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Friday, April 19, 2024

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बोल की लब आजाद है तेरे

छात्रों के आपसी संघर्ष का अखाड़ा बने डीयू व जेएनयू
दिल्ली विश्वविद्यालय में छात्रों के दो गुट एक बार फिर आमने सामने है और तनी हुई मुट्ठियों से पुलिस के खिलाफ नारेबाजी व दोषियों को सजा देने का नारा समुची दिल्ली को गुजांयमान कर रहा है। हांलाकि एक राजनैतिक विचारधारा से जुड़े कुछ सक्षम लोगों का मानना है कि राजधानी दिल्ली के जवाहर नेहरू विश्वविद्यालय व दिल्ली यूर्निवर्सिटी से जुड़े कुछ कालेजों में पनप रही राष्ट्र विरोधी विचारधारा को वामपंथियों व केन्द्र सरकार के विरोधी गुटो द्वारा शह दी जा रही है तथा वर्षो से जनवादीकरण के केन्द्र बने शिक्षा के यह तमाम मन्दिर राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के केन्द्र बने हुऐ है। जेएनयू या डीयू के राजनैतिक इतिहास को खंगालने के बाद इस तरह की आफवाहों को सच नही माना जा सकता और न ही इस तथ्य पर यकीन किया जा सकता है कि वैचारिक क्रान्ति के क्रान्तिकारी सूत्रों का आदान-प्रदान करने मात्र से इस देश की सुरक्षा व संप्रभुता को खतरा हो सकता है लेकिन तथाकथित राष्ट्रवाद का मुलम्मा ओड़कर सत्ता के शीर्ष पदो पर अपनी कब्जेदारी बनाये रखने को बेकरार राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ इस वक्त मौके का फायदा उठाकर उन तमाम कारणों को ही खत्म कर देना चाहता है जो उसके राजनैतिक अस्तित्व के लिऐ खतरनाक हो सकते है। यह तथ्य किसी से छुपा नही है कि दिल्ली पुलिस पूरी तरह केन्द्र सरकार के आधीन है और केन्द्र की सत्ता पर काबिज भाजपा ने अपनी इस कब्जेदारी का फायदा उठाते हुऐ राजनीति में नई-नई अवतरित होने वाली आम आदमी पार्टी के तमाम नेताओं, विधायकों व कार्यकर्ताओं पर विभिन्न मुकदमे दायर करने व उन्हें जेल के सींकचों के पीछे डालकर उनका चरित्रहरण करने के प्रयासों में कोई कमी नही छोड़ी है लेकिन अपने युवा कार्यकर्ताओं के दम पर तकनीकी का बेहतर उपयोग कर रहे अरविंद केजरीवाल भी सियासत के इस खेल में भाजपा व संघ के खिलाड़ियों से पीछे नही है और अपने हर कार्यकर्ता व विधायक की गिरफ्तारी के बाद वह मय तथ्यों के ऐसे सबूत सीधे जनता के बीच प्रस्तुत करते है कि भाजपा के नेताओं की चालाकी धरी की धरी रह जाती है। मीडिया के एक बड़े हिस्से पर काबिज हो खबरों को राजनैतिक फायदे या नुकसान के हिसाब से तौल कर प्रसारित करने की रणनीति अपना रही भाजपा की मुश्किल यह है कि तमाम सरकारी सावधानियों व अघोषित रोक के बावजूद दिल्ली में विधायकों व सरकार के मन्त्रियों की गिरफ्तारी से जुड़ा सच देर-सबेर जनता के पास पहुंच रहा है और एक बड़ी राजनैतिक ताकत के रूप में अपनी शुरूवात करने वाली आम आदमी पार्टी की लोकप्रियता कम होने से स्थान पर इसका जनाधार बढ़ता जा रहा है। भाजपा के बढ़े नेताओं व संघ के रणनीतिकारों का मानना है कि राष्ट्र में लागू उदारवादी अर्थव्यवस्था