तसल्लियों के इतने साल बाद अपने हाल पर | Jokhim Samachar Network

Friday, March 29, 2024

Select your Top Menu from wp menus

तसल्लियों के इतने साल बाद अपने हाल पर

पंचेश्वर बांध के नाम पर आहूत की गयी जनसुनवाई को जाते काशी सिंह ऐरी के साथ धक्कामुक्की व खिलाफत के नारो का नकारात्मक असर पड़ना तय।
पंचेश्वर बांध को लेकर सरकारी कवायदों का दौर शुरू हो गया है और अगर सरकारी सूत्रों की खबरों को सही माने तो हम कह सकते है कि मात्र बाईस गांवों के पूर्ण विस्थापन के लिऐ दस हजार पाँच सौ करोड़ के लगभग मुआवजा राशि तय कर चुकी सरकारी व्यवस्था आपसी तालमेल व सामजस्य के साथ अपनी प्राथमिकताऐं निर्धारित करना चाहती है जिसके लिऐ उसने जनपक्षीय सुनवाई का दौर शुरू कर दिया है लेकिन परियोजना का काम शुरू करने से पहले ही शक व संदेह के बादल गहराने लगे है और विभिन्न माध्यमों से मिल रहे परस्पर विरोधाभासी बयानों पर गौर फरमाने के बाद यह माना जा सकता है कि एक बार फिर एक संस्कृति व विरासत विलुप्त होने के खतरें के साथ ही साथ सरकार द्वारा अनुमानित मुआवजा राशि के बन्दरबांट की प्रक्रिया को भी अंजाम तक पहुँचाये जाने की कोशिशें राजनैतिक स्तर पर शुरू हो गयी है। हांलाकि अभी जन सामान्य के सामने इस परियोजना के कई पहलू स्पष्ट नही है और आधी-अधूरी जानकारियों के साथ कोई यह बताकर राजी भी नही है कि डूब क्षेत्र के आलावा इस प्रस्तावित परियोजना का असर किस हद तक विनाशकारी होगा या फिर पहले से ही समस्याओं से जूझ रही उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रो की आबादी के एक बड़े हिस्से को इस बांध के निर्माण व विद्युत उत्पादन शुरू होने तक और क्या-क्या दुश्वारियाँ झेलनी होंगी लेकिन जैसा कि हालात इशारा कर रहे है सरकारी अमला, इस योजना को अमलीजामा पहनाने के लिऐ अपनी तैयारियां शुरू कर चुका है और सावधानी बरतने वाले अंदाज में जनसामान्य को सिर्फ उतनी ही जानकारी दी जा रही है जितनी कि अतिआवश्यक है। शायद यहीं वजह है कि इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर जनसुनवाई का नाटक करने के लिऐ सरकार ने ऐसा वक्त चुना है जब न सिर्फ बरसात अपने चरम् पर है और दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्रों को जिला मुख्यालय से जोड़ने वाले तमाम छोटे-बड़े मार्ग बंद है बल्कि दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों के साथ ही साथ तमाम शहरी व कस्बाई इलाकों की यातायात व्यवस्था भी बुरी तरह चरमराई हुई है। लिहाजा परियोजना पर काम शुरू होने से पहले ही विरोध के सुर उठने शुरू हो गये है और तमाम जनसंगठनों के साथ ही साथ अपनी राजनैतिक जमीन को मजबूती देने की चाह रखने वाले राजनैतिक चेंहरे भी सरकार की इस पहल के विरोध में एकजुट होते दिखाई दे रहे है। अगर हालत यूं ही बने रहे तो यह निश्चित जानियें कि पंचेश्वर के निर्माण व जल विद्युत उत्पादन शुरू करने का कार्य न सिर्फ काफी लंबे समय के लिऐ लम्बित किया जा सकता है बल्कि परियोजना पर काम शुरू होने से पहले निर्धारित की गयी मुआवजा राशि व अन्य खर्चो में भी कई गुना तक की बढ़ोत्तरी करना सरकारी की मजबूरी हो सकती हैं हांलाकि इस तरह की तमाम परियोजनाओं को स्थापित करने के लिऐ उत्तराखंड की वर्तमान व लगभग सभी पूर्ववर्ती सरकारों ने पहाड़ों से लगातार हो रहे पलायन को मुद्दा बनाकर हमेशा यह साबित