साजिशों के बीच – अमरनाथ यात्रियों की बस पर हुआ आंतकी हमला । | Jokhim Samachar Network

Wednesday, April 24, 2024

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साजिशों के बीच – अमरनाथ यात्रियों की बस पर हुआ आंतकी हमला ।

बर्फानी बाबा अमरनाथ के दर्शन करके वापस लौट रहे श्रद्धालुओं पर हुआ आंतकी हमला देश की जनता व सेना को आंतक के सौदागरों की खुली चुनौती है जिसे भारत सरकार ने गंभीरता से लेना चाहिऐं । इस तथ्य से इनकार नही किया जा सकता कि पाकिस्तान समर्थित आंतकवाद के खिलाफ समर्थन जुटाने के लिऐ भाग दौड़ कर रहे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ताजा मुहिम से पाकिस्तान के साथ ही साथ चीन को भी झटका लगा है और यह दोनों ही मुल्क अपने-अपने तरीके से भारत पर दबाव बनाने की तैयारी कर रहे है लेकिन हम सबकुछ जानते और समझते हुऐ भी हर घटना-दुर्घटना की जिम्मेदारी पाकिस्तान या आंतकियों को पनाह देने वाले मुल्कों पर नही थोप सकते बल्कि हमें आंतक को मुंह तोड़ जवाब देते हुये आंतकियों के पैर उखाड़ने की रणनीति पर अमल करना होगा। तीन साल पहले जब मोदी अपने चुनावी मिशन के साथ पूरे देश में दौड़-भाग कर रहे थे या फिर देश के प्रधानमंत्री की कुर्सी संभालने के साथ ही साथ उन्होंने अपने दल के लिऐ जम्मू-कश्मीर की सत्ता में भागीदारी सुनिश्चित की थी तो एकबारगी ऐसा लगा था कि मानो देश की राजनीति में कोई बड़ा क्रान्तिकारी परिवर्तन आ सकता है और दुश्मन के घर में घुसकर मारने की बात करने वाले देश के प्रधानमंत्री लगभग रोज़ाना के हिसाब से होने वाली आंतकी वारदातों पर काबू पाते हुऐ आंतक पर हावी होने का एक नया इतिहास लिखेंगे लेकिन आंतकी वारदात और निर्दोषो की मौत के सिलसिलें में कोई कमी नही आयी बल्कि कश्मीर में भाजपा के शासन के बाद पत्थर भी प्रदर्शनकारियों के हथियार बन गये और हमारी सेना के जवान अपने ही देश में पूरी तरह अपमानित होकर अपना कर्तव्य निर्वहन को मजबूर दिखे। जनता को बताया गया कि सर्जिकल स्ट्राइक के बाद या फिर नोटबंदी से आंतकवादियों के हौसले टूटे है लिहाजा उनपर काबू पाना अब आसान होगा लेकिन हमने देखा कि हम लगभग हर मोर्चे पर असफल साबित हुऐ और हमारे नेताओं की शह पर देश के भीतर तेजी से बढ़ रही बढ़बोले बयानवीरों की टोली ने सरकारी तंत्र के समर्थन व सरकार जिन्दाबाद का नारा लगाकर एक अलग तरह के आंतक को पालना-पोसना शुरू कर दिया। यह माना जा सकता है कि सरकार देश के हर नागरिक को उसकी सुरक्षा के लिऐ सुरक्षा बल नही दिया जा सकता और यह भी संभव है कि आंतकवादियों व साजिशकर्ताओं की टोह लेकर तमाम बड़े हमलों को विफल करने वाले हमारे खुफिया सुरक्षा बल कुछ मामलों में असफल हो जाये लेकिन अगर हमारी सरकारें चाहे तो वह कुछ सावधानियों को अंजाम देकर आंतकी वारदातों में कमी लायी जा सकती है और जम्मू-कश्मीर जैसे आंतक से पीड़त इलाकों में राजनैतिक दुराग्रह से हटकर लिये गये कुछ फैसले आंतकवादियों को वापस उनके शरणदाता मुल्कों की ओर रूख करने को मजबूर कर सकते है लेकिन अफसोसजनक है कि हम हर घटना दुर्घटना के पीछे राजनैतिक नफा-नुकसान तलाशनें में लगे है और अमरनाथ यात्रियों पर हुऐ इस आंतकी हमले के बाद कुछ इस तरह बर्ताव किया जा रहा है कि मानो यह हमला आंतकवादियों द्वारा मानवता पर हुआ हमला न होकर एक कौम के अतताईयो द्वारा दूसरी कौम के कुछ लोगों पर किया गया हमला हो जिसका बदला लेेने के लिऐ अपने आस-पास के माहौल का जायजा लेकर विवेक के हिसाब से फैसला लिया जाना जरूरी है। सब जानते है कि यह गलत है लेकिन अपने राजनैतिक लाभ के लिऐ इस तरह की मानसिकताा का विरोध करने या फिर कानूनी हथकण्डे का उपयोग कर इस तरह के बयानों पर रोक लगाने की सरकार की भी कोई मंशा नही दिखती। लिहाजा आज सिर्फ जम्मू-कश्मीर ही नही बल्कि पूरा भारत आंतकवाद की जद में आता दिख रहा है और धार्मिक कट्टरता की ओर बढ़ते मुल्क में नये-नये आंतकवादी