पं. नारायणदत्त तिवारी के बयानब्बें जन्म दिवस पर विषेष
उत्तराखंड के ही साथ -साथ उत्तर प्रदेश के भी मुख्यमंत्री रह चुके पं. नारायण दत्त तिवारी के बयानब्वे जन्म दिवस के अवसर पर किसी किस्म की चहल-पहल नही देखी गयी और न ही उनके एक इशारे पर जान लुटा देने की बात करने वाले उनके राजनैतिक शिष्यों ने इस दिन को कोई तवज्जों दी। यूं तो पं. नारायण दत्त तिवारी इस समय अस्वस्थ होने के चलते अस्तपाल में हैं और बुढ़ापे की बीमारी से पीड़ित उनकी देह अब शायद इस काबिल नहीं है कि वह नेताओं के जन्मदिवस के अवसर पर एकत्र होने वाली भीड़ व हर्षोल्लास का मतलब समझ सके लेकिन इस सबके बावजूद हमें उम्मीद थी कि अपने जीवन की अन्तिम अवस्था की ओर जा रहे इस बुजुर्गवार के एक और जन्मदिवस पर अगर कुछ आमोखास का जमावड़ा हो जाता तो क्या पता कि तथाकथित पर्वतपुत्र पं. नारायण दत्त तिवारी की कुछ सांस और चल जाती। हालांकि पं. नारायण दत्त तिवारी एक अरसा पहले सक्रिय राजनीति से न सिर्फ बाहर है बल्कि मध्य प्रदेश के राज्यपाल के रूप में उन पर लगे कुछ आरोपों के चलते उन्हें राजनेताओं की एक बड़ी लाॅबी ने अछूत मान लिया है लेकिन इस सबके बावजूद उत्तराखंड समेत उत्तर प्रदेश के भी एक बड़े भू-भाग में उनकी राजनैतिक हैसियत कम नही हुई और चुनावी मौकों पर उन्हें अपनाने के लिए कांग्रेस व सपा के अलावा उनकी विचारधारा के ठीक विपरीत राजनीति करने वाले राजनैतिक दल भाजपा के बीच होने वाली मुँह जुबानी जंग व बयानों की नूराकुश्ती से यह भी साबित हो जाता है कि कई तरह के किन्तु-परन्तु के बावजूद आज भी मतदाताओं के एक वर्ग के बीच पं. तिवारी को लेकर आशाएं व विश्वास बना हुआ है। यह माना कि एक लम्बी कानूनी प्रक्रिया के बाद घोषित हुए उनके कानूनी पुत्र रोहित शेखर के सामने आने के बाद इस वोट-बैंक में भी सेंध लगी है और पुत्र मोह या दबाव के चलते जीवन की अन्तिम पारी में भाजपा का रामनामी गमछा ओढ़ लेने की चर्चाओं के बावजूद उनका अपने पुत्र को ही टिकट दिलाने में असफल रहना यह साबित करता है कि अब वह राजनैतिक रूप से भी बूढ़े हो गये है लेकिन राजनीति के खेल में पंडितों के अलावा हर छोटे-बड़े राजनैतिक बदलाव या सामाजिक समस्या का व्यक्तिगत हित में फायदा उठाकर इसमें नोट पैदा करने की पारखी नजर रखने वाले कुछ बड़े खिलाड़ियों ने उन्हें अभी तक नहीं छोड़ा है और यह अंदाजा लगाया जा रहा है कि एक पूरा नेटवर्क पं0 नारायण दत्त तिवारी की रहस्यमय बीमारी का फायदा उठाते हुए देशभर में फैली नेहरू युवक केन्द्र की सम्पत्तियों पर कब्जा करना व इन्हें खुर्द-बुर्द करना चाहता है। चार बार उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री रहने के अलावा केन्द्र सरकार में भी विभिन्न पदो में रहे पं0 नारायण दत्त तिवारी अपने राजनैतिक जीवन की अन्तिम अवस्था में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री व मध्य प्रदेश के राज्यपाल रहे लेकिन इस लम्बे राजनैतिक जीवन के बावजूद उनकी निजी सम्पत्ति न के बराबर है और इन हालातों में जब उन पर यह आरोप साबित हुआ कि वह रोहित के जैविक पिता हैं तो जनता के बीच उन्हें लेकर स्वाभाविक नाराजी थी क्योंकि लोग उन्हें प्यार करने के अलावा अपना आदर्श मानते थे तथा जन चर्चाओं में भी यह स्पष्ट था कि पं. नारायण दत्त तिवारी के पास निजी पूँजी के रूप में ऐसा कुुछ नहीं है कि कोई भी युवा उसे पाने के लिए अपना भविष्य दांव पर लगा दे। इधर पिछले कुछ समय में पत्ते धीरे-धीरे कर खुल रहे है और अपने पिता की राजनैतिक विरासत को कब्जाने में