दम तो है, इन्दिरा की दहाड़ में | Jokhim Samachar Network

Friday, April 19, 2024

Select your Top Menu from wp menus

दम तो है, इन्दिरा की दहाड़ में

 

हल्द्वानी में आईएसबीटी के निर्माण हेतु चयनित भूमि का आवंटन खारिज करने के मुद्दे पर माहौल गर्म

कांग्रेस शासनकाल में आईएसबीटी के लिए चिन्हीकृत भूमि का आवंटन खारिज करने का खेल उत्तराखंड की भाजपा सरकार को भारी पड़ सकता है क्योंकि यह मामला सीधे तौर पर कांग्रेस की प्रभावशाली नेता व वर्तमान नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश से जुड़ा हुआ है और हल्द्वानी की विधायक होने के नाते उनका यह कर्तव्य भी है कि वह बिना किसी विरोध के आगे बढ़ रहे गौलपार क्षेत्र में निर्माणाधीन इस अंतर्राष्ट्रीय बस अड्डे के कार्य को आगे बढ़ाएं जिससे हल्द्वानी व उसके आसपास के क्षेत्रों को जाम से मुक्ति मिले। यह मानने का कोई कारण नहीं है कि हल्द्वानी की स्थानीय जनता पूर्व चयनित स्थान पर आईएसबीटी बनाये जाने के विरोध में है और न ही इस विषय को लेकर किसी भी स्तर पर कोई ज्ञापन या अन्य किस्म का प्रदर्शन किए जाने की खबर है लेकिन एकाएक ही यह चर्चा में आना कि चयनित भूमि पूर्व में शमशान थी और फिर मौजूदा सरकार द्वारा उक्त चयनित भूमि पर निर्माण कार्य बंद करने के आदेश देते हुए नयी भूमि के चयन किए जाने की घोषणा करना स्वयं में आश्चर्यजनक कर देने वाला है तथा सरकार के इस फैसले से किसी बड़ी साजिश अथवा भूमाफिया के साथ सांठ-गांठ की बू आती है या फिर यह भी हो सकता है कि इस विषय में किसी प्रभावशाली व्यक्ति अथवा नौकरशाह ने मुख्यमंत्री को गलत जानकारी दी हो। खैर वजह चाहे जो भी हो लेकिन यह तय है कि सरकार के इस फैसले के खिलाफ सड़कों पर उतरने के संकेत देकर स्थानीय विधायक व नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश ने अपनी ताकत का अहसास कराया है और उनके एक दिवसीय उपवास के दौरान धरना स्थल पर जुटी भीड़ यह इशारा कर रही है कि भाजपा ने बैठे-बिठाये कांग्रेस को एक और मुद्दा दे दिया है। यह आश्चर्यजनक है कि भाजपा के रणनीतिकार व सरकार के हितैषी विरोध में उठ रहे इन सुरों को शांत करने की जगह आग में घी डालने वाले अंदाज में नेता प्रतिपक्ष के पूर्व निर्धारित कार्यक्रम से ठीक पहले मिठाई बांटकर आम आदमी व कांग्रेस के कार्यकर्ता को भड़काने की दिशा में काम कर रहे थे या फिर यह भी हो सकता है कि सत्तापक्ष की रणनीति विपक्ष को भड़काकर आंदोलन को हिंसक स्वरूप देने की हो और किन्ही विशेष कारणों से अपने गलत फैसले को बदलना नहीं चाह रही राज्य की भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार ने ही अपने कार्यकर्ताओं को आंदोलन की धार व दिशा बदलने के निर्देश जारी किए हो लेकिन वजह चाहे जो भी हो राज्य सरकार के एक फैसले के विरोध में उठी इस शांतिपूर्ण आवाज के बाद अब यह तय हो गया है कि राज्य सरकार की मुश्किलें अब कम होने वाली नहीं हैं और सदन में अपनी सीमित उपस्थिति के बावजूद कांग्रेस हर दृष्टिकोण से यह प्रयास करेगी कि वह सरकार की घेराबंदी सही तरीके से कर सके। वैसे भी अगर हल्द्वानी के राजनैतिक इतिहास पर नजर डालें तो हम पाते हैं कुमाऊं के एक बड़े भू-भाग का प्रवेशद्वार माना जाने वाला यह क्षेत्र राजनैतिक दृष्टि से जागरूक एवं आंदोलन के लिए उर्वरक रहा है तथा अभी हाल ही के दिनों एक ट्रांसपोर्ट व्यवसायी द्वारा की गयी आत्महत्या व इस आत्महत्या से पूर्व सरकार को घेरने की कोशिशों ने इस क्षेत्र को आन्दोलनों के लिए और भी ज्यादा उर्वरक बना दिया है। इससे ही थोड़ी दूरी पर स्थित लालकुंआ-बिंदुखत्ता क्षेत्र के वासी अब सरकार को उसके चुनावी वादे याद दिलाते हुए बिन्दुखत्ता को राजस्व ग्राम बनाये जाने की मांग को लेकर एकजुट होते दिखते हैं तथा इस विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक व कांग्रेस सरकार के मंत्री हरीश चन्द्र दुर्गापाल वक्त-बेवक्त नेता प्रतिपक्ष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े दिखाई देते हैं। इन हालातों में सरकार की कार्यशैली के खिलाफ दिखने वाले कांग्रेसी इजहार का असर सिर्फ हल्द्वानी ही नहीं बल्कि इसके आसपास के अन्य तमाम विधानसभा क्षेत्रों तक होना