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Thursday, March 28, 2024

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हैदराबाद के निजाम के अरबों रुपयों को लेकर भारत-पाक में टकराव

हैदराबाद। हैदराबाद के सातवें निजाम, मीर उस्मान अली खान सिद्दिकी के दरबार में वित्त मंत्री रहे नवाब मोईन नवाज जंग ने उस दौर में ब्रिटेन में पाकिस्तान के उच्चायुक्त के बैंक खाते में जो 10 लाख पाउंड भेजे थे वो आज 35 गुना बढ़ चुके हैं।
ब्रिटेन में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे हबीब इब्राहिम रहीमतुल्ला के लंदन बैक खाते में ट्रांसफर किए गए 10 लाख पाउंड (करीब 89 करोड़ रुपए) अब 350 लाख पाउंड (लगभग 3.1 अरब रुपए) बन चुके हैं और उन्हीं के नाम पर उनके नैटवेस्ट बैंक खाते में जमा हैं।
निजाम और पाकिस्तान के उत्तराधिकारियों के बीच इन पैसों को लेकर लंबे वक्त तक तनाव रहा। लंदन में मौजूद रॉयल कोर्ट ऑफ जस्टिस में ये मामला अब भी लंबित है। मामले में सुनवाई कर रहे जस्टिस मार्कस स्मिथ दोनों पक्षों की दलीलें सुन चुके हैं और इसी साल अक्टूबर में इस मामले में फैसला देने वाले हैं।
उनका फैसला ही तय करेगा कि 3.5 करोड़ पाउंड की ये राशि किसके हाथ जाएगी। 15 अगस्त 1947 को भारत आजाद हुआ, लेकिन दक्षिणी भारत के तेलंगाना राज्य की राजधानी हैदराबाद समेत कई राज्यों ने इस दिन आजादी का स्वाद नहीं चखा।
हैदराबाद 17 सितंबर 1948 तक निजाम शासन के तहत उनकी रियासत बना रहा था। इसके बाद ऑपरेशन पोलो नाम के सैन्य अभियान के जरिए इस रियासत का विलय भारत में कर दिया गया। 10 लाख पाउंड के ट्रांसफर की ये कहानी हैदराबाद के भारत में विलय होने के दौर की है। उस वक्त हैदराबाद आसफ जाह वंश के सातवें वंशज नवाब मीर उस्मान अली खान सिद्दिकी की रियासत हुआ करती थी। उस दौर में वो दुनिया के सबसे धनी व्यक्ति माने जाते थे। ऑपरेशन पोलो के जरिए हैदराबाद के भारत में विलय होने से पहले वो हैदराबाद रियासत के सातवें और आखिरी निजाम थे।
सातवें निजाम के पोते युवराज मुकर्रम जाह-आठवें का प्रतिनिधित्व करने वाली लॉ संस्था विदर्स वर्ल्डवाइड लॉ फर्म के पॉल हेविट्ट बताते हैं कि ऑपरेशन पोलो के दौरान हैदराबाद के निजाम के वित्त मंत्री ने पैसों को सुरक्षित रखने के इरादे से करीब 10 लाख पाउंड उस वक्त पाकिस्तान के हाई कमिश्नर के लंदन वाले बैंक खाते में ट्रांसफर कर दिए।
1948 में ट्रांसफर किया गया यही पैसा बाद में सातवें निजाम के उत्तराधिकारियों और पाकिस्तान के बीच कानूनी जंग की वजह बन गया। पॉल हेविट्ट बताते हैं कि जैसे ही हैदराबाद के सातवें निजाम को पैसों के ट्रांसफर के बारे में पता चला कि उन्होंने पाकिस्तान से कहा कि उनके पैसे जल्द लौटा दे। लेकिन रहिमतुल्ला ने पैसे वापिस देने से इनकार कर दिया और कहा कि ये अब पाकिस्तान की संपत्ति बन गई है। इसके बाद 1954 में सातवें निजाम और पाकिस्तान के बीच एक कानूनी जंग शुरू हुई। निजाम ने अपने पैसे वापस पाने के लिए यूके के हाई कोर्ट का रुख किया और कानूनी प्रक्रिया शुरू की। हाई कोर्ट में मामला पाकिस्तान के पक्ष में चला गया और इसके बाद निजाम को कोर्ट्स ऑफ अपील में जाना पड़ा जहां निजाम की जीत हुई। लेकिन इसके बाद पाकिस्तान ने आगे बढ़ कर उस दौर में यूके के उच्चतम न्यायालय, हाऊस ऑफ लार्ड्स का दरवाजा खटखटाया। पाकिस्तान की दलील थी कि कि निजाम पाकिस्तान पर किसी तरह का मुकदमा नहीं कर सकते क्योंकि पाकिस्तान एक संप्रभु राष्ट्र है।
हाऊस ऑफ लार्ड्स ने पाकिस्तान के पक्ष में अपना फैसला दिया और उसकी दलील को सही ठहराते हुए कहा कि निजाम पाकिस्तान पर मुकदमा नहीं कर सकते। लेकिन इसके साथ ही हाऊस ऑफ लार्ड्स ने 10 लाख पाउंड की इस विवादित राशि को भी फ्रीज कर दिया। इसके बाद से पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे हबीब इब्राहिम रहिमतुल्ला के खाते में ट्रांसफर किए गए ये पैसे नैटवेस्ट बैंक के पास हैं। बैंक के अनुसार ये पैसे अब कोर्ट के फैसले के बाद ही उसके सही उत्तराधिकरी को दिए जा सकते हैं। लेकिन 1948 में जमा किए गए 10 लाख पाउंड, बीते साठ सालों में ब्याज की राशि मिला कर अब 350 लाख पाउंड बन चुके हैं। बीते कुछ सालों में बातचीत के जरिए इस विवाद का हल खोजने की भी कोशिश की गई लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।

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