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Thursday, April 18, 2024

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सन्नाटों के बीच

दो दिन के लिए गुलजार हुआ गैरसैंण एक बार फिर लाचार और बदहाल
कर्ज के बोझ से जूझ रहे उत्तराखंड राज्य का शीतकालीन विधानसभा सत्र दो ही दिन में निपटा दिया गया और अगर सदन में चली कार्यवाही व प्रस्तुत विधेयकों के आधार पर चर्चा करें तो हम कह सकते हैं कि महज खानापूर्ति तक सीमित इस विशेष सत्र को लेकर सत्तापक्ष ही नहीं बल्कि विपक्ष भी उदासीन दिखा। शायद यही वजह रही कि कुछ सांकेतिक चर्चाओं व विधेयकों के अलावा ऐसा कुछ भी सामने नहीं आया जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि बिना किसी पूर्व योजना के इन विपरीत परिस्थितियों में इस सत्र को गैरसैण में ही आहूत किया जाना क्यों आवश्यक था। हालांकि उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान राज्य की राजधानी के रूप में प्रस्तावित गैरसैण जनभावनाओं का केन्द्र है और इस तथ्य से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि इस राज्य की बहुसंख्य जनता यह चाहती है कि राज्य की राजधानी किसी दूरस्थ व दुरूह पर्वतीय इलाके में हो जिससे सत्ता के शीर्ष पर काबिज राजनेताओं व नौकरशाही के बीच जनता के दर्द का अहसास बना रहे लेकिन गैरसैण के नाम पर पिछले कुछ वर्षों में बढ़ी नौटंकी ने स्थानीय जनता को हताश व निराश किया है और पहाड़ की जनता व दुरूह परिस्थितियों के बीच काम कर रहे तमाम सामाजिक संगठन यह मानने लगे हैं कि गैरसैण का यह जिन्न आम आदमी के लिए बेवजह की परेशानियों का सबब बनता जा रहा है। हमने देखा कि पिछले कुछ वर्षों में हमारे नेता व लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं पर काबिज जनप्रतिनिधि जब-जब गैरसैण में एकत्र हुए तो स्थानीय जनसमुदाय को अपने कार्यकलापों के प्रति आकर्षित करने के लिए उन्होंने प्रदेश के लोक कलाकारों व लोक संस्कृति को आधार बनाया और इस तथ्य से इंकार भी नहीं किया जा सकता कि इस प्रकार के आयोजनों व गैरसैण में विधानसभा बनाने के लिए शुरू हुई गहमागहमी को स्थानीय जनता ने भी हाथोंहाथ लिया जिसके चलते आसपास के कुछ इलाकों में सीमित समय तक उत्सव का माहौल दिखा लेकिन समय गुजरने के साथ-साथ गैरसैण को लेकर उदासीन दिख रही व्यवस्थाओं को देखते हुए जनता की समझ में भी आ गया कि इस सारी चहल-पहल के पीछे राज्य के विकास की चाहत तो नहीं छिपी। लिहाजा गैरसैण में चलने वाली विधानसभा सत्र की हालिया कार्यवाही को लेकर जनता न सिर्फ उदासीन दिखी बल्कि जागरूक समाज के एक बड़े तबके ने इसे सरकारी धन की बर्बादी व व्यर्थ की नौटंकी करार दिया और जनपक्ष के एक बड़े हिस्से में अपने नेताओं व जनप्रतिनिधियों के खिलाफ उमड़ता क्रोध साफ दिखा। यह माना कि सरकार के पास कोई जादू की छड़ी नहीं है जो पलक झपकते ही जनसामान्य से जुड़ी तमाम समस्याओं व व्यापक जनहित में उठने वाली मांगों पर सरकार तत्काल कार्यवाही कर सके और न सरकार के पास इतने मजबूत आर्थिक संसाधन है कि वह आंदोलनरत् कर्मचारी वर्ग या फिर शराब बिक्री जैसी तमाम सरकार की नीतियों का विरोध करने वाली आंदोलनकारी ताकतों को संतुष्ट करते हुए इस बात के लिए मना सके कि राज्य के विकास के लिए सबका साथ चलना जरूरी है लेकिन जब सरकारी तंत्र व्यापक जनहित से जुड़े कार्यक्रमों व मुद्दों से मुंह मोड़ते हुए सरकारी धन की बर्बादी के साथ व्यर्थ की नौटंकी करने लगे तो सरकार की मंशा पर शक होना स्वाभाविक है। अगर मौजूदा हालातों पर गौर करें तो हम पाते हैं कि संघ के समर्पित कार्यकर्ता के रूप में मोदी व शाह की जोड़ी के आशीर्वाद से मुख्यमंत्री बने त्रिवेन्द्र सिंह रावत के समक्ष ऐसी कोई मजबूरी नहीं है कि वह संगठनात्मक या सरकार स्तर पर उठने वाले विरोध के सुरों को दबाने के लिए सस्ती लोकप्रियता पाने की कोशिश करें और न ही अभी हाल-फिलहाल में कोई ऐसा बड़ा चुनाव सर पर है जिसके लिए जनता को बरगलाया जाना आवश्यक हो लेकिन इस सबके बावजूद मौजूदा सरकार के मुखिया पूरे ताम झाम के साथ गैरसैण जाकर दरबार लगाने का स्वांग रचते हैं और यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि सुविधापूर्ण जीवन जीने के आदी हो चुके तमाम नेता व नौकरशाह गैरसैण की कड़कड़ाती ठंड में दो दिन भी नहीं टिक सके जिसके चलते यह सारी कवायद बेफिजूल ही साबित हुई। अगर सरकार कहती है कि कार्य की अधिकता न होने के कारण सदन को जल्द स्थगित करना पड़ा या फिर व्यापक जनहित में ज्यादा प्रश्न न होने व विपक्ष द्वारा किए गए हल्ले-गुल्ले के कारण सदन में सार्थक चर्चा नहीं हो पायी तो सरकार की यह सफाई बेफिजूल है क्योंकि सदन का कार्यक्रम निर्धारित करने वाली कार्यमंत्रणा समिति ने अपनी पहली ही बैठक में सिर्फ एक दिन की कार्यवाही का निर्धारण कर सरकार की इच्छाओं का खुलासा कर दिया था। लिहाजा यह स्पष्ट है कि गैरसैण में आहूत हालिया सत्र को लेकर सरकार की कोई रणनीति या सोच नहीं थी और न ही यह मौजूदा सरकार का गैरसैण में स्थायी अथवा ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करने को लेकर किया गया कोई प्रयास था। हां यह जरूर हो सकता है कि सत्ता संभालने के तत्काल बाद से ही लगातार घटती दिख रही लोकप्रियता व भाजपा के तमाम छोटे-बड़े नेताओं के कार्यक्रमों में घटती भीड़ से घबड़ायी और संकुचित सरकार ने चर्चाओं में बने रहने के लिए यह रास्ता चुना हो और पूर्व मुख्यमंत्री खंडूरी के शासनकाल में चर्चाओं का विषय बने स्थानांतरण कानून को सदन पटल पर रखने व पारित करने के लिए सरकार ने गैरसैण का चुनाव किया हो। अगर वाकई ऐसा था तो हम यह कह सकते हैं कि सरकार ने अपना यह महत्वाकांक्षी कदम उठाने से पहले कई गलतियां की और अगर मुख्यमंत्री वाकई में अपनी इन गलतियों में सुधार चाहते हैं तो उन्हें राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत व अपने ही राजनैतिक दल से जुड़े पूर्व मुख्यमंत्री एवं सांसद रमेश पोखरियाल निशंक से सबक लेते हुए जनता के बीच जाने व जनसामान्य से घुलने-मिलने की कोशिश करनी चाहिए। हमने देखा है कि इन दोनों ही नेताओं को विभिन्न राजनैतिक मोर्चों पर मिली शिकस्त के बावजूद जनसामान्य के एक बड़े हिस्से के बीच इनकी लोकप्रियता आज भी कम नहीं है क्योंकि अपने शासनकाल के दौरान खुद पर लगने वाले तमाम तरह के आरोपों-प्रत्यारोपों के बावजूद इन दोनों ही नेताओं ने सुदूरवर्ती पर्वतीय क्षेत्रों से अपने सम्पर्क बनाए रखे हैं और कई तरह के किंतु-परंतु के बावजूद यह दोनों ही नेता अपने पूरे लावा लश्कर के साथ जनता से मुखातिब होने के लिए पहाड़ों की दौड़ लगाते रहे हैं। यह माना कि बोगस साबित हुई खोखली घोषणाओं व झूठे वादों के अलावा यह दोनों नेता भी पहाड़ को बहुत कुछ नहीं दे पाए लेकिन इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि अपने शासनकाल में इन दोनों ही पूर्व मुख्यमंत्रियों को स्थानीय जनता का विश्वास हासिल था और इन दोनों के ही कार्यकाल में एक छोटे अरसे के लिए ही सही किंतु यह अहसास हुआ कि उत्तराखंड राज्य की अपनी कोई संस्कृति, पहचान या बोली-भाषा है। यह हो सकता है कि गैरसैण को लेकर मौजूदा सरकार की नीयत गलत न हो और वह कोई भी बड़ा फैसला लेने से पहले तथ्यों को ठोक-बजाकर देख लेना चाहती हो लेकिन सवाल यह है कि गैरसैण में आयोजित इस दो दिवसीय विधानसभा सत्र से स्थानीय जनता या सरकार को क्या हासिल हुआ और गैरसैण की दौड़ लगाने में लाखों रूपया जाया कर सरकार ने ऐसा क्या हासिल किया जो कि देहरादून की विधानसभा में नहीं मिल सकता था। यह एक बड़ा सवाल है और अगर राज्य की आंदोलनकारी ताकतें ऐसे सवालों के साथ खुद को सम्बद्ध करते हुए सरकारी संसाधनों की इस लूट के खिलाफ आवाज उठाती है तो शायद इसमें गलत भी कुछ नहीं है क्योंकि विधानसभा सत्र के नाम पर गैरसैण में मनाये गये दो दिवसीय पिकनिक के बाद वहां छूटी गंदगी स्थानीय निवासियों व जनता का मुंह चिढ़ा रही है।

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