चर्चाओं के बाजार में | Jokhim Samachar Network

Friday, March 29, 2024

Select your Top Menu from wp menus
Breaking News

चर्चाओं के बाजार में

जनता के बीच बन रही सरकार की नकारात्मक छवि व अन्दरूनी नाराजी की खबरों के बावजूद प्रदेश में सत्ता परिवर्तन की कोई संभावना नहीं।
उत्तराखंड में सत्ता के शीर्ष पर असहजता का माहौल है और सदन में प्राप्त पूर्ण बहुमत के बावजूद त्रिवेन्द्र सिंह रावत सरकार पर खतरा मंडराता साफ दिखाई दे रहा है। हालांकि उत्तराखंड की राजनीति में अस्थिरता का दौर कोई नयी बात नहीं है और राज्य गठन के तत्काल बाद से ही तेजी से बढ़ती दिख रही नेताओं की महत्वाकांक्षा को देखते हुए यह अंदाजा लगाया जाना भी मुश्किल नहीं है कि इस राज्य में सत्ता के शीर्ष पदों को संभाल पाना नेताओं के लिए आसान नहीं है लेकिन इस सबके बावजूद यह माना जा रहा था कि इस बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हो रही भाजपा को ऐसी मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ेगा और राजनैतिक अस्थिरता के आभाव में यह प्रदेश तेजी के साथ उन्नति के पथ पर आगे बढ़ेगा किंतु सरकार के कार्यकाल का एक वर्ष पूरा होने से पहले ही जिस तरह की खबरें आ रही हैं और सरकार की कार्यशैली से नाराज विधायक व मंत्री जिस तरह के बयान दे रहे हैं, उन्हें देखते हुए लगता है कि अगर भाजपा हाईकमान द्वारा समय रहते इस समस्या का समाधान नहीं किया गया तो हालात बद से बदतर हो सकते हैं। यह माना कि विरोध के स्वर अभी बुलंद नहीं हैं और चैम्पियन जैसे विधायकों के लिए ‘सक्सेस’ के कई मायने हो सकते हैं लेकिन सरकार के पास भी अपनी उपलब्धि के रूप में जनता के बीच ले जाने को कुछ विशेष नहीं है और सरकार के कार्यकाल का एक वर्ष पूरा होने के अवसर पर नेताओं के पास जनता के बीच जाकर बांटने अथवा घोषणा करने के लिए विकल्प सीमित हैं। कार्यकताओं के बीच दायित्व न बंटने व सरकार की निष्क्रियता को लेकर आक्रोश है तो जनता के बीच छन-छनकर आ रही मुख्यमंत्री कार्यालय में लाखों की चाय और करोड़ों की हवाई यात्राओं के खर्च की खबरों ने सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है और वेतन न मिलने से परेशान सरकारी कर्मकारों के संगठन कई मुद्दों को एक साथ जोड़ते हुए नये आन्दोलन की राह तलाश रहे हैं लेकिन इस सबके बावजूद हाल-फिलहाल वर्तमान सरकार को कोई खतरा नहीं लगता और न ही यह कहा जा सकता है कि चाय-पानी के बहाने एक पूर्व मुख्यमंत्री के घर पर जुटे भाजपा के तमाम विधायक व अन्य दिग्गज नेता सरकार के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। यह माना कि राजनीति के चतुर खिलाड़ी के रूप में निशंक का कोई सानी नहीं है और खंडूरी व कोश्यारी की उम्र की अधिकता के चलते सक्रिय राजनीति से उनकी अघोषित सन्यास की स्थिति में वह उत्तराखंड की भाजपाई राजनीति के एकमात्र ऐसे चेहरे हैं जो लगभग पूरे राज्य में अपना एक अलग वजूद रखते हैं लेकिन इस सबके बावजूद यह कहना कठिन है कि निशंक हाईकमान के आदेशों की अवहेलना कर अपना एक अलग गुट बना सरकार बनाने की दावेदारी पर विचार भी करेंगे और राज्य की जनता को नये विकल्पों पर विचार करने का मौका मिलेगा। जहां तक हाईकमान द्वारा त्रिवेन्द्र सिंह रावत को हटाये जाने का सवाल है तो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के अलावा भी किसी अन्य बड़े नेता अथवा केन्द्रीय मंत्री के उत्तराखंड दौरे के दौरान यह संकेत नहीं मिले कि वर्तमान मुख्यमंत्री अथवा उनकी सरकार केन्द्र एवं भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व के साथ बेहतर तालमेल कायम रखने में नाकामयाब रही है और प्रादेशिक नेतृत्व ने केन्द्र सरकार अथवा संगठन के किसी भी तरह के निर्देशों को अनदेखा किया है। लिहाजा यह अंदाजा लगाया जाना गलत है कि केन्द्रीय नेतृत्व विधायकों के दबाव अथवा सरकारी कामकाज की समीक्षा के आधार पर प्रदेश की सरकार में कोई बड़ा परिवर्तन करने जा रहा है और अगले कुछ दिनों में मंत्रियों की शक्ल या फिर पूरी की पूरी सरकार की भूमिका ही बदली हुई दिख सकती है लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि अपने इन कड़े तेवरों के बहाने सत्ता पक्ष के कुछ विधायक अपने खास समर्थकों को नगर निगम अथवा नगरपालिका के अध्यक्ष पद का प्रत्याशी बनवाने में कामयाब रहें और पार्टी टिकटों के वितरण के मामले में उनकी अनुशंसा पर गौर किया जाए। साथ ही साथ आने वाले कल में राज्यसभा के लिए प्रत्याशी के चुनाव अथवा लोकसभा चुनावों में प्रत्याशियों के चयन के वक्त भाजपा के उन तमाम नेताओं की पसंद को भी तजरीह दी जाये जिनकी वरीष्ठता के बावजूद भाजपा हाईकमान की विशेष रणनीति के चलते उन्हें अनदेखा किया जा रहा है। भाजपा के तथाकथित वरीष्ठ व दिग्गज नेता यह अच्छी तरह जानते हैं कि वर्तमान परिस्थितियों में भाजपा हाईकमान के खिलाफ आवाज बुलंद करना या फिर विद्रोह की परिस्थिति पैदा कर एक अलग गुट बनाना असम्भव है और कांग्रेसी पृष्ठभूमि वाले नेताओं व जनप्रतिनिधियों के लिए यह स्थिति और भी ज्यादा गंभीर है क्योंकि इस बार की बगावत के बाद कांग्रेस में वापसी करना उनके लिए आसान नहीं है और इन दोनों ही राजनैतिक दलों के अलावा किसी अन्य क्षेत्रीय दल का सत्ता की राजनीति में हाल-फिलहाल दखल सम्भव नहीं दिखता। इसलिए भाजपा विधायक दल में किसी भी तरह की टूट, इस्तीफे या फिर विद्रोह के कयास लगाया जाना बेमानी है और यह भी तय है कि इन तमाम आशंकाओं से मुक्त भाजपा हाईकमान हाल-फिलहाल विरोधियों को कोई भाव देने के मूड में नहीं है लेकिन सब नेताओं की अपनी-अपनी मजबूरियां हैं और इन्हीं मजबूरियों ने उन्हें निशंक के इर्द-गिर्द जुटने को मजबूर किया है। निशंक खुद हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र से पलायन चाहते हैं और इसके बेहतर विकल्प के रूप में उनकी निगाहें पौड़ी या टिहरी लोकसभा सीट पर टिकी हुई हैं लेकिन मार्च में खाली हो रही उत्तराखंड की एक राज्यसभा सीट भी उनकी नजरों में है। अपने इन तमाम लक्ष्यों में से किसी एक को मजबूती से अपने पक्ष में करने के लिए उन्होंने बड़ी ही चालाकी के साथ प्रदेश सरकार की कमजोरियों की