करने की कोशिशें की है कि यहाँ के गांव विरान हो रहे है और बंजर होती जा रही अधिकांश कृषि योग्य भूमि पर जंगली जानवरों व हिंसक पशुओं का कब्जा है लेकिन मजे की बात यह है कि पिछले सत्रह वर्षो में किसी भी सरकार या राजनैतिक विचार धारा ने इन तमाम समस्याओं का निदान खोजने की कोशिश तक नही की है बल्कि अगर सरकार द्वारा लिये गये तमाम फैसलों व इन सत्रह सालों में राज्य के विकास को ध्यान में रखते हुऐ बनायी गयी योजनाओं पर गौर करें तो हम पाते है कि सरकारी तंत्र ने कहीं न कहीं पहाड़ो पर पलायन को बढ़ावा देने का ही प्रयास किया है और इसके पीछे एक स्पष्ट सोच यह दिखाई देती है कि अगर पहाड़ के गांव व कस्बे खुद ही वीरान हो जायेंगे तो पंचेश्वर बांध जैसी तमाम योजनाओं के लिऐ मुआवजा राशि निर्धारित करने अथवा विस्थापन की भूमिका तैयार करने में आसानी होगी। कहने का तात्पर्य यह है कि सरकारी तंत्र और राज्य गठन के बाद से ही सत्ता के शीर्ष पदों पर काबिज रहे दोनो ही राजनैतिक दल यह नहीं चाहते कि एक लंबे जनसंघर्षो के बाद अस्तित्व में आया यह राज्य, उत्तराखंड राज्य आन्दोलनकारियों के सपनों का प्रदेश बने और पहाड़ का विकास हो। शायद यहीं वजह है कि इस राज्य में टिहरी के डूबने के बाद अब पंचेश्वर बांध के नाम पर न सिर्फ कुमाँऊ के एक बहुत बड़े भू-भाग को अधिग्रहित कर डूब क्षेत्र में शामिल करने के लिऐ सरकार पूरी तरह फिक्रमंद हो गयी है बल्कि सरकारी तंत्र का कोई भी हिस्सा यह बताने को तैयार नही है कि परियोजना के निर्माण के बाद उत्तराखंड के कुमाँऊ क्षेत्र का असल परिदृश्य क्या होगा? अर्थात डूब क्षेत्र से शेष बचे ग्रामीण व कस्बाई इलाकों के लिऐ सड़क यातायात व अन्य व्यवस्थाओं के अलावा यहाँ की संस्कृति, भाषा-बोली, पौराणिक पहचान अथवा तीर्थ स्थलों व यहाँ के मूलनिवासियों को पहाड़ से जोड़े रखने वाले स्थानीय देवी-देवताओं के मन्दिरों की असल स्थिति इस परियोजना के पूर्ण हो जाने के बाद क्या होगी। कुल मिलाकर देखा जाय तो पंचेश्वर बांध का निर्माण सारे देश के साथ ही नेपाल के लिऐ भी एक खुशहाल सपना भले ही हो और इसके निर्माण से भारत-नेपाल सम्बन्धों को मजबूती मिलने की उम्मीद भले ही की जाय लेकिन उत्तराखंड के पौराणिक गाथाकाल व यहाँ की सभ्यता या संस्कृति के लिऐ यह एक सुनियोजित हमला होगा और सरकार जिस अंदाज में इस परियोजना के निर्माण का कार्य शुरू करते हुऐ डूब क्षेत्र से विस्थापन व मुआवजा निर्धारित करने की रणनीति बना रही है उसे देखते हुऐ यह भी साफ हो जाता है कि इस परियोजना के निर्माण को लेकर सक्रिय दिख रही तमाम सरकारी व निजी संस्थाओं ने अभी उन लोगों व क्षेत्रों के बारे में विचार करना ही शुरू नहीं किया है जो इस बांध निर्माण के बाद असल रूप से प्रभावित होगें। इन तमाम समस्याओं के अलावा अगर सरकार द्वारा दी जाने वाली मुआवजा राशि के निर्धारण की प्रक्रिया पर एक नजर डाले तो यह भी स्पष्ट होता है कि सरकारी व्यवस्था में मुआवजा राशि निर्धारण के लिऐ भूमि की पूर्ववर्ती खरीद-फरोख्त को आधार बनाया जाता है और पहाड़ में अधिकांश स्थानों पर स्थानीय उपयोग के लिऐ आज भी सरकारी खरीद-बिक्री के स्थान पर अदला-बदली जैसी व्यवस्थाऐं पुराने समय से ही चली आ रहीं है। लिहाजा यह तय है कि सरकार द्वारा निर्धारित की जाने वाली मुआवजा राशि का मूल्य न सिर्फ न्यून्तम् होगा बल्कि यहाँ के मूल निवासियों