शपथ के साथ ही अस्तित्व में आया नयी सरकार का मन्त्रीमण्डल।
अठारह मार्च की काबिलेगौर तारीख को इतिहास में दर्ज करते हुऐ भाजपा के रणनीतिकारों ने उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री समेत नौ अन्य मन्त्रियों के शाही शपथ ग्रहण का आयोजन देहरादून के परेड ग्राउण्ड में किया और इस शपथ ग्रहण समारोह में खुद भागीदारी करते हुऐ देश के प्रधानमंत्री ने मानो प्रदेश की जनता को अस्वस्त किया कि ‘मैं हूॅ ना’। काबिलेगौर है कि उत्तराखण्उ में भाजपा को मिले प्रचण्ड बहुमत के लिऐ मोदी के नाम के जादू को ही जिम्मेदार माना जा रहा है और यह कहने में भी कोई हर्ज नही है कि इन पिछले सोलह-सत्रह सालो में राज्य में हुई राजनैतिक उठापटक से हैरान व परेशान जनता वर्तमान में भी सहमी हुई है लेकिन मोदी के नाम का आश्वासन उसे यह मानने को मजबूर कर रहा है कि राज्य को एक स्थिर व विकासपूरक सरकार मिलेगी। हाॅलाकि त्रिवेन्द्र सिह रावत के नेतृत्व में गठित उत्तराखण्ड सरकार के वर्तमान मन्त्रीमण्डल में तमाम समीकरणों को ध्यान रखते हुऐ काॅग्रेस से बगावत कर भाजपा में शामिल हुऐ डा0 हरक सिह रावत, यशपाल आर्या, रेखा आर्या व सुबोध उनियाल समेत अध्यात्मिक गुरू सतपाल महाराज को भी मन्त्रीमण्डल की शपथ दिलायी गयी है और भाजपा खेमे से प्रकाश पन्त, धनसिह रावत, मदन कौशिक व अरविन्द पाण्डे को मन्त्रीमण्डल में शामिल किया गया है लेकिन इस सारी जद्दोजहद के बाद भी ऐसे तमाम नाम छूट गये है जिन्हे अपनी योग्यता के बल पर इस मन्त्रीमण्डल में जगह मिलनी चाहिऐ थी। हम यह तो नही कहते कि मन्त्रीमण्डल चयन को लेकर विशेषाधिकार रखने वाले मुख्यमंत्री को शीघ्र ही इस सवाल का जबाव देना चाहिऐं कि इस मन्त्रीमण्डल में कुछ स्थानो को रिक्त क्यों रखा गया है या फिर योग्य होने के बावजूद वर्तमान में पीछे छूट गये सम्मानित विधायको समेत नये जोश के साथ विधानसभा पहॅुचे कुछ पुराने व नये विधायको को कब तक तमाम छोटी-बड़ी जिम्मेदारियों से नवाजा जायेगा लेकिन राज्यहित में माननीय मुख्यमंत्री ने राज्य की यह जरूर बताना चाहिऐं कि पूर्ण बहुमत वाली भाजपा की वर्तमान सरकार आगे आने वाले वक्त में दायित्वों व लाल बत्तियों की बन्दरबाॅट करेगी या नही। यह ठीक है कि एक नवनियुक्त मुख्यमंत्री के रूप में त्रिवेन्द्र सिह रावत के लिऐ यह सब कुछ इतना आसान नही है और उनपर लगे ढैचा बीज घोटाले के आरोंपो के साथ ही साथ उनके मन्त्रीमण्डलीय सहयोगी के रूप में विराजमान सतमाल रावत (महाराज) व हरक सिह रावत उनकी राह इतनी आसान भी नही होने देंगे लेकिन फिर भी यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आगे आने वाले कल में त्रिवेन्द्र सिह रावत की सरकार किस तरह के फैसला लेेती है ? इस तथ्य से इनकार नही किया जा सकता कि पिछले वर्ष अठारह मार्च को तख्त पलट करने की कोशिशों के बाद काॅग्रेस के बागी नेताओ व टीम मोदी ने पूरे एक वर्ष मेहनत कर यह सफलता हासिल की है और यह तथ्य काबिलेतारीफ है कि इस एक वर्ष में बड़े जनाधार व बड़ी महत्वाकाॅक्षाओं के बावजूद भाजपा के लोगो ने मोदी व अमित शाह के फैसले को जस का तस शिरोधार्य किया है लेकिन अगर इतिहास उठा कर देखे तो राज्य निर्माण के बाद से वर्तमान तक मुख्यमंत्री के रूप में सामने आये सभी आठ चेहरों में से चार पौड़ी से रहे है और त्रिवेन्द्र सिह रावत का भी यहीं पौड़ी कनैक्शन आम आदमी के दिल को धड़का रहा है। काबिलेगौर है कि राजनैतिक रूप से जागरूक माने जाने वाले पौड़ी जिले के मूल निवासी कहलाने वाले भुवन चन्द्र खंडूरी, रमेश पौखरियाल ‘निशंक’ और विजय बहुगुणा पार्टी हाईकमान तक अपनी मजबूत पकड़, एक व्यापक जनाधार व कुशल राजनैतिक शैली के बावजूद भी मुख्यमंत्री के रूप में अपना कार्यकाल पूरा करने में असफल रहे और इन तीनो ही मुख्यमंत्रियों को असली चुनौती विपक्ष से नही बल्कि अपने ही संगठन के लोगो व विधायको से मिली। इन हालातों में त्रिवेन्द्र का भी मूलतः पौड़ी जिले से होना एक खतरे की घन्टी तो है लेकिन यहाॅ पर हम यह मान लेते है कि त्रिवेन्द्र सिह रावत ने अपनी राजनैतिक पारी की शुरूवात पौड़ी से नही बल्कि देहरादून से की है और मुख्यमंत्री पद के लिऐ उनका चयन किसी छुटपुट नेता ने नही बल्कि राजनैतिक करिश्में के लिऐ मशहूर मोदी और अमित शाह की जोडी ने किया है। इसलिऐं इतनी जल्दी भाजपा के भीतर त्रिवेन्द्र रावत विरोधी सुर उठने की आशंका पर विचार नही किया जाना चाहिऐ और न ही यह मानकर चलना चाहिऐं कि खुद भ्रष्टाचार के आरोंपों से घिरे त्रिवेन्द्र सिह रावत अपनी सरकार के अन्य नामचीन नेताओ को ऐसा कोई मौका देगे। अगर ऐसा हुआ तो इस नवगठित राज्य के इतिहास में अगले पाॅच साल स्वर्णिम युग के रूप में याद किये जायेंगे वरना इस ऐतिहासिक अठारहा मार्च के दिन को हर छोटे-बड़े चुनाव में रो-रोकर दोहराया जायेगा।