शान्त पहाड़ी जीवन में कितनी सच हो सकती है माओवादी या नक्सलवादी धमक की यह पुरानी कहानी।
नैनीताल जिले की धारी तहसील में माओवादी गतिविधियों के सामने आने की घटना वाकई चिन्ताजनक है तथा स्थानीय पुलिस प्रशासन द्वारा इस तरह के विषयों पर दर्शायी जाने वाली तत्परता देखते ही बनती है लेकिन सवाल यह है कि क्या जन अधिकारों व आम आदमी के हक की बात करने वाले कुछ वामपंथी विचारको को जेल में डाल देना या फिर कुछ नये चेहरो पर राष्ट्र द्रोह का मुकदमा लगा देना, इस समस्या का स्थायी समाधान है ? पूर्व में भी स्थानीय पुलिस द्वारा पूरी तत्परता से कागज, कलम और किताब जैसे खंुखार हथियार रखने वाले कुछ जनवादी विचारको को माओवादी या नक्सलवादी होने का आरोंप लगाते हुऐ लम्बे समय के लिऐ जेलो में डाला है और यह तमाम लोग माननीय न्यायालय द्वारा लम्बी कानूनी लड़ाई के वाद निर्दोष माने गये है जबकि इसी अन्तराल में खुंखार आपराधिक घटनाओं को अंजाम देने वाले तथा शस्त्रो के बल पर अराजकता व लूटपाट फैलाने वाले कई लोग आजाद घूम रहे है और इनकेा मिली राजनैतिक शह इनके खिलाफ कोई कार्यवाही नही होने देती। यह एक शोध का विषय हो सकता है कि खुंखार अपराधियों व जयाराम पेशा को पकड़ने के मामले में ढीली-ढाली दिखने वाली उत्तराखण्ड पुलिस खतरनाक माने जाने वाले माओवादियों या नक्सलवादियों को लेकर इतनी सजग व सक्रिय कैसे हो जाती है कि घटनाक्रम के होते ही और कभी-कभी तो सिर्फ शक या सबूत के आधार पर गिरफ्तारी करने में उसे सफलता मिल जाती है। इस तथ्य से इनकार नही किया जा सकता कि नेपाल सीमा को छूते उत्तराखण्ड के कई युवा व बुद्धिजीवी तार्किक आधार पर जन अधिकारो की बात करने वाली वामपंथी विचारधारा का समर्थन करते है तथा चुनावी राजनीति में होने वाले भय व भ्रष्टाचार के सौदे को देखते हुऐ यह लोग स्थानीय समस्याओं के समाधान के नाम पर जन सामान्य को मतदान के बहिष्कार के लिऐ उकसाने व जनहित से जुड़े मुद्दो पर सरकार के खिलाफ आवाज बुलन्द करने के लिऐ संगठित करने का कार्य भी करते है लेकिन वैचारिक धरातल पर लड़ी जाने वाली इस लड़ाई के लिऐ आन्दोलन के अलावा किसी किसी अस्त्र का प्रयोग नही होता और न ही इन युवाओं अथवा बुद्धिजीवियों को किसी भी तरह के हथियार चलाने का अनुभव ही है। फिर भी सरकार व राजनैतिक शह पर पुलिस प्रशासन वक्त वेवक्त माओवाद के आरोप लगा इस तरह के युवाओं व किसी नेता विशेष के विरोध में जनमत को उकसाने वाले बुद्धिजीवियों को गिरफ्तार करने में देर नही लगाता जबकि पहाड़ो पर कच्ची शराब का जहर बेचने वाले लोग या फिर अन्य अवैध धन्धो में संलग्न अपराधी खुलेआम घूम रहे है। कहीं ऐसा तो नही है कि उत्तराखण्ड के कुछ हिस्सो को माओवादी या नक्सलवादी प्रभावित साबित करने के पीछे पुलिस के कुछ आलाधिकारियों का अपना स्वार्थ हो या फिर पहाड़ पर शराब का विरोध करने वाली विचारधारा को कानून की जद में लेने का सबसे आसान तरीका माओवाद या नक्सलवाद ही लगता हो। इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि उत्तराखण्ड आन्दोलन के वक्त या फिर उससे भी पहले से स्थानीय जल, जंगल और जमीन पर आम आदमी के हक की बात करने वाली एक आक्रामक विचारधारा इस पर्वतीय प्रदेश के अधिकांश क्षेत्रो में होने वाले छुटपुट व बड़े आन्दोलनों का नेतृत्व करती रही है तथा उक्राद, संघर्ष वाहिनी, परिवर्तन कामी छात्र संगठन या ऐसे ही कई अन्य नामों से युवाओं, स्थानीय बेरोजगारो व श्रमिक वर्ग को एकजुट कर राजनैतिक लूटमार के खिलाफ खड़ा करने के बुद्धिजीवी कोशिश इस प्रदेश में सतत् रूप से चलती रहती है लेकिन इतिहास गवाह है कि उत्तराखण्ड आन्दोलन जैसे अनेक मौको पर सशस्त्र संघर्ष छेड़ने के तमाम प्रस्ताव मिलने के बावजूद भी इस विचारधारा ने कभी हथियार उठाना स्वीकार नही किया और न ही जनता के बीच से उपजे किसी भी गैरराजनैतिक आन्दोलन के हिंसक होने या फिर सरकारी अधिकारियों पर हमलावर होने की कोई खबर इन पिछले सोलह सालो में सरकारी तन्त्र के पास आयी। इस सबके बावजूद सरकारी पुलिसिया तन्त्र द्वारा इन पिछले सोलह सालो में सौ से भी अधिक युवाओं व जनवादी नेताओ को देशद्रोह जैसे आरोंप में जेल डाल दिया और सरकारी तन्त्र के खिलाफ उठने वाली हर संगठित किन्तु गैरराजनैतिक आवाज को माओवाद या नक्सलवाद का नाम देकर दबाने की कोशिशें जारी है। यह एक आश्चर्कजनक सत्य है कि लालकुॅआ के बिन्दुखत्ता क्षेत्र में स्थानीय महिलाओं द्वारा राजनैतिक शह पर शराब बेच रहे तस्करों को पकड़कर पुलिस के हवाले किये जाने तथा धारी तहसील में तथाकथित माओवादियों द्वारा अराजकता व आगजनी कर भड़काऊ नारे लिखने का घटनाक्रम एक ही तारीख को अंजाम दिया गया है तथा पूर्व में धारी विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा रहे बिन्दुखत्ता क्षेत्र का मतदाता मौजूदा हालातो में दोनो ही राष्ट्रीय राजनैतिक दलो के शीर्ष नेताओ से नाराज बताया जाता है। यह भी एक रोचक सत्य है कि वर्तमान में लालकुॅआ विधानसभा क्षेत्र से वामपंथी दलो के संयुक्त उम्मीदवार के रूप में पुरूषोत्तम शर्मा न सिर्फ पूरे जोर-शोर से मैदान में डटे हुऐ है बल्कि विन्दुखत्ता क्षेत्र में पकड़ी गयी उपरोक्त कच्ची शराब के व्यापारियों को पकड़कर पुलिस स्टेशन तक लाने में इन्ही वामपंथी दलो की नेत्री विमला रौथाण व उनकी सहयोगी महिलाओ का हाथ रहा है तथा इससे पूर्व विन्दुखत्ता क्षेत्र में हुऐ नगर पालिका विरोधी आन्दोलन में भी इन तमाम वामपंथियों की सक्रिय भूमिका रही है। कहीं ऐसा तो नही कि पुलिस प्रशासन वामपंथी नेताओं व जागरूक महिला कार्यकर्ताओं के हाथो लगातार हो रही अपनी बेअदबी से हैरान व परेशान हो इस चुनावी मौसम में वामपंथी विचारधारा से लगातार जुड़ रहे जनसैलाब को सबक सिखाना चाहता हो और उसकी योजना माओवाद या नक्सलवाद के नाम के नाम पर कुछ जागरूक बुद्धिजीवियों व स्थानीय ग्रामीणों को गिरफ्तार कर जेल भेजने व स्थानीय जनता के बीच डर का साम्राज्य कायम करने की हो। हालात तो कुछ ऐसा ही इशारा कर रहे है और ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कुछ लोग यह नही चाहते कि स्थानीय जनता अपने अधिकारों को लेकर चुनाव के वक्त या फिर चुनाव के बाद किसी भी तरह की आवाज उठाये। इसलिऐं कानून का सहारा लेकर एक बार फिर इस आवाज केा चुप करने की तैयारी तेज हो गयी है।