निगाहबीनी शुरू कर दी है और अपनी इन कोशिशों के शुरूआती दौर में ही वह तमाम सरकार विरोधियों को एकजुट करने में सफल भी दिखते हैं। इसके ठीक विपरीत कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आये विजय बहुगुणा को यह लगता है कि भाजपा को उत्तराखंड सरकार पर कब्जेदारी की चाबी सौंपने के बावजूद उन्हें वह बहुत कुछ नहीं मिला है जिसके वह हकदार थे और अपने हक की बात हाईकमान तक पहुंचाने के लिए उन्हें जरूरी लगता है कि कांग्रेस से बगावत के वक्त उनके साथ आया विधायकों व कार्यकर्ताओं का गुट अगर उनके साथ रहे तो वह मजबूती से अपनी बात रख सकते हैं। शायद यही वजह है कि चैम्पियन की आह से सुर मिलाते हुए वह भी निशंक के नेतृत्व में एकजुट हो रहे खेमे में खड़े दिख रहे हैं और इस बहाने अपनी ताकत का अहसास करा बड़े बेटे के लिए टिहरी लोकसभा का टिकट व अपने लिए राज्यसभा अथवा राज्यपाल का पद उनकी वर्तमान इच्छाओं में है। अब अगर इस चाय पार्टी में जुटे तीसरे बड़े चेहरे की बात करें तो उत्तराखंड की भाजपाई राजनीति के भीष्म पितामह माने जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी वह दिग्गज हैं जो सरकार से नाराज बताये जा रहे हैं लेकिन इनकी नाराजी भी सरकार की कार्यशैली से नाराजी न लगकर अपने व्यक्तिगत् हितों की लड़ाई लगती है और ऐसा प्रतीत होता है कि उम्र के तकादे पर खत्म होती दिख रही नैनीताल लोकसभा सीट की दावेदारी में अपने किसी मनपसंद चेहरे को फिट कर सत्ता से बाहर रहकर भी सत्ता चलाना इनका लक्ष्य है और इसके लिए अपना नाम राज्यसभा हेतु प्रस्तावित किये जाने के विकल्प से भी इन्हें ऐतराज नहीं है। हालांकि वर्तमान मुख्यमंत्री टीएसआर को भी इन्हीं के खेमे का व इनका शागिर्द बताया जाता है और उनके मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन होने के पीछे इनके आशीर्वाद को बहुत महत्व दिया गया है लेकिन सत्ता पर काबिज होने के बाद टीएसआर ने जिस तरह इस अनुभवी व दिग्गज नेता को अनदेखा किया है, उसकी टीस भगतदा के मन में बनी हुई है और वह किसी भी कीमत पर टीएसआर को सबक सिखाने की मंशा रखते हैं। इसलिए यह तमाम दिग्गज अपने-अपने एजेण्डे के साथ हाईकमान तक अपना संदेश पहुंचाने वाले अन्दाज में चाय पार्टी के बहाने एकजुट होते दिखाई दिए हैं और राज्य सरकार के खिलाफ उठ रहे विद्रोह के सुरों व जनापेक्षाओं को अपनी चर्चाओं का विषय बनाकर इन्होंने हाईकमान का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करने की कोशिश भी की है लेकिन हालात व इस चाय पार्टी के बाद बाहर आ रही खबरें यह इशारा भी कर रही हैं कि इस बैठक में शामिल लगभग सभी नेताओं को यह अंदाजा है कि अभी हाल-फिलहाल मुख्यमंत्री को लेकर बदलाव की कोई सम्भावना नहीं है और न ही उत्तराखंड के नेता इस स्थिति में हैं कि वह किसी भी मुद्दे पर अपने हाईकमान पर दबाव बना सके। लिहाजा अपनी-अपनी मर्जी व अपेक्षाएं हाईकमान तक पहुंचाने के लिए उन्होंने यह आसान तरीका चुना है।

About The Author

Related posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *