आम आदमी के नजरिये से | Jokhim Samachar Network

Tuesday, April 23, 2024

Select your Top Menu from wp menus

आम आदमी के नजरिये से

अपनी त्वरित कार्यवाहियों के जरिये कानून का सहारा लेकर राजनीति को विपक्ष से मुक्त करने की कोशिशों में जुटी केन्द्र सरकार
देश की राजधानी दिल्ली में आम आदमी पार्टी के कुछ विधायकों द्वारा मुख्यमंत्री की मौजूदगी में राज्य के मुख्य सचिव पद पर तैनात एक आईएस अधिकारी के साथ मारपीट के घटनाक्रम पर तेजी से एक्शन में आयी दिल्ली पुलिस ने न सिर्फ आरोपी विधायकों को जेल भेज दिया बल्कि इस घटनाक्रम के संदर्भ में साक्ष्य एकत्र करने के नाम पर दिल्ली के मुख्यमंत्री आवास पर भी घंटों तक तलाशी व वीडियो क्लीपिंग एकत्र करने की कार्यवाही की गयी। हालांकि राजनैतिक पदों पर बैठे जनप्रतिनिधियों व नौकरशाहों के बीच झड़प की यह कोई नई घटना नहीं है और न ही यह पहला मौका है जब देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के दो पहलू एक दूसरे के खिलाफ तलवार खींचने वाले अंदाज में आमने-सामने दिख रहे हैं लेकिन यह शायद पहला अवसर है जब सत्ता के शीर्ष काबिज राजनैतिक दल से जुड़े विधायकों व राज्य के मुख्यमंत्री पर इतने त्वरित अंदाज में कार्यवाही हुई है और एक गंभीर मुद्दे पर केन्द्र व राज्य सरकार एक बार फिर आमने-सामने दिखाई दे रही है। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि मोदी सरकार के सुशासन व भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष जैसे नारे को धता बताकर आम आदमी पार्टी जबसे दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुई है तबसे वह भाजपा के नेताओं व केन्द्र सरकार की आंखों की किरकिरी बनी हुई है और आम आदमी पार्टी के इन तीन वर्षों के कार्यकाल में ऐसे अनेक मौके आये हैं जब यह महसूस किया गया है कि केन्द्र के नेताओं व केन्द्रीय सत्ता के आधीन काम करने वाली दिल्ली पुलिस ने आम आदमी पार्टी की इस सरकार के कार्यक्षेत्र में बेवजह का हस्तक्षेप किया है लेकिन इस सबके बावजूद आम आदमी पार्टी के नेता व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जनता के बीच अपनी छवि को लेकर सतर्क दिखे हैं और अपने कामकाज के तरीकों व दिल्ली की जनता के हित में लिए गए फैसलों के माध्यम से उन्होंने बार-बार यह साबित करने की कोशिश भी की है कि उनकी कथनी व करनी में बहुत ज्यादा फर्क नहीं है। शायद यही वजह है कि आम आदमी पार्टी भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की आंखों में किरकिरी की तरह चुभ रही है और सीमित संसाधनों वाली दिल्ली की केजरीवाल सरकार की घेराबंदी के प्रयास कई स्तरों पर किए जा रहे हैं। यह माना कि सत्ता के शीर्ष पर काबिज राजनेताओं अथवा राजनैतिक दल को मनमानी अथवा अराजकता करने के अधिकार नहीं दिए जा सकते और न ही कोई सरकार अपने अधीनस्थ काम करने वाली नौकरशाही पर अपनी मनमर्जी थोप सकती है लेकिन दिल्ली के मामले में यह देखा जा रहा है कि जनता के बीच से चुने गए जनप्रतिनिधियों को फैसले लेने से रोकने अथवा व्यापक जनहित के मद्देनजर नई योजनाएं लागू करने से रोकने के लिए एलजी के माध्यम से कई तरह के दबाव डाले जा रहे हैं और केन्द्र सरकार किसी भी कीमत पर आम आदमी पार्टी के सदस्यों की सदस्यता रद्द करने के लिए जल्दबाजी का रास्ता अख्तियार करने के बहाने ढूंढ रही है। इन हालातों को व्यापक राजनैतिक परिपेक्ष्य में ठीक नहीं कहा जा सकता और न ही यह माना जा सकता है कि दिल्ली पुलिस बिना किसी राजनैतिक शह के एक राज्य के मुख्यमंत्री के आवास पर छापेमारी में जुटी है। वर्तमान में देश के एक बड़े हिस्से में भाजपाई विचारधारा वाली सरकारें काम कर रही हैं और देश की राजधानी दिल्ली समेत भाजपा शासित तमाम राज्यों मंे महिला उत्पीड़न, बलात्कार, लूट, गुण्डागर्दी या फिर सत्तापक्ष के नेताओं व समर्थकों द्वारा राजकाज में बाधा डालने जैसे तमाम मुकदमे व शिकायतें त्वरित कार्यवाही का इंतजार कर रहे हैं लेकिन इन तमाम संगीन मामलों व आपराधिक घटनाक्रमों पर तवज्जो देना छोड़कर भारत सरकार का गृह मंत्रालय दिल्ली के एक विचारधारा विशेष से जुड़े विधायकों पर मुकदमें लादकर उन्हें जेल भेजने अथवा उन्हें डराने व धमकाने की दिशा में काम कर रहा प्रतीत होता है और हालिया घटनाक्रम को देखकर तो ऐसा प्रतीत होता है कि मानो एक पूर्व रचित कथानक के आधार पर दिल्ली के विधायकों व एक विचारधारा विशेष से जुड़े राजनैतिक कार्यकर्ताओं के बीच डर का माहौल बनाने का प्रयास किया जा रहा है। यह माना कि कानूनी रूप से दिल्ली पुलिस द्वारा