पैदा होते दिख रहे है। हम यह तो नही कहते कि आंतक की आड़ में देशभर में फैलाया जा रहा यह नफरत का जहर इस मुल्क को एक बार फिर गुलामी की ओर ले जायेगा और बंदूक या हिंसा के जरिये सत्ता के शीर्ष को तलाशने वाले लोग लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं का ताना बाना नष्ट कर इस मुल्क को कौमी हिंसा की आग में धकेलने में सफल होंगे लेकिन इतना तो समझ में आ ही रहा है कि अगर सबकुछ ऐसे ही चलता रहा तो हमारी सरकारों की मजबूरी होगी कि वह अपनी ताकत का एक बड़ा हिस्सा अपनी घरेलू शान्ति बनाये रखने या कौमी हिंसा से निपटने में खर्च करें और अगर ऐसा होता है तो यह तय जानिये कि हम उन तमाम विषयों को खो देंगे जिनके लिऐ भारत की सम्पूर्ण विश्व में एक अलग पहचान है। इसलिऐं हमारी सरकारों को चाहिऐं कि वह आंतकवाद के समर्थन में रची जा रही विदेशी साजिशों को एक छद्म युद्ध की तरह देखें और देश की सेना को पूरी ताकत के साथ इन आंतकियों से लड़ने की छूट दे लेकिन आंतकवाद के विरोध को एक कौम विशेष का विरोध करने का मिशन बनाकर की जा रही गिरोह बंदी का भी सरकारी स्तर से मुँह तोड़ जवाब आना चाहिऐं और हमारे सरकारी तंत्र का यह प्रयास होना चाहिऐं कि वह समाज में होने वाली जातीय व धार्मिक हिंसा पर पूरी पाबन्दी लगाये। अफसोसजनक है कि हमारी सरकार के शीर्ष पर बैठा राजनैतिक नेतृत्व न तो आंतकियो के खिलाफ हमलावर है और न ही देश की सीमाओं के भीतर रची जा रही साजिशों केा नेस्ताबूद करते हुये धर्म एवं जाति के नाम पर होने वाले सामाजिक उत्पीड़न व हिंसा की घटनाओं की निन्दा करने का साहस उसके भीतर है। हाँ इतना जरूर है कि अपने जोश भर देने वाले बयानों तथा राष्ट्रवादी नारों के जरिये आवाम के एक बड़े हिस्से को जोश से लबरेज कर देने की कुब्बत हमारे प्रधानमंत्री है और अपनी इस योग्यता के दम पर वह सत्ता पर कब्जेदारी के इन तीन सालों में अपनी लोकप्रियता बनाये रखने में सफल रहे है। रहा सवाल अमरनाथ बाबा की गुफा से वापसी कर रहे श्रद्धालुओं पर हुऐ आंतकी हमले या फिर भारत-पाक सीमा पर लगातार चलने वाली गोलाबारी और अन्य आंतकी हमलों का तो इस विषय में हम सिर्फ इतना ही कह सकते है कि बिना दृढ़ इच्छा शक्ति के कोई भी सरकार आंतकवादियों से दो-दो हाथ कर उनका सफाया नही कर सकती। हमने देखा कि इन्दिरा गाँधी ने राजनैतिक नफे-नुकसान का चिन्ता किये बिना पंजाब के राजनैतिक पटल पर हावी खालिस्तान समर्थक अलगाववादी नेताओं व आंतकियों से दो-दो हाथ किये और इसका खामियाजा उन्हें अपने प्राण देकर चुकाना पड़ा । यह ठीक है कि उनके समर्थकों व पार्टी कार्यकर्ताओं द्वारा इन्दिरा गांधी की हत्या पर किया नरसंहार इंसानियत के खिलाफ था लेकिन अगर मौजूदा हालातों के दृष्टिकोण से देखे तो हम कश्मीर में हो रही अलगाववादी घटनाओं व हिंसा का बदला लेने के नाम पर इसी दिशा की ओर जाते दिख रहे है और मजे की बात यह है कि इस सबके लिऐ हम किसी नेता की मृत्यु से जनित आक्रोश को भी जिम्मेदार ठहराने की स्थिति में भी नही है बल्कि माहौल को देखते हुऐ ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कुछ राजनैतिक ताकतें अपना वर्चस्व बनाये रखने के लिऐ हमें उकसा रही है। खैर यह तो वक्त ही बतायेगा कि आगामी वर्षो में मुस्लिम आंतक के विरूद्ध लामबंद होता दिख रहा विश्व इसके खात्में के लिऐ क्या कदम उठायेगा या फिर आंतकी साजिशों को जड़ से उखाड़ फैकनें व पाकिस्तान को नेस्तनाबूद कर देने के दावे के साथ सत्ता के शीर्ष पर काबिज हुऐ हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अगले दो वर्षो में कौन से चमत्कार करके दिखाते है लेकिन आंतकी हमलों के चलते लगातार हो रही आम आदमी की मौत हमें दहशत व शर्मिदंगी से भरने के लिऐ काफी है क्योंकि हम चाहकर भी सरकार के खिलाफ नारे लगाने अथवा मोमबत्तियाँ जलाने के अलावा और कुछ नहीं कर सकते।

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