आयोजनो की राजनीति | Jokhim Samachar Network

Thursday, March 28, 2024

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आयोजनो की राजनीति

अन्य अवसरों की तर्ज़ पर विश्व योग दिवस को भी एक दिवसीय आयोजन में तब्दील करने में जुटी सरकारी व्यवस्था।
योग के ज़रिये निरोग रहने की कला वाकई आश्चर्यजनक है और इस कला के प्रचारक व महाज्ञानी माने जाने वाले सन्त-महात्मा अपने इस ज्ञान को आर्युवेद के साथ मिलाकर व्यवसाय की दुनिया में बड़े हाथ आज़मा रहे है। हाॅलाकि योग है क्या और इसके नाम पर करवाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की कसरतों व अन्य आसनों से एक स्वस्थ अथवा अस्वस्थ्य व्यक्ति को किस हद तक लाभ अथवा हानि हो सकती हैै, इसे लेकर कई तरह की भ्रान्तियाॅ व विरोधाभास है लेकिन इस तथ्य से इनकार नही किया जा सकता है कि योग को सरल व सर्व सुलभ बनाने में बाबा रामदेव का बड़ा हाथ रहा है और अपने इसी ज्ञान का सार्वजनिक प्रर्दशन कर वह एक अन्र्तराष्टीªय ख्याति प्राप्त हस्ती बन गये है। वर्तमान में योग को एक वैश्विक पहचान प्रदान करने तथा इससे जुड़े आयोजनों को सरकारी महत्ता दिये जाने में बाबा रामदेव व कुछ अन्य सन्तो का बड़ा योगदान रहा है और इस तथ्य से इनकार नही किया जा सकता कि सत्ता पक्ष अथवा विपक्ष के तमाम छोटे बड़े नेता इस तरह के आयोजनो के अवसर पर जुटने वाली भीड़ से रूबरू होने का लोभ संवरण नही कर पाते है जिसके चलते यह आयोजन अवस्मणीय व ऐतिहासिक बनकर रह जाते है। ऐसा ही एक आयोजन उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून में प्रस्तावित है तथा पूरी तरह सरकारी खर्च पर होने वाले इस भव्य आयोजन में देश के प्रधानमन्त्री समेत अन्य कई हस्तियों की भागीदारी की सम्भावना है। यह अलग बात है कि 21 जून को प्रस्तावित इस भव्य आयोजन में लाखो करोड़ रूपये फूॅकने के बाद राज्य सरकार अथवा स्थानीय जनता को क्या हासिल होगा और इस आयोजन को भव्य स्वरूप देने के पीछे सरकार की मंशा क्या है लेकिन अगर सरकारी विज्ञापनो व अन्य खबरो पर नज़र डाले तो हम पाते है कि सरकार इस अवसर पर पचास हजार से भी उपर की भीड़ जुटने का दावा कर रही है और ऐसा प्रतीत होता है कि मानो विश्व योग दिवस के बहाने आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारियाॅ शुरू कर दी गई है। यह माना कि सन्तो की तपस्थली मानी जाने वाली उत्तराखण्ड की इस देवभूमि में धार्मिक पर्यटन की अपार सम्भावनाओ को देखते हुऐ योग व अध्यात्म केा शिक्षा की तीर्थयात्रियों से जोड़कर रोज़गार के नये अवसरों की तलाश का यह तरीका बुरा नही है और शान्ति व संत्सग की तलाश में पहाड़ो की ओर रूख करने वाले देशी-विदेशी पर्यटको को लुभाने के लिऐ योग का प्रचार-प्रसार एक अमोघ अस्त्र की तरह कार्य कर सकता है लेकिन सवाल यह है कि क्या सरकार वाकई इस दिशा की ओर चिन्तनशील है और योग दिवस के बहाने किये जा रहे इस भव्य आयोजन के साथ ही साथ सरकार के मनोमस्तिष्क में अपने बेरोज़गार योग प्रशिक्षितों व अन्य हुनर -मन्दो के लिऐ भी कोई योजना है या फिर सबकुछ हवा-हवाई चल रहा है और इस सरकारी आयोजन में विशेष रूचि लेते दिख रहें बाबा रामदेव इस भव्य कार्यक्रम के बहाने अपने रोज़गार को चार चाँद लगाने की किसी विशेष योजना पर काम कर रहे है। हमने देखा कि तथाकथित योग गुरू बाबा रामदेव ने इन पिछले दो दशको में योग को एक हथियार की तरह इस्तेमाल कर अपने व्यवसाय को तेज़ी से बढ़ाया है और प्रारम्भ से ही उनकी कर्मस्थली रही हरिद्वार की पावनभूमि में विभिन्न कल -कारखाने लगाने के बावजूद भी उन्होने इस प्रदेश की जनता अथवा सरकार की ज़रूरतो पर कोई तवज्जो नही दी है जबकि इसके ठीक विपरीत धर्म एंव अध्यात्म की दुनिया के बडे नाम भोला महाराज व उनकी धर्मपत्नी माता मंगला बिना किसी राजनैतिक विद्वेष व महात्वाकांक्षा के इस राज्य में न सिर्फ जन-कल्याणकारी योजनाऐं चला रहे है बल्कि विभिन्न सरकारी अभियोजनो को पूरा करने के लिऐ भी उनके द्वारा समय-समय पर मदद की जाती रही है। इन हालातो में यह एक बड़ा सवाल है कि अगर सरकार किसी राजनैतिक उद्देश्य की प्राप्ति के अलावा अन्य किसी सामाजिक नज़रिये से कोेई बड़ा आयोजन करती है तो ऐसे मंच पर किस तरह के सन्तो को सार्वजनिक स्वीकार्यता मिलनी चाहिऐं और योग के नाम पर होने वाले इस तरह के आयोजनों में राजनैतिक हस्तियों व अन्य प्रचार के लालायित चेहरों को कहाॅ पर दिखना चाहिऐं लेकिन सरकारी तन्त्र को इस तरह के सवालातों से कोई लेना-देना नही है और न ही सत्ता के शीर्ष पर बैठे नेता जनपक्ष की ओर से उछाले जा रहे इस तरह के सवालो का जबाव देने में कोई रूचि रखते है। लिहाजा़ हम यह आसानी से समझ सकते है कि विश्व योग दिवस को अवसर बना किये जा रहे इस भव्य आयोजन का आम जनता के कल्याण या फिर व्यापक जनहित से कोई लेना देना नही है और न ही सरकार की मंशा योग को सार्वजनिक चर्चाओं का विषय बना चिकित्सा विज्ञान के समक्ष एक चुनौती खड़ी कर आम आदमी को राहत देने की है। अगर सरकार ऐसा चाहती तो इस तरह के आयोजन को लेकर कोई भी योजना बनाने से पूर्व वह रोज़गार की तलाश में धक्के खा रहे उन तमाम बेरोज़गार योग प्रशिक्षितों को राज्य के विभिन्न चिकित्सा केन्द्रो में नियुक्ति देकर अथवा राज्य कि विभिन्न क्षेत्रो में स्थायी आधार पर योग प्रशिक्षण शिविरो का आयोजन कर मानव समाज की शारिरीक व मानसिक बीमारियों से लड़ने के प्रयास शुरू हो गये होते और योग के ज़रिये निरोग रहने का दावा करने वाले हमारे तथाकथित सन्त-महात्मा अपने योग शिविरों के माध्यम से चूरन की पुड़िया व अन्य आर्युवेदिक उत्पाद बेचते नज़र नही आते । यह माना कि बाबा रामदेव अपनी वाकपटुता व व्यवसायिक बुद्धि के बल पर इन स्थितियों से काफी आगे निकल चुके है और तथाकथित रूप से अन्र्तराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर चुके उनके उत्पादो का एक अपना व बड़ा बाजा़र है लेकिन क्या यह सत्य नही है कि अपने उत्पादो का एक बाज़ार खड़ा करने के लिऐ रामदेव ने न सिर्फ छल-बल का सहारा लिया है बल्कि वह अपनी व्यवसायिक मानसिकता से ग्रसित होकर योग व अध्यात्म की दुनिया से बहुत आगे निकल आये है। ऐसे में अगर कोई भी सरकार या फिर सत्ता के शीर्ष पर काबिज़ राजनेता लाला रामदेव को बाबा रामदेव बता उन्हे योग गुरू का दर्जा देता है और विश्व योग दिवस के बहाने होने वाले भव्य आयोजन के माध्यम से पंतजली के उत्पादो को एक नई पहचान देने का प्रयास किया जाता है तो इसका सार्वजनिक स्तर पर विरोध होना चाहिऐं लेकिन हालात यह इशारा कर रहे है कि विश्व योग दिवस के बहाने उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून में एक भव्य राजनैतिक प्रहसन की तैयारियाॅ लगभग पूर्ण हो चुकी है और इसकी रिहर्सल के तौर पर बाबा रामदेव ने प्रदेश के मुख्यमंत्री की मौजूदगी में एक आयोजन कर यह चेता दिया है कि आयोजन का स्तर व प्रारूप कैसा होना चाहिऐं। यह एक बड़ा सवाल है कि योग के ज़रिये निरोग रहने की कला का आम आदमी को कितना फायदा होता है तथा आम आदमी को स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाऐं देने में पूरी तरह नाकाम दिखती सरकारी व्यवस्था यह कैसे कह सकती है कि इस तरह के आयोजनों व इनके विज्ञापन में लाखों-करोड़ रूपया खर्च कर सरकार आम आदमी को राहत देने का प्रयास कर रही है लेकिन इस तरह के तमाम सवालो को नकारते हुऐ मनमर्जी का खेल चालू है और सरकारी तन्त्र इन तमाम आयोजनों को भव्य रूप देकर वाहवाही लूटने में जुटा हुआ है। यह ठीक है कि भारत के आध्यात्मिक ज्ञान व योग-आसन के तमाम चित्-परिचित तरीको का मानव जीवन में एक अलग महत्व है तथा प्राकृतिक उपचार व साधना के क्षेत्र में योग की एक महत्वपूर्ण भूमिका है लेकिन अगर बात मानव मात्र को राहत पहुॅचाने या फिर जन सामान्य को एक सुव्यवस्थित जीवन शैली से रूबरू करवाने की हो तो इसकें लिऐ आडंबर किया जाना किसी भी तरह से न्यायोचित नही कहा जा सकता है। यह तथ्य किसी से छिपा नही है कि हमारे देश की चरमराती स्वास्थ्य सुविधाओ को देखते हुऐ हमारे नेता व तमाम जनप्रतिनिधि विदेशों में अपना इलाज करवाना पसन्द करते है तथा देश के भीतर भी पाॅच सितारा सुविधायुक्त निजी अस्पतालो की एक बड़ी श्रृखंला है लेकिन सरकार इन तमाम व्यवस्थाओ को सुधारने व जनसामान्य के लिऐ ईलाज सुलभ करवाने की जगह स्वास्थ्य बीमा योजनाओ की ओर अपने कदम बढ़ा रही है तथा आम आदमी को भरमाने के लिऐ तमाम जानलेवा व भंयकर बीमारियों का इलाज योग के जरिये किये जाने का दावा किया जा रहा है। हम विश्व योग दिवस या सरकार द्वारा योग शिविर लगाये जाने के विरोध में नहीं है और न ही हमारा यह मानना है कि पुरातन चिकित्सा पद्धति के रूप में आर्युवेद व योग जैसी परम्पराओं को कोई तबज्जो नही दी जानी चाहिऐं लेकिन हमारा यह भी स्पष्ट मानना है कि सिर्फ उत्सवों के आयोजन भर से भारतीय जनमानस को कुछ भी हासिल नही होने वाला और न ही इस तरह के हो-हल्ले मात्र से किसी क्षेत्र, प्रदेश अथवा देश में पर्यटन गतिविधियों को ही बढ़ावा दिया जा सकता है। पर्यटन अथवा आध्यात्मिक अनुभूति के लिऐ उत्तराखण्ड अथवा भारत के अन्य क्षेत्रो की ओर रूख करने वाला पर्यटक अपने द्वारा खर्च किये जाने वाले धन के दम पर सुविधाऐं चाहता है लेकिन देश के तमाम हिस्सों में सड़क यातायात की बदहाल स्थिति अथवा टूर आॅपरेटरों की मनमर्जी से चलने वाली व्यवसथाऐं उसे हतोत्साहित करती है और विभिन्न क्षेत्रो में बढ़ती जा रही ठगी व मुफ्तखोरी की घटनाओं से रूबरू होने के बाद कोई भी यात्री उस क्षेत्र विशेष के बारे में अच्छी छवि या मानसिकता लेकर नही जाता। इन हालातो में सरकार को चाहिऐं कि वह सिर्फ आयोजनो व उत्सवों पर ध्यान देने की जगह उन व्यवस्थाओं को सुदृढ़ बनाने की ओर ध्यान दे तथा योग शिविरों के भव्य आयोजन के स्थान पर अपने प्रशिक्षित व बेरोज़गार योगसाधको की मदद से एक समयबद्ध कार्यक्रम की शुरूआत करे।

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