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Tuesday, April 23, 2024

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विश्वसनीयता पर उठते सवाल

ईवीएम मामले में माननीय न्यायालय ने जारी किये केन्द्र सरकार व चुनाव आयोग को नोटिस
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बाद आठ राज्यों के दस विधानसभा क्षेत्रों में हुऐ उपचुनावों में भी भाजपा पांच सीटो पर चुनाव जीतकर अपनी बढ़त बरकरार रखे हुऐ है और सबसे ज्यादा विस्मय की बात यह है कि इन उपचुनावों में जहां एक ओर पश्चिम बंगाल में भाजपा का वोट बैंक आश्चर्यजनक तेजी से बढ़ा है वही दिल्ली में भी उसने आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी को बुरी तरह मात दी है। हांलाकि इन उपचुनावों में कांग्रेस ने भी कर्नाटक में दो और मध्य प्रदेश में एक सीट हासिल की है तथा पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस व झारखंड मुक्ति मोर्चा ने झारखण्ड में अपनी एक-एक सीट बचा ली है लेकिन इस सारी जोड़-तोड़ से राष्ट्रीय समीकरणांे में कोई फर्क नही पड़ने वाला और न ही किसी राज्य की सरकार के कमजोर या मजबूत होने की खबर को इस जीत से जोड़ा जा सकता है। मीडिया का एक हिस्सा इसे मोदी मैज़िक का असर मान रहा है और दिल्ली विधानसभा के उपचुनाव में आम आदमी पार्टी की हार को ऐसे लिया जा रहा है कि मानो केजरीवाल का राजनैतिक भविष्य ही चैपट हो गया हो लेकिन केजरीवाल के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार को इस एक सीट पर मिली हार से कोई फर्क नही पड़ता और न ही आम आदमी पार्टी के हौसले कमजोर होते दिख रहे है। इस तथ्य से इनकार नही किया जा सकता कि एक पूर्ण बहुमत वाली सरकार का प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा की चुनावी जीत की संख्याओं में तेजी से इजाफा हुआ है और भाजपा के तमाम नेताओं ने भी इन तमाम जीतो का पूरा श्रेय मोदी व अमित शाह की जोड़ी को दिया है लेकिन इधर पिछले कुछ समय से इन चुनावों के लिऐ प्रयुक्त की जा रही इलैक्ट्राॅनिक वोंटिग मशीन पर सवाल उठने खड़े हो गये है और इन उपचुनावों से ठीक पहले एक जांच के दौरान दो अलग-अलग बटन दबाने पर भाजपा के खाते में ही वोट जाने के घटनाक्रम के तत्काल बाद इस समाचार को प्रसारित होने रोेकने की कोशिशों से ऐसा प्रतीत होता है कि इस सारे खेल में कहीं न कहीं कुछ न कुछ गड़बड़ तो जरूर है। हांलाकि चुनाव आयोग इस तरह की किसी भी गड़बड़ी को स्वीकारने के लिऐ तैयार नही है और उसने अपनी तर्ज में ईवीएम में खोट निकाल रहे देश के सभी राजनैतिक दलों व उनके नेताओं को इसे गलत साबित करने के लिऐ आमंत्रित भी किया है लेकिन मध्यप्रदेश में एक डोमेस्ट्रेशन के दौरान पत्रकारों की उपस्थिति में सामने आयी खामी पर आयोग कोई जवाब नही देना चाहता और न ही वह यह बताना चाहता है कि अगर यह मशीने उत्तर प्रदेश में चुनाव सम्पन्न होने के बाद मंगाई गयी तो इस संदर्भ में चुनाव के छह माह बाद तक रिकार्ड संभाल कर रखने सम्बन्धी नियमों का उल्लंघन क्यों किया गया। खैर वजह जो भी हो लेकिन इतना तय है कि चुनावों में ईवीएम के इस्तेमाल को लेकर विपक्ष सहमत नही है और मजे की बात यह है कि मौजूदा सत्तापक्ष भाजपा भी विपक्ष में रहते हुऐ ईवीएम की कार्यप्रणाली को संदिग्ध बता चुका है। अगर मतदाता की दृष्टि से बात करें तो चुनाव आयोग या सरकार ने चुनावों में मतदान करने वाले पक्ष की संतुष्टि का भी कतई ख्याल नही रखा है और ईवीएम की खामी या फिर उसमें पेपर ट्रेल की व्यवस्था न किया जाना यह सिद्ध करता है कि सरकार अथवा आयोग जनता के अधिकारों को लेकर सजग नही है। यह माना कि चुनावों में ईवीएम के इस्तेमाल के बाद बूथ केप्चरिंग या अन्य मामलों में सुधार की स्थिति देखी गयी है और ईवीएम के जरिये मतदान करवाना कम खर्चीला व सुविधाजनक भी है लेकिन जिस तरह की खबरे आ रही है, उन्हें देखते हुऐ यह कहा जा सकता है कि अगर वाकई मंे ईवीएम मशीनों को हैक किया जा सकता है तो यह देश की लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के लिऐ चिन्ताजनक हो सकता है। इसलिऐं किसी भी सरकार अथवा व्यवस्था ने ईवीएम पर उठ रहे इन सवालों को व्यक्तिगत् आक्षेप की तरह लेने के स्थान पर एक मशीनरी में तकनीकी खामी की संभावनाओं की जांच की तरह लेना चाहिएंे और हर पहलू से जांच की कार्यवाही पूरी होने के बाद ही इनका आगामी चुनावों में इस्तेमाल किया जाना चाहिऐं। माननीय न्यायालय ने भी ईवीएम पर उठ रहे सवालों को ध्यान में रखते हुऐ इस विवाद को समाप्त करने के उद्देश्य से इस विषय पर सुनवाई करना स्वीकार किया है तथा चुनाव आयोग द्वारा भी इस विषय को गंभीर मानते हुऐ तमाम विपक्ष के नेताओं व ईवीएम को हैक करने का दावा करने वाले तकनीकी विशेषज्ञों को इस मुद्दे पर आमंत्रित करने की खबरें आ रही है। कुल मिलाकर कहने का तात्पर्य यह है कि आने वाले कुछ समय में ईवीएम को लेकर उठ रहे सवालो का पटापेक्ष हो जायेगा और देर-सबेर न्यायालय भी यह व्यवस्था दे देगा कि चुनाव आयोग अतिशीघ्र ईवीएम को लेकर यह इंतजाम करें कि इसमें मतदान करने वाले मतदाता को यह सुनिश्चित हो सके कि उसने किस दल या नेता के पक्ष में मतदान किया हैं अगर ऐसा नही हो पाया तो ईवीएम के चुनावी इस्तेमाल को लेकर संदिग्धता बनी रहेगी और गलतफहमी की स्थिति मे हालत विरोध प्रदर्शन या चुनावों के बहिष्कार तक जाये इससे बेहतर है कि न्यायपालिका अपने दिशा निर्देश जारी करें। भारतीय लोकतंत्र की यही खूबी है और यहां जब-जब किसी एक पक्ष पर आरोंप लगते है या लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं की आस्था को लेकर उसकी निष्ठा पर संदेह जताया जाता है तो न्यायपालिका अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिऐ स्वंय ही आगे आ जाती है और व्यवस्थाआंे पर आम आदमी का विश्वास बना रहता है। हमें उम्मीद है कि इस बार भी ऐसा ही होगा और ईवीएम के चुनावों दौरान इस्तेमाल को लेकर न्यायपालिका द्वारा दी गयी व्यवस्था सभी पक्षों को स्वीकार्य होगी लेकिन अगर इन मशीनों के चुनावी इस्तेमाल को लेकर जो शक जताया जा रहा है, वह सही साबित होता है और भारतीय तकनीकी विशेषज्ञों व आईटी एक्सपर्ट के अलावा हमारे राजनेता व राजनैतिक दल ईवीएम को गलत साबित करने में कामयाब हो जाते है तो यह वर्तमान में केन्द्रीय सत्ता पर काबिज भाजपा के लिऐ ही नही बल्कि अपने शासनकाल में इस व्यवस्था को लागू करने वाली कांग्रेस के लिऐ भी बड़ा तथा उनकी राजनैतिक विश्वनीयता पर उठता प्रश्न साबित हो सकता है।

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