अपनी हार सुनिश्चित जान भाजपाई प्रचार तंत्र ने केजरीवाल को बताया खालिस्तान समर्थक ।
गोवा और पंजाब में बढ़े दिख रहे मतदान प्रतिशत् को देखते हुऐ सत्ता पक्ष व विपक्ष के तमाम दलों की बांहे खिली हुई है और लगभग सभी राजनैतिक दल व नेता इसे अपने पक्ष में बता रहे है लेकिन अगर हालातों व पिछले चुनाव नतीजों पर गौर करें तो यह सबकुछ आम आदमी पार्टी के खाते में जाता दिख रहा है और विभिन्न समाचार माध्यमों द्वारा प्रदर्शित आंकड़ों से अलग हटकर हम यह कहना चाहेंगे कि मतदाताओं के जोश व बदलाव को लेकर परिपक्व दिख रही उनकी मानसिकता के आधार पर यह कहा जा सकता है कि इस चुनाव के बाद आम आदमी पार्टी एक राष्ट्रीय राजनैतिक दल के रूप में हमारे सामने होगी। हांलाकि चुनाव नतीजे सामने आने से पहले भाजपा या कांग्रेस के लोग इस सच का स्वीकार नही करेंगे और नतीजों के सामने आने के बाद भी सत्ता के शीर्ष से धकियायें गये राजनैतिक चेहरे बेमेल गठबंधन बना या फिर जनादेश के खिलाफ आम आदमी पार्टी में तोड़फोड़ कर अपनी सरकार बनाने की कोशिश जरूर करेंगे लेकिन व्यापक बदलाव की ओर इशारा कर रही जनभावनाएं नेताओं की इन नापाक इच्छाओं को पूरा नही होने देंगी। कुछ तथाकथित राष्ट्रवादी ताकतें पंजाब में दिख रही अपनी स्पष्ट हार को ढ़कते-छुपाते हुऐ आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल पर खालिस्तान समर्थक अलगाववादियों क मदद से चुनाव लड़ने का आरोप लगा अपना बचाव चाहती है तथा उनकी कोशिश इस आरोंप-प्रत्यारोंप का फायदा उ.प्र. व उत्तराखंड के मतदान के दौरान उठाने की भी है। आकाली दल की पिछलग्गू बन दस सालों तक पंजाब की सत्ता पर काबिज रही भाजपा का मानना है कि पंजाब व गोवा में बढ़ा दिखता मतदान प्रतिशत् स्थानीय स्तर पर सत्ता पक्ष के खिलाफ नाराजी का नतीजा हो सकता है और अगर यह नाराजी उ.प्र. और उत्तराखंड के मामले में भी कायम रहती है तो यहां उसे मुख्य विपक्ष होने का फायदा मिल सकता है लेकिन भाजपा के रणनीतिकार यह समझ नही पा रहे है कि मतदाताओं द्वारा रिकार्ड मतदान के माध्यम से प्रदर्शित की गयी यह नाराजी सिर्फ स्थानीय स्तर पर या प्रदेश सरकारों के खिलाफ ही नही है बल्कि जनता अपने इस निर्णय के माध्यम से केन्द्रीय सत्ता को भी सुधर जाने की चुनौती देती मालुम होती है क्योंकि मोदी के वादो और नारो पर विश्वास करने वाली जनता को इन पिछले तीन वर्षों के मोदी राज में ऐसा कुछ भी हासिल नही हुआ है जिसे वह मोदी सरकार की उपलब्धि के तौर पर सामने रख सके। यह ठीक है कि आम आदमी पार्टी को पंजाब व गोवा के चुनावों में उस एनआरआई तबके का पूरा समर्थन मिला है जो कनाडा या न्यूयार्क के बडे़ शहरों में बैठकर आर्थिक सम्पन्नता के साथ अपना व्यवसाय चला रहा है तथा विदेशों मे रह रहे भारतीयों ने केजरीवाल को मदद करने के लिऐ उन्हें न सिर्फ भारी भरकम चंदा दिया है बल्कि दूर देशों में रह रहे कई एनआरआई इस चुनाव में आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों को चुनाव लड़ाने के लिऐ अपने-अपने गृह क्षेत्रों में डेरा जमाये रहे है या फिर उन्होंने टेलीफोन, ई-मेल, फेसबुक जैसे तमाम सूचना क्रान्ति के संसाधनों का इस्तेमाल कर आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों को जिताने की अपील की है लेकिन इसका मतलब यह तो नही कि तमाम बड़े शहरों में रहने वाले एनआरआई खालिस्तान समर्थक है या फिर वह केजरीवाल के चेहरे को आगे कर खालिस्तान की मुक्ति के आंदोलन का दूसरा अध्याय शुरू करना चाहते है। हकीकत यह है कि दूर देशों