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Thursday, April 25, 2024

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अनुभवों को नकारने का प्रयास

भारी-भरकम घोषणाओं व बड़े तामझाम के बावजूद कुछ अलग हटकर नहीं है उत्तराखंड राज्य सरकार का मौजूदा बजट
गैरसैण में आयोजित विधानसभा सत्र में भागीदारी के लिए सड़क मार्ग के जरिये पहुंचकर सरकार ने एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया और यह कहने में भी कोई हर्ज नहीं है कि मुख्यमंत्री व राज्यपाल द्वारा खींची गई इस लकीर का अनुपालन न सिर्फ विपक्ष व नौकरशाही द्वारा किया जाएगा बल्कि आने वाले कल में सत्ता पक्ष व विपक्ष के नेता पहाड़ों पर हो रहे सरकारी निर्माण कार्यों की गुणवत्ता व पहाड़ की लाइफलाइन मानी जाने वाली सड़कों की वर्तमान स्थिति को लेकर अपना पक्ष व्यापक रूप से जनता के समक्ष प्रस्तुत करेंगे। हालांकि हूटरों की गूंज और माननीयों के आगमन व स्वागत के लिए तैयार किए जाते मुख्य मार्गों पर कई खामियाँ पर्दे के पीछे छिपा दी गयी या फिर सरकार बहादुर ने खुद ही इन अव्यवस्थाओं की ओर से मुंह फेर लिया लेकिन अगर यह सिलसिला यूं ही चल निकला तो यकीन मानिये कि पहाड़ों को धंधेबाजों व ठेकेदारों की ऐशगाह मानने वाले कई बड़े व नामी-गिरामी नामों पर बिजली गिर सकती है और सरकार बहादुर पर पहाड़ों पर चढ़ने के परिपेक्ष्य में लगातार बढ़ रहे दबाव के बीच अपने अधिकारों के लिए सजग व जागरूक नजर आ रही जनता इन तमाम विषयों पर मुखर होती दिख सकती है। यह ठीक है कि गैरसैण को राज्य की स्थायी राजधानी के रूप में स्वीकार करने के परिपेक्ष्य में पूरी तरह असहमत दिखती प्रदेश की भाजपा सरकार मिनी सचिवालय समेत अन्य तमाम छोटी-मोटी घोषणाओं के जरिये आम आदमी का ध्यान प्रमुख व ज्वलन्त मुद्दों से हटाने का प्रयास कर रही है और गैरसैण को स्थायी राजधानी घोषित करने के परिपेक्ष्य में छुट-पुट धरना-प्रदर्शनों व स्थानीय स्तर पर होने वाली रैलियों से आगे बढ़कर आमरण अनशन व आंदोलनकारी नेतृत्व के साथ गैरसैण में उमड़ने वाले जन-सैलाब को अनदेखा करने का प्रयास जारी है लेकिन यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि पूर्ण बहुमत के दम्भ में जी रही भाजपा को पहले से साल में यह समझ आने लगा है कि अगर इसी तरह जनपक्षीय विषयों व मुद्दों की अनदेखी की गयी तो ज्यादा दूर तक चल पाना सम्भव ही नहीं बल्कि नामुमकिन होगा। यही वजह है कि सरकार किसानों की बात कर रही है और अपने इस सालाना बजट के माध्यम से कुछ ज्यादा जनपक्षीय दिखने के प्रयासों के तहत सरकार द्वारा मीडिया मैनेजमेंट के परिपेक्ष्य में भी कई कोशिशें की गयी हैं लेकिन सिर्फ विज्ञापनों से सरकार नहीं चला करती और न ही जनपक्ष को नजरंदाज कर जनमत का आनंद लिया जा सकता है। मौजूदा दौर में हो यही रहा है और शायद यही कारण है कि जनता के बीच पकड़ रखने वाले या फिर जनता की नब्ज पहचानने का दावा करने वाले भाजपा के तमाम नेता इस वक्त खुद को असहज महसूस कर रहे हैं। अब अगर राज्यपाल के अभिभाषण के माध्यम से सरकार द्वारा निर्धारित की गयी प्राथमिकताओं का जिक्र करें तो हम पाते