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Wednesday, April 24, 2024

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मंजिले अभी दूर है

जोर-षोर से शुरू हुये चुनाव प्रचार के बीच आसान नही है सत्ता पक्ष या विपक्ष की डगर

पूरे लावा लस्कर के साथ चुनाव प्रचार अभियान को निकले हरीश रावत अपने निर्वाचन क्षेत्र किच्छा व हरिद्वार (ग्रा0) में रोड शो के माध्यम से मतदाताओ से रूबरू होते हुऐ अपने प्रचार अभियान का आगाज कर चुके है और उनका अंदाज यह बता रहा है कि एक स्टार चुनाव प्रचारक के तौर पर वह चन्द बड़ी जनसभाऐ सम्बोधित करने की जगह सम्पूर्ण प्रदेश के तमाम विधानसभा क्षेत्रो में छोटे-छोटे कार्यक्रमो का आयोजन कर कार्यकर्ताओं को एकजुट करने तथा जनसामान्य के बीच अपनी बात रखने की कोशिश करेंगे। हांलाकि अभी भाजपा या कांग्रेस में से किसी का भी घोषणापत्र सामने नही आया है और न ही चुनाव मैदान में उतरने को तैयार दिख रहा इन दोनों ही दलो के कोई प्रत्याशी जनता के बीच मुद्दो या भविष्य की योजनाओं की बात कर रहा है लेकिन यह माना जा सकता है कि कांग्रेस के स्टार प्रचारक के रूप में हरीश रावत जब जनता के बीच जायेंगे तो उनके द्वारा की गयी घोषणाओं व सरकार की आगे की योजनाओं पर बात जरूर होगी तथा जनता के बीच अपना पक्ष रखते हुऐ हरीश रावत यह जरूर बताना चाहेंगे कि उन्हें क्यों पांच साल की सत्ता और चाहिऐ। यह ठीक है कि भाजपा के पास भी जनता के बीच जाने का अपना ऐजेण्डा है और हाईटेक तरीके से तैयार किये गये प्रचार रथो के अलावा नुक्कड़ नाटक की प्रस्तुति व भाजपा के तमाम बड़े नेताओं की जनसभाओं के माध्यम से जनता के बीच अपनी बात रखने की योजना भाजपा कार्य समिति की ओर से बनायी जा रही है लेकिन प्रदेश के विकास को लेकर भाजपा के पास भी कोई तय ऐजेण्डा नही है और न ही भाजपा के नेता जनता को यह बता पाने की स्थिति में है कि सरकार बनने की स्थिति में वह किस तरीके से नई शुरूवात करेंगे, जो पूर्ववर्ती सरकारों से अलग होगी। कांग्रेस के बागी विधायक व भ्रष्टाचार के आरोंप झेल रहे तमाम मन्त्रियों को भाजपा के प्रत्याशी के रूप मे चुनाव लड़ाने के बाद वर्तमान सरकार पर भ्रष्ट और बेईमान होने के आरोंप लगाना भाजपा के नेताओं के लिऐ आसान नही है और मुख्यमंत्री के स्टिंग को लेकर चुनाव आयोग द्वारा लगायी गयी रोक के बाद भाजपा की हरीश रावत की घेराबंदी करने की रणनीति भी कमजोर दिखायी देने लगी है लेकिन भाजपा के लोगों का मानना है कि इस बार वह केन्द्र की मोदी सरकार द्वारा किये जा रहे विकास कार्यो के समर्थन को लेकर जनता से मतदान करने का आवहन करेंगे और मोदी की नीतियों व कार्यशैली से विशेष रूप से खुश दिखाई देने वाली युवा पीढ़ी इस चुनाव को समग्र बदलाव का एक आंदोलन समझकर भाजपा के प्रत्याशी के पक्ष में मतदान करेगी। यह कहा नही जा सकता कि भाजपा की वर्तमान रणनीति कितनी प्रभावी होती है और स्थानीय मुद्दों को छोड़कर सिर्फ विकास के नाम पर वोट मांगने की बात करने वाली भाजपा अपनी पूर्ववर्ती सरकारों व संगठन के बेनर तले चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियो पर लगने वाले आरोंपो से अपना बचाव कैसे कर पाती है लेकिन यह तय दिखता है कि भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व इस चुनाव में उन तमाम भाजपाई चेहरों व प्रदेश स्तरीय भाजपा के नेताओं का बहुत ज्यादा इस्तेमाल करने के मूड में नही है जो किन्ही कारणों से चुनाव मैदान में नहीं