खुद को साबित करने की होड़ में। | Jokhim Samachar Network

Thursday, April 25, 2024

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खुद को साबित करने की होड़ में।

सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिऐ सड़को पर उतरकर योग का प्रचार करने का मन बना रही सरकारी व्यवस्था
वास्तविकताओं से अंजान ।

बेकारी, बेरोज़गारी तथा पलायन से जूझता उत्तराखण्ड का एक बड़ा हिस्सा इस वक्त हिंसक जंगली जानवरों व खेती- किसानी को नुकसान पहुॅचा रहे अन्य वन्य जीवो को लेकर चिन्तित नज़र आ रहा है लेकिन राज्य की तथाकथित रूप से जनहितकारी सरकार इन तमाम चिन्ताओ व विषयों को छोड़कर राजयोग के ज़रिये अपनी ताकत का अहसास कराने में जुटी हुई है और हर छोटी-बड़ी जरूरत को पूरा करने से पहले राजकोष व सरकार की आमदानी का रोना रोने वाली सरकारी व्यवस्था ने इस वक्त अपनी पूरी ताकत योग दिवस के नाम पर किये जाने वाले सरकारी आयोजन को सफल बनाने में झोंक रखी है।

हांलाकि इंवेन्ट मनैजमेन्ट अथवा आयोजनों के जरिये ‘‘आॅल इज़ वैल‘‘ कहने का यह तरीका उत्तराखण्ड में कोई नया नही है और समय-समय पर राज्य में बनने वाली लगभग हर नयी सरकार ने इस तरह के आयोजनों के ज़रिये जनता के बीच अपनी बात रखने अथवा एक शाही अन्दाज़ में अपना शक्ति प्रदर्शन करने का प्रयास किया है लेकिन यह अवसर इस सबसे अलग है क्योंकि इस आयोजन की सफलता के लिऐ सत्ता के शीर्ष नेतृत्व ने सरकारी नौकरशाही के विभिन्न हिस्सों को सड़क पर उतरने के लिऐ मजबूर कर दिया है। यह ठीक है कि देवभूमि कहलायें जाने वाले उत्तराखण्ड के लिऐं योग दिवस के इस आयोजन पर देश के प्रधानमन्त्री की भागीदारी एक अहम् खबर हो सकती है तथा प्रधानमन्त्री के रूप में सुरक्षा से जुड़े कई अहम् पहलुओं को ध्यान में रखने के साथ ही साथ इस अवसर पर एक भारी जन सैलाब एकत्र करने की चुनौती को कम करके नही आॅका जा सकता है लेकिन अगर जनपक्ष के नज़रिये से देखा जाये तो इस पूरी जद्दोजहद से आम आदमी को क्या फायदा हो सकता है और किस आधार पर सुनिश्चित किया जा सकता है कि राज्य में विकास के डबल इंजन के दावे के साथ सत्ता पर काबिज हुई विचार धारा एक बार फिर राज्य के स्थानीय बाशिन्दो को छलने नही जा रही। यह माना कि एक स्वस्थ जीवन के लिऐ योग का अपना एक अलग महत्व है तथा इसे बढ़ावा देने या फिर विश्व स्तरीय आयोजनों के ज़रिये इसका प्रचार-प्रसार करते हुऐ राज्य में रोज़गार के नये संसाधन तलाशने का प्रयास करने वाली राजनैतिक सोच इस सम्पूर्ण परिपेक्ष्य व इस आयोजन की सार्थकता को लेकर कुछ न कुछ लम्बा-चैड़ा बयान जरूर देगी लेकिन सवाल यह है कि क्या पहाड़ की थका देने वाली जिन्दगी व हाड़-तोड़ मेहनत के बाद मुहैय्या होने वाली दो वक्त की रोटी के बीच योग के लिऐ फुर्सत के क्षण निकालने की गुजांइश बची है और रोज़ी-रोटी को लेकर बढ़ती नज़र आ रही समस्याओं व बेकारी या बेरोज़गारी जैसे सवालो के बीच आम आदमी इस लायक भी बचा है कि वह योग या ध्यान जैसे गम्भीर विषयों को अपनी सामान्य दिनचर्या का हिस्सा बना सके। सरकार के समर्थन में खड़े लोग तथा