तय दिखता है और सरकार की मनमानी के खिलाफ आहूत वर्तमान प्रदर्शन में आसपास के क्षेत्रों की जनभागीदारी को देखते हुए यह स्पष्ट भी हो जाता है कि त्रिवेन्द्र सिंह रावत सरकार की यह गलती अब भारी पड़ती दिख रही है लेकिन सत्ता के मद में चूर नेता इतनी आसानी के साथ सत्य एवं जनभावनाओं का अहसास नहीं कर सकते और आर्थिक लोभ या फिर ज्यादा लालच के चक्कर में उन्हें यह होश ही नहीं रहता कि स्थानीय जनता ने किस उद्देश्य के साथ उन्हें चुनकर भेजा है। वर्तमान में हो यही रहा है और मौजूदा सरकार की कार्यशैली व आईएसबीटी हल्द्वानी को पूर्व चयनित स्थान से हटाये जाने समेत तमाम जनविरोधी निर्णयों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि मानो मौजूदा सरकार पूर्ण बहुमत की मद में अपनी जिम्मेदारी व चुनावी वादे भूल गयी हो। यह ठीक है कि जनता चाहकर भी सरकार को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकती क्योंकि भारतीय मतदाता को अपने चुने हुए जनप्रतिनिधियों को वापस बुलाने का कोई हक नहीं है और न ही अब वह दौर है कि सड़कों व चैराहों पर लम्बा प्रदर्शन कर या फिर बंद व चक्का जाम जैसे आंदोलनों के जरिए सरकार को झुकने के लिए मजबूर किया जा सके लेकिन सवाल यह है कि जनता को अपनी परेशानी सरकार से कहने का हक है और मौजूदा दौर में यह एक बड़ा विषय बनता जा रहा है कि जनता अपनी आवाज सत्ता के शीर्ष पर काबिज नेताओं तक कैसे पहुंचाए। हमने देखा कि मौजूदा सरकार के अस्तित्व में आने के तत्काल बाद से ही सम्पूर्ण पहाड़ में हुए शराब की दुकान विरोधी आंदोलनों को सरकार ने किस तरह नजरंदाज किया और सरकार की शह पर स्थानीय जिला प्रशासन व पुलिस ने न सिर्फ विरोध को दरकिनार कर शराब की दुकानें खुलवाई बल्कि जनविरोध को दबाने के लिए गुण्डा व अराजक तत्वों की मदद लेकर शराब की मोबाइल वैन तक चलवाई गयी। ठीक इसी क्रम में यह जिक्र भी किया जाना आवश्यक है कि खुद को जनहितकारी व पहाड़ का हितैषी बताने वाली राज्य की वर्तमान सरकार अब गैरसैण के मुद्दे पर चल रहे आंदोलन को भी इसी तर्ज पर अनदेखा कर रही है और सरकारी मशीनरी ने सब कुछ देखते व समझते हुए भी आंदोलनों को अनदेखा करने का मन बना लिया है। इन हालातों में जनता के पास विकल्प सीमित हैं और जनसाधारण के गुस्से व दूरस्थ पर्वतीय क्षेत्रों से छनकर आ रही खबरों को आधार बनाकर देखा जाय तो ऐसा लगता है कि मानो स्थानीय जनता इस सरकार से उकता चुकी हो लेकिन सवाल यह है कि क्या आम जनता का यह गुस्सा आगामी स्थानीय निकायों व पंचायतों के चुनावों तथा इसके बाद होने वाले लोकसभा चुनावों के जरिए चुनाव मतदान केन्द्रों तक पहुंचेगा और अगर ऐसा होता भी है तो क्या यह जरूरी है कि राज्य की सत्ता पर काबिज भाजपा के नेता इस हार से सबक लेने का प्रयास करेंगे या फिर इस एक झटके से सरकार की कार्यशैली में कोई बदलाव देखने को मिलेगा। इस बात की कोई गारंटी नहीं लगती और न ही यह महसूस होता है कि भाजपा के रणनीतिकार यह मान रहे हैं कि सरकार की कार्यशैली के खिलाफ आम जनमानस का यह गुस्सा मोदी के जादू और भाजपा के परम प्रिय हिन्दुत्व के मुद्दे पर भारी पडे़गा। शायद यही वजह है कि भाजपा के नेताओं ने जनचर्चाओं के विषय बदलने के लिए आईएसबीटी के मुद्दे पर विपक्ष के प्रदर्शन से ठीक पहले मिठाई बांटने जैसे हथकंडे अपनाने शुरू कर दिए हैं और मीडिया के माध्यम से आम जनता को यह संदेश देने की कोशिश की जा रही है कि नेता प्रतिपक्ष का आंदोलन आम जनता की लड़ाई न होकर इंदिरा हृदयेश के निजी हितों की लड़ाई है जिसमें कांग्रेस के तमाम दिग्गज नेताओं के अलावा पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत भी नेता प्रतिपक्ष के साथ नहीं हैं लेकिन यह पब्लिक तो सब जानती है और उसे बार-बार भावनाओं के अतिरेक में बहाया जाना आसान नहीं है। इसलिए यह हो सकता है कि सरकार के आईएसबीटी को लेकर लिए गए फैसले के खिलाफ माहौल इतना खराब हो जाए कि सरकार से सम्भालते न बने और सरकार की कार्यशैली व तमाम फैसलों के खिलाफ खुलकर बोल रही जनता अपनी मर्जी मनवाने के लिए अराजक भीड़ के रूप में परिवर्तित होकर सड़कों पर उतर पड़े।

About The Author

Related posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *