डर के सौदागर | Jokhim Samachar Network

Saturday, April 20, 2024

Select your Top Menu from wp menus

डर के सौदागर

बंग्लादेशी घुसपैठियों के मुद्दे पर राजनैतिक दलो की कथनी और करनी के बीच स्पष्ट नज़र आता है एक फर्क।

बग्ंलादेशी शरणार्थियों की भारत में बढ़ती जा रही संख्या वाकई एक बड़ी समस्या है और यह माना जाता रहा है कि भारत की लोकतान्त्रिक राजनीति पर लम्बे समय तक हावी रही मुसलिमपरस्ती ने देश के विभिन्न हिस्सों के राजनैतिक व सामाजिक समीकरण बदलने के लिऐ इस तरह की अवैध प्रक्रियाओं को बढ़ावा दिया है। देश की सत्ता पर काबिज वर्तमान सरकार द्वारा भारत में अवैध रूप से रह रहे बग्लादेशियों के चिन्हीकरण के मामले में इस वक्त राजनैतिक हड़कम्प की स्थिति है और ऐसा प्रतीत होता है कि समुचा विपक्ष इस मुद्दे पर भाजपा के विरोध के लिऐ सड़को पर उतरने को अमादा है या फिर मानवाधिकारों की आड़ लेते हुऐ कुछ अपराधी व शरारती तत्वों को भारत में बसाने की तैयारियाॅ तेज़ हो गई है लेकिन हकीकत इस सबसे कोसो दूर है और ऐसा लगता है कि सत्ता पक्ष व विपक्ष इस मुद्दे को हवा देकर अपने-अपने हिसाब से आगामी लोकसभा चुनावों की तैयारी में जुट गये है। यह माना कि भाजपा हमेशा से बंग्लादेशी घुसपैठियों के मुद्दे पर मुखर रही है और इनके चिन्हीकरण की प्रक्रिया से इस राजनैतिक विचारधारा को कुछ हद तक बंगाल के आगामी विधानसभा चुनावों के साथ ही साथ लोकसभा चुनावों में भी फायदा हो सकता है लेकिन इस सबके बावजूद केन्द्र सरकार की रणनीति अथवा बंग्लादेशी घुसपैठियों के चिन्हीकरण सम्बन्धी फैसले में दूर-दूर तक यह अन्देशा नही दिखाई देता कि सरकार देश में अवैध रूप से रह रहे घुसपैठियों के इस बड़े तबके को देश से बाहर करने का मन बना चुकी है बल्कि अगर व्यापक परिपेक्ष्य और सरकार की कार्यशैली को मद्देनज़र रखते हुऐ गौर किया जाय तो हम कह सकते है कि भाजपा के रणनीतिकार इस मुद्दे पर कुछ आकड़े जारी कर जन सामान्य का ध्यान मॅहगाई व अन्य ज्वलन्त मुद्दो से हटाना चाहते है जिसमें वह काफी हद तक सफल भी रहे है। इसके ठीक विपरीत विपक्ष के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती अपने वोटबैंक को एकजुट रखने की है और महॅगाई व बेरोज़गारी जैसे मुद्दो पर सरकार को लगातार मिल रही शिकस्त के बावजूद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता का जादू जिस अन्दाज़ में मतदाताओं के सर चढ़कर बोल रहा है उसे देखते हुऐ विपक्ष को यह जरूरी लगता है कि वह अपने वोट बैंक को एकजुट रखने के लिये उनके बीच भय का माहौल बनाये रखे लेकिन इस सारी जद्दोज़हद में असल नुकसान आम आदमी का ही है और वह चाहकर भी सरकारी तन्त्र का ध्यान अपनी आवश्यकताओं व मजबूरियों की ओर खींचने में पूरी तरह असफल है। हाॅलाकि सत्ता पक्ष और विपक्ष के बयानो पर गम्भीरता से गौर करे तो इनमें कोई भिन्नता नही दिखाई देती और न ही कोई जिम्मेदार शख्सियत् अथवा ऐजेन्सी भारत में अवैध