में रहकर मेहनत-मंजूरी कर अपने-भाई-बहनो की तरक्की के लिऐ विदेशों सके मोटा पैसा भेजने वाले यह तमाम एनआरआई अपनी मेहनत की कमाई को नशे के सौदागरों के हाथों में जाता देख हैरान व परेशान थे। नेताओं व उनके नजदीकियों के नशे के इस कारोबार में होने के कारण नशे के इन कारोबारियों को कोई नुकसान पहुंचा पाने में अक्षम, इन अपने गृह क्षेत्र के हिमायतियों को केजरीवाल के आंदोलनकारी अंदाज में एक उम्मीद दिखाई दी तो वह उसके पीछे हो लिये लेकिन खुद को राजनीति के इस खेल का बड़ा खिलाड़ी समझने वाले भाजपा और कांग्रेस के नेताओं को आम आदमी पार्टी को मिल रही यह लोकप्रियता रास नही आ रही या फिर वह दोनों ही राजनैतिक दल यह नही चाहते कि आगामी लोकसभा चुनावों में जूनून की हदों को छूने वाला समर्पित कार्यकर्ताओं का कोई दल उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर चुनौती दे। इसलिऐं पंजाब व गोवा में चल रहे प्रचार के साथ ही साथ इन दोनों दलों के बड़े नेताओं ने केजरीवाल पर अनगर्ल आरोंप लगाने व उन्हें देशद्रोही बताने का सिलसिला तेज कर दिया है और कोई बड़ी बात नही है कि पंाच राज्यों के चुनाव नतीजे सामने आने से पहले ही केन्द्र की सत्ता पर काबिज नरेन्द्र मोदी इस नवगठित राजनैतिक दल के खिलाफ छत्तीस जांचे शुरू कर कार्यवाही के आदेश न दे दें। खैर भाजपा के लिये यह राहत की बात हो सकती है कि हाल-फिलहाल उ0प्र. उत्तराखंड व मणिपुर के आम चुनाव में उसका मुकाबला आम आदमी पार्टी से होने वाला नही है लेकिन एक तयशुदा रणनीति के तहत भाजपा के लोग अब मुसलमानों से देश को खतरा बताने के साथ ही साथ खालिस्तान समर्थकों से भी देश को खतरा बताने की कोशिशों में जुट गये है और मतदाताओं के बीच डर का साम्राज्य कायम कर उन्हें मोदी व तथाकथित राष्ट्रवाद के नाम पर एकजुट करने की कोशिशें तेज हो गयी है। यह ठीक है कि उत्तराखंड मे उग्रवाद कोई मुद्दा नही है और उ.प्र. में सपा व कांग्रेस के एक मंच पर आ जाने के बाद इन दोनो ही प्रदेशों में यह मुकाबला कांग्रेस व भाजपा के बीच सीधा मुकाबला माना जा सकता है। भाजपा द्वारा इन दोनो ही राज्यों में मुख्यमंत्री पद के लिये कोई चेहरा घोषित न किये जाने को चलते खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही यहां चुनावी चेहरा है और इस तथ्य से इनकार नही किया जा सकता कि हिन्दी भाषी राज्यों का एक बड़ा हिस्सा होने के कारण इन दोनों ही राज्यों के विधानसभा चुनावों का एक अलग महत्व है। इन हालातों में भाजपा इन दोनों ही राज्यों के विधानसभा चुनावो का एक अलग महत्व है। इन हालातों में भाजपा इन दोनों ही राज्यों के विधानसभा चुनावों को 2019 के लोकसभा चुनावों का पूर्वाभ्यास मान सकती है और इसके लिऐ जरूरी है कि इन दोनो ही राज्यों के चुनाव में वह तमाम मुद्दे उठे जिनपर 2019 के लोकसभा चुनावों के वक्त प्रमुखता जोर दिया जाना है। इसलिऐं भाजपा जरूरत न होने के बावजूद भी अपने सूचना संचार माध्यमों के जरिये इन दोनों ही प्रदेशों में मतदान होने तक पंजाब के आंतकवाद के मुद्दे तथा खालिस्तान समर्थक लाबी के अरविंद केजरीवाल को समर्थन दिये जाने के अपने प्रचार पर जोर देती रहेगी और कांग्रेस भी इस प्रचार का कोई तात्कालिक नुकसान न देख इसका विरोध नही करेगी लेकिन इस पूरे दुष्प्रचार में वीरो की एक पूरी कौम तथा अपने क्षेत्र व प्रदेश का भला चाहने वाले विदेशों में बसे हमारे भाई-बन्धुओ को जो मानसिक तकलीफ होगी, उसकी चिन्ता किसी को नही है।
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