देहरादून। पांच राज्यों में भाजपा की करारी हार के बाद उत्तराखण्ड में राजनीतिक उथल-पुथल का दौर शुरू हो गया है। किसी भी समय प्रदेश में राजनैतिक धमाका होने की संभावनाएं बनी हुई है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा यह है कि पूर्व विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का दामन छोड़ भाजपा में गए विधायक भी अब दोबारा कांग्रेस के टच में है। किन्तु कुछ पार्टी के निष्ठावान व समर्पित पदाधिकारियों की रोक के चलते दोबारा उनके कांग्रेस में शामिल होने पर पेंच फंसा हुआ है।
पूर्व में कांग्रेस की हरीश रावत सरकार का केन्द्र सरकार स्तर से राजनीतिक उत्पीडन किया गया। यह चर्चा तत्तकालीन समय में राजनीतिक गलियारों में बनी रही। उसके बाद चुनाव के ऐन समय भाजपा ने पार्टी के भीतर आपसी कलह का फायदा उठाकर कांग्रेस के कई विधायकों को अपनी पार्टी में न सिर्फ शामिल किया बल्कि उन्हे टिकट देकर चुनाव मैदान में भी उतारा। चुनाव में जीत के बाद उनमें से कई आज त्रिवेन्द्र सरकार में मंत्री बनकर सत्ता का सुख भोग रहे है। किन्तु तीन लोकसभा चुनाव के एन समय तीन हिन्दी राज्यों में कांग्रेस की जीत के बाद अब स्थितियां बदलने लगी है। विश्लेषकों के अनुसार अब उत्तराखण्ड के नेताओं के दिमाग मेें भी आ गया है कि देश से मोदी लहर का अंत हो गया है। अब भाजपा में अपना भविष्य न देखकर एक बार फिर भाजपा में गए विधायक कांग्रेस में वापसी का मन बना रहे है। उन्होंने कांग्रेस में आने के प्रयास भी शुरू कर दिये है। पार्टी सूत्रों के अनुसार उनमें से कई कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष व नेता प्रतिपक्ष के संपर्क में है। क्योंकि इन विधायकों ने कांग्रेस की बहुमत वाली सरकार को गिराने का खेल भाजपा के साथ मिलकर खेला था। जिसके चलते कई पार्टी के वफादार दिग्गज उन्हे किसी भी सूरत में पार्टी में लेने के पक्ष में नही है। बल्कि उनका यह मानना है कि वर्तमान में देशभर में कांग्रेस की लहर चल रही है। वे प्रदेश की पांच लोकसभा चुनाव सीटों में वेदाग छवि के नए उम्मीदवार उतारने के पक्ष में है।क्योंकि उनका मानना है कि चुनाव में जनता ने ही जीत हार का फैसला करना है। यदि जनता कांग्रेस के अब सत्ता में देखना चाहती है तो वो कांग्रेस के उम्मीदवारों के सिर जीत का सेहरा खुद डालेगी। भले ही हाल ही में कांग्रेस ने तीन हिन्दी राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव मंे जीत का परचम लहराकर मोदी सरकार को यह दिखा दिया हो कि आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए जीत की डगर इतनी आसान नही होगी। किन्तु उसके इतर उत्तराखण्ड कांग्रेस के हालात सुधरने का नाम नही ले रहे है। लोकसभा चुनाव सर पर है पर पार्टी निकाय चुनाव के बाद भी अंर्तकलह से उभर नही पा रही है। जिन सीटों पर कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा। उन क्षेत्रों में हरीश रावत व इंदिरा हृदेयश के गुट चुनाव हारने के लिए एक दूसरे पर दोषारोपण कर रहे है। अब भी कांग्रेस दो गुटों में बंटी है। यदि पार्टी आलाकमान ने इन गुटों को समय रहते एक मंच पर लाने का प्रयास नही किया तो इसका खामियाजा उत्तराखण्ड कांग्रेस को आगामी लोकसभा चुनाव में भुगतना पड़ सकता है।
राजनीतिक गलियारों में उठ रही चर्चाओं के अनुसार कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह जिसमें प्रदेश की नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदेयश भी शामिल है। निकाय चुनाव की कमान इनके हाथों में थी। बावजूद उसके कांग्रेस पूरी तरह से जीत अपने पक्ष में नही कर पाई। इस चुनाव में भी पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की कर्मी खल रही थी। कई राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि यदि चुनाव प्रचार की कमान हरीश के हाथों में होती तो भाजपा को करारी हार का मुह देखना पड़ता।