रूप से रह रहे बग्ंलादेशियों को देश की सीमाओं से बाहर खदेड़ देने की बात कहती सुनाई देती है लेकिन एक नियोजित अन्दाज़ में सारे देश में ऐसा माहौल बनाया जा रहा है कि मानो सरकार बहुत बड़ा फैसला लेते हुऐ अवैध रूप से रह रहे बंग्लादेशियों को देश की सीमाओं से बाहर खदेड़ने की मुहिम शुरू कर चुकी है। भाजपा के समर्थक आकड़ो की भाषा में यह समझाने का प्रयास कर रहे कि मध्यम वर्ग द्वारा सरकार को दिये जाने वाले कर का एक बड़ा हिस्सा देश में वैध-अवैध रूप से रह रहे इन बंग्लादेशियों पर खर्च हो रहा है और हिसां व लूटपाट जैसे अपराधों में लिप्त यह विदेशी घुसपैठियें धीरे-धीरे आक्रान्ता का रूप लेकर समाज में अपनी जगह बनाने का प्रयास कर रहे है लेकिन यह तस्वीर का एक पहलू है और इस तथ्य से इनकार भी नही किया जा सकता कि वैश्विक परिवेश में ओढ़ी गई गैर ज़रूरी जिम्मेदारियों के क्रम में भारत में निकटवर्ती देशो के तमाम ऐसे शरणार्थी एवं घुसपैठियें पल रहे है जो यहाॅ के संसाधनो एवं आम आदमी के मौलिक अधिकारों का बेजा इस्तेमाल कर रहे है किन्तु यह एक बड़ा सवाल है कि क्या कोई भी सरकार अथवा व्यवस्था रातोरात इन स्थितियों में सुधार ला सकती है। शायद यह सबकुछ इतना आसान नही है और न ही विभिन्न वैश्विक संगठनो के साथ किये गये करार व वैश्विक परिवेश में भारत की भूमिका को देखते हुऐ यह सम्भव ही है लेकिन राजनीति का भी अपना गणित है और वर्तमान दौर में राजनेताओं व राजनैतिक दलो की सत्ता को लेकर लिप्सा इस कदर बढ़ी हुई है कि वह चुनावी जंग में जीत हासिल करने के लिऐ गलत या सही पर विचार करना जरूरी नही समझतें। क्षेत्रवाद, भाषाई झगड़ा और धार्मिक आधार पर लामबन्दी भारत की राजनीति पर हमेशा हावी रही है तथा चुनावी मौसम में लगभग हर राजनैतिक दल ने अपने-अपने तरीके से इसको हवा देने की कोशिश की है। नतीजतन आज सारीे देश में छद्म राष्ट्रवाद और क्षेत्रवाद की भावनाऐं हिलोरे मारती दिख रही है। स्थानीय स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक हमारे नेता और नीतिनिर्धारक युवाओं एवं बेरोज़गारों को यह समझा रहे है कि बाहर से आये कुछ लोग उनके हिस्से के संसाधनो व रोजगार के अवसरों पर डाका डाल रहे है तथा सरकारी स्तर पर स्पष्ट दिखने वाली किसी भी प्रकार की असमंजसता अथवा असफलता के लिऐ यह बाहरी तत्व ही ज़िम्मेदार है। सरकार जनता के बीच बेरोज़गारी के आॅकड़े तथा व्यापक जनहित में शुरू की गई योजनाओ का विवरण रखने को तैयार नही है लेकिन अस्पष्ट सूत्रो से यह समझाया जा रहा है कि इस देश में कर देने वालो की संख्या न्यूनतम् है और सरकार के पास विकास के संसाधन के रूप में एकत्र करों का एक बड़ा हिस्सा बाहरी अथवा शरणार्थी व घुसपैठियों के विकास में खर्च हो रहा है। अर्थात करोड़ो की आबादी वाले मुल्क में महज कुछ लोगो के आ जाने से व्यवस्थाऐं गड़बड़ाई हुई है और मजे की बात यह है कि सरकार के पास इन लोगो की घर वापसी को लेकर कोई ठोस योजना नही