के बाद लगातार कमजोर हो रहे वामपंथी तथा वामपंथी विचारधारा को वैचारिक संबल देने वाले युवा व छात्र संगठन आने वाले कल में अरविंद केजरीवाल व आम आदमी पार्टी में अपना राजनैतिक भविष्य देख रहे है और केजरीवाल ने भी एक आन्दोलनकारी के रूप में इन युवा समूहों की संघर्ष क्षमता व एकजुटता को भली-भांति समझा है। शायद यही वजह है कि दिल्ली प्रदेश के विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी के मददगार बने यह तमाम छात्र नेता व युवा अब केजरीवाल के सलाहकार बन बैठे है और इनकी मदद से आम आदमी पार्टी अपने राजनैतिक विस्तार की दिशा में सधे हुऐ कदमों से आगे बढ़ रही है। भाजपा के रणनीतिकारों ने पहले पहल इन तमाम छात्रों व इनकी विचारधारा से जुड़े समर्थकों को उग्र वामपंथ का वाहक बताकर इनके संबंध माओवाद व पूर्वात्तर में हथियार बंद संघर्ष कर रहे नक्सलवादी लड़ाकों से जोड़ने की कोशिश की लेकिन जल्द ही जनता की समझ में आ गया कि कागज और कलम या फिर कम्प्यूटर के माध्यम से वैचारिक संघर्ष का दावा करने वाले यह तमाम नौजवान बन्दूक व बम की लड़ाई से कोसों दूर है। इसलिऐं अब भाजपा व संघ के लोग इन तमाम जनवादी छात्र संगठनों के साथ सीधे टकराकर इन्हें खत्म कर देने की रणनीति पर काम कर रहे है और एक तयशुदा रणनीति के तहत पहले कहैन्या व उमर खालिद तथा अब माया कृष्ण राव व सृष्टि श्रीवास्तव समेत तमाम युवा वक्ताओं व विचारकों के खिलाफ जहर उगलकर इन्हें राष्ट्रद्रोही घोषित करने की रणनीति पर काम किया जा रहा है। दिल्ली के रामजस कालेज में ‘अभिव्यक्ति की आजादी‘ जैसे विषयों पर आयोजित एक सेमीनार से भाजपा या उसके अनुषांगिक संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को ऐसी क्या आपत्ति हो सकती है, यह कहा नही जा सकता लेकिन अगर संघ के कार्यक्रमों व मोदी सरकार की कार्यशैली पर विचार करें तो पहली नजर में यह समझ में आ जाता है कि भाजपा व उसका नीतिनिर्धारक संघ हमेशा से ही आम जनता की अभिव्यक्ति की आजादी छीनने के पक्षधर रहे है और शायद इसीलिऐं मोदी सरकार ने सत्ता संभालते ही सबसे पहला हमला छोटे व मझोंले समाचार पत्रों पर किया हैं। यह सरकार की नीतियों का ही परिणाम है कि आमजन तक सच्ची व तथ्य पूरक खबर पहुंचाने का सशक्त माध्यम माने जाने वाले छोटे व मझोंले समाचार पत्र तेजी से कानूनी प्रक्रियाओं की गिरफ्त में आ अपना अस्तित्व खो रहे है और समाचारों को अपने तरीके व लाभ के लिऐ प्रकाशित व प्रसारित करवाने की चाह रखने वाला सत्तापक्ष इस जिम्मेदारी को कुछ बड़े समूहों तक ही सीमित रखना चाहता है। हालातों के मद्देनजर हम यह कह सकते है केन्द्रीय सत्ता पर एक विचारधारा विशेष की इस कब्जेदारी के बाद तमाम जनवादी ताकतें तथा आम आदमी की बात करने वाले समाचार समूह अपने अस्तित्व की रक्षा के लिऐ संघर्ष कर रहे है जबकि सत्ता के मद में चूर तानाशाह अपनी ताकत के बलबूते इन्हें कुचल देना चाहते है। अब देखना यह है आखिर जीत किसकी होती है।

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