विचारधारा के आधार पर सरकार के हर गलत अथवा सही फैसले को व्यापक जनहित में बताने को मजबूर भाजपा के समर्थक व कार्यकर्ता यह मानकर चल रहे है कि प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी का योग दिवस के अवसर पर बना यह कार्यक्रम राज्य सरकार में नये रक्त का संचार करेगा तथा राज्य में स्पष्ट बहुमत व थराली विधानसभा उपचुनाव में सत्तापक्ष को मिली जीत से उत्साहित उत्तराखण्ड सरकार और ज्यादा तेज़ रफ्तार के साथ अपने ‘ज़ीरो टालरेन्स‘‘ के नारे व लोकहित की दिशा में आगे कदम बढ़ायेगी लेकिन अगर जनता के नज़रिये से देखे तो ऐसा प्रतीत होता है कि अपने गठन के बाद से ही विकास कार्यो व व्यापक जनहित के प्रति उदासीन दिख रही राज्य की वर्तमान सरकार के मुखिया को अपने कार्यकाल का डेढ़ वर्ष व्यतीत हो जाने के बावजूद अभी तक राजकाज चलाना या व्यवस्थाओं व शासन को आम आदमी की आवश्यकताओं के अनुरूप ढ़ालते हुऐ जनहितकारी फैसले लेना नही आया है या फिर मोदी व अमित शाह के आर्शीवाद से सत्ता के शीर्ष पर काबिज हुऐ मुख्यमन्त्री की मजबूरी है कि वह अपनी कुर्सी को बचाये रखने के लिऐ अपना हर फैसला लेने से पहले दिल्ली के तख्तोताज़ से मिलने वाले दिशा निर्देशों का इंतजार करें। हम यह नही कहते है कि सत्ता संचालन अथवा विकास कार्यो की आधारशिला रखने की दिशा में उठाये जाने वाले कदमों के तहत् किसी भी सरकार अथवा मुख्यमन्त्री द्वारा अपनी राजनैतिक विचारधारा के अनुरूप अनुभवी व शीर्ष नेताओ से सलाह-मशवरा करना या फिर योजनाओं को बनाये जाने अथवा उनके क्रियान्वयन से काफी पहले इस संम्पूर्ण परिपेक्ष्य में केन्द्र सरकार की राय लेने की रणनीति गलत है लेकिन इस रणनीति के परिणाम धरातल पर भी दिखने चाहिऐं और यह उत्तराखण्ड की जनता का दुर्भाग्य है कि राज्य गठन के इन सत्रह वर्षेा में पहली बार प्रचण्ड बहुमत के चलते स्थिर नज़र आने वाली टीएसआर सरकार अपने इस शुरूआती कार्यकाल में किसी भी तरह की आचार-संहिता अथवा अन्य राजनैतिक गतिरोध से दूर रहने के बावजूद अभी तक कोई ऐसी रणनीति नही बना पायी है जिससे कि जनता के बीच यह सन्देशा जाये कि वर्तमान सरकार वाकई अपने चुनावी वादो व दावो के अनुरूप कार्य कर रही है। अगर सरकार की घोषणाओं व उपलब्धियों को लकर प्रचारित आकड़ों पर गौर करें तो हम पाते है कि स्थानांतरण विधेयक, पलायन आयोग के गठन व जी़रो टाॅलरेन्स के दावे के साथ सरकार न सिर्फ बेहतर तरीके से काम कर रही है बल्कि राज्य के चर्हुमुखी विकास को लेकर उसके पास एक तयशुदा रणनीति है लेकिन हकीकत में देखा जाये तो इन डेढ़ वर्षो के दरमियान टीएसआर सरकार पूरी तरह खनन और शराब बिक्री के इर्द-गिर्द घूमती दिखाई देती है तथा मजे की बात यह है कि इन डेढ़ वर्षो में