की गयी कार्यवाही में कुछ भी गलत नहीं है और राजनैतिक पदों पर बैठे नेताओं या जनप्रतिनिधियों को मनमानी करने या फिर नौकरशाही पर दबाव कायम करने के लिए सुनियोजित हमला करने की छूट नहीं दी जा सकती लेकिन यह नियम अथवा कानून किसी एक राज्य अथवा देश के एक विशेष हिस्से में ही लागू किया जाना लोकतांत्रिक हितों की दृष्टि से न्यायोचित नहीं है और न ही भारत का संविधान किसी भी सरकार अथवा राजनैतिक विचारधारा को यह अधिकार देता है कि वह एक ही नियम अथवा व्यवस्था को देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग तरीके से लागू करे। दुर्भाग्य से भारत में हो यही रहा है और एक अघोषित आपातकाल की तर्ज पर मोदी सरकार अपने राजनैतिक प्रतिद्वंदियों का सफाया करने के लिए अलग-अलग मौकों पर कानून की अलग-अलग तरीके से समीक्षा व व्याख्या कर रही है जबकि इस तरह के घटनाक्रमों से जुड़े तमाम तर्क, तथ्य व सत्य जनता तक पहुंचाने के लिए सजग माने जाने वाले मीडिया के एक बड़े हिस्से का गला घोट सामायिक घटनाक्रमों को भाजपाई नजरिये से देखने वाले मीडिया के दूसरे हिस्से प्रोत्साहित करने के लिए सरकार विभिन्न नियम व कानूनों का सहारा लेकर राजकाज में पत्रकारों की दखलंदाजी पर अघोषित प्रतिबंध लगाने में जुटी है। यह परिस्थितियां किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए ठीक नहीं कही जा सकती और न ही केन्द्र सरकार के इस तर्क पर विश्वास किया जा सकता है कि सरकारी एजेंसियां व कानून अपने तरीके से व बिना किसी दबाव के काम कर रही हंै। हालांकि यह मानने का कोई कारण नहीं है कि दिल्ली के वर्तमान मुख्य सचिव ने अपने आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाते हुए उपरोक्त चर्चित घटनाक्रम के संदर्भ में कोई गलत बयानी की होगी या फिर इस तरह का कोई घटनाक्रम अंजाम ही नहीं दिया गया होगा लेकिन वरीष्ठ नौकरशाहों की सम्पत्ति की जांच तथा सेवानिवृत्ति के उपरांत उन्हें प्रदान किए जाने वाले तमाम महत्वपूर्ण ओहदे व रोजगार के अन्य संसाधन ऐसी तमाम वजहें पैदा कर सकते हैं जिनके चलते भ्रष्ट नौकरशाही का एक बड़ा हिस्सा एक व्यवस्था विशेष के लिए हथियार के रूप में काम करने लगता है और इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि दिल्ली प्रदेश सरकार को नेस्तनाबूद करने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार दिखता भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इस तरह के तमाम हथकंडों को आजमाने में महारथ रखता है। यह माना कि संकटों व विपक्षी राजनैतिक दलों के हमलों से जूझ रही आम आदमी पार्टी के पास जनता के बीच जाने का विकल्प मौजूद है और आम आदमी पार्टी का शीर्ष नेतृत्व मानसिक रूप से इस विकल्प को आजमाने के लिए तैयार भी दिखता है लेकिन सवाल यह है कि क्या जनपक्ष से यह उम्मीद की जानी चाहिए कि वह अपने चुने हुए प्रतिनिधियों के खिलाफ राजनैतिक तौर पर हो रही इस घिनौनी साजिश के विरूद्ध मोर्चा खोलते हुए सड़कों पर संघर्ष के लिए आगे आए। वर्तमान हालातों में जनपक्ष का एक बड़ा हिस्सा यह मानता है कि केन्द्र की सत्ता पर काबिज भाजपा उन तमाम विषयों व घोषणाओं को जनता के बीच लागू करने में नाकामयाब रही है जो चुनावी मंचों से चर्चाओं का प्रिय विषय हुआ करते थे और जिन्हें आधार बनाकर भाजपा ने लोकसभा चुनावों के दौरान पूर्ण बहुमत हासिल करने में कामयाबी हासिल की थी लेकिन सत्ता के शीर्ष पर अपनी कब्जेदारी के इन चार सालों में सरकार कुछ नये विषयों को जन्म देकर या फिर अपनी कार्यशैली व नीतियों के दम पर जनसामान्य की समस्याओं से आम आदमी का ध्यान हटा कुछ नये विषयों की ओर जनता का ध्यान खींचने में कामयाब रही है और यह देखने में आया है कि जब-जब भी सरकार की कार्यशैली को लेकर सवाल खड़े किए गए हैं या फिर देश के प्रधानमंत्री अथवा सत्ता के अन्य केन्द्रों पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए कुछ ज्वलंत विषयों व आम आदमी की समस्याओं पर सार्थक विचार-विमर्श की पहल शुरू करने के प्रयास हुए हैं तो सरकारी तंत्र ने किसी न किसी तरह की शिगूफेबाजी के जरिये इन तमाम समस्याओं व विषयों से आम आदमी का ध्यान हटाने के लिए कुछ नयी चर्चाओं को जन्म देने की कोशिश की है और अगर मौजूदा प्रकरण को इस नजरिये से देखें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि अपनी इस कार्यवाही पर कई तरह के सवाल उठने के बावजूद केन्द्र सरकार एक बार फिर अपनी रणनीति में कामयाब दिखती है।

About The Author

Related posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *