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Tuesday, April 16, 2024

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बदलते समीकरणों के बीच

लालकुॅआ विधानसभा क्षेत्र में दिखाई देता है लाल झण्डे का कुछ वजूद

नैनीताल जिले की महत्वपूर्ण सीट मानी जा रही लालकुॅआ विधानसभा में एक बार फिर चुनावी घमासान के हालात पैदा हो गये है और ऐसा प्रतीत हो रहा है कि इतिहास द्वारा एक बार फिर खुद को दोहराये जाने वाले अन्दाज में चुनावी जोड़-तोड़ का खेल शुरू हो गया है। नामांकन प्रक्रिया के अन्तिम दौर में यह स्पष्ट दिख रहा है कि पिछली बार निर्दलीय चुनाव जीते हरीश चन्द्र दुर्गापाल इस बार फिर काॅग्रेस का झण्डा थामकर मैदान में है तो पिछली बार के काॅग्रेस प्रत्याशी हरेन्द्र बोरा ने निर्दलीय ताल ठोक रखी है जबकि भाजपा से नवीन दुम्का और वामपंथी गठबन्धन से पुरषोत्तम शर्मा चुनाव मैदान में डटे हुऐ है। इनके अलावा निर्दलीय व क्षेत्रीय दलो के बेनर तले चुनाव मैदान में उतरने वाले या उतरने को लालायित प्रत्याशियों की एक लम्बी लिस्ट लालकुॅआ विधानसभा में तैयार हो रही है तथा इन सभी प्रत्याशियों के अपने-अपनेे आॅकड़े व अपने-अपने समीकरण है लेकिन अनुभवी लोगो का मानना है कि मुख्य चुनावी मुकाबला नवीन दुम्का, हरेन्द्र बोरा और मौजूदा विधायक व पीडीएफ कोटे से मन्त्री हरीश दुर्गापाल के बीच होने जा रहा है जबकि वामपंथी दलो के संयुक्त प्रत्याशी के रूप में पुरषोत्तम शर्मा इस मुकाबले को चतुष्कोणीय बनाने का प्रयास कर रहे है। वैसे अगर विधानसभा क्षेत्र की प्रकृति के अनुरूप बात करे तो लालकुॅआ पेपर मिल व सैकड़ो किलोमीटर तक फैलाव वाले गोला नदी का खनन क्षेत्र इसे श्रमिक बाहुत्य व स्वाभाविक रूप से वामपंथी रूझान वाला विधानसभा क्षेत्र बताता है लेकिन वामपंथी नेताओ की कमजोरी व निहित स्वार्थो के प्रति उनके समर्पण के चलते यहाॅ वामपंथियो का प्रभाव क्षेत्र सीमित है तथा कारखाना श्रमिको के बीच काम कर रहे बीस-पच्चीस श्रमिक संगठनो में से किसी भी मजबूत संगठन में उनकी पैठ नही के बराबर है। वामपंथी नेताओ का कुछ जनाधार इस क्षेत्र के भूमिहीन किसानो व वन भूमि पर दशको से काबिज बिन्दुखत्ता क्षेत्र में अवश्य दिखता है तथा सरकार द्वारा बिन्दुखत्ता को नगरपालिका क्षेत्र घोषित करने के खिलाफ हुऐ जनांदोलन में वामपंथी नेताओ की प्रमुख भूमिका को देखते हुऐ स्थानीय जनता के एक हिस्से का रूझान वामपंथियों की ओर प्रतीत होता है लेकिन वामपंथी जनसामान्य के बीच किसी भी तरह का प्रभाव छोड़ने में असफल नजर आते है और पिछले विधानसभा चुनावों में इस क्षेत्र के वामपंथी प्रत्याशी स्व0 मानसिह पाल उर्फ पाल बाबा द्वारा बिन्दुखत्ता क्षेत्र में संगठन कार्यालय हेतु निशुल्क रूप से प्रदत्त भूमि पर अपना राज्यस्तरीय कार्यालय स्थापित करने के बावजूद भी वामपंथी नेता जनता को साथ लेकर चलने में असफल नजर आते है जबकि इसके ठीक विपरीत भाजपा का इस क्षेत्र में ठीक ठीक जनाधार दिखता है और विधानसभावार टिकट के दावेदारों की एक लम्बी सूची होने के बावजूद भी इस क्षेत्र में भाजपा के कार्यकर्ताओं के बीच बगावत की स्थिति नही दिखती। यहीं समीकरण इस बार इस विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के दावेदार को मजबूती देते है और स्थानीय स्तर पर जनता के बीच मौजूदा विधायक को लेकर गुस्सा या नाराजी है तो उसका सीधा फायदा इस बार भाजपा प्रत्याशी नवीन दुम्का को मिलता प्रतीत होता है। बिना किसी लाग लपेट के सीधे व सच्चे व्यक्तित्व माने जाने वाले नवीन अपनी मिलनसारता की वजह से लोकप्रिय तो है लेकिन यहीं तमाम गुण मौजूदा विधायक हरीश चन्द्र दुर्गापाल में भी होने व इन दोनो ही दावेदारों के एक ही समान रिश्तेदारी व बिरादरी के होने से इन क्षेत्र के मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग दुविधा में भी दिखता है। भाजपा को इस क्षेत्र में अपने समर्पित कार्यकर्ताओं का बड़ा सहारा है जबकि निर्दलीय चुनाव जीत चुके हरीश दुर्गापाल को भी काॅग्रेस के पदाधिकारियों व नेताओं से तालमेल बैठाने में कोई परेशानी नही है बल्कि अगर हकीकत में देखा जाय तो इस बार हरीश रावत व इन्दिरा हृदयेश के एक ही खेमे में होने तथा यशपाल के काॅग्रेस छोड़ने के बाद दुर्गापाल काॅग्रेस प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरने में बड़ी राहत महसूस कर रहे है। अब अगर इस मुकाबले को त्रिकोणीय बना चुके इस क्षेत्र से काॅग्रेस के दावेदार व पूर्व विधानसभा प्रत्याशी हरेन्द्र बोरा की बात करे तो पिछले पाॅच-सात वर्षो से क्षेत्र में लगातार, सक्रिय दिख रहे इस नेता की मेहनत को भी कम करके नही आंका जा सकता। लालकुॅआ विधानसभा के ही एक अलग हिस्से गोलापार से आने वाले हरेन्द्र की बिन्दुखत्ता क्षेत्र में तो लगातार सक्रियता है ही साथ ही उन्हे उम्मीद है कि काॅग्रेस हाईकमान द्वारा इस बार उन्हे टिकट न दिया जाना जनसाधारण के बीच उन्हे सहानुभूति दिला सकता है। हाॅलाकि यह कहना मुश्किल है कि हरीश रावत व इन्दिरा हृदयेश के खुलकर हरीशचन्द्र दुर्गापाल के साथ होने तथा यशपाल आर्या के काॅग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने के बाद काॅग्रेस का कौन सा खेमा हरेन्द्र बोरा के चुनाव प्रचार की कमान सम्भालता है लेकिन अपने नामांकन के दौरान ठीक-ठाक जमात इक्कठा करने वाले हरेन्द्र बोरा के तेवर यह इशारा कर रहे है कि काॅग्रेस और भाजपा दोनो के लिऐ ही हरेन्द्र बोरा को इस चुनावी खेल से बाहर करना आसान नही होगा। कुल मिलाकर अगर देखा जाय तो हम यह कह सकते है कि आने वाले दिनो में लालकुॅआ विधानसभा क्षेत्र का यह चुनावी मुकाबला और भी ज्यादा दिलचस्प हो जायेगा तथा कुछ नये चेहरो के सामने आने के बाद चुनावी गणित में कुछ और भी बड़े बदलाव आयेंगे लेकिन यह तय है कि इस विधानसभा क्षेत्र में होने वाली चुनावी जंग में श्रमिक वर्ग से जुड़े मतदाताओं की अपनी अहमियत बनी रहेगी और यह उनपर निर्भर करता है कि वह अपनी वोट बैंक की संयुक्त ताकत का अहसास नेताओं व राजनैतिक दलो को कैसे कराते है।

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