भारतीय नागरिक कुलभूषण जाधव को दी गयी पाकिस्तान में सजाये मौत पाकिस्तान की फौजी अदालत ने आनन-फानन में भारतीय मूल के कुलभूषण जाधव को सजाये मौत देकर एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि उसकी नजर में कानून की कोई अहमियत नही है और न ही वह अन्तर्राष्ट्रीय नियमों व प्रतिबन्धों की परवाह करता है। यूं तो पाकिस्तानी फौज के आला हुक्मराॅनों की हर चाल के पीछे एक साजिश छिपी होती है और भारत व पाकिस्तान सरकार के बीच किसी भी स्तर की वार्ता प्रारम्भ होने की उम्मीदों के बीच यह तय माना जाता है कि पाकिस्तानी फौज इस बीच में कोई न कोई ऐसी नापाक हरकत जरूरत करेगी जो दोनो देशों के बीच सम्बन्ध सुधरने की कोशिश पर पानी फेर दे लेकिन भारत के विदेश मंत्रालय व पाकिस्तान स्थित भारत के उच्चायोग को यह उम्मीद नही थी कि कुलभूषण जाधव के मामले में पाकिस्तानी सेना के आलाधिकारी सारी हदें पार कर कानून को अपने हाथ में ले लेंगे। इस तथ्य से इनकार नही किया जा सकता कि पकड़े जाने के बाद जासूस की शिनाख्त कर पाना मुश्किल होता है और उस देश की सरकार ही उसे पहचानने से इनकार कर देती है जिस देश के लिऐ वह काम कर रहा होता है लेकिन कुलभूषण के मामले में स्थितियां पूरी तरह बदली हुई है क्योंकि भारत सरकार ने उनकी शिनाख्त न सिर्फ अपने देश की नौसेना के लिऐ वर्ष 2002 तक काम कर चुके एक अधिकारी के तौर पर की है बल्कि यह बताया गया है कि गिरफ्तारी के समय तक वह ईरान में रहकर अपना व्यवसाय कर रहे थे। इन हालातों में पाकिस्तान सरकार ने यह साबित करना चाहिऐं कि जाधव तीन मार्च 2016 को अपनी गिरफ्तारी के लिऐ ईरान से बलूचिस्तान क्यों और कैसे आये लेकिन पाकिस्तानी सेना ने जाधव को सफाई प्रस्तुत करने का कोई भी मौका दिये बगैर ही उन्हें अपराधी घोषित कर दिया और सुरक्षा बलो की अभिरक्षा में दिये गये उनके इकबालिया बयान के आधार पर उन्हें भारतीय जासूसी ऐजेन्सी राॅ का ऐजेन्ट बताते हुऐ उनपर मुकदमा दर्ज कर लिया गया। यहां पर यह ध्यान देने योग्य विषय है कि भारत और पाकिस्तान दोनो ब्रिटिश परम्परा के कानूनों से संचालित है और इन दोनों ही देशों की न्यायिक परम्परा में पुलिस अथवा सुरक्षा बलो के समक्ष दिये गये इकबालिया बयान की कोई अहमियत नही है। पाकिस्तान की सरकार और इस मामले के जांचकर्ताओं के पास कुलभूषण जाधव के खिलाफ और कोई सबूत और गवाह नही था। शायद यहीं वजह थी कि प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के विश्वस्त और विदेशी मामलों के सलाहकार सरताज अजीज ने कुछ ही समय पहले राष्ट्रीय असेम्बली में कहा था कि सरकार के पास कुलभूषण जाधव को दण्डित करने के लिऐ पुख्ता सबूत नही है। हांलाकि उनके इस बयान के बाद विपक्ष व मीडिया द्वारा इस मुद्दे पर मचाई गयी हाय-तोबा के बाद नवाज शरीफ सरकार ने रक्षात्मक मुद्रा में आते हुऐ बयान दिया कि तफतीश अभी जारी है लेकिन इस पूरे घटनाक्रम का सच यह है कि जाधव के मामले में पाकिस्तानी जांच ऐजेन्सियों ने न तो कोई जांच की और न ही उन्हें अपने बचाव का कोई मौका दिया गया। इस सबसे इतर जाधव को सजा देने की जल्दबाजी में पाकिस्तान सरकार ने उनपर एक फौजी अदालत में मुकदमा चलाया और यह फौजी अदालत कोई आंतक विरोधी या हाल ही में गठित ऐसी अदालत नही थी जिसमें न्यायाधीश के रूप में फौज के अधिकारी बैठते है या फिर नागरिक अदालतो की तरह सबूत व जिरह के आधार पर कार्यवाही की जाती है बल्कि यह एक ऐसी अदालत थी जो पाकिस्तानी आर्मी ऐक्ट के तहत संचालित होती है और जिसमें बैठने वाले जजो की कानूनी काबिलियत हमेश संदिग्ध रहती है। उम्मीद की जानी चाहिऐं कि भारत सरकार इस पूरे मामले में नैसर्गिक न्याय के बुनियादी अधिकारों के तहत वैश्विक अदालतों का दरवाजा खटखटायेगी और विदेश में रहकर कारोबार कर रहे एक भारतीय नागरिक को अकारण अपने प्राण नही गंवाने पड़ेेंगे। भारत सरकार के लिऐ यह एक चिन्ता का विषय हो सकता है कि पाकिस्तान सरकार को यूं ही एकाएक जाधव को सजाये मौत देने की क्या वजह आन पड़ी और वह कौन सी वजह थी जिसके चलते पाकिस्तानी हुक्मराॅन व फौज के आला अफसर एक बेबस भारतीय नागरिक को सजाये मौत देकर हमारी सरकार को संदेश देने की कोशिश कर रहे थे। यह ठीक है कि भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इस सम्पूर्ण मामले को संज्ञान में लेते हुऐ कुलभूषण जाधव की भारत वापसी के लिऐ सभी तरीके आजमाने की घोषणा की है और इस मामले में पाकिस्तान सरकार को भी कड़ी चेतावनी देते हुऐ पाकिस्तान सरकार के इस फैसले को न्याय का मजाक बताया गया है लेकिन फिलहाल समय कम है और इस मामले में जो कुछ भी करना होगा अगले दो माह के भीतर करना होगा।