असुरक्षा के माहौल में। | Jokhim Samachar Network

Friday, April 19, 2024

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असुरक्षा के माहौल में।

महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध व यौन उत्पीड़न से जुड़ी घटनाऐं इशारा कर रही है कि मौजूदा दौर में कुछ भी ठीक नही।

अगर आॅकड़ों के आधार पर सामने आ रही खबरों को सही माने तो भारत वाकई एक सुरक्षित देश नही कहा सकता क्योंकि यहाॅॅ वर्ष 2007 से 2016 के बीच महिलाओं के प्रति अपराध में तिरासी प्रतिशत की वृद्धि हुई है और निर्भया काण्ड समेत महिलाओं के साथ घटित तमाम यौन अपराधो व हिंसक घटनाओं के जनता के भारी विरोध के बाद सरकार द्वारा इस परिपेक्ष्य में कड़े कानून बनाने के दावो के बावजूद सरकारी तन्त्र महिलाओं को सुरक्षा देने मेे पूरी तरह असफल रहा है। इसी परिपेक्ष्य में थाॅम्पसन राॅयटर्स फांउडेशन द्वारा किये गये एक अन्र्तराष्ट्रीय सर्वे में भारत को यौन हिंसा व महिलाओं को सैक्स के बाज़ार में धकेले जाने के मामले में पहला स्थान मिला है और इससे भी ज्यादा शर्मनाक स्थिति है कि इस सूची में अफगानिस्तान को दूसरे तथा सीरिया को तीसरे स्थान पर रखा गया है जबकि पाकिस्तान को इसी सूची में छटे पायदान में माना गया है। ध्यान देने योग्य विषय है कि वर्ष 2011 में इसी रिर्पोट में भारत को सातवे पायदान में रखा गया था और अफगानिस्तान, काॅगो,पाक एंव सोमालिया जैंसे देशो को महिलाओ के लिऐ ज्यादा खतरनाक माना गया था लेकिन ताज़ातरीन शोध व सर्वे रिर्पोट के अनुसार महिलाओं के प्रति अपराध व दुष्कर्म आदि के मामले में भारत सबसे आगे निकल गया है और यह स्थितियाॅ तब है जबकि देश की सत्ता के शीर्ष पर बैठे नेता न सिर्फ ‘‘बेटी बचाओं-बेटी पढ़ाओं का नारा लगा रहे है बल्कि सत्ता पर काबिज राजनैतिक विचारधारा महिला सम्मान एवं सुरक्षा को लेकर ज्यादा ही चिन्तनशील दिखाई देती है। आकड़ो,तथ्यों अथवा सर्वे रिर्पोट पर अविश्वास का कोई कारण नही है क्योंकि महिलाओं के मामलेे में तिरासी प्रतिशत् अपराध बढ़ने की खबर सरकारी आकड़ों पर आधारित है तथा नेशनल क्राइम ब्यूरो भी यह मानता है कि हमारे देश में रोज़ाना सौ से भी अधिक मामले में यौन हिंसा व महिला उत्पीड़न के दर्जे होते है जबकि महिलाओं के लिये खतरनाक देशो की रैंकिग करने वाली थाॅम्पसन रायटर्स फांउडेशन नेें 550 विशेषज्ञों को शामिल करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया है। इन हालातो में कोई नामचीन महिला या बड़ी हस्ती यह कहती है कि भारत अब रहने के लायक नही रह गया है तो सत्ता पर काबिज राजनैतिक विचारधारा के समर्थक राजनेता व इनके कार्यकर्ता बयान देने वाले व्यक्ति की भावनाओं व उसके आशय को समझे बिना उसे राष्ट्रद्रोही घोषित करने में देर नही करते और किसी भी चलचित्र की कहानी के विरोध अथवा समर्थन के आधार पर यह तय मान लिया जाता है कि महिलाओं की अस्मिता अथवा राष्ट्रीय सम्मान की रक्षा कैसे हो सकती है। हाॅलाकि महिलाओं की सुरक्षा व उनके हितो की रक्षा की दिशा में पिछले कुछ दशकोे में कई कानून बनाये गये है और महिलाओं के बीच आयी जागरूकता के कारण अपने खिलाफ होने वाले अपराध व असमानता के व्यवहार को लेकर आगे आने वाली पीड़ित पक्ष की तादाद में हुई बढ़ोतरी को देखकर ऐसा लगता है कि मानो सरकारी तन्त्र ठीक तरह से काम नही कर रहा है लेकिन यह भी स्पष्ट है कि राजसत्ता पर हावी पुरूषवादी मानसिकता आज भी स्त्री को दोयम दर्जे का नागरिक मानती है औैैैर समाज में ऐसे लोगो की कमी नही है जो यह मानते है कि महिलाओं को घरों में कैद कर अथवा उन्हे एक दायरे में रखकर महिला अपराध व उनका योन उत्पीड़न रोका जा सकता है। कितना आश्चर्यजनक है कि आधुनिक शिक्षा प्रणाली व भूमण्डलीकरण के इस दौर में हमारे नेताओं व सत्ता के शीर्ष पर काबिज जनप्रतिनिधियों के महिलाओं के पहनावे व उनकी फैशन परस्ती को लेकर जब-तब उल्टे-सीधे बयान आते रहते है और आदर्श नागरिक संहिता की बात करने वाले कानून के रखवाले महिलाओं के अपने पुरूष मित्रो के साथ खुलेआम घूमने अथवा शादी करने के खिलाफ दिखाई देते है जबकि कानून इन तमाम संदर्भाे में महिला को पूरी आजा़दी देता है और किसी भी महिला के विरूद्ध उसे घूरना, छूना अथवा उसके चरित्र को लेकर अनगर्ल बयानबाज़ी करना अपराध माना जाता है। यह माना कि भारत के पौराणिक परिवेश में बलात्कार अथवा महिला अपराध के लिऐ कोई जगह नही है और आर्यवृत्त की परम्पराओं का अनुपालन करते हुऐ भारतीय संस्कृति के हिसाब से महिलाओं को सम्मान जनक दर्जा देने की बात करने वाले लोग यह मानते है कि समाज में घोली जा रही तमाम तरह की अश्लीलता व महिलाओं के साथ होंने वाले र्दुव्यवहार के लिऐ उनके द्वारा पहने जा रहे आधुनिक परिधान व उनका वर्तमान रहन-सहन एक बड़ा कारण है लेकिन इस तरह के उदाहरण देने वाले लोग अक्सर यह भूल जाते है कि हाल के दौर में महिलाओं के साथ बलात्कार व अन्य तमाम तरह के अपराध की सबसे ज्यादा घटनाऐं उन मठ, मन्दिरों अथवा आश्रमों में घटित होती दिख रही है जहाॅ न तो महिलाऐं अंग प्रदर्शन करते वस़्त्र पहनती है और न ही आधुनिक संस्कृति की छाया ही बसती है और इससे भी ज्यादा शर्मनाक स्थिति यह है कि छोटी बच्चियों अथवा वृद्ध हो चुकी महिलाओं के मामले में तो इस तरह की दलीलो के लिऐ कोई जगह ही नही है फिर भी सरकारी तन्त्र व सरकार के समर्थन में खड़े लोग अपनी नाकामी छिपाने के लिऐ इस प्रकार के तमाम तथ्यों एंव विषयों पर चर्चा करते नज़र आते है। इतिहास इस बात का गवाह है कि युद्ध एंव राजनैतिक बदलाव की स्थिति में विरोधी पक्ष ने हमेशा ही महिलाओं को हथियार की तरह इस्तेमाल किया है और महिलाओं के साथ होने वाले बलात्कार अथवा अन्य तमाम तरह के अपराधो के लिऐ सामाजिक कारणों से कही ज्यादा राजनैतिक कारण व व्यवस्थाऐं जिम्मेदार रही है लेकिन लोकतान्त्रिक प्रणाली के तहत चुनी जाने वाली एक सरकार के कार्यकाल में इस तरह की घटनाऐं बढ़ती है तो इसे क्या कहा जाना चाहिऐं और यह किस आधार पर माना जाना चाहिऐं कि ‘‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओं का नारा लगा देने मात्र से व्यवस्था में एक बड़ा परिवर्तन आ सकता है या फिर रामराज व हिन्दुत्ववादी सरकार की बात करने वाली विचारधारा ,महिलाओं अथवा देश की आबादी के एक बड़े हिस्से को सम्पूर्ण सुरक्षा दे सकती है। हम यह देख और महसूस कर रहे है कि ‘‘लव जेहाद‘‘ पर रोक लगाने,परम्पराओं का अनुपालन करने अथवा महिलाओं को सम्पूर्ण सुरक्षा प्रदान करने के नाम पर हमारे समाज का एक हिस्सा तालीबानी संस्कृति की ओर बढ़ना चाहता है तथा तीन तलाक पर कानूनी रोक लगाने व महिलाओ या बच्चियों की सुरक्षा से जुड़े कई नये कानून बनाने के बाद भी सरकार वर्तमान में यह कहने की स्थिति में नही है कि अपने प्रयासों व कठोर कानूनो की मदद से वह महिला सुरक्षा के संदर्भ में अच्छे नतीजे देने का प्रयास कर रही है। समय-समय पर सामने आने वाले किस्सो तथा महिला के साथ बलात्कार अथवा अन्य आपराधिक मामलों में सम्मानित सांसदो व विधायको का नाम आने पर सरकार द्वारा अपनाया जाने वाला रवैय्या तो देखने लायक होता ही है, उपरोक्त के अलावा अब यह देखा और महसूस किया जा रहा है कि इस तरह के आपराधिक मामलों में गिरफ्तारी से बचने के लिऐ कुटिल मानसिकता के लोग धर्म के आडम्बर के पीछे छिपने का भी प्रयास कर रहे है जिसके कारण पीड़ित पक्ष व आरोंपी को उसके धर्म के लिहाज से देखने तथा इस तरह के मामलो के पक्ष-विपक्ष में धार्मिक आधार पर लामबन्द होने की प्रवत्ति बढ़ी है। राजनैतिक एकजुटता के लिहाज़ से यह तरीका भले ही ठीक माना जाता हो और ताकत के दम पर सत्ता को अपने हाथ में रखनेकी पक्षधर उग्र  विचारधाराऐं महिलाओं को उनकी सुरक्षा के लिहाज से पर्दे के पीछे रखने अथवा सलीके के वस्त्र व संयमित दिनचर्या अपनाने के सुझाव भले ही देते हो लेकिन यह तमाम तौर-तरीके मानवाधिकार के दृष्टिकोण से ठीक नही कहे जा सकते और व्यक्तिगत् स्वतंन्त्रता के मामले में हर तरह की आजादी देने वाला भारतीय संविधान व इसके दायरे में रहकर बनाये जाने वाले कानून किसी भी कीमत पर एक सभ्य समाज अथवा इस समाज द्वारा चुनी जाने वाली सरकारी व्यवस्था को यह अधिकार नही देते कि वह कुछ लोगो को डण्डे या झण्डे के बल पर अपना ऐजेण्डा लागू करने की अनुमति दे लेकिन अफसोस कानून इस तमाम परिपेक्ष्य में मौन है और सरकार की कमियों अथवा खामियों की ओर ध्यान इंगित कराने वाली रिपोर्टो को ठण्डे बस्ते में डाला जा रहा है। यह स्थितियाॅ किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिऐ बेहतर नही कही जा सकती है और न ही यह मान सकते है कि अपनी कमियों को छिपाकर अथवा इनपर बहस करने से रोक लगाकर समस्या का समाधान किया जा सकता है लेकिन चल सबकुछ ऐसे ही रहा है और लोग डरे हुऐ है कि कही सच के साथ खड़े होने के जुर्म में उन्हे राष्ट्रविरोधी अथवा पाकिस्तान परस्त न घोषित कर दिया जाये।

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