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Thursday, March 28, 2024

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हद कर दी आपने

तेजी से बदल रहा है सरकारों का चाल-चरित्र
व्यवस्था देने के स्थान पर हवा हवाई बयानों या भक्तों के तुगलकी फरमानों को आधार बना काम कर रही है सरकार
एक अजीब सा दौर और नशा इस वक्त समाज पर छाया दिख रहा है और इस नशे की हनक में जन समाान्य का एक छोटा हिस्सा ही नही बल्कि सरकारें व न्यायालय तक अपने कार्यक्षेत्र व अधिकारों की सीमा को लांघते हुऐे अपने से निचले वर्ग या समुदाय पर हावी हो जाना चाहते है। वैसे तो अतिवादिता समाज का एक स्थायी हिस्सा है और खुद को सही मानते हुऐ जनपक्ष के एक हिस्से को अपने साथ खड़ा करने के लिऐ मानमनुहार से लेकर जोर जबरदस्ती तक के सारे पैतरों को आजमाना अतिवादी व कट्टर समाज की प्रमुख पहचान मानी जाती है लेकिन लोकतांत्रिक भारत में न्यायालय व सरकार से लेेकर जनसामान्य तक से यह उम्मीद की जाती है कि यह तमाम संस्थाऐं या फिर विभिन्न जन समुदाय दूसरे वर्ग के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप नही करेंगे और न ही ऐसे हालात पैदा किये जाने की कोशिश होगी जिससे एक स्वतंत्र देश के किसी भी नागरिक के मूल अधिकारों का हनन हो। हो सकता है कि कट्टरवाद या अतिवाद के संदर्भ में व्यक्त किये गये हमारे कुछ विचारों को केन्द्र की मोदी सरकार या फिर उत्तर प्रदेश की नवगठित योगी सरकार के विरोध की तरह लिया जाय और सिर्फ भारत माता की जय या नमो-नमो के नारे भर से खुद को सच्चा राष्ट्रवादी घोषित करने में जुटी भक्तों की भीड़ को हमारे शब्दों से वामपंथ की बू आये लेकिन यह तथ्य किसी भी कीमत पर स्वीकार नही किया जा सकता कि समाज के जिम्मेदार पदों पर बैठे लोग सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिऐ समाज के किसी एक हिस्से पर ऊल-जलूल प्रतिबंध लगाये। किसी ने क्या खाना है या क्या पहनना है और उसे घूमने के लिऐ कहां या किसके साथ जाना है, यह तय करने का हक कानून ने किसी सरकार, न्यायालय या फिर समाज के किसी हिस्से को नही दिया लेकिन इस सबके बावजूद न्यायालय की सर्वोच्च सत्ता पर बैठकर एक न्यायाधीश द्वारा पत्रकारों को खुलेआम बेईज्जत करते हुऐ उनके लिऐ ड्रेसकोड की बात की जाती है और मजे की बात यह है कि मीडिया का एक हिस्सा इस बेफिजूल के विषय पर बहस करने लगता है। न्यायालय को हक है कि वह अपने कार्यक्षेत्र में आने जाने वाली जनता के लिऐ कपड़े पहनकर आने के सलीके का निर्धारण करें और न्यायिक स्तर पर एक आदेश जारी करते हुऐ उच्चस्तर से यह निर्णय लिया जाय कि न्यायिक कार्यो के लिऐ न्यायालय परिसर में आने वाली जनता से किस तरह के कपड़े पहनने या फिर किस तरह का व्यवहार किये जाने की उम्मीद की जाती है लेकिन न्यायालय को शायद यह हक नही है कि वह इस तरह को कोई आदेश पारित किये बिना पत्रकारों या किसी अन्य समूह को इंगित करते हुऐ ड्रेस कोड की बात करे या फिर टी-शर्ट और जीन्स पहनने वाले पत्रकारों पर निशाना साधे। ठीक इसी तरह उत्तर प्रदेश में भी नये-नवेले मुख्यमंत्री बने योगी आदित्यनाथ ने महिलाओं के टी-शर्ट पहनने पर तंज कसा है और स्कूलों में विद्यार्थियों व अध्यापिकाओं द्वारा इस तरह के वस्त्र पहनकर आने पर पाबंदी की बात की जा रही है योगी को चाहिऐं कि वह इस तरह के विषयों पर बयान देने से बचकर अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुऐ सरकारी विद्यालयों में छात्रों व अध्यापको के लिऐ ड्रेस कोड लागू करें और बयानबाजी करने की जगह शासनदेश के माध्यम से सरकारी अथवा निजी क्षेत्र में कार्यरत् कर्मचारियों के लिऐ अपने कार्यक्षेत्र व कार्य समय में पहने जाने योग्य वस्त्रों की सूची बनाये लेकिन योगी अपने पद की गरिमा व अधिकार क्षेत्र को भूलकर एक हठेली सास की तरह प्रदेश की महिलाओं के साथ बहू का सा व्यवहार कर उनपर डर का साम्राज्य कायम करना चाहते है और इसके लिऐ टी-शर्ट पर पांबदी, धूप से बचने के लिऐ महिलाओं द्वारा मुंह पर बांधे जाने वाले रंग-बिरंगे दुपट्टों की जगह भगवा स्कार्फ का प्रयोग करने और अपने पुरूष मित्रों के साथ घूमने-फिरने या कहीं आने-जाने पर पाबंदी लगाते हुऐ एक अलग किस्म के पुलिसिया दस्ते के गठन की बात की जा रही है। एक तरह से देखा जाय तो इस माॅरल पुंलिसिंग की बात भाजपा से जुड़े तमाम कट्टरवादी संगठन बहुत पहले से करते रहे है और उनकी इस हिमाकत व तालीबानी जिद में कोई बहुत अन्तर भी नही है। आज सत्ता में आने के बाद वह सत्ता पर अपनी कब्जेदारी को बनाये रखने के लिऐ यह तमाम ताकतें देश के इतिहास व संविधान द्वारा जनसामान्य को दिये गये अधिकारों में भी बदलाव लाना चाहती है। जनसामान्य ने क्या खाना और पहनना है तथा इसे अपनी खुशी या गम का इजहार कैसे करना है, यह उसका व्यक्तिगत् विषय है। सरकार अगर चाहे तो इन विषयों में से कुछ में हस्तक्षेप करते हुऐ पाबन्दियाँ लागूू कर सकती है लेकिन इसके लिऐ उसे इन प्रतिबंधों के कारणों तथा जनता की कुछ विशेष आदतों के चलते समाज को हो रहे नुकसान को सबके सामने रखना होगा। पूर्ण बहुमत के बावजूद मोदी या योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार यह सबकुछ कानूनी तौर-तरीको से करने का आत्मबल नही रखती। इसलिऐं जुमलेबाजी का सहारा लेकर या फिर भक्त मण्डली को आगे कर इस तरह के मसलों को जन पंचायतो के जरिये आगे लाने की कोशिश की जाती है और जनसामान्य का एक बड़ा हिस्सा भावातिरेक में फैसला लेकर जुमलेबाजो के पीछे हो लेता है लेकिन यह सवाल कोई नही उठाता कि क्या भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इस तरह की जुमले बाजी से सहमत है और अगर राजनैतिक नेतृत्व की सहमति पर ही यह दांव खेला जा रहा है तो फिर भाजपा अपनी पूर्ण बहुमत वाली सरकार के जरिये अध्यादेश अथवा विधेयक लाकर इस तरह के प्रावधानों को पूरा क्यों नही करती। मसला चाईना निर्मित उत्पादों के बहिष्कार का हो या फिर नव संवत्सर को हिन्दू नववर्ष की तर्ज पर मनाये जाने का, सरकार अगर चाहे तो इन तमाम विषयों पर वैधानिक रूप से कार्यवाही करते हुऐ शासनदेश जारी कर सकती है लेकिन भाजपा व संघ के दिशानिर्देश पर चल रहा सरकारी तंत्र इन तमाम विषयों पर मौन दिखाई देता है जबकि इन संगठनों के दिशा निर्देश पर कार्य करने वाले कार्यकर्ता न सिर्फ इन विषयों पर मुखर है बल्कि सामने वाले पक्ष से अपनी बात मनवाने के लिऐ उन्हें जोर-जबरदस्ती से भी कोई हर्ज नही दिखता। हालातों के मद्देनजर ऐसा लगता है कि हम एक ऐसे दौर की ओर जा रहे है जहां नियम और कानूनों की कोई अहमियत नही है बल्कि सत्ता पक्ष की मनमर्जी ही एक कानून है और इसकी अवहेलना करने पर आप कहीं भी व कभी भी राष्ट्रद्रोही घोषित किये जा सकते है।

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