हैं कि सरकार ने पर्वतीय क्षेत्रों में खेती पर फोकस करते हुए इसे एक चुनौती की तरह लिया है तथा सरकार द्वारा इन क्षेत्रों में चकबंदी लागू करने, मशीनरी बैंक स्थापित करने और जड़ी-बूटी व जैविक खेती को बढ़ावा देते हुए इसे पर्यटन से जोड़ने की बात कही गयी है। इसके अलावा सरकार ने खेती को पशुधन, कुक्कुट पालन व मत्स्य पालन आदि से जोड़ते हुए 2022 तक किसानों की आय दुगुनी करने व उन्हें उन्नत बीज के साथ ही साथ नवीनतम् तकनीक एवं यंत्र उपलब्ध कराने की बात बजट के माध्यम से कही गयी है लेकिन सरकार यह बताने में नाकाम रही है कि पहाड़ों की खेती व कृषि योग्य भूमि को तहस-नहस करने वाले जंगली सूअरों समेत अन्य तमाम जंगली जानवरों के अलावा राज्य के तमाम मैदानी इलाकों से एकत्र कर पहाड़ों पर छोड़े जा रहे बंदरों से खेती को सुरक्षित रखने की दिशा में सरकार क्या उपाय कर रही है। हमारे शासक वर्ग व योजनाकारों को यह मानना ही होगा कि पेयजल समेत तमाम तरह की मूलभूत सुविधाओं के आभाव से त्रस्त पहाड़ों पर मुर्गी पालन या मत्स्य पालन की बात करना भी बेमानी है और दुग्ध इत्यादि के उत्पादन के लिहाज से पाली जाने वाली गाय के नस्ल सुधार की दिशा में बहुत काम न किए जाने के चलते गौ-पालन पहाड़ की आर्थिकी की दृष्टि से बहुत फायदे का सौदा नहीं है लेकिन अगर सरकार चाहे तो पहाड़ के दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में पैदा होने वाले कृषि उत्पादों व इन उत्पादों से निर्मित विभिन्न भोज्य व पेय पदार्थों को एक बड़ा बाजार उपलब्ध करा पहाड़ी किसानों की आर्थिकी सुधार सकती है। अफसोसजनक है कि राज्य सरकार ने सदन में प्रस्तुत अपने हालिया बजट के माध्यम से इन विषयों को छूने का प्रयास नहीं किया है और न ही सरकार पहाड़ की खेती-किसानी को संरक्षण प्रदान करते हुए इसे जंगली जानवरों व बंदरों के आतंक से मुक्त करने की दिशा में काम करती दिख रही है। ठीक इसी प्रकार सरकार ने राज्यपाल के माध्यम से राजकीय सेवाओं के सरकारी पद भरे जाने तथा रोजगार बढ़ाने की नीयत से प्रशिक्षण देने के लिए 25 संस्थानों का चयन कर पांच सौ करोड़ की योजना बनाने की बात कही है लेकिन अपने इस कथन में सरकार जनता को यह नहीं बताना चाहती कि अपनी इस व्यवस्था को अमलीजामा पहनाने के लिए सरकार ने अपनी आय बढ़ाने के क्या-क्या इंतजामात किए हैं। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि राज्य गठन के तत्काल बाद से ही राज्य में बनने वाली तथाकथित सरकारें अपने खर्चों को पूरा करने के लिए तथा वेतन आदि के मद में खुले बाजार से कर्ज लेती रही है और इन पिछले सत्रह वर्षों में स्थिति इतनी ज्यादा बदतर हो चुकी है कि वर्तमान सरकार खुले बाजार से छः हजार करोड़ का कर्ज लेने के बावजूद भी विकास कार्यों व अपने पुराने बकाया भुगतान हेतु धन नहीं जुटा पायी है। इन हालातों में राज्य की आय के संसाधन बढ़ाये बगैर नये कर्मकारों की नियुक्ति की बात करना या फिर पुराने कर्मचारियों को वेतन बढ़ाये जाने का प्रलोभन देना कितना न्यायोचित है यह कहा नहीं जा सकता लेकिन मौजूद तथ्यों व तर्कों के आधार पर आसानी के साथ इस निष्कर्ष तक अवश्य