द्रीय कर्मचारियों को इस जांच से बाहर रखना चाहती है। ध्यान रहे कि इस पूरे मामले के संज्ञान में आने के बाद नवनियुक्त मुख्यमंत्री ने इस मामले से जुड़े सभी अभियुक्तों को बेनकाब करने और पूरे मामले की सीबीआई से जांच कराने की घोषणा की थी और इस मामले की कुछ गुमशुदा फाईले हाल ही में एक कर्मचारी के घर पर मिलने के बाद इस मामले को लेकर न सिर्फ लगातार नये तथ्य उजागर हो रहे है बल्कि मामले पर सरसरी नजर रखने वाले जानकारों का मानना है कि अगर इस पूरे प्रकरण में गंभीरता से जांच की जाती है तो कई प्रभावशाली चेहरें बेनकाब हो सकते हैं। उत्तराखंड की पूर्ववर्ती कांगे्रस सरकार के अन्तिम दौर में सामने आया एनएच घोटाले का जिन्न हालिया विधानसभा चुनावों में विपक्ष का एक कारगर हथियार साबित हुआ था और यह माना जा रहा था कि पूर्व से ही सीबीआई की गिरफ्त में फंसे हरीश रावत पर अपना शिकंजा कड़ा करने के लिऐ भाजपा के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार इस पूरे मामले को सीबीआई के हवाले करने में कतई हिचकिचाहट का अनुभव नही करेगी लेकिन इधर चुनाव के बाद पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता के शीर्ष पर काबिज हुई भाजपा के लिऐ अब यही प्रकरण गले की फांस बनता महसूस हो रहा है और विधानसभा चुनावों में बुरी तरह हार चुकी कंागे्रस इस प्रकरण को हथियार की तरह इस्तेमाल कर न सिर्फ राज्य सरकार बल्कि केन्द्र सरकार को भी निशाने पर लेने की सफल कोशिश कर रही है। यह तो वक्त ही बतायेगा कि सरकार द्वारा इस प्रकरण के संदर्भ में विभिन्न स्तरों पर की जा रही जांच के बाद क्या तथ्य सामने निकलकर आते है और भ्रष्टाचार के मामले मे जीरो टालरेन्स की बात करने वाली उत्तराखंड की त्रिवेन्द्र सिंह रावत के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार इस सम्पूर्ण घटनाक्रम के दोषियों को लेकर किस तरह की कार्यवाहियों को अंजाम देती है लेकिन अब तक सामने आये बिन्दुओं पर सरसरी नजर डालने से यह स्पष्ट होता है कि इस पूरे मामले में राज्य सरकार द्वारा कुछ निचले स्तर के अधिकारियों व कर्मचारियों के निलम्बन के अलावा अन्य कोई कार्यवाही नही की गयी है जबकि एनएच मामले के लिऐ जिम्मेदार मानी जाने वाली केन्द्र सरकार इस पूरे प्रकरण में न सिर्फ अपने अधिकारियों को बचाने का पूर्ण प्रयास कर रही है बल्कि राष्ट्रीय राजमार्गो के मंत्री नितिन गडकरी द्वारा इस संदर्भ में लिखी गयी उत्तराखंड सरकार के मुख्यमंत्री को पत्र की भाषा से यह भी प्रतीत होता है कि सरकारी तंत्र का एक बड़ा हिस्सा इस पूरे प्रकरण के चुनावी हथियार के रूप में इस्मेमाल होने के बाद अब इस मामले को और तूल नही देना चाहता। गिरफ्तारी अथवा अन्य किसी भी प्रकार की दण्डात्मक कार्यवाही से बचने के लिऐ इस पूरे प्रकरण में नामजद एनएच के बड़े व जिम्मेदार अधिकारियों द्वारा उच्च न्यायालय में दाखिल की गयी याचिका तथा इस याचिका पर बहस के लिऐ खुद भारत सरकार के एटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी की उच्च न्यायालय में उपस्थिति या साबित करती है कि भारत सरकार किसी भी कीमत पर इस मामले में नामजद अपने अधिकारियों को बेदाग बाहर निकलने के लिऐ उतावली है। हालातों के मद्देनजर यह स्पष्ट हो जाता है कि एनएच प्रकरण को लेकर केन्द्र सरकार की नीयत में पहले से ही खोट है और उत्तराखंड सरकार के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के लिऐ यह हालात एक दो-धारी तलवार पर चलने के समान है क्योंकि यह भ्रष्टाचार से जुड़ा ऐसा पहला मामला है जो कि न सिर्फ पूर्ववर्ती सरकार से जुड़ा है बल्कि जिसके संदर्भ में मुख्यमंत्री व सरकार के कई अन्य जिम्मेदार प्रतिनिधियों द्वारा निश्चित तौर पर कार्यवाही करने की बात लगातार की जा रही है। यह तय है कि अगर उत्तराखंड सरकार एनएच-74 मामले की जांच सीबीआई से कराने में असफल रहती है या फिर इससे ना-नुकुर करती दिखाई देती है तो इसका सीधा प्रभाव आगे आने वाले वर्षो में राज्य सरकार की कार्यशैली एवं विश्वनियता पर भी पड़ता दिखाई देगा और सदन के माध्यम से लोकायुक्त जैसे प्रावधानों को लागू कर अपनी सरकार को भ्रष्टाचार मुक्त साबित करने की भाजपाई कोशिशें अपने शुरूवाती दौर में ही दम तोड़ती दिखाई देंगी। अगर इस पूरे मामले को उत्तराखंड की जनता के नजरिये से देखे तो यह कहा जा सकता है कि पूर्ववर्ती हरीश रावत की सरकार पर लगाये जा रहे भ्रष्टाचार के आरोंपो को सही मानते हुऐ भाजपा के पक्ष में मतदान करने वाली जनता आज स्वंय को ठगा हुआ महसूस कर रही है क्योंकि देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पुरजोर अपील पर राज्य को भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार देने वाली जनता के पास वर्तमान में भाजपा को सबक सिखाने के लिऐ अगले चुनावों के इंतजार के अलावा और कोई रास्ता ही नही है। यह ठीक है कि जनता आन्दोलनों, जलसों व धरना प्रदर्शनों के जरियें अपना विरोध दर्ज करा सकती है और स्थानीय स्तर पर जनप्रतिनिधियों के घेराव व बहिष्कार के माध्यम से उन्हें इस बात के लिऐ मजबूर किया जा सकता है कि वह जनपक्ष को विधानसभा व अन्य माध्यमों से सरकार के समक्ष रखे लेकिन राज्य सरकार के अस्तित्व में आने के लगभग तत्काल बाद से ही प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में चल रहे शराब विरोधी आन्दोलनों के हश्र तथा नई नीति के नाम पर सरकार द्वारा पहले से भी अधिक राजस्व प्राप्ति को लेकर निर्धारित किये गय लक्ष्य को देखकर यह कदापि नही लगता कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व अथवा राज्य सरकार को जनपक्ष की किसी भी प्रकार की चिन्ता है। इन हालातों में जनता के समक्ष यह बड़ा सवाल खड़ा होता जा रहा है कि अपनी समस्याओं के निदान, सरकारी स्तर पर होने वाले भ्रष्टाचार अथवा अन्य असुविधाओं की शिकायत को लेकर वह कहां अपील करें। रहा सवाल मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस का, तो स्थितियों का अवलोकन करने के बाद यह अवश्य कहा जा सकता है कि सदन में सीमित उपस्थिति के बावजूद नेता प्रतिपक्ष व प्रदेश अध्यक्ष कांग्रेस पूरे तालमेल के साथ अपनी बात जनता की अदालत में रखने में सफल है और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत जनता द्वारा नकारे जाने के बावजूद पूरी शिद्धत से मोर्चे पर जमे रहने की कोशिशें करते हुऐ व्यापक जनहित की ओर सरकार का ध्यान आकृष्ट करने का प्रयास कर रहे है।

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