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Friday, March 29, 2024

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बेफिजूल की कवायद

गैरसैण को स्थायी राजधानी घोषित किए बिना यहां विधानसभा सत्र का आयोजन अथवा राज्यपाल का अभिभाषण कराया जाना औचित्यहीन
अगर सरकार के बयानों पर यकीन करें तो ऐसा प्रतीत होता है कि स्थायी राजधानी के मुद्दे पर सरकार ने गैरसैण की ओर कदम बढ़ाने शुरू कर दिए हैं और गैरसैण के नवनिर्मित विधानसभा भवन में शीतकालीन सत्र आयोजित करने के बाद अब उत्तराखंड की पूर्ण बहुमत वाली भाजपा सरकार यहां अपना बजट सत्र आयोजित कर इस दिशा में एक नयी पहल करने जा रही है लेकिन सरकार के इन ऐतिहात भरे कदमों को देखकर जन सामान्य के मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब इस पहाड़ी राज्य की जनता का एक बड़ा हिस्सा गैरसैण को स्थायी राजधानी घोषित करने के नारे के साथ आंदोलन का मोर्चा खोले हुए है और लगभग पूरे पहाड़ी क्षेत्रों में इस मुद्दे को लेकर आवाज उठ रही है तो फिर सरकार इस तरह चरणबद्ध तरीके से कार्यक्रम घोषित करने व धीरे-धीरे स्थायी राजधानी की ओर बढ़ने की बात क्यों कर रही है तथा वह कौन से कारण हैं जो सरकार को इस दिशा में स्पष्ट निर्देश जारी करने व बड़ा फैसला लेने से रोकने का काम कर रहे हैं। जहां तक सरकार की मंशा का सवाल है तो सत्ता पक्ष के तमाम नेताओं व मुख्यमंत्री तक के बयान से यह स्पष्ट है कि सरकार इस बार बजट सत्र की शुरूवात व राष्ट्रपति का अभिभाषण गैरसैण में कराए जाने पर गंभीरता से विचार कर रही है और वह अपने पहले कदम के रूप में गैरसैण को राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करने पर भी विचार कर रही है लेकिन यह एक बड़ा सवाल है कि वित्तीय संसाधनों की कमी से जूझ रहे इस पर्वतीय प्रदेश को दो-दो तरह की राजधानी की क्या आवश्यकता है और वह कौन से कारण हैं जिनके चलते सरकार अस्थायी राजधानी देहरादून का मोह नहीं छोड़ पा रही। यह एक बड़ा सवाल है कि क्या सरकार को ऐसा प्रतीत होता है कि जनभावनाओं के अनुरूप राजधानी का एकाएक ही गैरसैण घोषित किया जाना एक नये बवाल को जन्म दे सकता है या फिर राज्य की नौकरशाही अपना सारा तामझाम लेकर गैरसैण जाने के तैयार नहीं है और अगर ऐसा है तो फिर सरकार असलियत जनसामान्य के बीच क्यों नहीं रखना चाहती। कहीं ऐसा तो नहीं कि राजधानी की गैरसैण के मुद्दे पर पहाड़ों के एक बड़े हिस्से समेत राजधानी देहरादून में भी शुरू हुई स्थायी राजधानी की मुहिम को देखते हुए सरकार आंदोलन को गुमराह करने का मन बना रही हो और उसकी मंशा हाल-फिलहाल आंदोलनकारियों को मनाने के लिए बजट सत्र का शिगूफा छेड़कर आगामी पंचायत व स्थानीय निकायों के साथ ही साथ लोकसभा चुनावों तक इस मुद्दे को टालने की हो। सरकार की कार्यशैली को देखकर तो ऐसा ही प्रतीत हो रहा है और गैरसैण के मुद्दे पर धरना-प्रदर्शन व अन्य तरह से आंदोलन कर रहे सामाजिक संगठनों के प्रति सरकार द्वारा दिखायी जा रही बेरूखी को देखकर यही प्रतीत होता है कि सरकारी तंत्र व हमारे जनप्रतिनिधि इस मुद्दे पर गंभीर नहीं हैं। जहां तक गैरसैण के पक्ष में खड़े होकर सरकार की मुश्किलें बढ़ाने वाले मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस का सवाल है तो इन सत्रह वर्षों में दस वर्षों तक प्रदेश की सत्ता पर काबिज रही कांग्रेस भी यह कहने की स्थिति में नहीं है कि उसने गैरसैण के मुद्दे पर प्रदेश की जनता से न्याय किया है लेकिन पिछले पांच-छह वर्षों में सरकार द्वारा गैरसैण में जुटाई गयी अवस्थापना सुविधाएं यह इशारा भी करती हैं कि उसने इस मसले का गंभीर समाधान हासिल करने की दिशा में कुछ प्रयास किए हैं और कांग्रेस के शासनकाल के दौरान वहां आयोजित की गयी मंत्रीमंडल की बैठक तथा बिना किसी व्यवस्था के टैन्टों में आहूत किया गया विधानसभा का सत्र इस तथ्य की ताकीद भी करता है कि कांग्रेस के चुनिन्दा नेताओं ने जनभावनाओं के अनुरूप इस मुद्दे को आगे बढ़ाने का प्रयास किया है लेकिन सवाल यह है कि क्या एक राज्य की स्थायी राजधानी का मसला वाकई इतना गंभीर है कि इसे वर्षों तक लटकाकर रखा जाय और अगर इसमें कुछ तकनीकी दिक्कतें हैं तो वह कौन से कारण हैं जिनके चलते इन समस्याओं को सामान्य जनता व गैरसैण को स्थायी राजधानी घोषित करने के मुद्दे पर आगे आये सामाजिक संगठनों के सामने नहीं