मजबूत जनाधार वाले निर्दलीयों के चुनाव जीतने की संभावनाओं ने बदले समीकरण
उत्तराखंड में चल रहे चुनावी संग्राम में मतदान के बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर घमासान होना तय है तथा हालातों के मद्देनजर यह कहा जा सकता है कि सरकार बनाने के लिऐ किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत न मिलने की स्थिति में यह संघर्ष कुछ विचित्र से हालत पैदा कर सकता है हालांकि मतगणना व चुनावी नतीजे सामने आने मे अभी समय है तथा मुख्यमंत्री को लेकर उठ रहे सवालों पर सत्ता की प्रमुख दावेदार भाजपा अभी बिल्कुल चुप है लेकिन हालात इशारा कर रहे है कि मुख्यमंत्री पद के दावेदारों ने अभी से अपने लिऐ रास्ते तलाशने शुरू कर दिये है तथा मजबूत दिख रहे निर्दलीय दावेदारों पर डोरे डालने व उन्हें अपने खेंमे में खड़ा करने का खेल शुरू हो गया है। हांलाकि कांग्रेस की ओर से हरीश रावत मुख्यमंत्री पद के सर्वमान्य दावेदार है तथा हरीश रावत के नेतृत्व में चुनाव मैदान में उतरी काॅग्रेस को अपनी सत्ता वापसी की पूरी उम्मीद भी है लेकिन पिछले एक साल में कई बार बगावत व तोड़फोड़ का शिकार हो चुकी काॅग्रेस के लिऐ खतरें, जीत के बाद भी कम नही है क्योंकि ‘इकला चलो’ वाली तर्ज में काम करने वाले हरीश रावत की कार्यशैली से असंतुष्ट काॅग्रेस का एक तबका अभी भी यह मानता है कि एक मुख्यमंत्री के तौर पर उनके द्वारा लिये जाने वाले सभी फैसले सही नही है। इसके ठीक विपरीत भाजपा में सतपाल महाराज, खंडूरी, भगत सिंह कोश्यारी व निशंक अपने-अपने स्तर पर तो मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिऐ मोर्चाबन्दी कर ही रहे है साथ ही साथ त्रिवेन्द्र सिह रावत, प्रकाश पन्त व अन्य कई नेता चुनाव जीतने की स्थिति में मुख्यमंत्री पद के स्वाभाविक दावेदार है लेकिन अगर स्थिति अस्पष्ट बहुमत की आती है और त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में निर्दलीय, उत्तराखण्ड क्रान्ति दल व बसपा एक बार फिर संयुक्त मोर्चा बनाकर गठबन्धन सरकार बनाने की दिशा में पहल करते है तो कोई बड़ी बात नही है कि इस बार निर्दलीयों की जमात से मुख्यमंत्री की कुर्सी की दावेदारी की जाय और अगर ऐसा कुछ होता है तो यह उत्तराखण्ड की राजनीति में एक अलग तरह का प्रयोग होगा।गौरेतलब है कि इस बार चुनाव मैदान मेें रामनगर से प्रभात ध्यानी, राजपुर से निर्मला बिष्ट, लालकुंआ से पुरूषोत्तम शर्मा, कर्णप्रयाग से इन्द्रेश मैखुरी (फिलहाल वहां मतदान टल गया है), द्वाराहाट से पुष्पेन्द्र त्रिपाठी, डीडीहाट से काशीसिंह ऐरी, कपकोट से करम सिंह दानू, देवप्रयाग से समीर रतूड़ी, केदारनाथ से गंगाधर नौटियाल तथा देहरादून से अनूप नौटियाल जैसे कई बडे़ व सामाजिक आन्दोलनों से जुड़े नाम चुनाव लड़े रहे है। हो सकता है कि इनमें से कुछ चेहरे चुनाव जीत जाये और निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में सरकार बनाने में उन्हें अहम् जिम्मेदार मिले। अगर ऐसा होता है तो यकीन जानिये कि उत्तराखंड में पिछले सोलह सालों से चल रहे लूट के इस खेल पर कुछ लगाम लगनी संभावित है क्योंकि अपने बगावत तैवरों व भ्रष्टाचार विरोधी रवैय्ये के चलते इनसे थोड़ी उम्मींदे है। हांलाकि उत्तराखंड क्रान्ति दल का सरकार के सहयोगी बनने के बाद का इतिहास बहुत अच्छा नही रहा है और न ही अब इस पाटी में वह ताकत है कि यह एक क्षेत्रीय विकल्प प्रस्तुत करें लेेकिन फिर भी काशी सिंह ऐरी से जनता को एक उम्मीद है और यूकेडी के विभिन्न धड़ों में एकता कायम करने के लिऐ की गयी दौड़भाग के बाद पुष्पेन्द्र त्रिपाठी भी कुछ मजबूती से उभरे है। इन हालातों में निर्दलियों का ज्यादा संख्या में जीतना राज्य हित में एक अच्छा लक्षण माना जा सकता है और अगर इन निर्दलीय विधायकों के तमाम खेंमे एकजुट होकर अपनी सरकार बनाने का फैसला लेते है तो वाकई राज्य के राजनैतिक इतिहास में एक तब्दीली आ सकती है।
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