“मोदी ने खेला दलित कार्ड” राष्ट्रपति पद की दौड़ में पिछड़े आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी। | Jokhim Samachar Network

Wednesday, April 24, 2024

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“मोदी ने खेला दलित कार्ड” राष्ट्रपति पद की दौड़ में पिछड़े आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी।

भाजपा के रणनीतिकारों ने तयशुदा रणनीति के तहत बिहार के वर्तमान राज्यपाल रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर एक तीर से कई शिकार किये है और यह तय है कि राष्ट्रपति पद के लिऐ कोविंद का चुना जाना आगामी लोकसभा चुनावों में भाजपा को एक नई संजीवनी देगा क्योंकि संघ के नजदीक माने जाने वाले कोविंद न सिर्फ हिन्दूवादी विचारधारा के समर्थक है बल्कि एक गैरविवादित व दलित नेता के रूप में उनकी एक अलग पहचान है। उपरोक्त के अलावा कोविंद देश की आजादी के बाद उत्तर प्रदेश से बनने वाले पहले राष्ट्रपति होंगे और एक गरीब किसान परिवार से सम्बन्ध रखने वाले कोविंद का न सिर्फ राजनैतिक संघर्षों का एक अपना इतिहास है बल्कि पेशे से वकील होने के साथ ही साथ वह देश की सबसे बड़ी परीक्षा माने जाने वाले आईएस के इम्तहान को पास कर चुके है। यह ठीक है कि वह आज तक कोई चुनावी नही जीते है और सार्वजनिक जीवन में भी वह कोई इतना बड़ा नाम नही रहे है कि उनको राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाये जाने के बाद यह उम्मीद की जाये कि अब भाजपा उ.प्र. में सपा-बसपा के दलित वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाब होगी लेकिन इतना तय है कि विपक्षी दलों ने उ.प्र. की सियासत को ध्यान मे रखते हुये जो दलित बनाम सवर्ण का माहौल बनाने की कोशिश की थी, कोविंद का राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में चुनाव, उस माहौल को ठण्डा करते हुये प्रदेश के दलित मतदाताओं को भाजपा के पक्ष में जोड़ने का माहौल बनाऐगा तथा यह तय मानना चाहिऐ कि उनके एक सामान्य कार्यकर्ता से पहले राज्यसभा और फिर राज्यपाल बनते हुये राष्ट्रपति की कुर्सी तक पहुंचने का यह सिलसिला भाजपा से जुड़े हर सामान्य कार्यकर्ता के रक्त में नया उत्साह संचारित करने में सहायक होगा । हो सकता है कि विपक्ष कोविंद के नाम पर राजी न हो और विपक्षी राजनैतिक दलों के नेताओं द्वारा जोर आजमाइश के लिऐ किसी दलित नेता को ही चुनाव मैदान में उतारा जाये लेकिन आकड़ों के लिहाज से भी भाजपा व राजग का पक्ष ज्यादा मजबूत लगता है और कोविंद की जीत तय मानते हुये कहा जा सकता है कि इस बार राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारो के रूप मे एक राजनैतिक होते हुये भी गैर-राजनैतिक लगने वाले व्यक्तित्व का पलड़ा विपक्ष द्वारा संभावित रूप से आगे किये जाने वाले प्रत्याशी से भारी दिख रहा है। हालातों के मद्देनजर हम यह कह सकते है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के नेता के रूप में राष्ट्रपति पद के लिऐ कानपुर के रामनाथ कोविंद का नाम आगे कर नरेन्द्र मोदी व उसके सहयोगियों ने खेल शुरू होने से पहले ही यह बाजी जीत ली है और देश के प्रधानमंत्री द्वारा सत्ता पक्ष के उम्मीदवार के रूप में कोविंद के नाम पर मोहर लगाये जाने के बाद से ही यह भी तय हो गया कि अब सत्तापक्ष की राजनीति में अटल-आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी की प्रांसगिकता समाप्त हो चुकी है। अटल बिहारी वाजपेयी को तो देश का इतिहास एक प्रधानमंत्री के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान लिये गये तमाम अच्छे व बुरे फैसलों के लिऐ समय-समय पर याद करेगा तथा भाजपा के भीतर चलने वाली अन्दरूनी खींचतान में भी उन्हें नजरअंदाज किया जाना इतना आसान नही होगा लेकिन मुरली मनोहर जोशी व आडवाणी को लेकर अन्तिम उम्मीद भी अब कोविंद के नाम की इस घोषणा के साथ समाप्त हो गयी है और यह तय माना जाना चाहिऐं कि पूर्व से ही नेपृथ्य में छिंटका दिये गये इन दोनों ही बड़े नामों को न सिर्फ इतिहास में ही सीमित जगह मिलेगी बल्कि इन दोनों ही नेताओं के नजदीकी माने जाने वाले भाजपा के तमाम दूसरी व तीसरी श्रेणी के नेताओं को अब नये सिरे से अपने राजनैतिक सम्पर्क बनाने की दिशा में प्रयास करना होगा। हांलाकि यह कहना न्यायोचित नही होगा कि जिस तुष्टीकरण की राजनीति को आडवाणी व मुरली मनोहरी जोशी ने अपने पूरे राजनैतिक जीवन में अनदेखा किया उसी तुष्टिकरण की राजनीति ने भाजपा के इन दोनों ही नेताओं से राजनीति के शीर्ष पद को पाने का यह आखिरी मौका भी छीन लिया लेकिन इस तथ्य से इनकार नही किया जा सकता कि अगर संघ द्वारा देश के दलित मतदाताओं को साधने की जरूरत महसूस नही की जा रही होती तो शायद कोविंद को इतनी आसानी से मौका नही मिलता। जहाँ तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सवाल है तो इस तथ्य से इनकार नही किया जा सकता कि वह ऐसे मौको का राजनैतिक फायदा उठाना बखूबी जानते है और इस बार भी उन्होंने मौके का सही इस्तेमाल किया लेकिन अगर इस पूरे घटनाक्रम को दलितोत्थान की नजर से देखा जाय तो दूर-दूर तक ऐसा प्रतीत नही होता कि राष्ट्रपति के इस चुनाव में शत्-प्रतिशत् आरक्षण के आधार पर लिये गये इस निर्णय से देश की दलित जातियों या फिर हाॅसियं पर रहकर अपनी जिन्दगी गुजार रहे लोगों को किसी भी तरह का फायदा होगा। इतना सबकुछ जानने और समझने के बावजूद अगर हम इसे दलितोत्थान को ध्यान में रखते हुये सरकार या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा लिया गया निर्णय माने तो यह सत्ता पक्ष की ओर से राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाये गये रामनाथ कोविंद की प्रतिभा का अनादर होगा।

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