को अपनी संस्कृति, सभ्यता और लोक परम्पराओं समेत तमाम विधाओं का मोह छोड़ना होगा जो इन पहाड़ो के सुरम्य वातावरण में रची-बसी है क्योंकि सरकार उन्हें संरक्षित करने या पुर्नजीवित करने के कतई मूड में नही दिखाई देती और साथ ही साथ डूब क्षेत्र के इर्द-गिर्द वाले तमाम इलाकों को लेकर तो सरकार कतई गंभीर नहीं है। टिहरी बांध के निर्माण के बाद हमने देखा कि बांध प्रभावी क्षेत्र के अलावा अन्य आस-पास के इलाकों में जमीन दरकनें, मकानों के क्षतिग्रस्त होने और रास्ते बाधित होने जैसी घटनाऐं लगातार सामने आ रही है तथा उपरोक्त के अलावा यह भी महसूस किया जा रहा है कि टिहरी बांध द्वारा जल संचयन का कार्य शुरू करने के बाद उत्तराखंड के तमाम क्षेत्रों में बादल फटने व अतिवृष्टि होने की घटनाओं में इजाफा हुआ है जबकि बांध निर्माण व विद्युत उत्पादन की दृष्टि से देखा जाय तो इन तमाम समस्याओं के मुकाबले विद्युत उत्पादन में उत्तराखंड को मिलने वाली हिस्सेदारी लगभग नगण्य है और विस्थापन का बड़ा दर्द झेलने के बावजूद पूरे प्रदेश में हो रही विद्युत कटौती को देखकर यह नही लगता कि हम इतनी बड़ी-बड़ी जल विद्युत परियोजनाओं में न सिर्फ भागीदारी निभा रहे है बल्कि इनकी अवस्थापना व निर्माण को लेकर हमने स्थानीय स्तर पर बहुत कुछ झेला है। अफसोसजनक है कि सत्तापक्ष स्थानीय जनता को दर्द समझने के स्थान पर जोर-जबरदस्ती के दम पर अपनी मनमर्जी पूरी करना चाहता है और इसके लिऐ अपने संगठनात्मक ढ़ांचे का दुरूपयोग करने में सत्तारूढ़ दल को कोई हर्ज नही दिखाई देता। जनसुनवाई के दौरान उत्तराखंड राज्य आन्दोलन से जुड़े वरीष्ठ विचारक काशी सिंह एैरी के साथ हुई धक्कामुक्की व नारेबाजी इस बात का प्रमाण है कि सत्ताधारी दल किसी भी कीमत पर इस बांध के विरोध में एकजुट होने वाली सामाजिक व राजनैतिक ताकतों को तोड़ना चाहता है और इसके लिऐ अपने तथाकथित कार्यकर्ताओं की गुण्डा सेना को आगे कर आन्दोलनकारी विचारधारा के मानमर्दन की तैयारी पूरी हो चुकी है। यह माना कि काशी सिंह ऐरी की चुनावी हार और राज्य निर्माण में सक्रिय भूमिका के बावजूद गलत निर्णय के कारण खत्म होता दिख रहा उत्तराखंड क्रान्ति दल यह इशारा कर रहा है कि ऐरी समर्थकों में अब दम नही रहा लेकिन इस सबके बावजूद पहाड़ के प्रति काशी सिंह एैरी या उत्तराखंड क्रान्ति दल को नही नकारा जा सकता और अगर राजनैतिक नजरिये से देखा जाय तो जनप्रतिनिधि के रूप में अभी भी चुनाव मैदान में सक्रिय एैरी को इस देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था यह हक देती है कि वह किसी भी मुद्दे पर खुलकर अपने सुझाव, विचार या फिर समर्थकों का पक्ष रखे लेकिन जनसुनवाई के नाम पर खड़े किये गये फर्जी तामझाम के दौरान सरकार को कहीं न कहीं यह आभास हो गया लगता है कि पंचेश्वर परियोजना के निर्माण को लेकर जनपक्ष का भारी विरोध हो सकता है तथा काशी सिंह ऐरी जैसे तमाम जननेता ऐसे तथ्यों व तर्को को जनता के सामने प्रस्तुत कर सकते है जो सरकार द्वारा इस संदर्भ में दी जा रही सफाई की धज्जियाँ उड़ाते हो। लिहाजा सरकार की मजबूरी है कि वह येन-केन-प्रकारेण विरोधी पक्ष को अपना मुंह बंद रखने के लिऐ मजबूर करें और इस काम के लिऐ भाजपा के नेताओं के पास अपनी भगवा बिग्रेड तैयार है।

About The Author

Related posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *