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Tuesday, April 23, 2024

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शाह और मात के खेल में

तेजी से बदल रहे चुनावी समीकरणो के बीच निर्दलीय कर सकते है कमाल।
कुर्सी का खेल भी निराला है और चुनाव के मौसम में कौन किसका सगा या राजनैतिक शत्रु बन जाए, कहा नही जा सकता। उत्तराखण्ड में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर कुछ ऐसी ही तस्वीरें सामने आ रही है और प्रदेश की सत्ता के प्रमुख दावेदार माने जाने वाले दोनो ही राष्ट्रीय राजनैतिक दलो के भीतर से उठ रहे विरोध के सुरो तथा निर्दलीय के रूप में चुनावों में ताल ठोकने वाले मजबूत प्रत्याशियों को देखकर दिन-ब-दिन रोचक होते जा रहे चुनावी मुकाबले के संदर्भ में कुछ भी कहना मुश्किल लग रहा है। अगर हम अपनी चर्चा की शुरूवात देानो ही दलो के बड़े नेताओं से करें तो हम पाते हैं कि काॅग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष पर निर्दलीय आर्येन्द्र शर्मा संसाधनो के उपयोग के आधार पर भारी पड़ते नजर आ रहे है और उनके पाॅच सालो की मेहनत का असर सक्रिय कार्यकर्ताओं की फौज के रूप में स्पष्ट दिख रहा है जबकि स्थानीय काॅग्रेस प्रत्याशी के रूप में किशोर उपाध्याय अभी तक ठीक से माहौल भी नही बना पाये है। गौरेतलब है कि पिछली बार इस क्षेत्र से काॅग्रेस प्रत्याशी रहे आर्येन्द्र शर्मा को काॅग्रेस के भीतर हुई बगावत के चलते हार का मुॅह देखना पड़ा था लेकिन इस बार स्थिति उलट है और आर्येन्द्र के अलावा काॅग्रेस से कोई अन्य मजबूत बागी प्रत्याशी मैदान में नही है जबकि भाजपा से बागी होकर लक्ष्मी अग्रवाल स्थानीय विधायक व भाजपा के प्रत्याशी सहदेव सिह पुण्डीर की मुसीबतें बढ़ा रही है। ठीक इसी क्रम में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट को उनकी ही पार्टी के बागी उम्मीदवार डा0 प्रमोद नैनवाल ने कड़े मुकाबले में फॅसा दिया है और पिछले बार सिर्फ अढत्तर वोटो से चुनाव जीते अजय भट्ट इस बार इतने कड़े मुकाबले में फॅसे है कि उनका अपने निर्वाचन क्षेत्र से बाहर निकलना भी मुश्किल लग रहा है। मुख्यमंत्री हरीश रावत के गृह क्षेत्र माने जाने वाले इस क्षेत्र से उनके साले करन मेहरा काॅग्रेस के उम्मीदवार है तथा साफ सुधरी छवि वाले करन की पारिवारिक पृष्ठभूमि व जनसम्पर्क देखकर यह लग रहा है कि इस बार उनसे पार पाना अजय भट्ट के लिऐ आसान नही होगा। हाॅलाकि इस क्षेत्र से यूकेडी के प्रताप शाही व बसपा के कृपाल आर्या भी मैदान में है लेकिन मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में डा0 नैनवाल ही कामयाब दिख रहे है। उपरोक्त के अलावा नैनीताल जिले में काॅग्रेस के राष्ट्रीय सचिव व राहुल गाॅधी के नजदीकी समझे जाने वाले प्रकाश जोशी को पूर्व काॅग्रेसी महेश शर्मा ही टक्कर देते दिख रहे है। हॅालाकि महेश शर्मा पिछली बार भी चुनाव मैदान में थे और उनके काॅग्रेस का बगावती उम्मीदवार होने के कारण ही प्रकाश जोशी पिछली बार भी चुनाव हार गये थे लेकिन इस बार समीकरण पहले के मुकाबले बदले हुऐ हैं क्योकि शुरूवाती दौर से ही अपनी तैयारी में लगे महेश शर्मा को अब पूरी तरह काॅग्रेस का बगावती नही माना जा सकता और न ही वर्तमान विधायक वंशीधर भगत इस क्षेत्र से इकलौते भाजपाई मानसिकता के दावेदार है। सपा, बसपा और उक्राद के अलावा निर्दलीय के रूप में मैदान में उतरे युवा उम्मीदवार इस बार यहाॅ मुकाबले को बहुकोणीय बनाने का प्रयास कर रहे है और क्षेत्रीय समीकरणों से अंजान प्रकाश जोशी की चुनावी कमान भी उनके साथ दिल्ली से आयी टीम के हाथो में होने के चलते स्थानीय काॅग्रेस के कार्यकर्ता प्रकाश जोशी के साथ खड़े होने की मजबूरी के बावजूद खुद को उपेक्षित सा महसूस कर रहे है। अगर स्थितियाॅ ऐसी ही बनी रही तो इस तथ्य से इनकार नही किया जा सकता कि काॅग्रेस के बड़े चेहरे के रूप में प्रकाश जोशी इस बार फिर मात खाते दिखे। चर्चा के इस क्रम में ताजे-ताजे भाजपाई बने संजीव आर्या का जिक्र किया जाना भी जरूरी है और अपने पिता यशपाल आर्या की नैनीताल विधानसभा में मजबूत पकड़ के बावजूद संजीव आर्या की इस निर्वाचन क्षेत्र में लगातार बढ़ रही मुश्किलों के लिऐ भाजपा के बागी प्रत्याशी हेम आर्या को ही जिम्मेदार माना जा सकता है। गौरेतलब है कि युवाओं के बीच लोकप्रिय हेम आर्या पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा प्रत्याशी के रूप में सरिता आर्या से चुनाव हारे थे और इस बार उनके जनसम्पर्क को देखते हुऐ उन्हे एक मजबूत प्रत्याशी माना जा रहा था लेकिन भाजपा के बड़े नेताओ ने एकाएक ही इस सीट पर यशपाल आर्या के पुत्र संजीव आर्या को प्रत्याशी घोषित कर स्थानीय कार्यकर्ताओ का मनोबल तोड़ा है जिसके कारण मौजूदा विधायक व काॅग्रेस प्रत्याशी के रूप में सरिता आर्या एक बार फिर इस विधानसभा सीट पर मजबूत दिखाई दे रही है। अब भीमताल विधानसभा सीट की ओर रूख करने पर हम पाते है कि काॅग्रेस ने इस बार भाजपा से इस्तीफा देकर काॅग्रेस में शामिल हुऐ प्रदीप भण्डारी को अपना प्रत्याशी बनाया है और इस तथ्य से इनकार नही किया जा सकता कि काॅग्रेस में हुई बगावत के बाद न्यायालय के आदेशो पर बहुमत साबित करने निकले हरीश रावत को अपनी पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा देकर मदद करने वाले इस युवा नेता के साथ जनता के एक हिस्से की संवेदनाऐं व काॅग्रेस के कुछ नेताओं का समर्थन भी मौजूद है। हाॅलाकि इस विधानसभा क्षेत्र से भी काॅग्रेस के बागी उम्मीदवार के रूप में पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष राम सिंह कैड़ा मैदान में है और पिछले चुनाव में काॅग्रेस प्रत्याशी रह चुके कैड़ा को इस क्षेत्र के ग्रामीण युवाओ का प्रतिनिधि भी माना जाता रहा है लेकिन सूत्र बताते है कि अपनी लगातार बदलती रही आस्थाओं और ढुलमुल रवैय्ये के चलते कैड़ा का जलवा इस चुनाव में कम ही दिखाई दे रहा है। भाजपाई ने इस सीट पर पूर्व शिक्षा मंत्री व धारी क्षेत्र के विधायक रह चुके गोविन्द सिह बिष्ट को मैदान में उतारा है। ध्यान रहे कि पूर्व में धारी विधानसभा सीट के अन्र्तगत् आने वाले भीमताल क्षेत्र व लालकुॅआ क्षेत्र के लगभग दो हिस्से करके भीमताल सीट पिछली बार ही अस्तित्व में आयी थी तथा तत्कालीन विधायक गोविन्द सिह बिष्ट पर लगे भ्रष्टाचार व अध्यापको से वसूली कर स्थानातंरण करने के आरोंपो के चलते ही भाजपा ने पिछली बार उन्हे टिकट नही दिया था। अब धारी से अलग हुई दूसरी विधानसभा सीट लालकुॅआ की बात करे तो यहाॅ से निर्दलीय विधायक व सरकार में मन्त्री रह चुके हरीश दुर्गापाल इस बार काॅग्रेस प्रत्याशी के रूप में मैदान में है जबकि पिछले चुनाव में उनके सामने काॅग्रेस प्रत्याशी के रूप में ताल ठोक रहे हरेन्द्र बोरा इस बार पार्टी से बगावत कर मैदान में उतरे हुऐ है। यहाॅ भाजपा ने एक बार फिर पुराने चेहरे के रूप में नवीन दुम्का पर ही भरोसा जताया है जबकि सपा, बसपा, यूकेडी के अलावा निर्दलीय भी मैदान में अपनी हाजिरी लगा रहे है। यह देखना दिलचस्प होगा कि अपना आखिरी चुनाव लड़ने की बात कर रहे दुर्गापाल इस बार बाजी मार पाते है या नही क्योंकि उनका मुकाबला अपने पुराने प्रतिद्धन्दियों से जरूर है लेकिन इस बार जगह, झण्डे व नारे बदले हुऐ है और पाॅच साल सत्ता का हिस्सा रहने के कारण उन्हे पिछला चुनाव जिताने में मजबूत सहयोगी रहे कुछ साथियों की वाजिब नाराजी भी उनसे बनी हुई हैं। उपरोक्त के अलावा नैनीताल जिले की दो अन्य सीटो पर हल्द्वानी से इन्दिरा ह्नदयेश तथा रामनगर से रंजीत रावत जैसे मजबूत दावेदार है और पहली नजर में देखने पर इन्हे स्थानीय स्तर पर कोई मजबूत चुनौती भी नही मिलती दिख रही लेकिन इन नेताओं का अतिविश्वास और बड़बोलापन इन्हे कभी भी नुकसान पहुॅचा सकता है। संगठन से बगावत कर निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले क्रम के अन्त में चुनाव मैदान में ताल ठोेक रही निर्दलीय किन्नर प्रत्याशी रजनी रावत का जिक्र किया जाना भी जरूरी है। इस क्षेत्र में भाजपा ने काॅग्रेस के बागी विधायक उमेश शर्मा काऊ को प्रत्याशी बनाया है और शुरूवाती दौर से ही भाजपा के कैडर मतदाता को साथ लेकर चलने में सफल दिख रहे काऊ का संगठनात्मक स्तर पर यहाॅ कोई विरोध भी नही दिखता लेकिन काऊ की छवि झुग्गी-झोपड़ी के नेता व अवैध कब्जे कराने वाले दबंग की रही है और इस तरह की बस्तियों में रजनी रावत उन्हे सीधी टक्कर देती प्रतीत होती है। अगर भाजपा के बागी व संघीय पृष्ठभूमि के महेन्द्र नेगी (गुरूजी) भाजपा का कैडर वोट काटने में कुछ हद तक सफल रहे तो इस विधानसभा क्षेत्र की स्थितियाॅ भी दिलचस्प हो सकती है। काॅग्रेस प्रत्याशी के रूप में यहाॅ पूर्व ब्लाॅक प्रमुख प्रभुलाल बहुगुणा मैदान में है लेकिन अपने सीमित दायरे व स्वच्छ छवि के चलते वह एक वर्ग विशेष तक ही अपनी पकड़ बनाये रखने में सफल है। अगर काॅग्रेस के अन्य दावेदारों व हीरा सिंह बिष्ट का सहयोग उन्हे मिलता है तो आने वाले कल में वह मजबूत उम्मीदवार हो सकते है।

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