
-नर्से दे सकती है महत्वपूर्ण योगदान स्तनपान जागरूकता में
-ऑफिसों में बच्चों को स्तनपान कराने के लिए उचित जगह नहीं
-शिशु को कराती हैं ब्रेस्टफीड तो डाइट में शामिल करें हल्दी
-40 प्रतिशत कामकाजी महिलाएं 4 माह तक करा पाती है स्तनपान
देहरादून, । संजय ऑर्थोपीड़िक, स्पाइन एवं मैटरनिटी सेन्टर, जाखन, देहरादून द्वारा आयोजित वेविनार में राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित डॉ. सुजाता संजय स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञा ने विश्व स्तनपान सप्ताह (1-7 अगस्त) को लेकर स्तनपान ओरिएंटेशन कार्यशाला वेबिनार का आयोजन किया। इस जन-जागरूकता व्याख्यान में उत्तरप्रदेश, उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश व पंजाब से 150 से अधिक मेडिकल, नर्सिंग छात्रों व किशोरियों ने भाग लिया। संजय मैटरनिटी सेन्टर, द्वारा स्तनपान की महत्व के बारे में जागरूकता फैलाने एवं शिशुओं को कुपोषण से बचाने के लिए इस कार्यक्रम में डॉ. सुजाता संजय द्वारा विश्व स्तनपान सप्ताह के अंतर्गत गर्भवती महिलाओं व माताएं एवं नर्सिंग छात्राओं के लिए स्तनपान के महत्व के बारे में जागरूक किया गया डॉक्टर सुजाता संजय व उनके अस्पताल द्वारा तीन वेबीनार एक सेमिनार व दो रेडियो कार्यक्रमों का आयोजन किया गया।
डॉ. सुजाता ने बताया कि मां का दूध बच्चे के लिए अमृत से कम नहीं। यह न सिर्फ शिशु के सर्वांगींण विकास के लिए जरूरी है, बल्कि इससे मां को भी मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य लाभ होता है। जन्म के शुरूआती एक घंटे में शिशु के लिए मां का दूध अत्यन्त जरूरी है। बावजूद इसके स्तनपान को लेकर अभी भी लोगों में काफी भ्रातियां फैली हुई है। आज भी लोगों में स्तनपान की जरूरतों के प्रति जागरूकता की कमी है। यूनिसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक विश्व के करीब 77 करोड़ नवजात या हर दो में से एक शिशु को मां का दूध पहले घंटे में नहीं मिल पाता है। यह आंकडा शिशु मृत्यु दर के लिए बेहद अहम हैं। दो से 23 घंटे तक मां का दूध न मिलने से बच्चे के जन्म से 28 दिनों के भीतर मृत्यु दर का आंकडा 40 फीसदी होता है, जबकि 24 घंटे के बाद भी दूध न मिलने से मृत्यु दर का यही आंकडा बढकर 80 प्रतिशत तक हो जाता है। देश में नवजात शिशुओं की मौत की सबसे बडी वजह मां का दूध नहीं पिलाया जाना भी है। सरकारी आंकड़ो के अनुसार देश में 5 साल से कम आयु केे 42,5 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं और 69,5 प्रतिशत बच्चे खून की कमी से जुझ रहे हैं। दुनिया के 10 अविकसित बच्चों में से चार भारतीय होते है। और पांच साल से कम उम्र के लगभग 15 लाख बच्चे हर साल भारत में अपनी जान गंवाते हैं।