गफूर बस्ती के मामले में स्थानीय जनता को फिलहाल मिली राहत
हल्द्वानी की गफूर बस्ती के मामले में उच्चतम् न्यायालय द्वारा लगायी गयी ध्वस्तीकरण पर रोक स्थानीय जनता की नेक नियती व बुलन्द इरादों की जीत है तथा इस तथ्य से इनकार नही किया जा सकता कि जनप्रतिनिधि के तौर पर इन्दिरा हृदयेश इस पूरे मामले में कन्धे से कन्धा मिलाकर स्थानीय जनता के साथ खड़ी रही है। यह ठीक है कि सरकार का हिस्सा होने के वावजूद भी इन्दिरा हृदयेश द्वारा रेलवे की जमीन से बेदखल जनता के पुर्नवास को लेकर कोई कार्यवाही अंजाम नही दी गयी और न ही उन्होंने इसे एक राजनैतिक मुद्दा बनाकर केन्द्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खड़ा करने की कोशिश की लेकिन यह भी सच है कि कानूनी पहलू से सरकार ने पूरी शिद्धत के साथ जनता का पक्ष रखा और शायद यहीं वजह भी रही कि इस तरह के अधिकांश मामलों में उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ न जाने वाले उच्चतम् न्यायालय ने जनता एवं सरकार का पक्ष सुनना मंजूर करते हुए मामले की सुनवाई करने व उच्च न्यायालय के फैसले पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाने का निर्णय लिया। हाॅलाकि यह कहना कठिन है कि माननीय उच्चतम् न्यायालय द्वारा पीड़ित पक्ष को राहत मिल ही जायेगी और गफूर बस्ती को उजाड़े जाने का संकट स्थानीय बाशिन्दों पर नही मंडरायेगा लेकिन यह उम्मीद जरूर की जा सकती है कि न्यायालय, जनपक्ष व रेलवे की इस जमीन पर हुऐ कब्जे से जुड़े तमाम पहलूओं को मद्देनजर रखते हुए अपना फैसला देगा और रेलवे के हिसाब से देशकीमती मानी जा रही इस जमीन को खाली कराये जाने के एवज में कब्जेदारों को कुछ मुआवजा व पुर्नवास के संसाधन् देना जरूरी समझा जायेगा। लगभग पचास हजार आबादी वाले क्षेत्र गफूर बस्ती को उजाड़े जाने से पहले न्यायालय व रेलवे प्रशासन ने यह जरूर सोचना होगा कि यह मामला सिर्फ कुछ मकानों या दुकानो को तोड़े जाने अथवा कुछ हजार लोगो को बेघर करने तक ही सीमित नही बल्कि स्थानीय स्तर पर कोई पीढ़िया गुजार चुके यहाॅ के बाशिन्दों की भावनाऐं इस जगह से जुड़ी हुई है और बिना किसी व्यवस्था के इन तमाम लोगो को एकाएक ही बेघर कर देने से देश की आबादी के इस हिस्से के संवेधानिक अधिकारों का हनन होना व लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं की अनदेखी होना सम्भावित है। वर्तमान में जब केन्द्र सरकार व विभिन्न राज्यों की सरकारें अपने नागरिकों के लिए स्थायी व पक्के आवासों की सुविधा मुहैय्या कराने के लिए विभिन्न प्रकार की योजनाऐं ला रही है और आवासीय भवनो की कमी को देखते हुऐ एक अभियान वाले अन्दाज में झुग्गी-झोंपड़ी को पक्के मकानों में तब्दील करते हुए हर व्यक्ति को छत उपलब्ध कराने घोषणा की जा रही है, तो न्यायालय से भी यह उम्मीद नही की जानी चाहिएंे कि वह अपने फैसले में एक साथ इतने लोगो को बेघर किये जाने पर मोहर लगा देगी। हाॅलाकि विकास योजनाओं को मद्देनजर रखते हुए तथा नई रेले चलाने के लिए रेल विभाग को भी अपनी जमीनों पर दावा व कब्जा पाने की प्रक्रिया अपनाना जरूरी है तथा लम्बी कानूनी प्रक्रियाओं में इस तरह के मामले फंस जाने से उस जनता को भी नुकसान होता है जो लम्बे समय से विकास एवं सुविधापूर्ण रेल यातायात की बाॅट जोह रही है लेकिन सवाल अगर कुछ हजार जिन्दगियों के सड़क पर आने या बेघर होने का हो तो कानून का फैसला आने तक इंतजार करना हमारी मजबूरी भी है और इंसानियत का फर्ज भी। यह ठीक है कि कुछ राजनैतिक दल व एक विचारधारा विशेष से जुड़े लोग पीड़ित परिवारो को न्यायालय से दी गयी राहत को राजनीति के चश्में से देख रहे है और आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर इस तमाम कानूनी प्रक्रिया का राजनैतिक श्रेय लेने की कोशिशे शुरू हो गयी है लेकिन पीड़ित परिवारों की पैरोकारी कर रहे स्थानीय बुद्धिजीवियों व नेताओ ने यह मानकर चलना होगा कि यह एक लम्बी लड़ाई है और अभी इस लड़ाई की एक नये सिरे से शुरूवात हुई है अन्त नही। कानूनी नुक्तो का इस्तेमाल कर लड़ी जाने वाली इस लम्बी लड़ाई में जनता का पक्ष रखने के लिए कदम-कदम पर काबिज वकीलों व राज्य सरकार की मदद की दरकार होगी और इस तथ्य से इनकार नही किया जा सकता कि अगर पीड़ित जनता या उनसे संवेदनाऐं रखने वाला पक्ष इस वक्त जरा सा भी चूका तो वह इस सारे खेल में बामुश्किल वापसी के बावजूद इस खेल को हार जायेगा। वर्तमान हालात और किसी भी कीमत पर सत्ता के शीर्ष को हासिल करने के लिए उतावला दिख रहा विपक्ष यह संकेत दे रहा है कि अपने चुनावी गणित को मजबूत बनाने के लिऐ उसे किसी भी दाॅव पेंच या प्रचार के तरीके से परहेज नही है तथा गफूर बस्ती के मामले में स्थानीय जन प्रतिनिधि के तौर पर इन्दिरा हृदयेश द्वारा प्रदर्शित की गयी हठधर्मिता से यह भी स्पष्ट है कि गफूर बस्ती का मतदाता इन्दिरा हदेश की राजनैतिक जीत-हार के लिए काफी महत्व रखता है। इन हालातों में यह तय है कि आगामी विधानसभा चुनावों के दौरान हल्द्वानी विधानसभा क्षेत्र के राजनैतिक समीकरण बार-बार गफूर बस्ती के इर्द-गिर्द घूमंेगे और कई राजनैतिक दल अपने-अपने तरीके से इस मामले को उछालने व मतदाताओ के बीच ले जाने की कोशिश करेंगे। इन हालातों में यह स्थानीय नेतृत्व की जिम्मेदारी है कि वह अपने निजी राजनैतिक या आर्थिक फायदें केा छोड़कर इस मुद्दे पर लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ सकने में सक्षम पक्ष के साथ खड़े नजर आयें। पीड़ित पक्ष को समझना होगा कि उच्चतम न्यायालय द्वारा दी गयी यह राहत उनके लिऐ एक अन्तिम मौका है और ऐसे मौके बार बार नही आते। इसलिऐं पूरी ताकत के साथ अपना पक्ष रखने के लिऐ गफूर बस्ती की जनता ने एक ऐसे दमदार व्यक्तित्व का सामूहिक नेतृत्व स्वीकारना होगा, जो कि सक्षम भी हो व समझदार भी।