रखा जा सकता। राज्य की सरकार अस्थायी राजधानी देहरादून से राज्य के कुछ चुनिन्दा स्थानों के लिए हवाई सेवा शुरू करने की घोषणा कर चुकी है और सूचना तकनीकी के इस दौर में सत्ता के शीर्ष पर काबिज आकाओं को आवश्यक सूचनाएं उपलब्ध कराने की दृष्टि से नेताओं या नौकरशाहों का देहरादून में ही जमे रहना आवश्यक भी नहीं रह गया है लेकिन हवाई सेवाओं की सूची से गैरसैण का नाम गायब होना और नौकरशाहों के साथ ही साथ जनप्रतिनिधियों का भी देहरादून में मिलने वाली सहूलियतों के प्रति मोह यह इशारा करता है कि सरकार गैरसैण के मुद्दे पर गंभीर नहीं है। इन हालातों में यह बड़ा सवाल है कि अगर सरकार गैरसैण को लेकर गंभीर नहीं है तो फिर यहां विधानसभा सत्र आहूत करने अथवा राष्ट्रपति का अभिभाषण कराये जाने जैसी कवायदों को करने का क्या औचित्य है और वह कौन से कारण हैं जिनके चलते सरकार न सिर्फ गैरसैण के मुद्दे को उलझाये रखना चाहती है बल्कि एक सुदूरवर्ती क्षेत्र में विधानसभा सत्र आहूत करने के नाटक पर लगातार कई वर्षाें से सरकारी धन का अपव्यय किया जाना सरकारी तंत्र को मंजूर है। गैरसैण को तत्काल प्रभाव के साथ स्थायी राजधानी घोषित किए जाने के विषय में नेताओं व नौकरशाहों की यह आम राय है कि इस क्षेत्र में अभी परिस्थितियां इतनी अनुकूल नहीं हैं कि यहां से राजकाज चलाया जा सके और बार-बार गैरसैण में कैम्प आयोजित कर सरकार स्थितियों को सामान्य बनाने का प्रयास कर रही है लेकिन यह एक बड़ा सवाल है कि इस किस्म की नूराकुश्ती आखिर कब तक जारी रहेगी और उत्तराखंड राज्य आंदोलनकारियों की भावनाओं के अनुरूप गैरसैण को राज्य की स्थायी राजधानी घोषित किए जाने के लिए स्थानीय जनता को कितना लम्बा इंतजार करना होगा। जहां तक सुविधाओं का सवाल है तो यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि उत्तराखंड राज्य निर्माण के बाद राज्य में हुआ विकास सिर्फ राज्य के कुछ मैदानी इलाकों तक सीमित रह गया है जिसके चलते पहाड़ों पर न सिर्फ पलायन बढ़ा है बल्कि काम धंधों व रोजगार के संसाधनों के आभाव में बेकार जनता के एक बड़े हिस्से की मजबूरी भी हो गयी है कि वह अपने पैतृक आवासों को छोड़कर राज्य के मैदानी इलाकों समेत देश के अन्य महानगरों की ओर रूख करे और सरकार की नीतियों व असफलताओं के परिणाम तेजी से खाली होते जा रहे सीमावर्ती इलाकों व दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों के रूप में हमारे सामने हैं लेकिन सरकार इन तमाम परिस्थितियों को लेकर चिंतित नहीं दिखती और न ही सरकार की योजनाओं व घोषणाओं में पहाड़ को बचाने का जिक्र दिखाई देता है। इन हालातों में अगर हम यह भी विश्वास करना चाहें कि मौजूदा सरकार वाकई गैरसैण को राज्य की स्थायी राजधानी बनाये जाने को लेकर संवेदनशील है तथा गैरसैण में आयोजित पूर्ववर्ती सत्र या फिर हालिया बजट सत्र में राज्यपाल के अभिभाषण समेत तमाम विधिक कार्यवाही को गैरसैण में आहूत किए जाने के पीछे सरकार की कोई योजना है तो इन भ्रामक विषयों पर विश्वास का कोई कारण नहीं दिखाई देता क्योंकि गैरसैण में विधानसभा भवन के मूर्त रूप लेने के बाद अस्तित्व में आयी मौजूदा सरकार ने उक्त स्थल अथवा इसके आसपास ऐसी कोई भी योजना अथवा कार्यवाही शुरू नहीं की है जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि सरकार अपनी कथनी के अनुसार गैरसैण को स्थायी राजधानी घोषित करने की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास कर रही है। हो सकता है कि मोदी फैक्टर अथवा अन्य तमाम कारणों से भाजपा आगामी लोकसभा या अन्य राज्यस्तरीय चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करे तथा सरकार चलाने वाले लोग अथवा उनके सलाहकार यह मान लें कि अब उत्तराखंड में गैरसैण एक प्रभावी मुद्दा नहीं है लेकिन अगर उत्तराखंड राज्य के गठन व व्यापक जनहित के दृष्टिकोण से विचार करें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि इस पहाड़ी राज्य का विकास व यहां की जनता की समस्याओं का निराकरण इस राज्य की राजधानी को किसी सुदूरवर्ती पर्वतीय क्षेत्र पर स्थानान्तरित किए बिना नहीं किया जा सकता और अगर नेताओं, नौकरशाहों व जनप्रतिनिधियों द्वारा बहुत ज्यादा लम्बे समय तक इस मुद्दे को अनदेखा किया जाता है तो स्थितियां बहुत ज्यादा विस्फोटक हो सकती हैं।

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