पूरी तरह विफल हुए रोहित शेखर द्वारा नेहरू युवक केन्द्रो के मामले में दिखाया जा रहा आनावश्यक हस्तक्षेप यह इशारा भी कर रहा है कि इस तरह एकाएक पं. नारायण दत्त तिवारी का अपनी याददाश्त भूलते जाना और अपने निकटवर्तियों व बंधु-बांधवों के साथ बनती उनकी दूरी किसी साजिश का हिस्सा तो नहीं है। यह ठीक है कि निजी सम्बन्धों व व्यक्तिगत योग्यता से हटकर तड़क-भड़क व पैसे की उपलब्धता तक सीमित हो गयी भारतीय राजनीति में पुराने व थोड़ा बहुत भी सैद्धान्तिक लोगों के लिए कोई जगह नही बची है और देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी को सत्ता में आने के बाद भाजपा द्वारा किसी भी मौके पर उन्हें याद ही न करना या फिर शारिरिक रूप से स्वस्थ्य व जन समस्याओं के लिये अभी तक जूझ रहे आडवाणी व मुरली मनोहर जोशी जैसे नेताओं को भाजपा द्वारा नकार दिया जाना यह भली-भांति साबित करता है कि देश में चल रही राजनीति के वर्तमान दौर में राजनैतिक इतिहास के आधार पर नेता को सम्मान दिये जाने की परम्परा लगातार क्षीण हो रही है लेकिन पं. नारायण दत्त तिवारी का मसला सिर्फ राजनैतिक नहीं है बल्कि तथ्यों व तर्कों के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि एक लम्बे कानूनी संघर्ष के बाद उन्हें पिता के रूप में हासिल करने वाले रोहित शेखर ही उन्हें बर्बाद करना चाहते हैं और शायद यही वजह है कि वह अपने नब्बे वर्षीय बूढ़े व लाचार बाप को लेकर कभी समाजवादियों के पास दिखते हैं तो कभी भाजपा की चैखट पर। बिना किसी राजनैतिक योगदान के रोहित शेखर जब राज्य सरकार में मंत्रीपद हासिल करने में सफल हो जाते हैं तो उनकी राजनैतिक महत्वाकांक्षा का जागना स्वाभाविक है और उनकी यही अतिमहत्वाकांक्षा उन्हें मजबूर करती है कि वह एक शारीरिक रूप से कमजोर किन्तु जनता के दिलों पर राज करने वाले व्यक्तित्व को रिक्शे पर बिठाकर कुछ इस तरह जुलूस निकाले कि जिन्होंने पं. नारायण दत्त तिवारी के पुराने दिन देखे हों उन्हें भी रोना आ जाये। खैर यह एक पिता और पुत्र के बीच का निजी मामला है और तिवारी जी का व्यक्तिगत् रूप से सम्मान करने वाले लोग चाहकर भी इसमें दखल नहीं कर सकते लेकिन इस वयोवृद्ध नेता के बयानब्बे जन्म दिवस के अवसर पर एक बार फिर चर्चाओं में आ रहे नेहरू युवक केन्द्र व उसकी देशभर में फैली हजारों करोड़ की सम्पत्ति को कुछ दुष्ट व धंधेबाज किस्म के हाथों में जाने से रोकने की पहल की जा सकती है। यह पहल अवश्य की ही जानी चाहिए क्योंकि नेहरू युवक केन्द्र का यह सम्पूर्ण तंत्र सरकारी संसाधनों के सहयोग से सरकारी भूमि पर खड़ा है और उत्तर प्रदेश में समय-समय पर बनी अलग-अलग राजनैतिक दलों की सरकार की उदासीनता या फिर पं. नारायण दत्त तिवारी के विराट व्यक्तित्व व भ्रष्टाचार के किसी भी मामले में सामने नहीं आयी उनकी संलिप्तता के चलते इस पर ध्यान नहीं दिया गया लेकिन अब वक्त तेजी से करवट ले रहा है और हालात यह इशारा कर रहे हैं कि जीवन की अन्तिम सांस ले रहे पं. नारायण दत्त तिवारी की मृत्यु के बाद किसी भी वक्त नेहरू युवक केन्द्र की कार्यकारिणी व उसकी सम्पत्तियों को लेकर बड़ा बखेड़ा सामने आ सकता है। लिहाजा तत्कालीन विकास पुरूष और पहाड़ की आन, बान व शान कहे जा सकने वाले दो राज्यों के मुख्यमंत्री व विलक्षण प्रतिभा के धनी नेता पर उसकी मृत्यु के बाद संभावित रूप से लगते दिख रहे भ्रष्टाचार के छींटों से उन्हें बचाने के लिए तिवारी के तत्कालीन समर्थकों, परिजनों व उनकी विचारधारा पर विश्वास करने वाले लोगांे ने आगे आना चाहिए।