सरकार द्वारा लिये गये फैसलो व धरातल पर उतरें कार्यो से सत्ता पक्ष के विधायक व मन्त्री ही खुश नही है। उत्तराखण्ड में पूर्व से ही चल रही व्यवस्थाओं व अन्य तमाम तरह की राजनैतिक मजबूरियों के चलते राजकाज में नौकरशाही के हावी दिखने की खबर हमेशा ही चर्चाओ में रही है और यह माना गया है कि अपने व्यक्तिगत् हितो को ध्यान में रख कर कार्य करने वाले नौकरशाहों की कोई न कोई टोली हर शासनकाल में सत्ता पर हावी रहकर सरकार को व्यापक जनहित से विमुख करने का प्रयास करती रही है लेकिन इन सत्रह वर्षो के हिसाब में यह पहली बार है जब इस तरह के आरोंप जनता अथवा जनप्रतिनिधियों के अलावा शासन तन्त्र के एक बड़े हिस्से द्वारा भी सरकार पर लगाये जा रहे है और नौकरशाही के एक बड़े हिस्से में व्याप्त अंसतोष यह इशारे कर रहा है कि सरकार में सबकुछ ठीक नही चल रहा है। अगर सरकार की कार्यशैली पर नज़र डाले तो ऐसा लगता है कि मानो राज्य के मुख्यमंत्री के इर्द-गिर्द कुछ ऐसे लोगो का जमावड़ा हो गया है जो सच व वस्तुस्थिति का सही आॅकलन मुख्यमंत्री तक पहुॅचने ही नही देना चाहते या फिर ऐसा भी हो सकता है कि ‘‘बिल्ली के भाग से छींका फूटा‘‘ वाले अन्दाज़ में समय से पहले व कम अनुभव के बावजूद सत्ता के शीर्ष को हासिल कर चुके टीएसआर को यह भी महसूस हो रहा हो कि उन्हे भाग्य से मिले इस अवसर का पूरा उपयोग कर लेना चाहिऐं। खैर वजह चाहे जो भी हो लेकिन यह सच है कि भ्रष्टाचार मुक्त सरकार देने के दावे के साथ सत्ता पर काबिज प्रदेश
की वर्तमान सरकार से राज्य की कुल आबादी का एक बड़ा हिस्सा त्रस्त नज़र आ रहा है और राजकाज को ठीक तरीके से चलाने के लिऐ आवश्यक धन की उचित व्यवस्था न होने के कारण इस राज्य के हालात धीरे-धीरे कर बद से बदतर होते चले जा रहे है लेकिन सरकार के मुखिया इन तमाम तर्को व तथ्यों को नकारतें हुऐ विदेश यात्राओं व बिना वजह के मंचीय आयोजनों में धन जा़या करने में लगे है और विधायको व जनप्रतिनिधियों के आक्रोश को कम करने के लिऐ वेतन वृद्धि अथवा विधायक निधि में बढ़ोत्तरी जैसे फैसलो के माध्यम से जनपक्ष को कमज़ोर करने की साज़िशें रची जा रही है। यह माना कि स्वस्थ शरीर व निरोगी काया के लिऐ योग जरूरी है तथा इस एक कार्यक्रम के बहाने देश के प्रधानमंत्री द्वारा उत्तराखण्ड की ओर किये गये रूख से कई तरह की सम्भ्भावनाऐं बनती है लेकिन भूखे पेट कोई विचार नही पनप सकता और न ही अस्वस्थ्य शरीर को योग करने की सलाह देकर यूॅ ही छोड़ा जा सकता है किन्तु अफसोसजनक स्थिति है कि आश्वासनों के वेंटिलेटर पर चल रहे उत्तराखण्ड को एक पूर्ण बहुमत वाली सरकार अपनी सत्ता की हनक में शीर्षासन करने के लिये मजबूर कर रही है और यकीन जानियें कि इस जो़र-ज़बरदस्ती के परिणाम राज्य अथवा राज्य की सत्ता पर काबिज़ राजनैतिक विचारधारा दोनो के लिऐ ही बेहतर नही होंगे।

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