है जबकि इसके ठीक दूसरे छोर पर कांग्रेस की ओर से वर्तमान मुख्यमंत्री हरीश रावत ही मुख्य चुनावी चेहरा है और इन तीन वर्षो में किये गये विकास कार्यो तथा एक जननेता के रूप में स्थानीय जनप्रतिनिधियो व सामान्य जनता के साथ गुजारे गये क्षणों के आधार पर ही वह इस चुनावी मुहिम का भार अपने अकेले कंधो में उठा पाने की हिम्मत जुटाते दिख रहे है। इस तथ्स से इनकार नही किया जा सकता कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व द्वारा किये गये सटीक चयन के चलते वर्तमान सरकार के तमाम मंत्री अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों तक सीमित नजर आते है और अगर हल्द्वानी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रही कांग्रेस की तेज तर्रार नेत्री इन्दिरा हृदयेश को छोड़ दिया जाय तो ऐसा प्रतीत होता है कि लगातार पांच साल तक सत्ता में रहकर मौज करते रहे तमाम कांग्रेसी मन्त्रियों में से कोई भी चेहरा ऐसा नही है जो अपने आस पास के किसी निर्वाचन क्षेत्र में प्रचार हेतु समय निकाल सके लेकिन इसे कांग्रेस के लिऐ कोई बहुत बड़ी समस्या नही माना जा सकता क्योंकि अपने पांच वर्षों के कार्यकाल में अपने विधानसभा क्षेत्र तक ही सिमटे रहे वर्तमान सरकार के तमाम विधायकों व मन्त्रियों का अपने आसपास वाले क्षेत्रों में ऐसा कोई मजबूत जनाधार भी नही है जो स्थानीय समीकरणो को बदल सकें। कुल मिलाकर कहने का तात्पर्य यह है कि आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर प्रदेश के हालात कुछ ऐसे बन रहे है कि अगर जीत हुई तो इसका पूरा श्रेय हरीश रावत को जायेगा लेकिन हार की स्थिति में यह कांग्रेस की सामूहिक हार होगी और मोदी के मुकाबले मजबूती से खड़े रहने के लिऐ हरीश रावत के जज्बे केो सलाम ही किया जायेगा। अब अगर इन चुनाव को कांग्रेस या भाजपा के राजनैतिक चश्में से देखने के स्थान पर इन चुनावों के जनता के बीच पड़ने वाले असर तथा चुनाव के बाद अस्तित्व में आने वाली अगली सरकार की प्राथमिकताओं की बात करें तो यह स्पष्ट दिखता है कि परिवर्तन के नारे के साथ मैदान में उतरी भाजपा बदलाव की बात तो करती है और उसके प्रचार अभियान में उत्तराखंड की मूलभूत समस्याओं का जिक्र भी दिखाई देता है लेकिन इस समस्याओं का कोई स्थायी समाधान बताने अथवा सरकार की प्राथमिकताओं को लेकर कोई भी ब्लू प्रिन्ट जनता के सम्मुख प्रस्तुत करने के मामले में वह अपना बचाव करती दिखाई देती है जबकि इसके ठीक विपरीत हरीश रावत इन तमाम समस्याओं का ठीकरा भाजपा के सर फोड़ते हुऐ स्पष्ट मुनादी करते है कि राज्य गठन के शुरूवाती दौर मे बनने वाली भाजपा के नेतृत्व वाली अन्तरिम सरकार ही इन तमाम समस्याओं की जननी है और वर्तमान में इसी तरह की तमाम उलझनों को दूर करने के लिऐ उन्हें पूरे पांच साल के जनादेश की आवश्यकता है। यह तो वक्त ही बतायेगा कि जनता इन दोनो ही दलो के बेनर तले मैदान में उतरे प्रत्याशियों या निर्दलीयों व अन्य छोटे दलो के उम्मीदवारों को लेकर क्या फैसला देती है लेकिन हालात यह इशारा कर रहे है कि सत्तर साल की उम्र में हरीश रावत एक बार फिर एक बड़े लक्ष्य को लेकर निकले है ओर उनके समर्थको का जज्बा किसी भी मोेर्चे पर कम होता नही दिख रहा। अब देखना यह है कि सड़को, चैराहों या फिर जनसभाओं के दौरान मिलते दिख रहे जनसमर्थन को मतदान केन्द्रों तक पहुँचाने में हरीश रावत किस हद तक कामयाब होते है।

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