पहुंचा जा सकता है कि राज्यपाल के अभिभाषण के जरिये युवाओं के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने की बात कहना एक राजनैतिक शिगूफेबाजी के अलावा और कुछ भी नहीं है। जहां तक कौशल विकास केन्द्रों के जरिये प्रशिक्षण देकर रोजगार के नये अवसर उत्पन्न करने अथवा युवाओं को स्वरोजगार के लिए उत्प्रेरित किए जाने का सवाल है तो इस संदर्भ में यह कहा जाना ही पर्याप्त है कि बैंकों से बेहतर तालमेल के आभाव में सरकार द्वारा पूर्व से ही चलायी जा रही ऋण व स्वरोजगार योजनाओं का लक्ष्य आज तक पूरा नहीं हुआ है और न ही सरकार के पास ऐसी कोई जादू की छड़ी है जिसके दम पर सरकार बैंकों पर निर्धारित लक्ष्य को पूरा करने के लिए दबाव डाल सके। रहा सवाल कौशल विकास के नाम पर चलाये जा रहे अल्पकालिक प्रशिक्षण या फिर इसी तरह के मिलते-जुलते नामों से अन्य योजनाएं चलाये जाने का तो वर्तमान में राज्य सरकार के आधीन अथवा निजी क्षेत्र में काम कर रहे तकनीकी शिक्षण संस्थानों की हालत किसी से छिपी नहीं है और न ही राज्य सरकार द्वारा निर्धारित की गयी कोई एजेन्सी यह दावा करने की स्थिति में है कि इन तमाम शिक्षण संस्थानों पर उसका पूरी तरह नियंत्रण है। इन हालातों में नये स्रोतों के चयन व नये सिरे से प्रशिक्षण आदि को लेकर किसी भी तरह का कार्यक्रम चलाये जाने की अपेक्षा ज्यादा बेहतर होता कि सरकार अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले तकनीकी शिक्षण संस्थानों की पढ़ाई का स्तर सुधारने पर ध्यान देती और राज्य में हर वर्ष के हिसाब से बढ़ रही बेरोजगारी व बेकारी पर लगाम लगाने की दिशा में स्थायी रूप से प्रयास किया जाता लेकिन सरकार इन तमाम गंभीर विषयों पर ध्यान देने के स्थान पर सिर्फ खानापूर्ति वाले अंदाज में रस्मअदायगी करते हुए भारी-भरकम शब्दों के इस्तेमाल से जनता को भरमाने का प्रयास कर रही है और आॅलवेदर रोड, एयर कनेक्टविटी, केदारनाथ में पुर्ननिर्माण व भारत माला परियोजना जैसे शब्द जाल में उलझाकर मतदाता वर्ग को आगामी लोकसभा चुनाव के लिए अपने पक्ष में खड़ा करने की तैयारियां शुरू हो गयी मालूम देती है। अब यह तो वक्त ही बतायेगा कि सरकार द्वारा उद्घोषित बजटीय प्रावधानों व घोषणाओं का आम आदमी के जीवन पर क्या असर पड़ता है तथा लोकलुभावन अंदाज में राज्यपाल के अभिभाषण के माध्यम से की गयी इस सरकारी लफ्फेबाजी को धरातल में उतारने में सरकार किस हद तक कामयाब होती है लेकिन हालातों के मद्देनजर यह अंदाजा लगाया जाना मुश्किल नहीं है कि अपने अस्तित्व में आने के बाद से ही जनसंवेदनाओं के प्रति लापरवाह दिखाई दे रही राज्य की वर्तमान सरकार की परेशानी व उलझनों में इस बजट सत्र के बाद बढ़ोत्तरी देखी जा सकती है क्योंकि जहां एक ओर गैरसैण को स्थायी राजधानी घोषित किए जाने को लेकर आंदोलनरत् सामाजिक व राजनैतिक संगठन सरकार की मंशा पर सवाल खड़े कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर आर्थिक संकट की ओर बढ़ रहे सरकारी तंत्र के समक्ष कुछ नयी तरह की समस्याएं आने की संभावना को भी नकारा नहीं जा सकता।

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