है और न ही सीमापार से इनकी आवाजाही रोकने के संदर्भ में किसी की ज़िम्मेदारी निर्धारित की जा रही है लेकिन आम आदमी को यह जरूर समझाया जा रहा है कि ऐसें अंवाछित तत्वो को लेकर सावधान रहे वरना यह आपके लिऐ खतरा बन सकते है। हमें याद है कि दक्षिणी राज्यों में हिन्दी के प्रति ऐसा ही खतरा दिखलाकर कुछ राजनैतिक दलो ने सत्ता के शीर्ष को हासिल किया था और महाराष्ट्र में तो इसी डर के माहौल का फायदा उठाकर एक गुण्डा लम्बे समय तक न सिर्फ अघोषित राजा की तरह व्यवहार करता रहा बल्कि खुद कोई चुनाव न लड़ने का निर्णय लेने के बावजूद उसने सरकारें बनाने और गिराने के मामले में हमेंशा अहम् भूमिका निभाई। अब यह कोशिशें राष्ट्रीय स्तर पर शुरू हो गई है और हर नेता व लगभग सभी राजनैतिक दल अपने-अपने तरीके से जनमत की लामबन्दी कर सत्ता की राजनीति में अपना वर्चस्व कायम रखना चाहता है लेकिन आम आदमी की सुध लेने की फुर्सत किसी के पास नही है और न ही लगातार बढ़ रही मॅहगाई,बेरोज़गारी, जनप्रतिनिधियों की निष्क्रियता, शिक्षा एवं स्वास्थ्य जैसे विषयों के बाज़ारीकरण जैसे मुद्दो को लेकर जनान्दोलन ही हो रहे है। सरकार यह मानती है कि तमाम बंग्लादेशी घुसपैठियों समेत अन्य पड़ोसी मुल्को से अवैध रूप से आये लोगो ने बड़ी संख्या में अपने आधार, राशन कार्ड और मतदाता पहचान पत्र बना रखे है तथा इन तमाम लोगो को उनकी बोली, भाषा, नाक-नक्शे या बातचीत के तरीके के आधार पर पहचाना जाना लगभग अंसभव है लेकिन सरकारी तन्त्र अपने सिस्टम को ठीक करने की जगह जनसामान्य के बीच डर का माहौल पैदा कर रहा है और तथाकथित रूप से बाहरी कहे जा रहे देश की आबादी के एक बड़े हिस्से को अवैध पहचान-पत्र या फिर गैर कानूनी रूप से बनने वाली झौपड़पट्टियों में बिजली, पानी और गैस के कनैक्शन देने वाली सरकारी मशीनरी के खिलाफ किसी भी तरह की कार्यवाही का कोई प्रावधान नही बनाया जा रहा। इन हालातों में यह कहा जाना मुश्किल है कि सरकार और राजनेताओं के यह समूह वास्तव में चाहते क्या है और सत्ता प्राप्ति के लक्ष्य के साथ जनता के बीच जाकर बड़े-बड़े वादे व घोषनाऐं करने वाले राजनैतिक दलो की असल जिम्मेदारी क्या है? क्या कोई सरकार अथवा विचारधारा यह गारन्टी दे सकती है कि देश के भीतर करोड़ो की संख्या में बताये जा रहे बंग्लादेशी घुसपैठियों को अपनी सीमाओं से बाहर खदेड़ने की उसके पास सुरक्षित योजना है और इन तथाकथित विदेशी आक्रांताओं को सीमा से बाहर खदेड़े जाने के बाद हर आम नागरिक को वह तमाम सुविधाऐं मिल सकती है जो इन तमाम कारणांे से उन्हे नही मिल पा रही है। खुले मंच से ऐसी घोषणा करने का साहस किसी भी राजनैतिक दल में नही है क्योकि नेता तो सिर्फ घृणा का साम्राज्य फैलाकर सत्ता के शीर्ष को हासिल करने में जुटे है। इसलिऐं डर की सौदेबाज़ी का यह खेल इतने वर्षो से निरन्तर रूप से जारी है।

About The Author

Related posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *